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अनियोजित शहरीकरण की चुनौतियाँ

  • 01 Aug 2023
  • 18 min read

यह एडिटोरियल 31/07/2023 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित ‘‘Smart ideas for big cities’’ पर आधारित है। इसमें भारत में अनियोजित शहरीकरण से जुड़े मुद्दों के बारे में चर्चा की गई है।

प्रिलिम्स के लिये:

केंद्रीय जल आयोग, मानसून, जलग्रहण क्षेत्र, बाढ़ ग्रसित हॉटस्पॉट क्षेत्र, डॉपलर रडार, ड्रेनेज मास्टर प्लान, वर्षा जल संचयन, अपशिष्ट जल उपचार योजना, भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS)

मेन्स के लिये:

भारत में अनियोजित शहरों से उत्पन्न समस्याओं का समाधान, बाढ़ आपदा से संबंधित शमन उपाय।

हाल के समय में देश भर के प्रमुख शहरों में ‘शहरी बाढ़’ (Urban Flood) की बारंबारता और गंभीरता में वृद्धि हुई है। दिल्ली, अहमदाबाद, मुंबई, हैदराबाद, श्रीनगर, चेन्नई और बेंगलुरु जैसे शहरों में भारी वर्षा के दौरान बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हुई। इसके परिणामस्वरूप शहरी निवासियों को जलभराव और ट्रैफिक जाम जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ा, जिससे उनके दैनिक जीवन में क्षति और व्यवधान उत्पन्न हुआ। 

शहरी बाढ़ की बारंबार और बढ़ती समस्या एक प्रणालीगत समस्या है और इसका मूल कारण, अन्य मामलों को दरकिनार कर केवल आर्थिक लाभ को प्राथमिकता देना। 

शहरी बाढ़: 

  • शहरी बाढ़ घनी आबादी वाले क्षेत्रों में भूमि के जलप्लावन (inundation) की स्थिति है, जो जल निकासी प्रणालियों की क्षमता से अधिक वर्षा होने के कारण उत्पन्न होती है। 
    • शहरी बाढ़, ग्रामीण बाढ़ से अलग स्थिति है क्योंकि शहरीकरण से जलग्रहण क्षेत्र विकसित होते हैं, जिससे बाढ़ की चरम सीमा 1.8 से 8 गुना और बाढ़ की मात्रा 6 गुना तक बढ़ जाती है। 
      • परिणामस्वरूप, तेज़ प्रवाह के कारण बाढ़ बहुत तेज़ी से आती है (कुछ ही मिनटों में)। 

शहरी बाढ़ में वृद्धि के कारण:

  • जलवायु परिवर्तन: 
    • इससे अप्रत्याशित मौसम प्रतिरूप विकसित होता है, जिससे तीव्र वर्षा, ग्रीष्म लहर और चक्रवात उत्पन्न होते हैं। 
  • अनियोजित शहरी विकास: 
    • प्राकृतिक संसाधनों पर अनियोजित एवं अवैध गतिविधियों का तीव्र विस्तार शहरों को असुरक्षित बनाता है। 
      • अनियोजित शहरीकरण और जनसंख्या वृद्धि के साथ, निर्माण कार्यों में वृद्धि हुई है (विशेषकर निचले इलाकों में) और इसके परिणामस्वरूप जल निकायों की हानि हुई है। 
  • मानव अतिक्रमण: 
    • कंक्रीट संरचना का निर्माण, शहरी बाढ़ का कारण है। 
      • जैसे-जैसे शहर में कंक्रीट संरचना की वृद्धि होती जा रही है (पक्के फुटपाथ, सड़कों और बसावट के माध्यम से), वर्षा जल का रिसाव कम हो गया है, जिससे वर्षा जल के अत्यधिक अपवाह में वृद्धि हुई है। 
  • अपर्याप्त बाढ़ प्रबंधन: 
    • कई शहरों में उचित बाढ़ नियंत्रण प्रणाली का अभाव है। उदाहरण के लिये शहरी भारत में प्रायः जलभराव की समस्या देखी आती है, जो नगर निकाय की तैयारी में कमी को उजागर करती है। 
    • अधिकांश भारतीय शहर नदी के पास बसे हैं, जो वृहत बाढ़ के मैदान और आर्द्रभूमियों से संबंधित होते हैं। 
    • भारत में पिछले 30 वर्षों में 40 प्रतिशत तक आर्द्रभूमि क्षेत्रों में कमी आई है। 
      • उदाहरण के लिये, बड़ौदा में वर्ष 2005 और 2018 के बीच 30 प्रतिशत आर्द्रभूमि में कमी आई। 
      • वर्ष 1997 में दिल्ली में 1,000 जल निकाय थे, लेकिन अब केवल 700 बचे हैं। प्राकृतिक ‘ब्लू इंफ्रास्ट्रक्चर’ के इस तरह के नुकसान से बाढ़ के खतरे बढ़ गए हैं। 
      • दिल्ली को वर्ष 2005 से 2023 के बीच बाढ़ की चार बड़ी घटनाओं का सामना करना पड़ा है। 
  • अपशिष्ट निपटान संबंधी मुद्दे: 
    • जल निकासी प्रणालियों में ठोस अपशिष्ट के अनुचित निपटान से बाढ़ की समस्या और गंभीर हो जाती है। 

