विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
अंतरिक्ष अन्वेषण: पृथ्वी के भविष्य की कुंजी
- 27 Jun 2025
- 31 min read
यह एडिटोरियल 27/06/2025 को द हिंदू में प्रकाशित “Axiom-4 mission: Ax-4 docking successful, Shubhanshu Shukla sets foot on International Space Station” पर आधारित है। इस लेख में ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला की ऐतिहासिक उपलब्धि को सामने लाया गया है, जो एक्ज़िऑम मिशन 4 के हिस्से के रूप में अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन में प्रवेश करने वाले पहले भारतीय बने।
प्रिलिम्स के लिये:अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन, एक्ज़िऑम मिशन 4, गगनयान कार्यक्रम, GPS तकनीक, NavIC, NISAR, वीनस ऑर्बिटर मिशन, मार्स ऑर्बिटर मिशन- II, चंद्र ध्रुवीय अन्वेषण मिशन मुख्य परीक्षा के लिये:एक्ज़िऑम-4 मिशन के अनुप्रयोग, अंतरिक्ष अन्वेषण प्रगति से उभरी प्रमुख प्रौद्योगिकियाँ |
कैप्टन शुभांशु शुक्ला ने एक्ज़िऑम मिशन 4 के तहत अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन में प्रवेश करने वाले पहले भारतीय अंतरिक्ष यात्री बनकर इतिहास रच दिया। यह मिशन भारत के आगामी गगनयान कार्यक्रम के लिये महत्त्वपूर्ण तैयारी के रूप में कार्य करता है, जो वर्ष 2026 के लिये नियोजित देश का पहला स्वतंत्र मानव अंतरिक्ष यान मिशन है। अगले दो हफ्तों में, शुक्ला और उनका दल वैज्ञानिक प्रयोग करेंगे, जिनमें ISRO द्वारा डिज़ाइन किये गए आठ प्रयोग शामिल हैं, जो रोज़मर्रा की ज़िंदगी में सीधे अनुप्रयोगों के साथ नवाचार ला सकते हैं। यह ऐतिहासिक उपलब्धि न केवल राष्ट्रीय गौरव का प्रतिनिधित्व करती है, बल्कि अंतरिक्ष-आधारित अनुसंधान का प्रवेश द्वार है जो आम नागरिकों के लिये स्वास्थ्य सेवा, कृषि, सामग्री विज्ञान और प्रौद्योगिकी को बदलने का वादा करता है।
एक्ज़िऑम-4 प्रयोग भारत के अंतरिक्ष अनुसंधान और अनुप्रयोग को कैसे बढ़ा सकते हैं?
- सूक्ष्मगुरुत्व में अंकुरों का विकास: यह प्रयोग अंतरिक्ष यात्रा के दौरान फसल बीजों के अंकुरण और वृद्धि पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन करता है, जो लंबे अंतरिक्ष अभियानों पर गये अंतरिक्षयात्रियों के लिये सतत् खाद्य स्रोत उपलब्ध कराने हेतु अनिवार्य है।
- यह शोध अंतरिक्ष में प्रभावी रूप से खाद्य उत्पादन की प्रक्रिया को समझने में सहायक होगा।
- इस अध्ययन के निष्कर्षों का व्यापक उपयोग शहरी कृषि तथा इनडोर कृषि में हो सकता है, जिससे नगरों में संधारणीय खाद्य उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा और शहरी आबादी को स्वयं अपना भोजन उगाने की प्रेरणा मिलेगी, जिससे बाह्य आपूर्ति पर निर्भरता घटेगी।
- सायनोबैक्टीरिया जीवन-समर्थन के लिये: सायनोबैक्टीरिया अंतरिक्ष यानों के जीवन-समर्थन प्रणालियों के विकास में अत्यंत उपयोगी हैं क्योंकि वे प्रकाश-संश्लेषण करने में सक्षम होते हैं।
- यह प्रयोग अंतरिक्ष में उनकी वृद्धि और जैव रासायनिक गतिविधि का अध्ययन करेगा, जिससे अंतरिक्ष में ऑक्सीजन और खाद्य उत्पादन के लिये बंद लूप प्रणाली के निर्माण में सहायता मिलेगी।
