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कृषि

भारत में प्राकृतिक कृषि

  • 14 Oct 2025
  • 81 min read

प्रीलिम्स के लिये: प्राकृतिक कृषि, शून्य बजट प्राकृतिक कृषि, भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति, SDG 12 (स्थायी उपभोग और उत्पादन)

मेन्स के लिये: प्राकृतिक/रसायन मुक्त कृषि के सिद्धांत, प्रथाएँ और लाभ, भारत में प्राकृतिक कृषि को मुख्यधारा में लाने में चुनौतियाँ।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

हिमाचल प्रदेश में एक बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है क्योंकि हज़ारों किसान रसायन-आधारित कृषि से हटकर प्राकृतिक कृषि की ओर रुख कर रहे हैं। यह बदलाव भारत में संधारणीय और पर्यावरण-अनुकूल कृषि के प्रति व्यापक रुझान को दर्शाता है।

प्राकृतिक कृषि क्या है?

  • परिभाषा: नीति आयोग के अनुसार, प्राकृतिक कृषि ‘एक रसायन मुक्त पारंपरिक कृषि पद्धति’ है जो फसलों, वृक्षों, पशुधन और कार्यात्मक जैव विविधता को एकीकृत करने वाले कृषि-पारिस्थितिक सिद्धांतों पर आधारित है।
    • यह प्रकृति के साथ मिलकर कार्य करने के सिद्धांत का पालन करता है, जिसमें मानवीय हस्तक्षेप को न्यूनतम रखा जाता है (जिसे प्राय: ‘डू नथिंग फार्मिंग’ कहा जाता है) और कृत्रिम रासायनिक पदार्थों के पूर्ण परिहार पर बल दिया जाता है।
  • मुख्य विशेषताएँ और सिद्धांत:
    • कोई बाहरी रासायनिक इनपुट नहीं: रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों, शाकनाशियों और विकास नियामकों से पूरी तरह से बचा जाता है।
    • ऑन-फार्म इनपुट जनरेशन (खेत पर ही कृषि इनपुट उत्पादन): यह नीमास्त्र, अग्निअस्त्र, जीवामृत और बीजामृत जैसे कृषि इनपुट पर निर्भर करता है, जो स्थानीय रूप से गाय के गोबर, गोमूत्र, गुड़, बेसन तथा मृदा जैसी सामग्रियों का उपयोग करके खेतों पर तैयार किये जाते हैं।
    • पशुधन एकीकरण: देशी गाय की नस्लें इनपुट प्राप्त करने और पोषक चक्र को बनाए रखने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
    • विविध फसल प्रणाली: अंतर-फसल, मिश्रित फसल, कृषि वानिकी और फसल चक्र को प्रोत्साहित करती है।
    • मृदा स्वास्थ्य और जैव विविधता: उपजाऊ और जीवित मृदा के लिये मल्चिंग, आवरण फसल एवं सूक्ष्मजीवी गतिविधि को बनाए रखने पर ज़ोर देती है।
    • जल दक्षता: न्यूनतम सिंचाई का उपयोग करती है और प्राकृतिक रूप से मृदा आर्द्रता प्रतिधारण में सुधार करती है।
  • वैज्ञानिक और पर्यावरणीय लाभ: मृदा के कार्बनिक कार्बन और मृदा उर्वरता को बढ़ाता है, जिससे सिंथेटिक इनपुट की आवश्यकता कम हो जाती है।
    • लाभकारी कीटों, परागणकों और मृदा जीवों सहित जैव विविधता को बढ़ावा देता है।
    • यूरिया और अन्य नाइट्रोजनयुक्त उर्वरकों के प्रयोग से बचकर ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम किया जा सकता है।
    • खेतों की जलवायु सहनशीलता में सुधार करता है, विशेष रूप से अनावृष्टि और अनियमित वर्षा की स्थिति में।

प्राकृतिक कृषि भारत में किसानों और ग्रामीण आजीविका को किस प्रकार लाभ पहुँचा रही है?

