इंदौर शाखा: IAS और MPPSC फाउंडेशन बैच-शुरुआत क्रमशः 6 मई और 13 मई   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


भारतीय राजनीति

अधिवास आरक्षण: चुनौतियाँ एवं विकल्प

  • 23 Nov 2023
  • 18 min read

यह एडिटोरियल 22/11/2023 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “Parochial law: On Haryana’s 75% quota to locals in private sector” लेख पर आधारित है। इसमें हरियाणा राज्य स्थानीय उम्मीदवारों का रोज़गार अधिनियम 2020 के बारे में चर्चा की गई है, जिसके तहत निजी क्षेत्र की नौकरियों में स्थानीय उम्मीदवारों के लिये 75% आरक्षण को अनिवार्य बनाया गया था।

प्रिलिम्स के लिये:

अनुच्छेद 16(4), अनुच्छेद 16(2), अनुच्छेद 19(1)(g), अनुच्छेद 19(1)(d) और (e), संवैधानिक नैतिकता, आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण, हरियाणा राज्य स्थानीय उम्मीदवारों का रोज़गार अधिनियम, 2020,

मेन्स के लिये:

निवास के आधार पर आरक्षण: वैधता, पक्ष और विपक्ष में तर्क, आगे की राह 

पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने निजी क्षेत्र की नौकरियों में राज्य के निवासियों को 75% आरक्षण प्रदान करने वाले हरियाणा राज्य स्थानीय उम्मीदवारो का रोज़गार अधिनियम 2020 (Haryana State Employment of Local Candidates Act 2020) को निरस्त करने के रूप में एक उपयुक्त कदम उठाया है। न्यायालय ने कहा कि इस मुद्दे पर कानून बनाना और निजी नियोक्ताओं को खुले बाजार से लोगों की नियुक्ति करने से रोकना राज्य के अधिकार क्षेत्र से बाहर का विषय है।

न्यायालय ने यह भी कहा कि ‘स्थानीय निवासियों’ के लिये 75% आरक्षण की व्यवस्था करने के रूप में यह अधिनियम देश के अन्य हिस्सों के नागरिकों के अधिकारों के विरुद्ध है और इस तरह के अधिनियम से अन्य राज्य भी इसी तरह के अधिनियम लाने के लिये प्रेरित हो सकते हैं, जो फिर पूरे भारत में ‘कृत्रिम अवरोधों’ का निर्माण कर सकता है।

कानून क्या था और इसे चुनौती क्यों दी गई?

  • कानून: हरियाणा विधानसभा ने नवंबर 2020 में एक विधेयक पारित कर राज्य के निजी क्षेत्र की ऐसी नौकरियों में स्थानीय निवासियों के लिये 75% आरक्षण का प्रावधान किया जहाँ 30,000 रुपए (मूल रूप से 50,000 रुपए) से कम के मासिक वेतन की पेशकश की जाती हो।
    • इस विधेयक को 2 मार्च 2021 को राज्यपाल की सहमति प्राप्त हो गई और यह 15 जनवरी 2022 को लागू हो गया।
    • अधिनियम के दायरे में सभी कंपनियों, सोसाइटी, ट्रस्ट, सीमित देयता भागीदारी फर्म, साझेदारी फर्म और बड़े व्यक्तिगत नियोक्ता शामिल किये गए थे। इसके दायरे में विनिर्माण या कोई सेवा प्रदान करने के लिये वेतन, मजदूरी या अन्य पारिश्रमिक पर 10 या अधिक लोगों को रोज़गार देने वाले किसी भी व्यक्ति के साथ ही सरकार द्वारा अधिसूचित किसी भी निकाय को शामिल किया गया था।
  • चुनौती: फ़रीदाबाद इंडस्ट्रीज एसोसिएशन और हरियाणा में आधारित अन्य कुछ एसोसिएशन इस अधिनियम के विरुद्ध न्यायालय के पास पहुँचे जहाँ उन्होंने तर्क दिया कि हरियाणा सरकार ‘मिट्टी के पुत्र’ (sons of the soil) की नीति शुरू कर निजी क्षेत्र में आरक्षण लागू करना चाहती है जो नियोक्ताओं के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है। 
    • याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि निजी क्षेत्र की नौकरियाँ पूरी तरह से व्यक्ति के कौशल और विश्लेषणात्मक मस्तिष्क क्षमता पर आधारित होती हैं तथा कर्मचारियों को भारत के किसी भी हिस्से में काम करने का मौलिक अधिकार प्राप्त है।
    • उन्होंने यह भी तर्क दिया कि निजी क्षेत्र में स्थानीय उम्मीदवारों को नियुक्त करने के लिये नियोक्ताओं को विवश करने वाला सरकार का अधिनियम भारत के संविधान द्वारा निर्मित संघीय ढाँचे का उल्लंघन है, जिसके तहत सरकार सार्वजनिक हित के विपरीत कार्य नहीं कर सकती और किसी एक वर्ग को लाभ नहीं पहुँचा सकती।
  • सरकार की प्रतिक्रिया: हरियाणा सरकार ने तर्क दिया कि उसके पास संविधान के अनुच्छेद 16 (4) के तहत ऐसे आरक्षण का प्रावधान करने की शक्ति है, जहाँ लोक नियोजन के विषय में अवसर की समता के अधिकार के तहत कहा गया है “इस अनुच्छेद की कोई बात राज्य को पिछड़े हुए नागरिकों के किसी वर्ग के पक्ष में, जिसका प्रतिनिधित्व राज्य की राय में राज्य के अधीन सेवाओं में पर्याप्त नहीं है, नियुक्तियों उया पदों के आरक्षण के लिये उपबंध करने से निवारित नहीं करेगी।”