- इस प्रयोग से प्राप्त ज्ञान पृथ्वी पर पर्यावरण नियंत्रण प्रणालियों को बेहतर बनाने में सहायक हो सकता है, विशेषकर सतत् भवन-डिज़ाइन, जल-शोधन और शहरी या पृथक क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन जैसे क्षेत्रों में।
- अंतरिक्षीय सूक्ष्मशैवाल वृद्धि: सूक्ष्मशैवाल आहार, ईंधन और जीवन-समर्थन का एक संभावित संसाधन हैं।
- इस प्रयोग में यह अध्ययन किया जाएगा कि सूक्ष्मगुरुत्व सूक्ष्मशैवाल की वृद्धि और चयापचय को किस प्रकार प्रभावित करता है, जिसका उपयोग अंतरिक्ष मिशनों के लिये जैव-पुनर्योजी जीवन समर्थन प्रणालियों में किया जा सकता है।
- सूक्ष्म शैवाल का उपयोग पृथ्वी पर पहले से ही जैव ईंधन, अपशिष्ट प्रबंधन और पोषण संबंधी पूरकों के लिये किया जा रहा है।
- इस शोध से हरित ऊर्जा स्रोतों एवं सतत् खाद्य विकल्पों की खोज़ हो सकती है, जो खाद्य उत्पादन और नवीकरणीय ऊर्जा के बारे में हमारी सोच में क्रांतिकारी बदलाव ला सकते हैं।
- अंतरिक्ष में मांसपेशियों की हानि (मायोजेनेसिस): यह अध्ययन सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण (Microgravity) में उत्पन्न होने वाली मांसपेशीय अक्षमता को समझने का प्रयास करता है, जो अंतरिक्ष यात्रियों में मांसपेशियों के क्षय (Atrophy) का कारण बनती है।
- इसमें शामिल आणविक प्रक्रियाओं का अभिनिर्धारण कर, लंबी अंतरिक्ष यात्राओं के दौरान मांसपेशियों की हानि को रोकने के उपाय विकसित किये जा सकते हैं।
- इस शोध से पृथ्वी पर मांसपेशियों के क्षय से पीड़ित रोगियों, विशेष रूप से वृद्धजनों तथा मांसपेशीय दुर्विकास या दीर्घकालीन निष्क्रियता से जूझ रहे लोगों के लिये उपचार पद्धतियों में सुधार संभव हो सकेगा।
- अंतरिक्ष में वॉयेजर डिस्प्ले इंटरैक्शन: यह प्रयोग यह जानने के लिये किया जायेगा कि माइक्रोग्रैविटी का प्रभाव इलेक्ट्रॉनिक डिस्प्ले के प्रयोग से जुड़े संज्ञानात्मक (Cognitive) तथा शारीरिक कार्यों पर क्या पड़ता है। इसका उद्देश्य अंतरिक्ष यान की प्रौद्योगिकी की बनावट तथा उसके उपयोग की प्रणाली को और अधिक उपयुक्त बनाना है।
- यह शोध पृथ्वी पर स्मार्ट उपकरणों, गेमिंग प्रणालियों तथा स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़ी तकनीकों में उपयोगकर्ता-अनुभव तथा उत्पादकता को बेहतर बनाने में सहायक हो सकता है, जिससे दैनिक जीवन की तकनीकों के लिये अधिक कार्यकुशल एवं तनाव-रहित डिज़ाइन तैयार हो सकेंगे।
- अंतरिक्ष में टार्डिग्रेड्स का अस्तित्व: टार्डीग्रेड्स अत्यधिक प्रतिकूल परिस्थितियों में भी जीवित रहने के लिये प्रसिद्ध हैं। यह अध्ययन उनके अंतरिक्ष में जीवित रहने, पुनर्जीवन और प्रजनन की प्रक्रियाओं को समझने का प्रयास करेगा, जिससे इनकी अनुकूलन से जुड़ी आणविक क्रियाविधियों की पहचान की जा सके।
- इन तत्त्वों को समझने से पृथ्वी पर जैव-प्रौद्योगिकी तथा चिकित्सकीय अनुसंधान में प्रगति हो सकती है, विशेष रूप से जैव-संरक्षण, अत्यधिक वातावरण में सहनशीलता और संभवतः पुनरुत्पादक चिकित्सा (Regenerative medicine) के क्षेत्र में।
अंतरिक्ष अन्वेषण प्रगति से कौन-सी प्रमुख प्रौद्योगिकियाँ उभरी हैं?
