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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

वित्तीय समावेशन और निजता का अधिकार

  • 01 Sep 2017
  • 9 min read

भूमिका

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि भारत में वित्तीय समावेशन (financial inclusion) के प्रयासों को बढ़ावा देने के लिये आधार का प्रयोग किया जा रहा है, परंतु वित्तीय समावेशन जैसे वृहद् क्षेत्र में आधार का प्रयोग किये जाने से जहाँ एक ओर आमजन को विकास की मुख्य धारा से जोड़ने में मदद मिली है, वहीं दूसरी ओर इससे लोगों की निजी सूचना के सार्वजनिक होने की समस्या भी उत्पन्न हो गई है। अतः यह आवश्यक है कि विकास के साथ-साथ निजता के पक्ष में गंभीरता से विचार करते हुए इस समस्या का समाधान खोजा जाए।

  • 24 अगस्त, 2017 को अपने एक ऐतिहासिक निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि भारत में निजता एक मौलिक अधिकार (fundamental right) है।
  • इसके अतिरिक्त न्यायालय ने सरकार को इससे संबंधित पक्षों के संबंध में जाँच करने तथा डाटा संरक्षण के लिये एक मज़बूत व्यवस्था का निर्माण करने का भी निर्देश दिया| 

इससे संबद्ध कानून का प्रारूप क्या होना चाहिये? 

  • विश्व के कई देशों में इस संबंध में प्रभावकारी कानूनों का निर्माण एवं अनुपालन किया गया है, उदाहरण के तौर पर अमेरिका एवं ऑस्ट्रेलिया।
  • अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया की भाँति भारत में भी इस संबंध में कार्यवाही किये जाने की आवश्यकता है, क्योंकि पिछले कुछ समय से जब से विज्ञान ने संचार एवं सूचना के क्षेत्र में उल्लेखनीय वृद्धि की है, तब से व्यक्ति की निजता का मुद्दा संदेह के दायरे में आ गया है।
  • इसके लिये ज़रुरी है कि भारत अपने पुराने दृष्टिकोण को त्यागकर नई व्यवस्था का निर्माण करे।
  • इसके लिये आवश्यक है कि आधार से संबंधित किसी भी प्रकार की नीति एवं व्यवस्था की आरंभिक अवस्था में ही डाटा संरक्षण के संदर्भ में कार्यवाही की जानी चाहिये। इसके आरंभिक चरण में ही एक प्रभावकारी कानून के अनुपालन की व्यवस्था सुनिश्चित की जानी चाहिये।

आधार को वित्तीय समावेशन से जोड़ने का उद्देश्य

  • अर्थव्यवस्था में आधार का समावेश करने का उद्देश्य वित्तीय दृष्टि से पिछड़े लोगों को ऋण, बीमा, बचत और भुगतान संबंधी सेवाएँ प्रदान करना तथा उनके आर्थिक क्रियाकलापों को अधिक से अधिक सुगम बनाना है ।
  • इससे न केवल वित्तीय सेवाओं के वितरण की लागत कम हो जाती है, बल्कि आधार नागरिकों को उनके सरकारी लाभांश को समय से और पूरा भुगतान प्राप्त करने में भी सहायता प्रदान करता है|
  • यदि देश के सभी सरकारी और निजी क्षेत्र सभी वस्तुओं (जैसे- उपभोग से लेकर स्वास्थ्य सेवाओं तक, कार के बीमा से लेकर आवासीय लीज़ तक) के लिये आधार संख्या का संग्रहण करते हैं तथा अनगिनत डाटाबेस से प्राप्त की गई सूचनाओं को आधार से जोड़ देते हैं तो आधार किसी भी व्यक्ति की एक अति-संवेदनशील, विस्तृत एवं निरंतर प्रगतिशील व्यक्तिगत प्रोफाइल के लिये एक संयोजक उपकरण बन सकता है|
  • इन प्रोफाइलों तक पहुँच बनाने वाले निगमों और सरकार द्वारा इन सूचनाओं का उपयोग किसी भी व्यक्ति के व्यवहार एवं गतिविधियों का उल्लेख करने के लिये किया जा सकता है|
  • किसी भी निगम अथवा कंपनी या उद्योग द्वारा किसी व्यक्ति के इतिहास, स्थान, आदतों, आय और उसकी सोशल मीडिया की गतिविधियों का उपयोग उपभोक्ताओं के वर्गीकरण, वित्तीय उत्पादों के मूल्य अथवा उन पर लगने वाली ब्याज़ दरों की व्यवस्था इत्यादि कार्यों को अपने-अपने अनुकूल बनाने के लिये किया जा सकता है|  
  • किसी भी व्यक्ति की निजी प्रोफाइल तक सरकार की पहुँच भी निजता से संबंधित चिंताओं को जन्म दे सकती है|
  • नई तकनीकों के प्रयोग द्वारा उत्पन्न डाटा की विशाल मात्रा को ‘आधार’ के साथ संबद्ध करने से जहाँ एक ओर डाटा के दुरुपयोग की संभावना बढ़ जाती है, वहीं दूसरी ओर निजता के संबंध में अतिक्रमण की आशंका भी जन्म लेती है। इस खतरे के विरोध में सर्वोच्च न्यायलय का यह निर्णय एक महत्त्वपूर्ण कदम है।