शहरी बाढ़ में वृद्धि के कारण शहरी क्षेत्रों के समक्ष उत्पन्न चुनौतियाँ: 

  • अवसंरचना की क्षति: 
    • भारी वर्षा और बाढ़, इमारतों और सड़कों को नुकसान पहुँचा सकती है, जिससे दैनिक जीवन में व्यवधान उत्पन्न हो सकता है। उदाहरण: भारतीय शहरों में बार-बार जलजमाव की स्थिति। 
  • परिवहन में व्यवधान: 
    • सड़कों और सार्वजनिक परिवहन प्रणालियों में जलजमाव से यातायात में बाधा उत्पन्न होती है, जिससे लोगों के लिये शहर में आवागमन कठिन हो जाता है। 
  • आपातकालीन प्रतिक्रिया: 
    • अप्रत्याशित आपदाएँ शहर के संसाधनों पर दबाव डालती हैं और बजट को विकास के बजाय पुनरुद्धार या रिकवरी की ओर पुनर्निर्देशित करती हैं। 
  • प्रदूषण संबंधी मुद्दे: 
  • बड़ी मात्रा में दूषित अपवाह शहरी जल निकासी प्रणालियों को प्रभावित कर सकता है, जिससे ‘फ्लैश फ्लड’ की स्थिति बन सकती है। 
  • सार्वजनिक स्वास्थ्य जोखिम: 
    • शहरी बाढ़ से जलजनित बीमारियाँ, दूषित पेयजल और रोगजनकों के प्रसार का परिदृश्य बन सकता है। 
  • खाद्य, जल और ऊर्जा सुरक्षा: 
    • प्राकृतिक आपदाएँ इन बुनियादी आवश्यकताओं को खतरे में डालती हैं, विशेष रूप से तटीय शहरों में। 
  • सामाजिक असमानता: 
    • शहरी बाढ़ प्रायः निम्न आय वाले समुदायों और हाशिये पर स्थित समूहों सहित भेद्य/संवेदनशील आबादी को अधिक प्रतिकूल रूप से प्रभावित करती है। 

भारत के शहरी नियोजन में व्याप्त कमियाँ:  