- स्वास्थ्य देखभाल नवाचार: अंतरिक्ष अनुसंधान ने स्वास्थ्य देखभाल को काफी उन्नत किया है, विशेष रूप से दूरस्थ रोगी निगरानी प्रणालियों के विकास के माध्यम से।
- ये नवाचार NASA की लंबी अवधि के अंतरिक्ष मिशनों के दौरान अंतरिक्ष यात्रियों के स्वास्थ्य पर नज़र रखने की आवश्यकता से उत्पन्न हुए।
- उदाहरण के लिये, NASA द्वारा विकसित टेलीमेडिसिन प्रणालियों का पृथ्वी पर व्यापक उपयोग हुआ है, जबकि ISRO का टेलीमेडिसिन कार्यक्रम ग्रामीण भारत को शहरी अस्पतालों से जोड़ता है तथा वास्तविक काल में निदान और उपचार उपलब्ध कराता है।
- इसके अलावा, अंतरिक्ष यात्रियों के लिये पोषक तत्त्वों से समृद्ध शैवाल पर NASA के अनुसंधान ने शिशु आहार में सुधार किया, जिसमें दूध में पाये जाने वाले DHA और ARA जैसे पोषक तत्त्वों को जोड़ा गया।
- इन नवाचारों ने शिशु आहार को एक महत्त्वपूर्ण पोषण बढ़त प्रदान की है जिससे शिशुओं के विकास में सहायता मिली है।
- संचार प्रणालियाँ: अंतरिक्ष अन्वेषण के लिये विकसित उपग्रह संचार प्रौद्योगिकियों ने वैश्विक संचार में क्रांति ला दी है, जिससे तीव्र और अधिक विश्वसनीय कनेक्शन की सुविधा मिली है।
- प्रारंभ में अंतरिक्ष मिशनों के लिये बनाई गई ये प्रणालियाँ वैश्विक कनेक्टिविटी का अभिन्न अंग बन गई हैं।
- इसका एक प्रमुख उदाहरण GPS तकनीक है, जो सैन्य उपग्रह नेविगेशन प्रणालियों से विकसित हुई है और अब नेविगेशन और लॉजिस्टिक्स जैसे रोजमर्रा के अनुप्रयोगों में अपरिहार्य है।
- वर्ष 2022 में वैश्विक GPS बाज़ार का मूल्य 94.25 बिलियन अमरीकी डॉलर था।
- भारत की स्वदेशी उपग्रह नेविगेशन प्रणाली, NavIC, सटीक स्थिति और समय सेवाएँ प्रदान करके परिवहन, रसद एवं कृषि जैसे क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण बदलाव लाने के लिये तैयार है।
- NASA ने अंतरिक्ष यात्रियों के लिये संचार को बढ़ाने के लिये वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में उपयोग की जाने वाली तकनीक विकसित की, जो अब ज़ूम, टीम्स और गूगल मीट जैसे उपकरणों को शक्ति प्रदान करती है।
- खाद्य संरक्षण: अंतरिक्ष अनुसंधान ने खाद्य संरक्षण में नवाचारों को बढ़ावा दिया है, विशेष रूप से फ्रीज़-ड्रायिंग और वैक्यूम सीलिंग, जिन्हें प्रारंभ में अंतरिक्ष यात्रियों के अंतरिक्ष मिशनों के लिये विकसित किया गया था।
- इन प्रौद्योगिकियों ने खाद्य पदार्थों की शेल्फ लाइफ को बहुत हद तक बढ़ा दिया है, बर्बादी को कम किया है और खाद्य सुरक्षा में सुधार किया है।
- फ्रीज़-ड्राई फल, वैक्यूम-सील भोजन और अंतरिक्ष-प्रेरित पैकेजिंग प्रौद्योगिकियाँ अब उपभोक्ता बाज़ारों में प्रमुखता से शामिल हैं, जो सुविधा प्रदान करती हैं तथा खाद्य अपशिष्ट को कम करती हैं।
