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भारत-विश्व

संवैधानिक प्रश्नों के आधार पर भारत और पाकिस्तान के बीच अंतर

  • 22 Aug 2018
  • 10 min read

संदर्भ

हाल ही में पाकिस्तान के नवनिर्वाचित प्रधानमंत्री इमरान खान ने शपथ लेने के बाद देश के अपने पहले संबोधन में "नया पाकिस्तान" बनाने का वादा किया जो "जिन्ना और इकबाल द्वारा व्यक्त मार्ग" के आदर्शों पर आधारित होगा। जिन्ना ने पाकिस्तान को एक रूढ़िवादी इस्लामी राज्य की बजाय, एक उदारवादी और लोकतांत्रिक राष्ट्र के रूप में स्थापित करने का आदर्श संजोया था। गौरतलब है कि पाकिस्तान अब नए संवैधानिक लोकतंत्र की ओर रुख कर रहा है, अतः पाकिस्तान सरकार और कानून के प्रमुख पहलुओं के संबंध में भारत का राष्ट्रीय अनुभव अलग-अलग कैसे है? यही इस लेख का प्रमुख संदर्भ है। इस लेख के माध्यम से हम दोनों देशों के संविधान, सरकार, न्यायालय तथा चुनाव जैसे प्रमुख पहलुओं के बीच असमानता के बिंदुओं पर चर्चा करेंगे।

संविधान के आधार पर अंतर

पाकिस्तान के इस्लामी गणराज्य के संविधान के प्रस्ताव को "सर्वशक्तिमान अल्लाह" के आह्वान के साथ शुरू करने के साथ ही "पाकिस्तान के संस्थापक, क़ायद-ए-आज़म मोहम्मद अली जिन्ना" का नामोल्लेख किया गया है, जबकि भारत की संविधान सभा ने भगवान के किसी भी संदर्भ को खारिज कर दिया था यहाँ तक कि राष्ट्र पिता महात्मा गांधी के नामोल्लेख को भी।

अधिकार

  • पाकिस्तान के संविधान की प्रस्तावना में अल्पसंख्यकों और पिछड़े वर्गों के वैध हितों की रक्षा और न्यायपालिका की आजादी के लिये "पर्याप्त प्रावधान" का वादा किया गया है।
  • भारतीय संविधान की प्रस्तावना अधिक जटिल है, इसमें अल्पसंख्यकों के अधिकार और न्यायपालिका की आज़ादी तो निहित है किंतु इनका स्पष्ट उल्लेख नहीं किया गया है।
  • पाकिस्तान का संविधान गोपनीयता के अधिकार को मान्यता देता है। इसे हाल ही में भारत में सुप्रीम कोर्ट द्वारा मौलिक अधिकार घोषित किया गया था।
  • पाकिस्तान का संविधान 5 से 16 आयु वर्ग के बच्चों के लिये शिक्षा के अधिकार को भी मान्यता देता है।
  • वहीं, भारत में नि: शुल्क और अनिवार्य शिक्षा अधिनियम, 2009 के तहत 6 से 14 साल के आयु वर्ग के बच्चों के लिये शिक्षा की गारंटी दी गई है।
  • इस संबंध में भारत ने 2005 में सूचना का अधिकार अधिनियम पारित किया था।

स्वतंत्रता 

  • भारतीय संविधान के विपरीत पाकिस्तान विशेष रूप से प्रेस की स्वतंत्रता का उल्लेख करता है। किंतु यह विषय वहाँ "इस्लाम की महिमा" के अधीन है।
  • दरअसल, पाकिस्तान में ईश-निंदा कानून है जो प्रतिकूल और व्यापक रूप से दुर्व्यवहार के लिये अनिवार्य रूप से मृत्युदंड का प्रावधान करता है।
  • वहाँ धर्म की स्वतंत्रता का सशर्त अधिकार है और भारत के विपरीत यह केवल वहाँ के नागरिकों को ही प्राप्त है।

न्यायपालिका के आधार पर अंतर 

  • देश के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति में पाकिस्तान की सरकार की कोई भूमिका नहीं होती है।
  • पाकिस्तान के संविधान में कहा गया है कि "राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठतम न्यायाधीश को पाकिस्तान के मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करेंगे"।
  • जबकि वर्ष 2015 में भारत के सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग का गठन किया है जिसका उद्देश्य उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्तियों और हस्तांतरण का निर्णय लेना था। 
  • पाकिस्तान के पास वर्ष 2010 से स्वयं का कमीशन है जिसमें छह न्यायाधीश, एक वरिष्ठ वकील और दो सरकारी उम्मीदवार शामिल हैं।
  • कमीशन की सिफारिशों को संसद की आठ सदस्यीय समिति के पास भेजा जाता है और वह बहुमत के आधार पर नामांकन की पुष्टि करती है।

