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सऊदी-पाकिस्तान निकटता के बीच भारत के हितों की दिशा

  • 22 Sep 2025
  • 103 min read

यह एडिटोरियलWhy India shouldn’t be worried by Saudi-Pak deal” पर आधारित है, जो द इंडियन एक्सप्रेस में 21/09/2025 को प्रकाशित हुआ था। यह लेख सऊदी–पाकिस्तान पारस्परिक रक्षा समझौता, बदलती पश्चिम एशियाई सुरक्षा परिस्थितियों के बीच इसके समय तथा क्षेत्रीय स्थिरता और भारत के रणनीतिक हितों पर इसके प्रभाव की समीक्षा करता है। 

प्रिलिम्स के लिये: स्ट्रैटेजिक म्यूचुअल डिफेंस एग्रीमेंट (SMDA), NATO का अनुच्छेद 5, अब्राहम समझौता, हूती, EX-SADA TANSEEQ-I, खाड़ी सहयोग परिषद (GCC), I2U2 

मेन्स के लिये: स्ट्रैटेजिक म्यूचुअल डिफेंस एग्रीमेंट (SMDA) की प्रमुख विशेषताएँ, SMDA का भू-राजनीतिक प्रभाव 

2025 के सितंबर में सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच एक स्ट्रैटेजिक म्यूचुअल डिफेंस एग्रीमेंट (SMDA) पर हाल ही में हस्ताक्षर करना मध्य पूर्व और दक्षिण एशियाई भू-राजनीति में एक ऐतिहासिक घटना के रूप में देखा गया। यह कूटनीतिक उन्नयन न केवल क्षेत्रीय सुरक्षा समीकरणों को पुनः परिभाषित करता है, बल्कि वैश्विक व्यवस्था पर भी प्रभाव डालते हुए भारत के सामने नई रणनीतिक चुनौतियाँ खड़ी करता है। 

सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच हुए स्ट्रैटेजिक म्यूचुअल डिफेंस एग्रीमेंट की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं? 

  • एग्रीमेंट/समझौते की शर्तें: स्ट्रैटेजिक म्यूचुअल डिफेंस एग्रीमेंट (SMDA) सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच सामूहिक रक्षा को औपचारिक बनाता है, जिसमें कहा गया है कि “Any aggression against either country shall be considered an aggression against both अर्थात् किसी भी देश के विरुद्ध कोई आक्रमण दोनों के विरुद्ध आक्रमण माना जाएगा।” 
    • यह समझौता स्थायी समन्वय के लिये तंत्र स्थापित करता है, जिसमें एक संयुक्त सैन्य समिति, खुफिया साझाकरण व्यवस्थाएँ (Intelligence Sharing Arrangements) और विस्तारित प्रशिक्षण कार्यक्रम शामिल हैं। 
    • यह पाकिस्तान की लंबे समय से चली आ रही सैन्य उपस्थिति को सऊदी अरब में औपचारिक रूप प्रदान करता है और यह सऊदी अरब के आशय को दर्शाता है कि वह फारसी खाड़ी की सुरक्षा में पाकिस्तान की रणनीतिक भूमिका को बढ़ाना चाहता है। 
    • हालाँकि परमाणु सहयोग का संकेत दिया गया है, लेकिन यह समझौता स्पष्ट रूप से पाकिस्तान की परमाणु छत्र (Nuclear Umbrella) को सऊदी अरब तक नहीं बढ़ाता है। 
  • समय और रणनीतिक संदर्भ: SMDA की घोषणा उस समय हुई जब इज़रायल ने कतर पर हमला किया था, जो क्षेत्रीय असुरक्षा के प्रति सऊदी अरब की संवेदनाओं को उजागर करता है। 
    • कतर में अल-उदीद एयरबेस स्थित है, जो पश्चिम एशिया में सबसे बड़ा अमेरिकी सैन्य बेस है और बिना प्रबल अमेरिकी प्रतिक्रिया के हमला यह संकेत करता है कि सऊदी अरब केवल अमेरिकी सुरक्षा गारंटी पर निर्भर नहीं रह सकता। 
    • समय इस बात को दर्शाता है कि खाड़ी की सुरक्षा स्थिति में परिवर्तन हो रहा है, जहाँ क्षेत्रीय खतरों में वृद्धि हो रही है और अमेरिकी भागीदारी को कम होते हुए देखा जा रहा है। 
  • समझौते के पीछे के कारक: 
    • अमेरिका का पीछे हटना: अमेरिका की पूर्वी एशिया की ओर रणनीतिक परिवर्तन और ईरान समर्थित हमलों के दौरान सऊदी तेल सुविधाओं पर की गई निष्क्रियता (वर्ष 2019) ने विश्वसनीयता में कमी का संकेत दिया। 
    • गाज़ा युद्ध और इज़रायल की कार्रवाइयाँ: अक्तूबर 2023 में हमास के हमले और उसके बाद इज़रायल की सैन्य प्रतिक्रिया ने क्षेत्र को अस्थिर कर दिया, जिससे सऊदी अरब की अब्राहम समझौतों के तहत इज़रायल के साथ संबंध सामान्य करने की योजना प्रभावित हुई। 
    • यमन में हूती: हूतीयों ने मिसाइल और ड्रोन क्षमताओं का विस्तार किया, सऊदी तेल अवसंरचना और समुद्री मार्गों को निशाना बनाया तथा यमन के आधे हिस्से सहित सना पर नियंत्रण कर लिया, जिससे लगातार सुरक्षा चुनौतियाँ उत्पन्न हुईं। 