- ISS पर ‘वेजी’ प्रयोग जैसे अंतरिक्ष में उगाए गए खाद्य पदार्थों ने अंतरिक्ष कृषि अनुसंधान को बढ़ावा देने में मदद की है।
- उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स: अंतरिक्ष यानों में छोटे और हल्के उपकरणों की आवश्यकता के कारण जब इलेक्ट्रॉनिक घटकों का लघुकरण (Miniaturization) आरंभ हुआ, तब इसने उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स के क्षेत्र में अनेक नवाचारों का मार्ग प्रशस्त किया।
- अंतरिक्ष अभियानों के लिये ऐसे इलेक्ट्रॉनिक्स की आवश्यकता होती है जो आकार में छोटे किंतु कार्यक्षमता में अत्यंत सक्षम हों और इसने लघुकरण की सीमाओं को लगातार आगे बढ़ाया।
- ये प्रौद्योगिकियाँ अब स्मार्टफोन, पहनने योग्य उपकरणों (Wearables) व अन्य व्यक्तिगत इलेक्ट्रॉनिक्स में प्रयुक्त हो रही हैं, जिससे यंत्र और भी हल्के तथा कुशल बन सके हैं।
- उदाहरण: कैमरा फोन— CMOS इमेज सेंसर, जिसे प्रारंभ में NASA ने अंतरिक्ष अन्वेषण के लिये विकसित किया था, आज आधुनिक स्मार्टफ़ोन कैमरों का मूलाधार बन चुका है, जिसने हमारे छवियों को कैप्चर करने के तरीकों में क्रांतिकारी बदलाव ला दिया है।
- इसके अलावा, NASA को पोर्टेबल उपकरणों की ज़रूरत थी, जिसके कारण ब्लैक एंड डेकर के साथ साझेदारी में पहला कॉर्डलेस वैक्यूम क्लीनर, डस्टबस्टर बनाया गया। इसे अंतरिक्ष यात्रियों को चंद्रमा पर सैंपल एकत्र करने में सहायता करने के लिये विकसित किया गया था।
- अंतरिक्ष अनुसंधान ने पोर्टेबल वैक्यूम प्रौद्योगिकी के परिशोधन को प्रेरित किया, जिससे सफाई के लिये घरेलू अनुप्रयोगों का विकास हुआ।
- इसके अलावा, NASA को पोर्टेबल उपकरणों की ज़रूरत थी, जिसके कारण ब्लैक एंड डेकर के साथ साझेदारी में पहला कॉर्डलेस वैक्यूम क्लीनर, डस्टबस्टर बनाया गया। इसे अंतरिक्ष यात्रियों को चंद्रमा पर सैंपल एकत्र करने में सहायता करने के लिये विकसित किया गया था।
- जल शोधन प्रणालियाँ: अंतरिक्ष मिशनों के लिये NASA द्वारा विकसित उन्नत जल निस्पंदन प्रणालियों का उपयोग पृथ्वी पर जल शोधन प्रौद्योगिकियों में सुधार के लिये किया गया है।
- ये नवाचार दूरदराज़ या आपदाग्रस्त क्षेत्रों में स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने के लिये आवश्यक रहे हैं।
- NASA की जल शोधन तकनीक, विशेष रूप से माइक्रोबियल चेक वाल्व (MCV), को वर्ष 2010 के हैती भूकंप सहित आपदा राहत प्रयासों में तैनात किया गया है।
- ऊर्जा समाधान और बैटरी नवाचार: अंतरिक्ष अनुसंधान ने उच्च दक्षता वाली बैटरियों के विकास को गति दी है, विशेष रूप से अंतरिक्ष यान में उपयोग के लिये जहाँ वजन और ऊर्जा दक्षता महत्त्वपूर्ण होती है।
- इन नवाचारों को इलेक्ट्रिक वाहनों और नवीकरणीय ऊर्जा भंडारण प्रणालियों पर लागू किया गया है।