क्या हरियाणा ऐसा कानून लागू करने वाला एकमात्र राज्य है?

  • हरियाणा पहला राज्य नहीं है जिसने बेरोज़गारी संकट को दूर करने के लिये स्थानीय निवासी संबंधी दृष्टिकोण अपनाया है। महाराष्ट्र (80% तक आरक्षण), कर्नाटक (75%), आंध्र प्रदेश (75%) एवं मध्य प्रदेश (70%) जैसे राज्यों में स्थानीय निवासियों के लिये ऐसे ही कानून लागू हैं और इनमें से भी अधिकांश को न्यायालयों में चुनौती दी गई है।

क्या सरकारें अधिवास (Domicile) के आधार पर भेदभाव कर सकती हैं?

  • एक ओर संविधान की धारा 16(2) में कहा गया है कि राज्य के अधीन किसी नियोजन या पद के संबंध में केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, उद्भव, जन्म स्थान, निवास या इनमें से किसी के आधार पर न तो कोई नागरिक अपात्र होगा और न उससे विभेद किया जाएगा।”
    • दूसरी ओर, इसी अनुच्छेद का खंड 4 कहता है कि “इस अनुच्छेद की कोई बात राज्य को पिछड़े हुए नागरिकों के किसी वर्ग के पक्ष में, जिसका प्रतिनिधित्व राज्य की राय में राज्य के अधीन सेवाओं में पर्याप्त नहीं है, नियुक्तियों उया पदों के आरक्षण के लिये उपबंध करने से निवारित नहीं करेगी।”
    • लेकिन ये प्रावधान सरकारी नौकरियों के मामले में लागू हैं।
  • अनुच्छेद 19(1)(g) सभी नागरिकों को कोई भी वृत्ति, उपजीविका, व्यापार या कारबार करने का अधिकार प्रदान करता है।
    • इस प्रकार राज्य सरकारों द्वारा ऐसी सीमाएँ लगाना किसी व्यक्ति के अपनी पसंद की वृत्ति, व्यापार या कारबार में शामिल होने के संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन करता है, जैसा कि अनुच्छेद 19(1)(g) में कहा गया है।
  • इसके अलावा, उच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा कि ‘‘हरियाणा राज्य से असंबद्ध नागरिकों के समूह को द्वितीयक दर्जा देने (secondary status) और आजीविका कमाने के उनके मौलिक अधिकारों में कटौती करने के रूप में पर उल्लंघन किया गया है। 
    • आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने भी माना था कि अधिवास के आधार पर संवैधानिक नैतिकता (constitutional morality) की अवधारणा का खुले तौर आरक्षण प्रदान करने का आंध्र प्रदेश का विधेयक (वर्ष 2019 में पारित) “असंवैधानिक हो सकता है”, हालाँकि अभी मेरिट या योग्यता के आधार पर इस पर सुनवाई किया जाना शेष है।