सऊदी-पाकिस्तान समझौता क्षेत्रीय भू-राजनीति और वैश्विक रणनीतिक व्यवस्था को कैसे प्रभावित करता है? 

  • खाड़ी और पश्चिम एशियाई सुरक्षा संरचना का पुनर्नियोजन: SMDA पश्चिम एशिया में पाकिस्तान की औपचारिक सुरक्षा भूमिका को संस्थागत बनाता है, जो परंपरागत रूप से अमेरिकी सुरक्षा गारंटी पर निर्भर क्षेत्र है। 
    • यह समझौता दोनों देशों को यह प्रतिबद्ध करता है कि किसी एक देश पर आक्रामकता को दोनों के विरुद्ध आक्रामकता माना जाएगा, जो NATO के अनुच्छेद 5 के समान सामूहिक रक्षा मॉडल (Collective Defense Model) का संकेत देता है। 
    • परमाणु-क्षमता वाले पाकिस्तान के साथ सुरक्षा संबंध दृढ़ करके, सऊदी अरब बहु-संरेखण सुरक्षा रणनीतियों की ओर परिवर्तन का संकेत देता है, जिससे अमेरिका पर एकांगी निर्भरता कम होती है। 
    • यह कदम एक रणनीतिक शून्यता उत्पन्न कर सकता है, जिससे चीन और रूस को क्षेत्र में अपनी प्रभावशीलता बढ़ाने का अवसर मिल सकता है, क्योंकि रियाद अनिश्चितताओं के विरूद्ध सुरक्षा के लिये साझेदारियों का विविधीकरण कर रहा है। 
  • परमाणु प्रसार संबंधी चिंताएँ और रणनीतिक स्थिरता के जोखिम: कहा जाता है कि इस समझौते में पाकिस्तान की परमाणु  छत्र को सऊदी अरब तक विस्तारित करने के प्रावधान शामिल हैं, जो पहले से तनावपूर्ण क्षेत्र में प्रसार संबंधी चिंताओं को बढ़ाते हैं। 
    • यह औपचारिक संबंध प्रतिद्वंदी देशों के बीच सुरक्षा दुविधाओं को बढ़ाता है और वैश्विक गैर-प्रसार प्रयासों को जटिल बनाता है। 
    • अब पाकिस्तान से संबंधित कोई भी सैन्य संघर्ष क्षेत्रीय स्तर पर परमाणु टकराव का संकट उत्पन्न कर सकता है, जिससे दक्षिण एशिया और मध्य पूर्व अस्थिर हो सकते हैं। 
  • भारत के सापेक्ष पाकिस्तान का संवर्द्धित रणनीतिक आत्मविश्वास: यह समझौता पाकिस्तान की भू-राजनीतिक स्थिति को सशक्त बनाता है, संभावित रूप से भारत के विरुद्ध उसकी निवारक रणनीति को सशक्त करता है। 
    • सऊदी अरब के समर्थन के साथ, इस्लामाबाद कश्मीर और सीमा-पार आतंकवाद पर अधिक साहसी रुख अपना सकता है, जिससे नई दिल्ली के लिये सुरक्षा जोखिम बढ़ते हैं। 
    • पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ने एक संभावित भारत-पाकिस्तान युद्ध में सऊदी समर्थन की पुष्टि करते हुए बदलते सुरक्षा पैमानों को रेखांकित किया है। 
  • भारत–सऊदी अरब संबंधों और कूटनीतिक संतुलन पर प्रभाव: समझौते के बावजूद, सऊदी अरब भारत के सबसे बड़े ऊर्जा आपूर्तिकर्त्ताओं और आर्थिक साझेदारों में से एक बना हुआ है। 
    • नई दिल्ली को दिये गए रियाद के आश्वासन इस बात पर ज़ोर देते हैं कि इस्लामाबाद के साथ अपने विकसित होते गठबंधन का प्रबंधन करते हुए वह रणनीतिक साझेदारी को जारी रखेगा। 

