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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

विश्व एकीकृत औषधि फोरम

  • 28 Jan 2019
  • 9 min read

23 से 25 जनवरी, 2019 के बीच होम्योपैथिक औषधीय उत्पादों के विनियमन पर विश्‍व एकीकृत औषधि फोरम/मंच (World Integrated Medicine Forum) का आयोजन किया गया।

प्रमुख बिंदु

  • इस फोरम का आयोजन गोवा में किया गया।
  • यह फोरम का दूसरा आयोजन था पहला आयोजन वर्ष 2017 में किया गया था।
  • फोरम की थीम ‘वैश्विक सहयोग को आगे बढ़ाना’ (Advancing Global Collaboration) थी।
  • इस फोरम में 21 देशों के लगभग 150 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया।
  • केंद्रीय होम्योपैथी अनुसंधान परिषद (Central Council for Research in Homeopathy-CCRH) के द्वारा इस फोरम का आयोजन निम्नलिखित के सहयोग से किया गया-

♦ आयुष मंत्रालय (Ministry of AYUSH)
♦ होम्योपैथिक फॉर्माकोपिया कन्वेंशन ऑफ द यूनाइटेड स्टेट्स (Homoeopathic Pharmacopoeia Convention of the United States-HPCUS)
♦ यूरोपियन कोलीशन ऑन होम्योपैथिक एंड आन्थ्रोपोसोफिक मेडिसिनल प्रोडक्ट (European Coalition on Homeopathic & Anthroposophic Medicinal Products-ECHAMP)
♦ फॉर्माकोपिया कमीशन ऑफ इंडियन मेडिसिन एंड होम्योपैथी (Pharmacopoeia Commission of Indian Medicine and Homoeopathy)
♦ केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (Central Drugs Standard Control Organization-CDSCO)

  • इस फोरम में विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation-WHO) के प्रतिनिधियों और औषधि नियामक प्राधिकरणों के प्रतिनिधियों के साथ-साथ फॉर्माकोपिया विशेषज्ञों और जर्मनी, अमेरीका, फ्राँस, यू.के, ब्राज़ील, बेल्जियम, दक्षिण अफ्रीका, अर्जेटीना, रूस, ग्रीस, ऑस्ट्रिया, क्यूबा, कतर, क्रोएशिया, मलेशिया, जापान, हॉन्गकॉन्ग और श्रीलंका आदि देशों के उद्योगपतियों सहित सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र के हितधारकों ने भागीदारी की।
  • भारत के विभिन्न राज्यों के पशुचिकित्सा विशेषज्ञ, नियामक और औषधि नियंत्रक भी इस फोरम के प्रतिनिधियों में शामिल थे।

फोरम का महत्त्व

  • दुनिया भर के दस खरब से अधिक रोगियों की स्वास्थ्य देखभाल के लिये सुरक्षित और प्रभावी औषधियों की मांग की जा रही है। इसके परिणामस्वरूप होम्योपैथी की मांग भी बढ़ रही है।§ विभिन्‍न देशों में होम्योपैथिक दवाओं के नियमन के संबंध में अभी भी अत्यधिक विषम स्थिति है और इसका सीधा प्रभाव इन दवाओं की उपलब्धता पर पड़ता है।
  • लंबे समय से होम्योपैथी को अपनाने वाले देशों ने होम्योपैथी को कैसे विनियमित और एकीकृत किया जा सकता है, इसके बारे में जानकारी देने के अलावा इस फोरम में उन देशों को भी चर्चा में शामिल किया गया जहाँ हाल ही में होम्योपैथी अपनाई गई है।

पृष्ठभूमि

  • CCRH ने 2017 में इसी तरह के पहले फोरम का आयोजन किया था, जो विभिन्न देशों में होम्योपैथिक औषधीय उत्पादों के प्रभावी नियमन के लिये उठाए गए आवश्यक कदमों पर संवाद शुरू करने में बेहद सफल रहा था।
  • होम्योपैथिक उद्योग और नियामक क्षेत्र को सुदृढ़ करने के उद्देश्य से एक मंच पर 'होम्योपैथिक औषधीय उत्‍पाद के विनियमन पर विश्‍व एकीकृत औषधि फोरम' में सामरिक चर्चा की शुरुआत भारत सरकार के केंद्रीय होम्योपैथी अनुसंधान परिषद तथा आयुष मंत्रालय और इस प्रकार के आयोजन की व्यवस्था के लिये परामर्श देने वाली अंतर्राष्ट्रीय कंपनी वर्ल्ड इंटीग्रेटेड मेडिसिन फ़ोरम (World Integrated Medicine Forum-WIMF) ने संयुक्त रूप से की थी।

