शासन व्यवस्था
वर्षांत समीक्षा – 2025: पंचायती राज मंत्रालय
- 30 Dec 2025
- 81 min read
प्रिलिम्स के लिये: स्वामित्व योजना, विश्व बैंक लैंड कॉन्फ्रेंस, ग्राम मंच, सभासार, भाषिनी, ई-ग्रामस्वराज, सशक्त पंचायत नेत्री अभियान, एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय (EMRS), पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) अधिनियम, 1996, डिजिटल इंडिया, 73वाँ संशोधन अधिनियम, 1973, ग्राम सभा, राष्ट्रीय ग्राम स्वराज अभियान (RGSA), ग्यारहवीं अनुसूची, राज्य निर्वाचन आयोग (SEC)।
मेन्स के लिये: वर्ष 2025 में पंचायती राज मंत्रालय की प्रमुख उपलब्धियाँ, पंचायती राज संस्थाओं से जुड़ी चुनौतियाँ और आगे की राह।
चर्चा में क्यों?
वर्ष 2025 में, पंचायती राज मंत्रालय (MoPR) ने डिजिटल उपकरणों, क्षमता निर्माण, महिला और जनजातीय सशक्तीकरण तथा संस्थागत सुधारों का उपयोग करके स्थानीय स्तर के शासन को महत्त्वपूर्ण रूप से मज़बूत किया।
सारांश
- स्वामित्व और डिजिटल शासन उपकरणों ने भूमि प्रबंधन, पारदर्शिता तथा वित्तीय निरीक्षण में सुधार किया।
- महिला, युवा और जनजातीय सशक्तीकरण ने समावेशी तथा सहभागी शासन को बढ़ावा दिया।
- संचालनात्मक अधिकार हस्तांतरण, वित्तीय स्वायत्तता, ग्राम सभा में भागीदारी और प्रशासनिक क्षमता में चुनौतियाँ बनी हुई हैं, जिन्हें दूर करने के लिये संरचनात्मक सुधारों की आवश्यकता है।
वर्ष 2025 में पंचायती राज मंत्रालय की प्रमुख उपलब्धियाँ क्या हैं?
- भूमि प्रशासन में प्रगति: स्वामित्व योजना के अंतर्गत 2.75+ करोड़ संपत्ति कार्ड जारी किये गए। 3.28 लाख गाँवों में ड्रोन सर्वेक्षण पूरे किये गए तथा कई राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में पूर्ण संतृप्ति प्राप्त की गई।
- वर्ष 2025 में विश्व बैंक लैंड कॉन्फ्रेंस में अंतर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त की।
- डिजिटल और भौगोलिक प्रशासन में नवाचार: 36 ग्राम पंचायतों (GPs) में संपन्न ग्राम पंचायत स्थानिक विकास योजनाओं (GPSDP) को 14 राज्यों में लागू किया गया।
- वन नेशन वन मैप और डिजिटल योजना उपकरणों जैसे ग्राम मानचित्र और स्वामित्व GIS प्लेटफॉर्म को बढ़ावा दिया।
- पारदर्शिता के लिये AI और ई-गवर्नेंस: भाषिनी के माध्यम से 13 क्षेत्रीय भाषाओं का समर्थन करने वाले सभासार (AI-संचालित ग्राम सभा बैठक सारांश) की शुरुआत की गई।
- ई-ग्रामस्वराज प्लेटफॉर्म ने 34,573 करोड़ रुपये के ऑनलाइन पेमेंट के साथ वित्तीय शासन को मज़बूत किया है।
- संस्थागत सुदृढ़ीकरण: 1,638 ग्राम पंचायत भवनों का निर्माण स्वीकृत किया, जिससे 3,000 से अधिक जनसंख्या वाली सभी ग्राम पंचायतों के लिये कार्यालय सुनिश्चित हुआ।
- IIMs, IITs और IRMA में नेतृत्व और प्रबंधन विकास कार्यक्रम चलाए गए, जिससे प्रशासनिक क्षमता मज़बूत हुई।
- महिला नेतृत्व विकास: सशक्त पंचायत नेत्री अभियान (44,421 महिला निर्वाचित प्रतिनिधियों को प्रशिक्षित किया गया) और मॉडल महिला-अनुकूल ग्राम पंचायत पहल की शुरुआत की गई।