- उदाहरण के लिये, NASA के अत्याधुनिक ठोस-अवस्था बैटरी अनुसंधान ने ऐसी ऊर्जा प्रणालियाँ बनाई हैं, जिनका वज़न नियमित बैटरियों की तुलना में 30-40% कम है और वे तीन गुना अधिक ऊर्जा संग्रहित करती हैं, जिससे वे अधिक कुशल, लंबे समय तक चलने वाले ऊर्जा समाधान प्रदान करती हैं।
- सोलर पैनल मूलतः अंतरिक्ष अनुप्रयोगों के लिये विकसित किये गए थे, NASA ने वर्ष 1958 में पहली सोलर सेल प्रौद्योगिकी को आगे बढ़ाया था।
- आज, सबसे उन्नत सौर पैनल कार्बन नैनोट्यूब का उपयोग करके बनाए जाते हैं, जो अधिक प्राकृतिक प्रकाश को ग्रहण करके तथा परावर्तित प्रकाश को कम करके दक्षता बढ़ाते हैं।
- भारत वैकल्पिक नवीकरणीय स्रोत के रूप में सौर ऊर्जा की सक्रिय रूप से खोज़ कर रहा है, इसका एक प्रमुख उदाहरण अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) में इसकी नेतृत्वकारी भूमिका है।
- चिकित्सा इमेजिंग: अंतरिक्ष मिशनों में उन्नत इमेजिंग प्रौद्योगिकियों की आवश्यकता के कारण पृथ्वी पर चिकित्सा इमेजिंग में सफलता मिली है।
- मूलतः अंतरिक्ष यात्रियों के आंतरिक स्वास्थ्य का अध्ययन करने के लिये विकसित प्रौद्योगिकियाँ अब चिकित्सा निदान में आम हो गई हैं।
- अंतरिक्ष में उपयोग के लिये विकसित कॉम्पैक्ट अल्ट्रासाउंड मशीनों का उपयोग अब आपातकालीन कक्षों और एम्बुलेंसों में किया जाता है, जो त्वरित, ऑन-साइट निदान क्षमता प्रदान करती हैं।
- पोर्टेबल अल्ट्रासाउंड बाज़ार वर्ष 2030 तक 3.8 बिलियन डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है, जिसमें अंतरिक्ष-प्रेरित प्रौद्योगिकियाँ इस वृद्धि में महत्त्वपूर्ण योगदान देंगी।
- आपदा प्रबंधन और प्रतिक्रिया: अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों ने बाढ़, तूफान और वनाग्नि जैसी प्राकृतिक आपदाओं की निगरानी एवं पूर्वानुमान के लिये उपग्रहों के उपयोग के माध्यम से आपदा प्रबंधन प्रयासों को काफी बढ़ाया है।
- ये उपग्रह समय पर आपदा प्रतिक्रिया के लिये रियल टाइम डेटा प्रदान करते हैं।
- ISRO के आपदा प्रबंधन सहायता (DMS) कार्यक्रम ने आपदाओं पर नज़र रखने तथा बचाव एवं पुनर्प्राप्ति कार्यों में सहायता के लिये महत्त्वपूर्ण जानकारी प्रदान करने के लिये उपग्रह डेटा का उपयोग किया है।
- सुविधा एवं सहायक सामग्री में नवाचार: विशेष उपयोगों जैसे: अंतरिक्ष अन्वेषण के लिये विकसित की गई सुविधा तथा सहायक सामग्री में तकनीकी प्रगति ने उपभोक्ता उत्पादों पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डाला है।
- 'मेमोरी फोम' जैसी सामग्री, जिसे आरंभ में NASA ने उच्च गुरुत्व बल (High-G Force) के दौरान अंतरिक्ष यात्रियों को आराम देने हेतु विकसित किया था, अब गद्दों से लेकर जूतों तक के उद्योगों में क्रांति ला चुकी है।