  • जल निकाय संबंधी मानचित्रण की उपेक्षा: 
    • देश में सतही जल निकायों के व्यापक मानचित्रण और दस्तावेज़ीकरण का अभाव है, जबकि नेशनल डेटाबेस फॉर मैपिंग एट्रिब्यूइट्स (National Database for Mapping Attributes) में इसकी अपेक्षा की गई है। ऐसी सूचना का अभाव प्रभावी बाढ़ प्रबंधन और शहरी नियोजन को बाधित करता है। 
  • अपर्याप्त पूर्व-चेतावनी प्रणाली: 
    • विश्वसनीय पूर्व-चेतावनी प्रणाली को लागू करने की विफलता वर्ष 2013 में उत्तराखंड में आए विनाशकारी बाढ़ के दौरान स्पष्ट हो गई थी। 
    • राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (National Disaster Management Authority- NDMA) लोगों को आसन्न बाढ़ और भूस्खलन के बारे में प्रभावी ढंग से सूचित नहीं कर सका था, जिसके कारण समय पर निकासी उपायों की कमी की स्थिति बनी। 
  • अग्रसक्रिय दृष्टिकोण के बजाय प्रतिक्रियाशील दृष्टिकोण: 
    • बार-बार देखा गया है कि शहरी नियोजन प्राधिकार और सरकारी एजेंसियाँ आपदा हेतु तैयारियों का महत्त्व तब समझती हैं जब आपदा आ जाती है। वर्ष 2015 में चेन्नई की बाढ़ और वर्ष 2018 में केरल की बाढ़ जैसी भारी आपदाओं के समय भी इस बात की पुष्टि हुई। 
  • स्थानीय निकायों की सीमित तैयारी: 
    • स्थानीय निकायों में प्रायः आपदा स्थितियों के कुशलतापूर्वक प्रबंधन हेतु पर्याप्त प्रशिक्षण, साधनों और सुविधाओं का अभाव नज़र आता है। आपदा शमन का दायित्व मुख्य रूप से NDMA/SDMA के भरोसे छोड़ दिया जाता है, जो एक सशक्त स्थानीय स्तर की प्रतिक्रिया क्षमताओं की आवश्यकता को उजागर करता है। 
  • आपदा निधि का दुरुपयोग: 

आगे की राह:  

  • अध्ययन और प्रबंधन योजनाओं का विकास: 
    • शहरी जल निकायों और भूमि उपयोग से जुड़े बाढ़ के खतरों और जलग्रहण क्षेत्र को समझने के लिये सभी शहरों में अध्ययन किये जाने चाहिये। 
  • जल निकायों को पुनर्जीवित करने के लिये लघु, मध्यम और दीर्घकालिक उपाय: 
    • झील और नदी प्रबंधन योजनाओं को परिभाषित किया जाए और इनके रखरखाव तथा अतिक्रमण से मुक्ति के लिये स्थानीय नागरिकों को संलग्न किया जाए। 
    • स्थानीय जल निकायों को टैग करने, अतिक्रमणों पर नज़र रखने और मौसम को समझने के लिये भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS) का उपयोग किया जाए। 
  • पूर्व-चेतावनी प्रणाली और डेटा एकीकरण में निवेश: 
    • बदलते मौसम पैटर्न पर रियल-टाइम अपडेट के लिये डॉप्लर रडार सहित अधिकाधिक पूर्व-चेतावनी प्रणालियों में निवेश किया जाए। 
    • स्थानीय वर्षा डेटा को केंद्रीय जल आयोग (CWC) और क्षेत्रीय बाढ़ नियंत्रण प्रयासों के साथ एकीकृत किया जाए। 
    • बाढ़ प्रवण क्षेत्रों या ‘फ्लडिंग हॉटस्पॉट’ के लिये सिमुलेशन आयोजित किये जाएँ, विशेष रूप से जब वर्षा पैटर्न बदल रहे हैं। 
  • शहर-व्यापी डेटाबेस और आपदा राहत तंत्र का विकास: 
    • बाढ़ संबंधी आपदा की स्थिति में तत्काल राहत प्रदान करने के लिये शहर-व्यापी डेटाबेस में निवेश किया जाए। 
    • निकासी और वर्षा जल नेटवर्क का पुनरुद्धार एवं विस्तार किया जाए। 
  • शहरों के लिये जल निकासी मास्टर प्लान का विकास करना: 
    • मौजूदा पाइपलाइनों (अपवाह या वर्ष जल) का सर्वेक्षण किया जाए और जल-जमाव वाले क्षेत्रों को चिह्नित किया जाए। 
  • शहरी नियोजन और समन्वय में सुधार: 
    • शहरी जल प्रबंधन से संलग्न एजेंसियों और संस्थानों के बीच समन्वय में सुधार लाया जाए। 
    • आर्द्रभूमि और जल निकाय संरक्षण के बारे में जागरूकता का प्रसार किया जाए। 
    • एक सुस्पष्ट शहरी जल नीति विकसित की जाए। 
    • केंद्रीय आर्द्रभूमि नियामक प्राधिकरण (Central Wetland Regulatory Authority) जैसे नियामक निकायों को सांविधिक शक्तियों के साथ सशक्त बनाया जाए। 
    • शहरी जल प्रबंधन में नागरिक भागीदारी को प्रोत्साहित किया जाए। 
  • राष्ट्रीय जल नीति के मसौदे की सिफ़ारिशों का पालन करना: 
    • शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में पारंपरिक स्थानीय जल निकायों के संरक्षण एवं पुनरुद्धार पर नए सिरे से बल देने की आवश्यकता है। 
      • ये जल निकाय बेहतर जल स्तर और गुणवत्ता के साथ-साथ बाढ़ शमन के लिये (विशेष रूप से रेन गार्डन एवं बायोसवेल्स, अर्बन पार्क, ग्रीन रूफ और ग्रीन वाल्स जैसे क्यूरेटेड इंफ्रास्ट्रक्चर के माध्यम से) शहरी नील-हरित अवसंरचना का निर्माण करेंगे। 