  • कृषि की लागत में कमी: प्राकृतिक कृषि न केवल एक पारिस्थितिक विकल्प है, बल्कि भारतीय किसानों को स्थायी सामाजिक-आर्थिक लाभ भी प्रदान करती है। शून्य बजट प्राकृतिक कृषि (ZBNF) भारत में सबसे लोकप्रिय मॉडल है।
    • प्राकृतिक कृषि के अंतर्गत इनपुट की लागत पारंपरिक रासायनिक कृषि की तुलना में 50-60% कम होती है।
    • चूँकि जैविक इनपुट स्थानीय रूप से उपलब्ध संसाधनों का उपयोग करके खेत पर ही तैयार किये  जाते हैं, इसलिये किसान इनपुट लागत में उल्लेखनीय बचत करते हैं।
  • किसानों की आय में सुधार: यद्यपि प्रारंभिक उपज स्थिर या थोड़ी कम हो सकती है, लेकिन मृदा स्वास्थ्य में सुधार के कारण दीर्घकालिक उत्पादकता बनी रहती है या बढ़ जाती है।
    • आय स्थिरता अंतर-फसल, मूल्य-संवर्द्धित उत्पादों और फसल विफलता के जोखिम को कम करके प्राप्त की जाती है।
  • रोज़गार सृजन: जैव-इनपुट उत्पादन, सीड बैंक, खाद निर्माण और स्थानीय बाज़ार शृंखलाओं में स्थानीय उद्यमिता को प्रोत्साहित करता है। कृषि को अधिक ज्ञान-आधारित और स्थाई बनाकर ग्रामीण युवाओं की भागीदारी को बढ़ावा देता है।
  • स्वास्थ्य और खाद्य सुरक्षा: प्राकृतिक उत्पाद हानिकारक कीटनाशक अवशेषों से मुक्त होते हैं, जिससे बेहतर पोषण और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित होती है।
    • यह खाद्य पदार्थों के पोषण घनत्व को बढ़ाता है, जो हिडन हंगर और रासायनिक पदार्थों के कारण स्वास्थ्य संबंधी विकारों की चिंताओं को संबोधित करता है।
  • महिला सशक्तीकरण: महिलाओं को जैव-इनपुट, खाद बनाने, किचन गार्डनिंग और किसान उत्पादक समूहों की तैयारी में शामिल किया जाता है।

प्राकृतिक कृषि के लिये भारत की पहल क्या हैं?

  • राष्ट्रीय प्राकृतिक कृषि मिशन (NMNF): कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा केंद्र प्रायोजित योजना, जो पारंपरिक ज्ञान पर आधारित रसायन मुक्त, पारिस्थितिकी तंत्र आधारित प्राकृतिक कृषि को बढ़ावा देती है।
    • NMNF का लक्ष्य 15,000 क्लस्टरों में 7.5 लाख हेक्टेयर भूमि को शामिल करना और 1 करोड़ किसानों को सुविधा प्रदान करना है।
    • प्राकृतिक कृषि पद्धतियों को अपनाने के लिये प्रोत्साहित करने हेतु दो वर्षों तक प्रति एकड़ 4,000 रुपए प्रति वर्ष की प्रोत्साहन राशि प्रदान की जा रही है।
    • NMNF, परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY) के अंतर्गत पूर्ववर्ती भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति (BPKP) पर आधारित है।

  • भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति (BPKP): मार्च 2025 तक यह 9.4 लाख हेक्टेयर पर प्राकृतिक कृषि करने वाले 28 लाख किसानों को सहायता प्रदान करता है।

राज्य-स्तरीय पहल: 

Natural_Farming

भारत में प्राकृतिक कृषि को मुख्यधारा में लाने में प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?