- अपोलो स्पेससूट पर NASA के कार्य ने 'नाइकी एयर' जैसी गद्देदार 'इनसोल' के विकास में योगदान दिया, जो खिलाड़ियों को एक्स्ट्रा लिफ्ट तथा झटके से सुरक्षा प्रदान करती हैं।
- वर्ष 1968 में, प्यूमा और रीबॉक जैसी जूता कंपनियों ने जूतों में वेल्क्रो का उपयोग करना शुरू किया (जिसका श्रेय NASA को जाता है)।
- इन नवाचारों ने आराम व सुविधा को बढ़ाया है, स्वास्थ्य परिणामों में सुधार किया है (दबाव बिंदुओं को कम करके) और बेहतर दैनिक उपयोग के लिये डिज़ाइन किये गए उत्पादों के विकास में योगदान दिया है।
भारत आगामी अंतरिक्ष मिशनों का व्यापक उपयोग किस प्रकार कर सकता है?
- सतत् विकास के लिये पृथ्वी अवलोकन का लाभ उठाना: NASA के साथ एक संयुक्त परियोजना, NISAR, पहला द्वि-आवृत्ति सिंथेटिक एपर्चर रडार युक्त पहला उपग्रह होगा, जिसे उच्च स्तरीय रिमोट सेंसिंग के लिये विकसित किया गया है।
- NISAR से प्राप्त हाई-रिज़ॉल्यूशन अर्थ ओब्ज़र्वेशन डेटा वास्तविक समय बाढ़ निगरानी से लेकर वनाग्नि का पता लगाने तक आपदा प्रबंधन क्षमताओं को महत्त्वपूर्ण रूप से बढ़ा सकता है।
- यह मृदा नमी, फसल स्वास्थ्य आदि पर विस्तृत, रियल टाइम डेटा प्रदान करके कृषि उत्पादकता को भी बढ़ा सकता है।
- रडार इमेजरी से फसल स्वास्थ्य की सटीक निगरानी और जल संसाधन प्रबंधन में भी सहायता मिलेगी, जिससे परिशुद्ध कृषि, शहरी नियोजन एवं पर्यावरण संरक्षण में योगदान मिलेगा।
- NISAR से प्राप्त हाई-रिज़ॉल्यूशन अर्थ ओब्ज़र्वेशन डेटा वास्तविक समय बाढ़ निगरानी से लेकर वनाग्नि का पता लगाने तक आपदा प्रबंधन क्षमताओं को महत्त्वपूर्ण रूप से बढ़ा सकता है।
- स्वास्थ्य सेवा और जैव प्रौद्योगिकी का संवर्द्धन: गगनयान का मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम न केवल अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में भेजेगा, बल्कि ISRO को उन्नत जीवन समर्थन प्रणाली और स्वास्थ्य निगरानी प्रौद्योगिकियों को विकसित करने में भी सहायता करेगा।
- अंतरिक्ष में मानव स्वास्थ्य निगरानी के लिये विकसित प्रौद्योगिकियों, जैसे बायोमेडिकल सेंसर, टेलीमेडिसिन सिस्टम और रिमोट डायग्नोस्टिक्स का उपयोग पृथ्वी के सुदूर व कम सुविधा वाले क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवा की पहुँच में सुधार लाने में किया जा सकता है।
- इसके अतिरिक्त, अंतरिक्ष यात्रियों की मांसपेशीय पुनरुत्पत्ति और अस्थि स्वास्थ्य से संबंधित जैव-प्रौद्योगिकी नवाचारों का प्रयोग वृद्धावस्था-संबंधी रोगों व दीर्घकालिक गतिशीलता समस्याओं से पीड़ित मरीज़ों के उपचार में किया जा सकता है, जिससे वृद्धजनों तथा अस्थि-मांसपेशीय रोगियों के लिये चिकित्सा सेवा की गुणवत्ता में वृद्धि संभव होगी।