शहरी बाढ़ पर नियंत्रण के लिये सफल पहलों के कुछ उदाहरण: 

  • मैंगलोर सिटी कॉरपोरेशन (MCC) ने उद्योगों के लिये सीमित और अनियमित जल आपूर्ति को हल करने के लिये अंतिम-उपयोगकर्ता लिंकेज के साथ अपशिष्ट जल उपचार संयंत्र स्थापित किये हैं। 
  • सीवेज अपवाह और सुपोषण (eutrophication) से मुक़ाबला करने के लिये बेंगलुरु के कैकोंद्रहल्ली झील (Kaikondrahalli Lake) से गाद निकाली गई, वनस्पति को हटाया गया और इसकी गहराई एवं भंडारण क्षमता को 54% तक बढ़ाया गया। 
  • कुछ देश स्पंज सिटीज़ (Sponge Cities) की अवधारणा के साथ प्रयोग कर रहे हैं। 
    • स्पंज सिटी इस प्रकार का शहर है जिसे इस तरह से डिज़ाइन किया जाता है कि यह वर्षा जल के लिये स्पंज की तरह कार्य करता है। यहाँ जल अवशोषित होता है और मृदा के माध्यम से प्राकृतिक रूप से फ़िल्टर होकर जलभृत (aquifers) तक पहुँच जाता है। जलभृत का पुनर्भरण शहर की जल आवश्यकताओं की पूर्ति करने में मदद करता है। 

शहरी विकास के लिये भारत सरकार द्वारा की गई प्रमुख पहलें: 

निष्कर्ष: 

  • पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की जलवायु परिवर्तन आकलन रिपोर्ट (2020) में भारी वर्षा की आवृत्ति में वृद्धि की चिंताजनक प्रवृत्ति पर प्रकाश डाला गया है, जिससे पूरे भारत में (विशेषकर शहरी क्षेत्रों में) बाढ़ का खतरा बढ़ गया है। 
  • इस मुद्दे को प्रभावी ढंग से हल करने के लिये तत्काल कार्रवाई आवश्यक है। शहरी बाढ़ की चुनौती से सफलतापूर्वक निपटने के लिये केंद्र, राज्य और स्थानीय सरकारों के साथ-साथ नागरिकों की सक्रिय भागीदारी को संलग्न करते हुए सहयोगात्मक दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। 

अभ्यास प्रश्न: भारत में शहरी बाढ़ से संबंधित मुद्दों को बताते हुए बाढ़ के विभिन्न कारणों की चर्चा कीजिये। भारत में शहरी बाढ़ की समस्या के समाधान हेतु कुछ उपाय भी सुझाइये। 

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स:

प्र. भारत में दशलक्षीय नगरों, जिनमें हैदराबाद एवं पुणे जैसे स्मार्ट शहर भी सम्मिलित हैं, में व्यापक बाढ़ के कारण बताइये। इसके स्थायी निराकरण के उपाय भी सुझाइये। (2020)

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