- पंचायतों की वित्तीय आत्मनिर्भरता: सक्षम पंचायत पहल के माध्यम से स्व-राजस्व (OSR) सृजन को बढ़ावा मिला। IIM अहमदाबाद द्वारा डिज़ाइन किये गए OSR मॉड्यूल के उपयोग से 1.10 लाख से अधिक निर्वाचित प्रतिनिधियों और अधिकारियों को प्रशिक्षित किया गया, जिससे वित्तीय आत्मनिर्भरता को बढ़ावा मिला।
- युवाओं की भागीदारी: मॉडल यूथ ग्राम सभा (MYGS) की शुरुआत की गई, जिसमें जवाहर नवोदय विद्यालय (JNVs) और एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय (EMRS) के छात्र शामिल है, जो भविष्य के लोकतांत्रिक नेतृत्व को तैयार करेगा।
- जनजातीय समुदायों का सशक्तीकरण: 16,000+ समर्पित कर्मचारी 10 PESA राज्यों में पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों परविस्तार) अधिनियम, 1996 के कार्यान्वयन के लिये तैनात किये।
- हमारी परंपरा, हमारी विरासत जैसी सांस्कृतिक अभियानों की शुरुआत और PESA महोत्सव 2025 का आयोजन किया।
- अंतर्राष्ट्रीय मान्यता: मेरी पंचायत, m-गवर्नेंस प्लेटफॉर्म ने WSIS चैंपियन अवार्ड 2025 जीता, जिससे डिजिटल इंडिया और सुशासन में भारत की नेतृत्व क्षमता को मज़बूत करता है।
पढ़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: पंचायती राज संस्था क्या है?
भारत में पंचायती राज संस्थाओं (PRI) के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?
- सत्ता हस्तांतरण में कमी: वर्ष 1973 के 73वें संशोधन अधिनियम के बावजूद, जिसमें 29 विषयों के सत्ता हस्तांतरण को अनिवार्य किया गया था, कार्यात्मक सत्ता हस्तांतरण 35.34% से घटकर 29.18% हो गया है। ग्रामीण विद्युतीकरण और व्यावसायिक प्रशिक्षण जैसे अहम कार्य अब भी राज्य सरकार के नियंत्रण में हैं, जिससे पंचायती राज संस्थाओं की शक्तियाँ सीमित होती हैं तथा स्थानीय स्तर पर जवाबदेही कमज़ोर पड़ती है।
- राजकोषीय निर्भरता और संसाधनों की कमी: पंचायती राजकोषीय निर्भरता चरम सीमा पर है, स्थानीय करों से राजस्व का केवल लगभग 1% ही प्राप्त होता है। वित्त वर्ष 2022-23 में, कुल 35,354 करोड़ रुपये के राजस्व में से स्वयं का कर राजस्व मात्र 737 करोड़ रुपये था। प्रति पंचायत औसत स्वयं का कर मात्र 21,000 रुपये है, जबकि संयुक्त अनुदान लगभग 20 लाख रुपये है।
- पितृसत्तात्मक मानदंड और उदासीन भागीदारी: सरपंच पति की प्रथा महिलाओं के नेतृत्व को कमज़ोर करती है (विशेष रूप से उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में)। ग्राम सभा की प्रभावशीलता कम मतदान (औसतन 13%) और लैंगिक असमानता (पुरुष 21% बनाम महिलाएँ 7%) के कारण बाधित होती है।
- प्रशासनिक अतिक्रमण: पंचायत सचिवों और ज़िला ग्रामीण विकास एजेंसियों (DRDO) जैसे समानांतर निकायों के माध्यम से नौकरशाही की मनमानी निर्वाचित प्रतिनिधियों के निर्णय लेने की क्षमता को कमज़ोर करती है।
- बुनियादी ढाँचे की कमी: कई पंचायती राज संस्थाओं को खराब बुनियादी ढाँचे (सीमित कार्यालय और इंटरनेट) और प्रशिक्षित कर्मचारियों की कमी का सामना करना पड़ता है, जिससे बजट बनाने, योजना बनाने और कार्यान्वयन में बाधाएँ उत्पन्न होती हैं। हालाँकि राष्ट्रीय ग्राम स्वराज अभियान क्षमता निर्माण पर ध्यान केंद्रित करता है, लेकिन इसका दायरा असमान बना हुआ है।
भारत में पंचायती राज संस्थाओं (PRI) को मज़बूत करने के लिये किन उपायों की आवश्यकता है?
