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भारतीय अर्थव्यवस्था

अमेरिकी मुद्रास्फीति और भारत पर प्रभाव

  • 13 Nov 2021
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

खुदरा मुद्रास्फीति, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक, "तकनीकी" आर्थिक मंदी

मेन्स के लिये:

अमेरिकी मुद्रास्फीति का भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव

चर्चा में क्यों?

विगत कुछ दिनों में अमेरिका में खुदरा मुद्रास्फीति बढ़कर 6.2% हो गई है, जो 3 दशकों में साल-दर-साल सबसे अधिक उछाल पर है। इन बढ़ती कीमतों ने विश्व स्तर पर और भारत दोनों के प्रति बहुत अधिक ध्यान आकर्षित किया है।

प्रमुख बिंदु

  • मुद्रास्फीति के बारे में:
    • क्रियाविधि: यह वह दर है जिस पर एक निश्चित अवधि में कीमतों में वृद्धि होती है। सामान्यत: भारत में मुद्रास्फीति दर की गणना साल-दर-साल के आधार पर की जाती है। 
      • दूसरे शब्दों में यदि किसी विशेष माह की मुद्रास्फीति दर 10% है, तो इसका आशय है कि उस महीने की कीमतें एक वर्ष पहले उसी महीने की कीमतों की तुलना में 10% अधिक थीं।
      • भारत में मुद्रास्फीति को मुख्य रूप से दो मुख्य सूचकांकोंथोक मूल्य सूचकांक (WPI) और उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) द्वारा मापा जाता है, जो क्रमशः थोक एवं खुदरा स्तर पर मूल्य में परिवर्तन को मापते हैं।
      • भारत द्वारा 4 (+/- 2) प्रतिशत को लक्षित करते हुए एक लचीली मुद्रास्फीति नीति को अपनाया गया है। 
    • लोगों पर मुद्रास्फीति का प्रभाव: एक उच्च मुद्रास्फीति दर लोगों की क्रय शक्ति को नष्ट कर देती है। चूँकि गरीबों के पास तेज़ी से बढ़ती कीमतों का सामना करने के लिये कम पैसा है, अत: उच्च मुद्रास्फीति उन्हें सर्वाधिक नुकसान पहुँचाती है।
      • हालाँकि अर्थव्यवस्था में उत्पादन को बढ़ावा देने के लिये मुद्रास्फीति का एक मध्यम स्तर बनाए रखना आवश्यक होता है।
  • अमेरिका में बढ़ती मुद्रास्फीति का कारण:
    • अमेरिकी केंद्रीय बैंक अपने फेडरल रिज़र्व में केवल 2% की मुद्रास्फीति दर का लक्ष्य निर्धारित है। इस संदर्भ के आधार पर 6.2% मुद्रास्फीति दर कीमतों में सर्वाधिक वृद्धि है।
    • सामान्य तौर पर मुद्रास्फीति स्पाइक्स को मांग में वृद्धि या आपूर्ति में कमी के लिये सौंपा जा सकता है।
      • अमेरिका में दोनों कारक शामिल हैं।
      • आपूर्ति शृंखला में सुधार की तुलना में आर्थिक सुधार की गति बहुत तीव्र रही है और इसने मांग व आपूर्ति के बीच असंतुलन और बढ़ा दिया है, जिससे निरंतर मूल्य वृद्धि हुई है।
    • मांग आधारित मुद्रास्फीति: कोविड-19 टीकाकरण अभियान के तेज़ी से रोलआउट गतिविधियों ने अमेरिकी अर्थव्यवस्था में तेज़ी से सुधार किया। 
      • मुद्रास्फीति की वृद्धि का एक हिस्सा उपभोक्ताओं की चौतरफा मांग में अप्रत्याशित रूप से तेज़ी से सुधार से आया है।
      • सरकार द्वारा न केवल उपभोक्ताओं और अपनी नौकरी गँवाने वालों को राहत प्रदान करने के लिये बल्कि मांग को प्रोत्साहित करने हेतु सरकार द्वारा संग्रहित किये गए अरबों डॉलर से इस रिकवरी को और बढ़ावा मिला।
    • आपूर्ति पक्ष मुद्रास्फीति: वर्ष 2020 में महामारी ने न केवल अमेरिका में बल्कि दुनिया भर में व्यापक तालाबंदी और व्यवधान पैदा किया। 