दुराचार के मामले में 

  • पाकिस्तान के संविधान में कथित न्यायिक दुर्व्यवहार से निपटने के लिये सर्वोच्च न्यायिक परिषद के गठन की व्यवस्था है, जिसमें  मुख्य न्यायाधीश, सर्वोच्च न्यायालय के दो वरिष्ठतम न्यायाधीश और उच्च न्यायालयों के दो वरिष्ठतम मुख्य न्यायाधीश शामिल होते हैं।
  • यदि परिषद किसी न्यायाधीश को "कर्तव्यों का पालन करने में असमर्थ" या "दुर्व्यवहार" का दोषी घोषित करती है, तो राष्ट्रपति को महाभियोग का सामना करना पड़ता है।
  • इसके विपरीत भारत में राष्ट्रपति पर महाभियोग के संदर्भ में संसद की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है और कार्रवाई के आधार अधिक कड़े हैं जिसके तहत " साबित दुर्व्यवहार या अक्षमता" का होना ज़रूरी है।

चुनाव के आधार पर अंतर

  • पाकिस्तान में प्रधानमंत्री चुनाव से पूर्व ही इस्तीफा दे सकते हैं और ऐसे में विपक्ष का नेता तथा पीएम कार्यवाहक पीएम का चयन करते हैं।
  • यदि वे किसी नाम पर सहमत नहीं होते हैं तो प्रत्येक द्वारा स्पीकर को दो नाम भेजे जाते हैं।
  • इसके बाद स्पीकर इन नामों को संसदीय समिति के पास भेज देगा। इस समिति में सत्तारूढ़ और विपक्षी दलों का बराबर प्रतिनिधित्व होता है।

निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति

  • भारत के निर्वाचन आयुक्तों को सरकार द्वारा चुना जाता है जो आमतौर पर आईएएस अधिकारी होते हैं किंतु पाकिस्तान में यह प्रक्रिया अधिक जटिल है।
  • पाकिस्तान में मुख्य निर्वाचन आयुक्त को सुप्रीम कोर्ट या उच्च न्यायालय का कार्यरत या सेवानिवृत्त न्यायाधीश होना चाहिये और यदि ऐसा नहीं है तो उसके लिये सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त होने की योग्यता का होना अवश्यक है।
  • विपक्ष के नेता के परामर्श से प्रधानमंत्री 12 सदस्यीय संसदीय समिति के तीन नाम आगे बढ़ाते हैं जिसमें सरकार और विपक्ष का समान प्रतिनिधित्व होता है। चुनाव आयोग के चार अन्य सदस्य हैं।
  • उनमें से प्रत्येक न्यायाधीश चार प्रांतीय उच्च न्यायालय -पंजाब, सिंध, बलूचिस्तान और खैबर पख्तुनख्वा से होंगे।
  • पाकिस्तान के चुनाव आयोग के पास इन मुद्दों से संबंधित वित्तीय स्वायत्तता भी है वहीं भारत में चुनाव आयोग को ऐसी कोई स्वायत्तता नहीं है क्योंकि यहाँ अदालत में अपील की जा सकती है।

उम्मीदवारों की अर्हता 

  • पाकिस्तान के चुनावों के लिये मुस्लिम उम्मीदवारों को अच्छे चरित्र, बुद्धिमान, धार्मिक, ईमानदार और गैर-लाभकारी होना चाहिये साथ ही, उन्हें इस्लाम का पर्याप्त ज्ञान हो तथा किसी भी पाप में संलिप्त नहीं होना चाहिये।
  • जबकि भारत में उम्मीदवारों की अर्हता की स्थिति और योग्यता कानूनी प्रकृति की है, न कि धर्म से संबंधित।

सरकार

  • पाकिस्तान में प्रधानमंत्री और राज्यों के मुख्यमंत्रियों को नवगठित सदन द्वारा चुना जाता है, जबकि वहाँ के संविधान के अनुसार किसी पार्टी के पास स्पष्ट बहुमत न होने पर विश्वास मत की आवश्यकता नहीं होती।
  • दो उम्मीदवारों के बीच बराबर की स्थिति में तब तक मतदान जारी रहता है जब तक कि कोई बहुमत हासिल नहीं कर लेता है।
  • भारत के विपरीत वहाँ ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति या गवर्नरों की कोई भूमिका नहीं रह जाती, भले ही किसी पार्टी के पास स्पष्ट बहुमत न हो।
  • जबकि भारत में स्पष्ट बहुमत हासिल न होने की स्थिति में राष्ट्रपति या राज्यपाल द्वारा बहुमत दल के नेता को ही प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री घोषित कर सकता है।

आरक्षण 

  • पाकिस्तान की नेशनल असेंबली के कुल 342 सीटों में से 272 सीधे चुनावों से भरे जाते हैं और  शेष साठ सीटें महिलाओं के लिये आरक्षित हैं।
  • इनमें से 10 सीटें धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिये आरक्षित हैं।
  • चार प्रांतीय असेंबली में महिलाओं और अल्पसंख्यकों दोनों के लिये आरक्षण की अपनी मात्रा है।
  • पार्टियों को सामान्य सीटों में से 5% टिकट महिला उम्मीदवारों को देना होगा और अगर किसी भी निर्वाचन क्षेत्र में 10% से कम महिला मतदाताओं ने अपना वोट डाला है, तो नतीजा शून्य माना जाता है।
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