- नवीकरणीय ऊर्जा समाधान और जलवायु परिवर्तन शमन को आगे बढ़ाना: वीनस ऑर्बिटर मिशन शुक्र के वायुमंडल का अध्ययन करेगा, जो अपने अत्यधिक ग्रीनहाउस प्रभावों के लिये जाना जाता है।
- शुक्र की चरम जलवायु प्रणालियों से प्राप्त आँकड़े पृथ्वी पर जलवायु मॉडलिंग और कार्बन उत्सर्जन की बेहतर समझ प्रदान कर सकते हैं।
- शुक्र ग्रह के ग्रीनहाउस गैस-आधारित जलवायु तंत्र को समझना, पृथ्वी पर जलवायु परिवर्तन शमन रणनीतियों को सुधारने में सहायक हो सकता है।
- अंतरिक्ष-आधारित तकनीकें, जैसे NOAA की 'अर्थ ऐंड स्पेस ऑब्ज़र्विंग डिजिटल ट्विन्स', जलवायु परिवर्तन शमन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।
- उपग्रह आँकड़ों और कृत्रिम बुद्धिमत्ता के माध्यम से, ये तकनीकें समय रहते चेतावनी प्रणालियों को मज़बूत बनाती हैं, जिससे जलवायु जनित प्रभावों को कम करने तथा समयोचित हस्तक्षेप सुनिश्चित करने में सहायता मिलती है।
- यह प्रयास नवीकरणीय ऊर्जा प्रौद्योगिकियों, विशेष रूप से सौर ऊर्जा के अनुकूलन में भी योगदान दे सकता है तथा जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में मौसम प्रतिरूपों की गहन समझ प्रदान कर सकता है, जिससे कृषि, जल संसाधन एवं ऊर्जा खपत का बेहतर प्रबंधन संभव हो सकेगा।
- नेविगेशन और संचार प्रौद्योगिकियों में सुधार: मार्स ऑर्बिटर मिशन- 2 का उद्देश्य अंतर-ग्रहीय संप्रेषण तथा दिशा-निर्देशन प्रणालियों को सशक्त बनाना है।
- मंगल ग्रह के लिये विकसित ये उन्नत संप्रेषण प्रणालियाँ और नेविगेशन तकनीकें पृथ्वी पर भी तत्काल अनुप्रयोग पा सकती हैं, जैसे: वैश्विक स्थिति निर्धारण प्रणाली (GPS), उपग्रह संचार तथा दिशा-निर्देशन आधारित प्रणालियाँ।
- ये प्रगति लॉजिस्टिक्स, कृषि और परिवहन जैसे क्षेत्रों में स्वायत्त वाहनों एवं ड्रोनों के लिये नेविगेशन सटीकता में सुधार करेगी, जिससे सुरक्षित, अधिक कुशल यात्रा तथा वितरण प्रणाली सुनिश्चित होगी।
- इसके अतिरिक्त, संचार नवाचारों से 5G नेटवर्क क्षमताओं और ग्रामीण कनेक्टिविटी में वृद्धि होगी, जिससे वंचित क्षेत्रों में इंटरनेट पहुँच में सुधार होगा।
- संसाधन प्रबंधन के लिये चंद्र अन्वेषण का उपयोग: जैक्सा (JAXA) के साथ सहयोग में प्रस्तावित 'लूनर पोलर एक्सप्लोरेशन मिशन' चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव की पड़ताल करेगा, जो जल-बर्फ और खनिजों से समृद्ध माना जाता है।
- चंद्रमा से जल तथा संसाधनों की खोज़ व निष्कर्षण पृथ्वी पर संसाधन प्रबंधन से जुड़ी उन्नत तकनीकों को विकसित करने में सहायक सिद्ध हो सकता है।
- यह मिशन पृथ्वी के लिये जल-शुद्धिकरण, खनिज निष्कर्षण और सतत् संसाधन प्रबंधन तकनीकों में योगदान दे सकता है।