  • ज्ञान और कौशल का अंतर: प्राकृतिक कृषि ज्ञान-प्रधान और स्थान-विशिष्ट है, जिसके लिये किसानों को पारिस्थितिक अंतःक्रियाओं को समझने तथा नई पद्धतियों को अपनाने की आवश्यकता होती है।
    • कई किसानों, विशेष रूप से दूरदराज के क्षेत्रों में व्यावहारिक समझ का अभाव है और उन्हें कृषि सखियों द्वारा निरंतर सहायता की आवश्यकता होती है।
  • व्यावहारिक प्रतिरोध: जो किसान उच्च इनपुट और रासायनिक-प्रधान कृषि के आदी हैं, वे प्राय: कम इनपुट तथा श्रम-प्रधान प्राकृतिक कृषि अपनाने में संकोच करते हैं।
  • राज्य-स्तरीय परिवर्तनशीलता: हिमाचल प्रदेश, आंध्र प्रदेश, गुजरात आदि में सफल मॉडल मौजूद हैं, लेकिन मृदा, जलवायु और सामाजिक परिस्थितियाँ भिन्न-भिन्न हैं, जिससे समान प्रतिकृति बनाना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
  • नीति अभिसरण जटिलता: NMNF को अन्य केंद्रीय/राज्य योजनाओं (पशुधन, ग्रामीण विकास, आयुष, खाद्य प्रसंस्करण) और स्थानीय संस्थानों के साथ समन्वयित करना प्रशासनिक रूप से चुनौतीपूर्ण है।
  • बाज़ार संबंध और प्रीमियम मूल्य निर्धारण: रासायनिक-मुक्त उत्पादों के लिये विश्वसनीय बाज़ार स्थापित करना एक चुनौती बनी हुई है।
    • यदि प्रीमियम मूल्य निर्धारण और सुनिश्चित न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) निरंतर उपलब्ध नहीं होते हैं तो किसान बदलाव करने में संकोच कर सकते हैं।
  • इनपुट उपलब्धता और बुनियादी अवसंरचना: सभी क्षेत्रों, विशेष रूप से दूरदराज के क्षेत्रों में जैव-इनपुट की समय पर उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिये मज़बूत जैव-इनपुट संसाधन केंद्रों (BRC) और आपूर्ति शृंखलाओं की आवश्यकता है।

भारत में प्राकृतिक कृषि को बढ़ावा देने के लिये क्या उपाय अपनाए जा सकते हैं?

  • विकेंद्रीकृत किसान समूह: सहपाठी शिक्षण को सक्षम बनाने, इनपुट लागत को कम करने और सामुदायिक स्तर पर विस्तार सहायता को सुगम बनाने के लिये सन्निहित प्राकृतिक कृषि समूह बनाना।
  • ज्ञान नेटवर्क को मज़बूत करना: NF तकनीक, जैव-इनपुट तैयारी, कीट प्रबंधन एवं बहु-फसल में व्यावहारिक प्रशिक्षण प्रदान करने के लिये  कृषि सखियों, सामुदायिक संसाधन व्यक्तियों और KVK को तैनात करना।
  • जैव-इनपुट सुगम्यता: स्थानीय जैव-इनपुट संसाधन केंद्र (BRC) स्थापित करना और बाहरी रासायनिक इनपुट पर निर्भरता कम करने के लिये जैविक इनपुट के कृषि-आधारित उत्पादन को बढ़ावा देना।
  • बाज़ार एकीकरण और प्रमाणन: PGS/जैविक प्रमाणन विकसित करना, प्राकृतिक जैविक उत्पादों के लिये एक राष्ट्रीय ब्रांड को बढ़ावा देना और उचित मूल्य सुनिश्चित करने के लिये कृषि उपज बाज़ार समितियों (APMC), किसान उत्पादक संगठनों (FPO) और स्थानीय बाज़ारों के साथ संबंधों को मज़बूत करना।
  • कृषि-पारिस्थितिकी आधारित अनुसंधान: विभिन्न कृषि-जलवायु क्षेत्रों में अनुकूलन बढ़ाने के लिये क्षेत्र-विशिष्ट प्राकृतिक जैविक फसल प्रणालियों और मृदा-आर्द्रता प्रबंधन प्रथाओं को अनुकूलित करना।
  • डिजिटल निगरानी और ज्ञान साझाकरण: जियो-टैग आधारित ट्रैकिंग, ऑनलाइन पोर्टल और मोबाइल परामर्श सेवाओं का उपयोग करके अपनाने की प्रक्रिया, उत्पादन तथा पारिस्थितिक परिणामों की निगरानी करना, साथ ही समय पर मार्गदर्शन प्रदान करना।