अधिवास के आधार पर आरक्षण प्रदान करने वाले राज्य कानूनों के पक्ष में प्रमुख तर्क:

  • ऐसा अधिनियम यह सुनिश्चित करने का एक तरीका है कि राज्य के स्थानीय लोगों को सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों में पर्याप्त प्रतिनिधित्व एवं अवसर प्राप्त हो। इससे राज्य में स्थानीय उम्मीदवारों के लिये रोज़गार के अवसरों को बढ़ावा मिल सकता है और उनकी आजीविका सुरक्षित हो सकती है।
    • हरियाणा राज्य में देश में बेरोज़गारी की चौथी सबसे उच्च दर पाई जाती है (आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण 2021-22 के अनुसार 9%)।
      • यह राष्ट्रीय औसत (4.1%) और इसके पड़ोसी राज्यों उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान और पंजाब से अधिक है।
  • इसे समाज के वंचित वर्गों के लिये सकारात्मक कार्रवाई के एक उपाय के रूप में भी देखा जा सकता है, जिन्हें अन्य राज्यों में भेदभाव या शिक्षा एवं रोज़गार तक पहुँच की कमी का सामना करना पड़ सकता है।
    • राज्य सरकारें स्थानीय निवासियों को आरक्षण प्रदान कर उन्हें सशक्त बना सकती हैं और उनकी सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति को बेहतर कर सकती हैं।
  • इसे स्थानीय लोगों की सांस्कृतिक और भाषाई पहचान के संरक्षण के आधार पर भी उचित ठहराया जा सकता है। राज्य सरकारें स्थानीय निवासियों को प्राथमिकता देकर उनके हितों की रक्षा कर सकती हैं और उनकी संस्कृति एवं भाषा का संवर्द्धन कर सकती हैं।
    • इससे स्थानीय लोगों में अपने राज्य के प्रति आत्मीयता एवं निष्ठा की भावना को भी बढ़ावा मिल सकता है।

ऐसे कानूनों के विरुद्ध प्रमुख तर्क 

  • ऐसे कानून भारत में सर्वर्त्र अबाध संचरण करने और कहीं भी कार्य करने के नागरिकों के मूल अधिकार का उल्लंघन करते हैं जिसकी गारंटी अनुच्छेद 19(1)(d) और (e) द्वारा दी गई है।
    • कामगार/श्रमिक मांग एवं प्राप्त मजदूरी के अनुसार पलायन करते हैं और उद्योग उनकी अधिवास स्थिति पर विचार किये बिना सर्वोत्तम प्रतिभा को कार्य पर रखना चाहते हैं।
    • प्रवासी श्रमिकों ने हरियाणा, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश जैसे औद्योगिक राज्यों की अर्थव्यवस्थाओं के निर्माण एवं उन्हें बनाए रखने में अहम योगदान दिया है।
    • वास्तव में, दुनिया भर में सफल अर्थव्यवस्थाएँ इसी तरह प्रबंधित होती हैं।
  • ये कानून निजी क्षेत्र—जो कुशल, योग्य और क्षमतावान कार्यबल की उपलब्धता पर निर्भर करता है, की नियुक्ति एवं भर्ती नीतियों पर मनमाने एवं अनुचित प्रतिबंध लगाकर, उनका दम घोंट सकते हैं।
    • वे राज्य में निवेश एवं विकास को हतोत्साहित कर सकते हैं, क्योंकि निजी क्षेत्र अन्य राज्यों में स्थानांतरित होने या विस्तार करने का विकल्प चुन सकता है जहाँ उनके व्यवसाय के लिये अधिक अनुकूल एवं लचीली दशाएँ प्राप्त हों।
  • ये कानून निजी नियोक्ता के अपनी आवश्यकताओं एवं अनुकूलताओं के आधार पर भर्ती या नियुक्ति करने की स्वतंत्रता एवं स्वायत्तता में हस्तक्षेप करते हैं, जो संविधान के अनुच्छेद 19(1)(g) के तहत व्यवसाय एवं व्यापार करने के उनके अधिकार को प्रभावित करते हैं।
  • ये कानून राज्य की आर्थिक वृद्धि एवं प्रतिस्पर्द्धात्मकता के लिये प्रतिकूल और हानिकारक हैं, क्योंकि वे देश के विभिन्न हिस्सों से विविध और कुशल कार्यबल तक पहुँच में बाधा डालते हैं, जो विभिन्न क्षेत्रों के संचालन और नवाचार के लिये आवश्यक है।
  • ये कानून स्थानीय युवाओं के बीच बेरोज़गारी की समस्या का समाधान करने के लिये व्यवहार्य या प्रभावी समाधान नहीं हैं, क्योंकि वे इस मुद्दे के मूल कारणों- जैसे शिक्षा, प्रशिक्षण एवं अवसरों की कमी के विषय को संबोधित नहीं करते, बल्कि अन्य लोगों के अधिकारों का उल्लंघन करते हैं। 
  • ये कानून लोकलुभावन और संरक्षणवादी उपाय हैं जो अन्य राज्यों की से प्रतिक्रिया आमंत्रित कर सकते हैं और श्रम बाज़ार के विभाजन (balkanisation of the labour market) को जन्म दे सकते हैं, जो ‘एक राष्ट्र, एक बाज़ार’ के उद्देश्य की प्राप्ति के लिये देश में एक एकीकृत एवं गतिशील श्रम बाज़ार के दृष्टिकोण के विरुद्ध है।  

