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आपराधिक न्याय प्रशासन में निष्पक्षता

  • 12 Aug 2017
  • 5 min read

संदर्भ 
हमारी न्याय प्रणाली में कुछ निहित समस्याएँ हैं जो इस प्रणाली के दोष और कमियों को दिखाती हैं। इनमें सुधार की आवश्यकता है। अकेले त्वरित ट्रायल ही वर्षों तक जेल में कैद रहने के बाद बरी किये जाने वाले अन्याय के भाव को समाप्त कर सकते हैं। 

आत्मनिरीक्षण 

  • 2005 में हैदराबाद के बेगमपेट में पुलिस टास्क फोर्स कार्यालय में हुए एक विस्फोट के सिलसिले में गिरफ्तार किये गए सभी 10 लोगों के निर्दोष करार दिए जाने से हमारी व्यवस्था को अपराध और न्याय के बीच मौजूद खाई पर गंभीर आत्मनिरीक्षण करना चाहिये। 
  • हालाँकि, इसमें कोई संदेह नहीं है कि ऐसे मामले राहत प्रदान तो करते हैं, परंतु ऐसे मामलों में अन्याय ही होता है, खासकर जब वे पर्याप्त सबूतों के बिना आधारित होते हैं।
  • अन्याय तो तब होता है, जब किसी को बिना किसी अपराध के वर्षों तक सजा काटना पड़ता है और अपने जीवन के महत्त्वपूर्ण दौर को जेल की दीवारों में मज़बूरन गवां देना पड़ता है। 

साक्ष्य  की कमी   

  • आतंकवाद की घटनाओं में कथित रूप से शामिल होने के आरोप में गिरफ्तार किये गए कुछ लोगों के जेल में कई साल बिताने के बाद हाल के कुछ दिनों में रिहा होने के उदाहरण सामने आए हैं।
  • पिछले वर्ष ऐसा ही एक अभियुक्त निसार-उद-दीन अहमद को 23 वर्षों तक सज़ा काटने के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने उसकी रिहाई का आदेश दिया था।
  • इसी तरह अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के अनुसंधान विद्वान गुलजार मोहम्मद वानी को हिजबुल मुजाहिदीन का सदस्य होने के संदेह पर 16 साल जेल में बिताना पड़ा था। 
  • ऐसे मामलों में वर्षों बाद एक या दो आरोपों से बरी करने से व्यक्ति की स्वतंत्रता के नुकसान और कैद में रहने की पीड़ा की भरपाई नहीं हो सकती। 
  • इन मामलों का एक महत्त्वपूर्ण पहलू यह है कि इनके लिये विश्वसनीय जाँच और ठोस सबूतों की आवश्यकता होती है और ऐसे मामलों में पर्याप्त सबूतों की कमी से बरी होने का अर्थ है कि हमारी जाँच मशीनरी और साथ ही न्यायिक प्रणाली का प्रदर्शन कितने  निम्न स्तर का है। 
  • दिसंबर 2016 में, राष्ट्रीय जाँच एजेंसी ने इंडियन मुजाहिदीन के संस्थापक यासीन भटकल और चार अन्य को हैदराबाद में 2013 के विस्फोटों के सिलसिले में दोषी ठहराया और मौत की सज़ा सुनाई, लेकिन सफल अभियोजन और अपेक्षाकृत त्वरित परीक्षण का यह एक दुर्लभ उदाहरण है। 
  • आपराधिक न्याय प्रशासन में निष्पक्षता केवल अंतिम परिणामों से ही नहीं आती है बल्कि आरोपी वाकई दोषी है या निर्दोष यह सिद्ध करने से आती है।
  • न्यायालय आतंकवाद से संबंधित मामलों में जमानत को तो अस्वीकार करते हैं, लेकिन तेज़ी से जाँच पूरी करने के प्रति  प्रतिबद्धता नहीं दिखाते हैं।
  • ट्रायल में विलंब न केवल अभियोजन पक्ष के केस को कमज़ोर करता है बल्कि गवाह भी कई बार महत्त्वपूर्ण विवरण भूल जाते हैं।
  • जिस तरह प्रत्येक व्यक्ति निर्दोष नहीं हो सकता; उसी तरह यह भी नहीं कहा जा सकता कि गंभीर अपराध किए जाने के बाद लोग बिना सज़ा पाए छुट जा रहे हैं। 
  • कई व्यक्ति किसी-न-किसी संगठनों या समूहों के साथ अपने संबंधों के लिये संदेह में आते हैं, लेकिन अभियोजन पक्ष द्वारा किसी विशेष अपराध से जुड़े हुए सिद्ध करने में विफल होने के कारण अदालतों द्वारा निर्दोष बरी कर दिये जाते हैं।

निष्कर्ष 
हमारी व्यवस्था को आतंकवाद और विशेष कानूनों के तहत गंभीर मामलों में गिरफ्तार आरोपियों को त्वरित और समयबद्ध जाँच प्रदान करने में सक्षम होना चाहिये। न्याय को यदि मौलिक होना है, तो वह धीमी गति से नहीं हो सकता।

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