      • कंपनियों ने कर्मचारियों की संख्या को कम किया और उत्पादन में तेज़ी से कटौती की।
      • संक्षेप में उत्पादन की वैश्विक आपूर्ति शृंखला ने महामारी के पूर्व स्तरों पर पुन: उत्पादन शुरू नहीं किया है।
    • विश्व स्तर पर मुद्रास्फीति: जबकि अमेरिका ने कीमतों में सबसे तेज़ वृद्धि देखी है, मुद्रास्फीति ने अधिकांश प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में नीति निर्माताओं को आश्चर्यचकित कर दिया है यहाँ तक की जर्मनी, चीन या जापान को भी।
  • मुद्रास्फीति (भारतीय परिप्रेक्ष्य): 
    •  महामारी-पूर्व मुद्रास्फीति: जबकि अधिकांश अन्य अर्थव्यवस्थाएँ महामारी के मद्देनज़र मुद्रास्फीति में वृद्धि से हैरान थीं, भारत उन दुर्लभ प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से एक था जहाँ उच्च मुद्रास्फीति महामारी से पहले मौज़ूद थी।
      • महामारी ने आपूर्ति की कमी के कारण और भी चिंताजनक स्थिति उत्पन्न कर दी, फिर भी भारत में मांग अभी तक पूर्व-कोविड स्तरों तक नहीं पहुँची है।
      • इसके परिणामस्वरूप भारत में "तकनीकी" आर्थिक मंदी में प्रवेश करने के बावजूद आरबीआई ने मई 2020 के बाद से अपनी बेंचमार्क ब्याज दरों (रेपो दर) को एक बार भी कम नहीं किया है।
      • आरबीआई ने टिकाऊ आधार पर विकास को पुनर्जीवित करने और बनाए रखने तथा अर्थव्यवस्था पर कोविड-19 के प्रभाव को कम करने के लिये जब तक आवश्यक हो, तब तक एक समायोजन रुख जारी रखने का फैसला किया है, जबकि यह सुनिश्चित करते हुए कि मुद्रास्फीति आगे बढ़ने वाले लक्ष्य के भीतर बनी रहे।
    • कोर मुद्रास्फीति एक चिंताजनक कारक: जबकि समग्र मुद्रास्फीति औसत वर्तमान में काफी प्रबंधनीय प्रतीत होता है, यह "कोर" मुद्रास्फीति है जो चिंताजनक है।
      • जब हम खाद्य और ईंधन की कीमतों की उपेक्षा करते हैं तो कोर मुद्रास्फीति दर मुद्रास्फीति की दर होती है। 
      • यह दर उच्च है और अब आरबीआई के सुविधा क्षेत्र को भंग करने का खतरा उत्पन्न करता है।
      • कीमतों में वैश्विक वृद्धि के आलोक में भारत की मुद्रास्फीति और गंभीर हो सकती है।
  • भारत पर अमेरिकी मुद्रास्फीति का प्रभाव:
    • जब वैश्विक स्तर पर कीमतें बढ़ती हैं, तो इससे उच्च आयातित मुद्रास्फीति होगी। दूसरे शब्दों में भारत और भारतीय जो कुछ भी आयात करते हैं वे सभी वस्तुएँ महँगी हो जाएगी।
    • उन्नत अर्थव्यवस्थाओं विशेष रूप से अमेरिका में उच्च मुद्रास्फीति, संभवतः उनके केंद्रीय बैंकों को अपनी ढीली मौद्रिक नीति को त्यागने के लिये मजबूर करेगी।
    • उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में एक सख्त मुद्रा नीति उच्च ब्याज दरों का संकेत देगी।
      • एक सख्त मौद्रिक नीति में ऋण लेने को बाध्य करने और बचत को प्रोत्साहित करने के लिये ब्याज दरों में वृद्धि शामिल है।
    • यह भारतीय अर्थव्यवस्था को दो व्यापक तरीकों से प्रभावित करेगा। 
      • भारत के बाहर धन का सृजन करने की कोशिश कर रही भारतीय फर्मों को ऐसा करना महँगा पड़ेगा।
      • आरबीआई को घरेलू स्तर पर ब्याज दरें बढ़ाकर अपनी मौद्रिक नीति को घरेलू स्तर पर संरेखित करना होगा। यह बदले में मुद्रास्फीति को और बढ़ा सकता है क्योंकि उत्पादन लागत बढ़ जाएगी।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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