ऐसे कानूनों का विकल्प क्या हो सकता है?

  • नियामक एवं नौकरशाही बाधाओं को कम करने, प्रोत्साहन एवं सब्सिडी प्रदान करने, निष्पक्ष प्रतिस्पर्द्धा एवं पारदर्शिता सुनिश्चित करने के रूप में निजी क्षेत्र के विकास एवं फलने-फूलने के लिये अनुकूल माहौल का निर्माण करने वाली बाज़ार-समर्थक नीतियों को अपनाएँ।
  • ऐसे मानव विकास पर ध्यान केंद्रित करें जो गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, व्यावसायिक प्रशिक्षण, कौशल विकास, उद्यमिता आदि में निवेश कर स्थानीय उम्मीदवारों के कौशल, शिक्षा एवं रोज़गार क्षमता को बढ़ाता हो।
  • बेरोज़गारी भत्ता, नौकरी की गारंटी, सामाजिक सुरक्षा आदि योजनाओं की पेशकश कर बेरोज़गारी से प्रभावित स्थानीय उम्मीदवारों को वित्तीय एवं सामाजिक सहायता प्रदान करने वाले प्रोत्साहन पैकेज प्रदान करें।
  • अनिवार्य कोटा लागू करने के बजाय स्थानीय उम्मीदवारों को रोज़गार देने वाले निजी क्षेत्र निकायों को प्रोत्साहन एवं सब्सिडी प्रदान करें। इससे स्वैच्छिक अनुपालन को बढ़ावा मिल सकता है और नियोक्ताओं पर बोझ कम हो सकता है।
  • गैर-स्थानीय उम्मीदवारों के रोज़गार को प्रतिबंधित करने के बजाय ऐसे स्थानीय उद्योगों और क्षेत्रों के विकास को बढ़ावा दें जिनमें स्थानीय उम्मीदवारों की उच्च मांग है। इससे राज्य और उसके लोगों के लिये अधिक रोज़गार के अवसर और आर्थिक विकास सुनिश्चित हो सकते हैं।

निष्कर्ष

भारत में निजी रोज़गार में राज्य द्वारा अधिरोपित अधिवास आरक्षण की बहस में स्थानीय हितों और संवैधानिक स्वतंत्रता को संतुलित करना शामिल है। इसके समर्थक प्रतिनिधित्व और सांस्कृतिक संरक्षण पर बल दे रहे हैं, जबकि इसके आलोचक संवैधानिक चिंताओं एवं आर्थिक खामियों की ओर ध्यान दिला रहे हैं। रचनात्मक रूप से आगे बढ़ने के लिये बाज़ार समर्थक नीतियों और लक्षित प्रोत्साहन जैसे विकल्पों की खोज करना महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि यह समाधान रोज़गार नीतियों के प्रक्षेप पथ को आकार दे सकेगा।

अभ्यास प्रश्न: भारत में निजी रोज़गार में राज्य द्वारा अधिरोपित अधिवास आरक्षण के पक्ष एवं विपक्ष में व्यक्त तर्कों का आकलन कीजिये। इन मुद्दों को संबोधित करते समय नीति निर्माताओं को किन प्रमुख बातों को ध्यान में रखना चाहिये?

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2