पिछले कुछ वर्षों में भारत-सऊदी अरब संबंध किस प्रकार विकसित हुए हैं? 

  • ऐतिहासिक और विकसित होते कूटनीतिक संबंध: 
    • भारत और सऊदी अरब ने 1947 में कूटनीतिक संबंध स्थापित किये। दिल्ली घोषणा (2006) और रियाद घोषणा (2010) के साथ यह संबंध महत्त्वपूर्ण रूप से उन्नत हुए, जिससे इसे रणनीतिक साझेदारी का दर्जा मिला। 
    • उच्च स्तरीय दौरे, जिनमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वर्ष 2016, 2019 और 2025 में सऊदी अरब के राज्य दौरे और सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के वर्ष 2019, 2023 और 2025 में भारत दौरे शामिल हैं, ने द्विपक्षीय संबंधों को और दृढ़ किया। 
  • आर्थिक और व्यापारिक आयाम: 
    • द्विपक्षीय व्यापार वित्तीय वर्ष 2024-25 में लगभग 42 बिलियन डॉलर तक पहुँच गया, जिसमें भारत के निर्यात 11.75 बिलियन डॉलर और सऊदी अरब से आयात 30.12 बिलियन डॉलर रहा। 
    • भारत के प्रमुख निर्यात में चावल, विमान/एयरक्राफ्ट, मोटर वाहन और रसायन/केमिकल्स शामिल हैं। 
    • सऊदी निवेश (जिसमें पब्लिक इन्वेस्टमेंट फंड शामिल है) टेलीकॉम, खुदरा/रिटेल और नवीकरणीय ऊर्जा में लगभग 10 बिलियन डॉलर का है, जबकि भारत का सऊदी अरब में निवेश लगभग 3 बिलियन डॉलर है।
  • ऊर्जा सुरक्षा साझेदारी: 
    • सऊदी अरब भारत का तीसरा सबसे बड़ा कच्चा तेल और LPG आपूर्तिकर्त्ता है, जो ऊर्जा सुरक्षा को सुनिश्चित करता है। 
    • महाराष्ट्र में 44 बिलियन डॉलर का वेस्ट कोस्ट रिफाइनरी और पेट्रोकेमिकल्स प्रोजेक्ट, जो सऊदी अरामको के साथ एक संयुक्त उद्यम है, सहयोग को आगे बढ़ाता है। 
    • भारत और सऊदी अरब ने नवीकरणीय ऊर्जा और रणनीतिक पेट्रोलियम भंडार में सहयोग को भी बढ़ाया है। 
  • बढ़ती हुई रक्षा और रणनीतिक सहयोग: 
    • रक्षा संबंध वर्ष 2020 के बाद तेज़ी से बढ़े हैं, जिसमें संयुक्त नौसैनिक अभ्यास (अल मोहेद अल हिंदी शृंखला) और वर्ष 2023 में पहली बार आयोजित संयुक्त स्थल सेना अभ्यास (EX-SADA TANSEEQ-I) शामिल हैं। 
    • भारत-सऊदी रणनीतिक साझेदारी परिषद को वर्ष 2025 में व्यापक बनाया गया, जिसमें एक रक्षा सहयोग समिति भी शामिल की गई, जो तेज़ हुई सैन्य सहयोग और क्षेत्रीय सुरक्षा में साझा रुचि को दर्शाती है। 
  • सामाजिक-सांस्कृतिक और जन-संपर्क संबंध: 
    • सऊदी अरब में भारतीय प्रवासी समुदाय, जिसकी संख्या लगभग 2.7 मिलियन अनुमानित है, दृढ़ सामाजिक-सांस्कृतिक संबंधों को बढ़ावा देती है। 
    • धार्मिक संबंध भी महत्त्वपूर्ण बने हुए हैं, हज कोटा (Hajj Quotas) में वृद्धि और तीर्थयात्रियों के लिये बेहतर प्रबंधों के साथ। सांस्कृतिक सहयोग लगातार बढ़ रहा है, जिससे द्विपक्षीय साझेदारी का एक स्तंभ बने जन-संपर्क संबंध दृढ़ होते हैं। 