- इसके अलावा, चंद्रमा पर निवास के लिये विकसित प्रौद्योगिकियों को ऑफ-ग्रिड जीवन और सतत् शहरी बुनियादी अवसंरचना के लिये अनुकूलित किया जा सकता है, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहाँ संसाधनों की कमी व पर्यावरणीय तनाव है।
- उन्नत अनुसंधान के लिये अंतरिक्ष स्टेशन स्थापित करना: भारत का अंतरिक्ष स्टेशन वैज्ञानिक अनुसंधान, सूक्ष्मगुरुत्व प्रयोगों और मानव अंतरिक्ष अन्वेषण के लिये जीवन रक्षक प्रणालियों के विकास का केंद्र होगा।
- इसके अलावा, अंतरिक्ष स्टेशन नई प्रौद्योगिकियों के लिये एक परीक्षण स्थल के रूप में काम कर सकता है, जिससे चिकित्सा, ऊर्जा और भौतिक विज्ञान जैसे उद्योगों को लाभ हो सकता है, जिससे उन्नत स्वास्थ्य देखभाल प्रौद्योगिकियों एवं धारणीय जीवन समाधान में सफलता मिल सकती है।
- अर्थ ओब्ज़र्वेशन और डेटा-संचालित निर्णय लेने में क्रांतिकारी बदलाव: चंद्रयान-4 एक चंद्र चंद्र-नमूना-वापसी (Lunar Sample-Return) अभियान होगा, जिसका उद्देश्य चंद्रमा से नमूने एकत्र करना तथा उन्हें पृथ्वी पर लाकर उनका विश्लेषण करना है।
- चंद्रमा की मिट्टी की संरचना और चंद्रमा की भूवैज्ञानिक प्रक्रियाओं को समझकर, ISRO पृथ्वी-आधारित संसाधन प्रबंधन को परिष्कृत कर सकता है, विशेष रूप से खनिज अन्वेषण एवं भूवैज्ञानिक अध्ययन के लिये।
- यह अनुसंधान अंतरिक्ष मौसम पूर्वानुमान प्रणालियों में भी सुधार कर सकता है, जिससे सौर ज्वालाओं और अन्य ब्रह्मांडीय घटनाओं के लिये बेहतर तैयारी सुनिश्चित हो सकेगी, जो पृथ्वी की संचार एवं ऊर्जा प्रणालियों को प्रभावित करती हैं।
निष्कर्ष:
"अंतरिक्ष अन्वेषण का तात्त्पर्य केवल नई ऊँचाइयों को छूना नहीं है, बल्कि इसका मतलब है पृथ्वी पर जीवन को उन्नत करने के लिये अज्ञात का दोहन करना।"
गगनयान कार्यक्रम, NISAR और चंद्रयान 3 सहित भारत के अंतरिक्ष अन्वेषण मिशनों में स्वास्थ्य सेवा, प्रौद्योगिकी एवं पर्यावरणीय संवहनीयता में वैश्विक प्रगति के लिये परिवर्तनकारी क्षमताएँ हैं। ये नवाचार न केवल अंतरिक्ष अनुसंधान में भारत की स्थिति को बढ़ाएँगे बल्कि पृथ्वी पर चुनौतियों के समाधान को भी बढ़ावा देंगे।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. अंतरिक्ष अनुसंधान में प्रगति और पृथ्वी पर व्यावहारिक नवाचारों के लिये एक्ज़िऑम मिशन 4 प्रयोगों के प्रमुख अनुप्रयोग और लाभ क्या हैं? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रश्न 1. निम्नलिखित अंतरिक्ष मिशनों पर विचार कीजिये: (2025)
उपर्युक्त अंतरिक्ष मिशनों में से कितने सूक्ष्मगुरुत्व (माइक्रोग्रैविटी) विषयक अनुसंधान को प्रोत्साहित और समर्थित करते हैं? (a) केवल एक उत्तर: (c) प्रश्न 2. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2016) ISRO द्वारा प्रमोचित मंगलयान
उपर्युक्त.कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (c) |