निष्कर्ष

प्राकृतिक कृषि पोषक तत्त्वों से भरपूर, रसायन-मुक्त खाद्य को बढ़ावा देती है और साथ ही किसानों की लागत भी कम करती है। यह भारत के व्यापक स्थिरता लक्ष्यों के अनुरूप है, खाद्य सुरक्षा में सुधार करके सतत्  विकास लक्ष्य 2 (भूखमरी समाप्त करना) और पर्यावरण-अनुकूल कृषि पद्धतियों को प्रोत्साहित करके सतत् विकास लक्ष्य 12 (सतत उपभोग एवं उत्पादन) का समर्थन करती है।

दृष्टि मेंस प्रश्न:

प्रश्न. भारत में संधारणीय कृषि को बढ़ावा देने और किसानों की आजीविका में सुधार लाने में प्राकृतिक कृषि की भूमिका का परीक्षण कीजिये।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

1. प्राकृतिक कृषि क्या है?
प्राकृतिक कृषि एक रसायन मुक्त, पारंपरिक कृषि प्रणाली है जो मृदा स्वास्थ्य और पारिस्थितिक संतुलन को बढ़ाने के लिये फसलों, पशुधन और जैव विविधता को एकीकृत करती है।

2. राष्ट्रीय प्राकृतिक कृषि मिशन (NMNF) क्या है?
NMNF एक केंद्र प्रायोजित योजना है जिसे वर्ष 2024 में रसायन मुक्त, पारिस्थितिकी तंत्र आधारित प्राकृतिक कृषि को बढ़ावा देने के लिये  शुरू किया गया है, जिसमें 7.5 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को शामिल किया गया है और 1 करोड़ किसानों को समर्थन दिया गया है।

3. प्राकृतिक कृषि में आमतौर पर कौन से जैव-इनपुट का उपयोग किया जाता है?
स्थानीय स्तर पर तैयार सामग्री जैसे बीजामृत, जीवामृत, नीमास्त्र और अग्निअस्त्र का उपयोग किया जाता है, जो गाय के गोबर, गोमूत्र, गुड़, बेसन और मिट्टी से बनाए जाते हैं।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ) 

प्रीलिम्स

प्रश्न. पर्माकल्चर कृषि पारंपरिक रासायनिक कृषि से कैसे अलग है? ( 2021)

  1. पर्माकल्चर कृषि मोनोकल्चर प्रथाओं को हतोत्साहित करती है लेकिन पारंपरिक रासायनिक खेती में मोनोकल्चर प्रथाएँ प्रमुख हैं।  
  2. पारंपरिक रासायनिक कृषि से मृदा की लवणता में वृद्धि हो सकती है लेकिन पर्माकल्चर कृषि में ऐसी घटना नहीं देखी जाती है।  
  3. अर्द्ध-शुष्क क्षेत्रों में पारंपरिक रासायनिक कृषि आसानी से संभव है लेकिन ऐसे क्षेत्रों में पर्माकल्चर कृषि इतनी आसानी से संभव नहीं है।  
  4. पर्माकल्चर कृषि में मल्चिंग का अभ्यास बहुत महत्त्वपूर्ण है लेकिन पारंपरिक रासायनिक कृषि में ऐसा ज़रूरी नहीं है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये।

(a) केवल 1 और 3

(b) केवल 1, 2 और 4

(c) केवल 4

(d) केवल 2 और 3

उत्तर: (b)


प्रश्न. निम्नलिखित कृषि पद्धतियों पर विचार कीजिये: (2012)

  1. कंटूर बंडलिंग  
  2. रिले फसल  
  3. शून्य जुताई

वैश्विक जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में उपर्युक्त में से कौन मिट्टी में कार्बन को अलग करने/भंडारण में मदद करता है?

(a) केवल 1 और 2

(b) केवल 3

(c) 1, 2 और 3

(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं

उत्तर: (b)

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