सऊदी–पाकिस्तान रक्षा समझौते के बीच भारत अपनी रणनीतिक हितों की रक्षा के लिये कौन-कौन से नीतिगत उपाय अपना सकता है? 

  • सऊदी अरब और खाड़ी देशों के साथ रणनीतिक और रक्षा सहयोग को दृढ़ करना: भारत को सऊदी अरब के साथ अपने रक्षा और रणनीतिक साझेदारी को दृढ़ करना चाहिये, जिसमें संयुक्त सैन्य अभ्यास, खुफिया जानकारी साझाकरण और रक्षा प्रौद्योगिकी सहयोग का विस्तार शामिल हो। 
    • वर्ष 2025 में भारत-सऊदी रणनीतिक साझेदारी परिषद का विस्तार कर इसे एक रक्षा सहयोग समिति शामिल करना एक कदम आगे है। 
    • भारत को अन्य खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) सदस्यों जैसे UAE, ओमान और कतर के साथ संबंध भी दृढ़ करने चाहिये, ताकि एक सुरक्षा साझेदारों का नेटवर्क तैयार किया जा सके जो सऊदी-पाकिस्तान धुरी का संतुलन बना सके। 
  • कूटनीतिक संलग्नता और बहुपक्षीय संपर्क/आउटरीच को बढ़ाना: भारत को संयुक्त राष्ट्र, G20 और I2U2 जैसे बहुपक्षीय मंचों द्वारा लाभ प्राप्त करना चाहिये ताकि क्षेत्रीय सुरक्षा खतरों के संबंध में जागरूकता बढ़ाई जा सके, जिसमें इस संधि द्वारा उत्पन्न परमाणु प्रसार के जोखिम शामिल हैं। 
    • अमेरिका, यूरोपीय संघ और मध्य पूर्वी साझेदारों, जिनमें ईरान भी शामिल है, के साथ सक्रिय कूटनीति यह सुनिश्चित कर सकती है कि समझौते के अस्थिर प्रभावों के प्रति भारत की चिंताओं को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त हो। 
  • सैन्य आधुनिकीकरण और खुफिया क्षमताओं को तेज़ करना: इस समझौते और सऊदी समर्थन के माध्यम से पाकिस्तान द्वारा प्राप्त बढ़ी हुई रणनीतिक आत्मविश्वास को देखते हुए, भारत को अपनी सशस्त्र सेनाओं के आधुनिकीकरण में तेज़ी लानी चाहिये, विशेष रूप से पारंपरिक खतरों और सीमा-पार आतंकवाद का सामना करने के लिये। 
    • पश्चिमी सीमाओं पर प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों, साइबर सुरक्षा और निगरानी को सुदृढ़ करना अत्यंत महत्त्वपूर्ण होगा। 
    • खुफिया जानकारी संग्रहण और त्वरित प्रतिक्रिया बलों के लिये संसाधनों को बढ़ाना यह सुनिश्चित करेगा कि भारत विश्वसनीय निवारक क्षमता बनाए रखे, क्योंकि पाकिस्तान के साथ किसी भी संघर्ष के व्यापक क्षेत्रीय प्रभाव हो सकते हैं। 
  • खाड़ी क्षेत्र और उससे परे ऊर्जा और आर्थिक साझेदारियों में विविधता लाना: सऊदी अरब भारत के लिये एक महत्त्वपूर्ण ऊर्जा आपूर्तिकर्त्ता और आर्थिक साझेदार है। 
    • इन संबंधों की सुरक्षा करते हुए, भारत को अन्य खाड़ी देशों के साथ संबंध दृढ़ करके और खाड़ी अर्थव्यवस्थाओं से जुड़े नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं में निवेश करके ऊर्जा स्रोतों में विविधता लानी चाहिये। 
    • भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEC) जैसी पहलों में रणनीतिक निवेश, संवेदनशील आपूर्ति शृंखलाओं पर निर्भरता को कम करेगा और भारत की भू-राजनीतिक प्रभावशीलता को बढ़ाएगा। 
    • पश्चिम एशिया में अपने हितों का संतुलन बनाए रखने हेतु, भारत इरान के साथ संबंधों को रणनीतिक रूप से दृढ़ कर सकता है, विशेष रूप से चाबहार परियोजना को पुनर्जीवित करके, जो वर्तमान में अमेरिकी प्रतिबंध छूट के कारण तनाव में है, जबकि यह सुनिश्चित करता है कि इसका दृष्टिकोण इज़रायल के साथ संबंधों को कमज़ोर न करे। 
    • व्यापार और प्रौद्योगिकी साझेदारियों को दृढ़ करना आर्थिक संबंधों का संतुलन बनाए रखेगा, भले ही सुरक्षा गठबंधनों में परिवर्तन हो। 

