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भारतीय अर्थव्यवस्था

आरबीआई खुदरा प्रत्यक्ष योजना

  • 13 Nov 2021
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय रिज़र्व बैंक, म्यूचुअल फंड, एक्सचेंज ट्रेडेड फंड्स  

मेन्स के लिये:

आरबीआई खुदरा प्रत्यक्ष योजना का क्षेत्राधिकार और महत्त्व 

चर्चा में क्यों?   

हाल ही में प्रधानमंत्री ने खुदरा निवेशकों के लिये सरकारी बॉण्ड बाज़ार (Government bond market) खोलने के लियेभारतीय रिज़र्व बैंक- खुदरा प्रत्यक्ष योजना’ (Reserve Bank of India (RBI)- Retail Direct Scheme) शुरू की है।

प्रमुख बिंदु 

  • खुदरा प्रत्यक्ष योजना:
    • फरवरी 2021 में RBI द्वारा खुदरा निवेशकों को सरकारी प्रतिभूतियों (Government securities- G-secs) में सीधे निवेश करने हेतु केंद्रीय बैंक के साथ गिल्ट खाते खोलने की अनुमति देने का प्रस्ताव रखा।
    • इस योजना के तहत खुदरा निवेशकों (व्यक्तियों) को RBI के साथ 'खुदरा प्रत्यक्ष गिल्ट खाता' (Retail Direct Gilt Account) खोलने और बनाए रखने की सुविधा होगी।
      • खुदरा निवेशक एक गैर-पेशेवर निवेशक है जो प्रतिभूतियों या फंडों को खरीदता और बेचता है जिसमें म्यूचुअल फंड और एक्सचेंज ट्रेडेड फंड्स (Exchange Traded Funds- ETFs) जैसी प्रतिभूतियों का एक समूह होता है।
      • एक गिल्ट खाते की तुलना बैंक खाते से की जा सकती है, इनमें अंतर इस बात का होता है कि खाते से पैसे के बजाय ट्रेज़री बिल या सरकारी प्रतिभूतियों के साथ डेबिट या क्रेडिट किया जाता है।
    • यह योजना भारत को उन चुनिंदा देशों में शामिल करती है जो इस प्रकार सुविधा  प्रदान करते हैं।
  • उद्देश्य:
    • इस कदम का उद्देश्य सरकारी प्रतिभूति बाज़ार में विविधता लाना है जिसमें बैंकों, बीमा कंपनियों, म्यूचुअल फंड जैसे अन्य संस्थागत निवेशकों का वर्चस्व है।
  • क्षेत्र/विस्तार:
    • यह केंद्र सरकार की प्रतिभूतियों, ट्रेज़री बिल, राज्य विकास ऋण और सॉवरेन गोल्ड बॉण्ड में निवेश करने के लिये एक पोर्टल एवेन्यू (Portal Avenue) प्रदान करता है।
    • वे प्राथमिक और साथ ही द्वितीयक बाज़ार, सरकारी प्रतिभूति बाज़ारों में निवेश कर सकते हैं।
      • नेगोशिएटेड डीलिंग सिस्टम-ऑर्डर मैचिंग सेगमेंट (Negotiated Dealing System-Order Matching Segment- NDS-OM) का मतलब  द्वितीयक बाज़ार में सरकारी प्रतिभूतियों में ट्रेडिंग के लिये RBI की स्क्रीन आधारित, एनोनिमस इलेक्ट्रॉनिक ऑर्डर मैचिंग सिस्टम (Anonymous Electronic Order Matching System) है।
  • महत्त्व:
    • एक आत्मनिर्भर भारत का निर्माण:
      • अभी तक सरकारी प्रतिभूति बाज़ार में छोटे निवेशक वर्ग, वेतनभोगी वर्ग, छोटे व्यापारियों को बैंकों और म्यूचुअल फंड के माध्यम से अप्रत्यक्ष रूप से निवेश करना पड़ता था।
    • बेहतर पहुंँच हेतु सुगमता:
      • यह छोटे निवेशकों हेतु जी-सेक ट्रेडिंग की प्रक्रिया को आसान बनाएगा,  इसलिये यह जी-सेक में खुदरा भागीदारी को बढ़ावा देगा तथा आसान पहुंँच प्रदान करेगा।
    • सरकारी ऋण की सुविधा:
      • यह उपाय मेंडेडरी होल्ड टू मेच्योरिटी (प्रतिभूतियांँ जो परिपक्वता तक स्वामित्व हेतु खरीदी जाती हैं) प्रावधानों में छूट के साथ वर्ष 2021-22 में सरकारी उधार कार्यक्रम को सुचारु रूप से पूरा करने की सुविधा प्रदान करेगा।
    • घरेलू बचत का वित्तीयकरण:
      • जी-सेक बाज़ार में प्रत्यक्ष खुदरा भागीदारी की अनुमति देने से घरेलू बचत के एक विशाल पूल के वित्तीयकरण को बढ़ावा मिलेगा और यह भारत के निवेश बाज़ार में निर्णायक साबित हो सकता है।
  • सरकारी प्रतिभूतियों में खुदरा निवेश बढ़ाने हेतु किये गए अन्य उपाय:
    • प्राथमिक नीलामियों में गैर-प्रतिस्पर्द्धी बोली लगाना।
      • गैर-प्रतिस्पर्द्धी बोली का अर्थ है कि बोलीदाता बोली में प्रतिफल या मूल्य उद्धृत किये बिना दिनांकित सरकारी प्रतिभूतियों की नीलामी में भाग ले सकेगा।
    • स्टॉक एक्सचेंज खुदरा बोलियों के एग्रीगेटर और फैसिलिटेटर के रूप में कार्य करेंगे।
    • द्वितीयक बाज़ार में एक विशिष्ट खुदरा खंड (Specific Retail Segment) को अनुमति देना।
      • द्वितीयक बाज़ार वह है जहांँ निवेशक पहले से ही अपनी प्रतिभूतियों को खरीदते और बेचते हैं।
      • प्राथमिक बाज़ार पहली बार जारी की जा रही नई प्रतिभूतियों से संबंधित है।