डाटा की सुरक्षा के संबंध में नियमों की वास्तविक स्थिति क्या है?

  • विश्व के अनेक देशों द्वारा अपनी डाटा संरक्षण व्यवस्था को उपभोक्ता की पसंद अथवा उसकी अपनी पूर्व-सूचित सहमति के मानकों के अनुसार तैयार किया गया है। परंतु, उपभोक्ताओं पर निजता के नाम पर बेहद लंबे एवं जटिल कानूनी नोटिस को पढ़ कर उनके प्रति सहमति प्रकट करना बहुत बोझिल कार्य है। संभवतः यही कारण है कि बहुत कम लोग इन नियमों को पूरा पढ़ते हैं। 

भारतीय परिदृश्य में डाटा सुरक्षा का पक्ष

  • अपनी आरम्भिक अवस्था में होने के कारण भारत के पास उपभोक्ताओं की निजता के संबंध में सुरक्षा उपाय करने का सुनहरा अवसर मौजूद है जो कि किसी भी प्रौद्योगिकी के डिज़ाइन (जिसमें सरकारी और निजी क्षेत्रों की व्यवस्थाओं के तकनीकी डिज़ाइन भी शामिल हैं) अथवा प्रारूप का एक अभिन्न भाग होती है।
  • इस विषय में सबसे अच्छी बात यह है कि इस दृष्टिकोण (जिसे प्रायः तकनीकी डिज़ाइन के अंतर्गत ‘निजता’ कहा जाता है) को विश्व भर के नियामकों और नीति निर्माताओं का समर्थन प्राप्त है।
  • अत: इस संबंध में यदि कोई नया नियम अथवा प्रावधान बनाया भी जाता है तो उसे स्वीकृति दिलाना बहुत मुश्किल नहीं होगा। 
  • किसी भी प्रकार के डाटा संरक्षण नियमन की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता व्यक्तिगत डाटा के संग्रहण और भंडारण पर आरोपित की गई सीमाएँ होती हैं। इसलिये डाटा के संग्रहण और भण्डारण पर भी नियमन का प्रावधान किया जाना चाहिये।  

निष्कर्ष

हालाँकि, सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये गए फैसले में व्यक्ति की निजता के अधिकार के रूप में आधार से संबंधित पक्षों के विषय में ज़्यादा कुछ नहीं कहा गया है। यह मुद्दा अभी भी विचाराधीन है, जिसके विषय में आने वाले समय में निर्णय होने की संभावना है। भारत में डाटा के संरक्षण हेतु कानूनी मार्ग का अनुसरण किया जाना चाहिये, ताकि डाटा के सुरक्षित स्थानान्तरण एवं व्यक्ति की निजी सूचनाओं के संबंध में गोपनीयता बरती जा सके। वस्तुतः इस संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय बहुत महत्त्वपूर्ण साबित होगा। वस्तुतः प्रत्येक सुधारवादी कार्य अथवा योजना से आम आदमी को जोड़ने के विचार के पीछे मंशा यह थी कि किसी भी अनाधिकारी को ज़रूरतमंद का अधिकार नहीं मिलना चाहिये। आधार के माध्यम से न केवल गरीब लोगों और समुदायों के मध्य सेवाओं एवं बुनियादी आवश्यकता की वस्तुओं के सटीक एवं पारदर्शी वितरण में सुधार लाने का प्रयास किया गया, बल्कि इसके प्रयोग से बहुत सी महत्त्वपूर्ण जानकारियों के संग्रहण को भी प्रोत्साहन मिला है। परंतु, समस्या यह है कि ये सभी जानकारियाँ अथवा सूचनाएँ संवेदनशील उपभोक्ताओं की निजता से संबंधित होने के कारण उनकी सुरक्षा का पक्ष बन गई है।

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