केंद्रीय होम्योपैथी अनुसंधान परिषद (Central Council for Research in Homeopathy-CCRH)

  • केंद्रीय होम्योपैथी अनुसंधान परिषद (CCRH), आयुष मंत्रालय, भारत सरकार के अधीन एक शीर्ष अनुसंधान संगठन है, जो होम्योपैथी में समन्वय, इसके विकास, प्रसार एवं वैज्ञानिक अनुसंधान को बढ़ावा देती है।
  • इसका गठन औपचारिक रूप से 30 मार्च, 1978 को आयुष विभाग, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार के अधीन एक स्वायत्त संगठन के रूप में किया गया था और बाद में 1860 के सोसायटीज़ पंजीकरण अधिनियम XXI के तहत पंजीकृत किया गया, उसके बाद जनवरी 1979 से इस परिषद ने एक स्वतंत्र संगठन के रूप में कार्य करना शुरू कर दिया था।
  • परिषद का मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित हैं और पूरे भारत में परिषद के 22 संस्थानों/इकाइयों के नेटवर्क के माध्यम से बहु-केंद्रित अनुसंधान कार्य किये जाते हैं।  

होम्योपैथी

  • होम्योपैथी की खोज एक जर्मन चिकित्सक, डॉ. क्रिश्चन फ्रेडरिक सैमुएल हैनिमैन (Christian Friedrich Samuel Hahnemann) (1755-1843), द्वारा अठारहवीं सदी के अंत के दशकों में की गई थी।
  • यह ‘सम: समम् शमयति’ (Similia Similibus Curentur) या ‘समरूपता’ (let likes be treated by likes) दवा सिद्धांत पर आधारित एक चिकित्सीय प्रणाली है।
  • यह प्रणाली दवाओं द्वारा रोगी का उपचार करने की एक ऐसी विधि है, जिसमें किसी स्वस्थ व्यक्ति में प्राकृतिक रोग का अनुरूपण करके समान लक्षण उत्पन्न किया जाता है, जिससे रोगग्रस्त व्यक्ति का उपचार किया जा सकता है।
  • होम्योपैथी, जो भारत में लगभग दो सौ साल पहले आरंभ की गई थी, वर्तमान में भारत की बहुलवादी स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है।

भारत में होम्योपैथी का इतिहास

  • भारत में होम्योपैथी उस समय आरंभ की गई थी, जब कुछ जर्मन मिशनरियों और चिकित्सकों ने स्थानीय निवासियों के बीच होम्योपैथिक दवाओं के वितरण का कार्य आरंभ किया था। तथापि, होम्योपैथी ने भारत में 1839 में उस समय अपनी जड़ें जमाईं जब डॉ. जॉन मार्टिन होनिगबर्गर (John Martin Honigberger) ने स्वर-रज्जु पक्षाघात (paralysis of Vocal Cords) के लिये महाराजा रणजीत सिंह का सफलतापूर्वक इलाज किया।
  • डॉ. होनिगबर्गर कोलकाता (तत्कालीन कलकत्ता) में बस गए और हैजा-चिकित्सक के रूप में लोकप्रिय हुए। बाद में डॉ. एम.एल. सिरकार, जो अपने समय के एक ख्यातिप्राप्त चिकित्सक थे, ने भी होम्योपैथी में प्रैक्टिस आरंभ कर दी। उन्होंने वर्ष 1868 में प्रथम होम्योपैथिक पत्रिका ‘कलकत्ता जर्नल ऑफ़ मेडिसिन’ (Calcutta Journal of Medicine) का संपादन किया।
  • वर्ष 1881 में डॉ. पी.सी मजूमदार और डॉ. डी.एन रॉय सहित अनेक प्रसिद्ध चिकित्सकों ने प्रथम होम्योपैथिक कॉलेज- 'कलकत्ता होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज' (Calcutta Homoeopathic Medical College) की स्थापना की।

स्रोत : पी.आई.बी एवं CCRH वेबसाइट

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