सरकारी प्रतिभूति (Government Security)

  • सरकारी प्रतिभूतियाँ केंद्र सरकार या राज्य सरकारों द्वारा जारी की जाने वाली एक व्यापार योग्य साधन होती हैं। 
  • ये सरकार के ऋण दायित्व को स्वीकार करती हैं। ऐसी प्रतिभूतियाँ अल्पकालिक (आमतौर पर एक वर्ष से भी कम समय की मेच्योरिटी वाली इन प्रतिभूतियों को ट्रेज़री बिल कहा जाता है जिसे वर्तमान में तीन रूपों में जारी किया जाता है, अर्थात् 91 दिन, 182 दिन और 364 दिन) या दीर्घकालिक (आमतौर पर एक वर्ष या उससे अधिक की मेच्योरिटी वाली इन प्रतिभूतियों को सरकारी बॉण्ड या दिनांकित प्रतिभूतियाँ कहा जाता है) होती हैं।
  • भारत में केंद्र सरकार ट्रेज़री बिल और बॉण्ड या दिनांकित प्रतिभूतियाँ दोनों को जारी करती है, जबकि राज्य सरकारें केवल बॉण्ड या दिनांकित प्रतिभूतियों को जारी करती हैं, जिन्हें राज्य विकास ऋण (SDL) कहा जाता है। 
  • सरकारी प्रतिभूतियों में व्यावहारिक रूप से डिफॉल्ट का कोई जोखिम नहीं होता है, इसलिये इन्हें जोखिम रहित गिल्ट-एज्ड उपकरण भी कहा जाता है।
    • गिल्ट-एज्ड प्रतिभूतियाँ सरकार और बड़े निगमों द्वारा उधार ली गई निधि के साधन के रूप में जारी किये जाने वाले उच्च-श्रेणी के निवेश बॉण्ड हैं।

स्रोत: द हिंदू

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