- सत्ता हस्तांतरण पर संवैधानिक जनादेश का कार्यान्वयन: राज्यों को ग्यारहवीं अनुसूची के सभी 29 विषयों के लिये कार्यों, वित्त और पदाधिकारियों (3F) का पूर्ण हस्तांतरण करना होगा, जैसा कि 73वें संशोधन अधिनियम, 1973 द्वारा अनिवार्य किया गया है तथा दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC) द्वारा स्पष्ट गतिविधि मानचित्रण के आह्वान द्वारा सुदृढ़ किया गया है ताकि अतिव्यापीकरण को रोका जा सके।
- राजकोषीय सशक्तीकरण को बढ़ावा देना: पंचायती राज संस्थाओं को कुशल राजस्व प्रबंधन के लिये समर्थ पंचायत पोर्टल जैसी प्रौद्योगिकी को अपनाते हुए, स्थानीय कराधान और शुल्कों में वृद्धि के माध्यम से अपने स्वयं के राजस्व (OSR) को महत्त्वपूर्ण रूप से बढ़ाना चाहिये।
- नौकरशाही पर निर्भरता को कम करने के लिये सोशल स्टॉक एक्सचेंज जैसे नवोन्मेषी वित्तपोषण तंत्र आवश्यक हैं।
- संस्थागत क्षमता और जवाबदेही तंत्र का निर्माण: प्रशासनिक कमियों को दूर करने के लिये, राष्ट्रीय ग्राम स्वराज अभियान (RGSA) के तहत प्रशिक्षण को बढ़ाया जाना चाहिये और पूर्णकालिक, प्रशिक्षित पंचायत सचिवों की नियुक्ति की जानी चाहिये।
- अनिवार्य सामाजिक लेखापरीक्षाओं (जैसे मेघालय का 2017 का अधिनियम), प्रदर्शन-आधारित प्रोत्साहनों, स्वतंत्र राज्य चुनाव आयोगों (SEC) और मज़बूत शिकायत निवारण प्रणालियों के माध्यम से जवाबदेही को संस्थागत रूप दिया जाना चाहिये।
- प्रौद्योगिकी का सदुपयोग तथा सामाजिक समावेश सुनिश्चित करना: पारदर्शी योजना और संपत्ति मानचित्रण के लिये ईग्रामस्वराज, स्वमित्व और ग्राम मंचित्रा जैसे प्लेटफार्मों के माध्यम से डिजिटल शासन को एकीकृत किया जाना चाहिये।
- वास्तविक महिला नेतृत्व सुनिश्चित करने के लिये, सरपंच पति की प्रथा से निपटने के लिये कानूनी प्रतिबंध और संवेदीकरण की आवश्यकता है, साथ ही महिला स्वयं सहायता समूहों (SHG) को पंचायत प्रक्रियाओं में सक्रिय रूप से एकीकृत करना भी आवश्यक है।
- नागरिक-केंद्रित शासन: ग्राम सभाओं को अनिवार्य नियमित बैठकों और सभासार जैसे डिजिटल उपकरणों के माध्यम से पुनर्जीवित किया जाना चाहिये, साथ ही सहभागिता बढ़ाने के लिये युवा ग्राम सभाओं जैसी मॉडल पहलों का विस्तार किया जाना चाहिये।
निष्कर्ष
वर्ष 2025 में पंचायती राज मंत्रालय ने डिजिटल उपकरणों, क्षमता निर्माण और संस्थागत सुधारों के माध्यम से ज़मीनी स्तर के शासन को उल्लेखनीय रूप से सुदृढ़ किया। प्रमुख उपलब्धियों में SVAMITVA के तहत संपत्ति मानचित्रण, AI-संचालित सभा-सार, महिला एवं युवा सशक्तीकरण तथा PESA के माध्यम से जनजातीय विकास शामिल हैं। हालाँकि, शक्तियों के वास्तविक हस्तांतरण, वित्तीय स्वायत्तता और प्रशासनिक क्षमता से जुड़ी चुनौतियाँ अब भी बनी हुई हैं, जिनके समाधान के लिये व्यापक और प्रणालीगत सुधारों की आवश्यकता है।
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दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: संवैधानिक रूप से शक्तियों के विकेंद्रीकरण के प्रावधानों के बावजूद भारत में पंचायती राज संस्थाओं के समक्ष मौजूद चुनौतियों का परीक्षण कीजिये। |
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
1. स्वमित्वा योजना क्या है?