निष्कर्ष:

जैसा कि विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर अक्सर कहते हैं, “भारत का मार्ग यह होना चाहिये कि वह अधिक निर्णयकर्त्ता या रूपरेषाकार बने, न कि परहेज करने वाला… न कि विघटनकारी, बल्कि एक स्थिरीकरण शक्ति जो अपनी क्षमताओं का उपयोग वैश्विक कल्याण के लिये करे।” सऊदी-पाकिस्तान रक्षा समझौता इस आवश्यक कदम को और दृढ़ता प्रदान करता है, जो भारत से यह अपेक्षा करता है कि वह प्रतिक्रियाशील रुख से आगे बढ़कर सक्रिय, रणनीतिक रूप से स्वतंत्र और कूटनीतिक रूप से सक्रिय भूमिका अपनाए। 

रक्षा तैयारी को दृढ़ करके, साझेदारियों में विविधता लाकर और क्षेत्रीय सुरक्षा संवाद को आकार देकर, भारत न केवल अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा कर सकता है बल्कि विकसित हो रहे बहुध्रुवीय क्रम में एक स्थिरीकरण शक्ति के रूप में अपनी स्थिति को भी सुदृढ़ कर सकता है। 

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. “सऊदी–पाकिस्तान रक्षा समझौता पश्चिम एशिया के बदलते सुरक्षा परिदृश्य को उजागर करता है, जिसका प्रभाव दक्षिण एशिया पर भी पड़ता है।” इस संदर्भ में, चर्चा कीजिये कि भारत अपने हितों की रक्षा कैसे कर सकता है और बहुध्रुवीय विश्व में एक स्थिरीकरण शक्ति के रूप में अपनी भूमिका को कैसे दृढ़ कर सकता है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न

प्रिलिम्स

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन 'खाड़ी सहयोग परिषद' का सदस्य नहीं है? (2016) 

(a) ईरान 
(b) ओमान 
(c) सऊदी अरब 
(d) कुवैत 

उत्तर: (a)


मेन्स

प्रश्न. भारत की ऊर्जा सुरक्षा का प्रश्न भारत की आर्थिक प्रगति का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भाग है। पश्चिम एशियाई देशों के साथ भारत के ऊर्जा नीति सहयोग का विश्लेषण कीजिये। (2017)

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