SVAMITVA ग्रामीण परिवारों को संपत्ति कार्ड प्रदान करता है, जिससे कानूनी स्वामित्व, भूमि प्रशासन और योजना को सक्षम बनाया जा सके तथा वर्ष 2025 में 2.75 करोड़ से अधिक कार्ड वितरित किये गए।
2. सभासार पंचायत पारदर्शिता को किस प्रकार बढ़ाता है?
सभासार एक AI-संचालित उपकरण है, जो ग्राम सभा की कार्यवाही को 13 भाषाओं में डिजिटल रूप से रिकॉर्ड करता है, जिससे दस्तावेज़ीकरण, जवाबदेही और नागरिक भागीदारी में सुधार होता है।
3. पंचायती राज संस्थाओं के लिये राजकोषीय स्वायत्तता एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा क्यों है?
पंचायती राज संस्थाओं को स्थानीय करों से अपने राजस्व का केवल लगभग 1% ही प्राप्त होता है, जिससे वे केंद्र और राज्य अनुदानों पर अत्यधिक निर्भर हो जाती हैं, जो उनकी स्वायत्तता और योजना बनाने की क्षमता को कमज़ोर करता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)
प्रिलिम्स:
प्रश्न 1. स्थानीय स्वशासन की सर्वोत्तम व्याख्या यह की जा सकती है कि यह एक प्रयोग है– (2017)
(a) संघवाद का
(b) लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण का
(c) प्रशासकीय प्रत्यायोजन का
(d) प्रत्यक्ष लोकतंत्र का
उत्तर: (b)
प्रश्न 2. पंचायती राज व्यवस्था का मूल उद्देश्य क्या सुनिश्चित करना है? (2015)
1. विकास में जन-भागीदारी
2. राजनीतिक जवाबदेही
3. लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण
4. वित्तीय संग्रहण (फाइनेंशियल मोबिलाइज़ेशन)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:
(a) केवल 1, 2 और 3
(b) केवल 2 और 4
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2, 3 और 4
उत्तर: (c)
मेन्स:
प्रश्न 1. भारत में स्थानीय शासन के एक भाग के रूप में पंचायत प्रणाली के महत्त्व का आकलन कीजिये। विकास परियोजनाओं के वित्तीयन के लिये पंचायते सरकारी अनुदानों के अलावा और किन स्रोतों को खोज सकती है? (2018)
प्रश्न 2. आपकी राय में, भारत में शक्ति के विकेंद्रीकरण ने ज़मीनी-स्तर पर शासन-परिदृश्य को किस सीमा तक परिवर्तित किया है? (2022)
प्रश्न 3. सुशिक्षित और व्यवस्थित स्थानीय स्तर शासन-व्यवस्था की अनुपस्थिति में 'पंचायतें' और 'समितियाँ' मुख्यतः राजनीतिक संस्थाएँ बनी रही हैं न कि शासन के प्रभावी उपकरण। समालोचनापूर्वक चर्चा कीजिये। (2015)