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भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत और तकनीकी मंदी

  • 02 Mar 2021
  • 8 min read

चर्चा में क्यों?

वित्तीय वर्ष 2020-21 की तीसरी (अक्तूबर-दिसंबर) तिमाही में भारत के सकल घरेलू उत्पाद दर में 0.4% की वृद्धि और विनिर्माण तथा कृषि में सुधार के साथ भारतीय अर्थव्यवस्था तकनीकी मंदी (Technical Recession) से बाहर निकल गई है ।

  • गौरतलब है कि वित्तीय वर्ष 2020-21 की अप्रैल-जून और जुलाई-सितंबर की तिमाहियों में भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में क्रमशः 24.4% तथा 7.3% की गिरावट ने देश की अर्थव्यवस्था को तकनीकी मंदी की स्थिति में धकेल दिया था।
  • ध्यातव्य है कि जब किसी देश की जीडीपी में एक ही वित्तीय वर्ष की लगातार दो तिमाहियों में गिरावट देखने को मिलती है, तो इस स्थिति को तकनीकी मंदी कहा जाता है।

प्रमुख बिंदु: 

विकास अनुमान: 

  • राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) ने पूरे वित्तीय वर्ष (2020-21) के लिये 8% के संकुचन का अनुमान लगाया है जो कि आर्थिक सर्वेक्षण (7.7%) और भारतीय रिज़र्व बैंक (7.5%) के पूर्वानुमानों की तुलना में अधिक है। 
  • वर्तमान वित्तीय वर्ष की तीसरी तिमाही (2020-21) के लिये वास्तविक जीडीपी में 0.4% की वृद्धि का अनुमान है। पिछले वित्तीय वर्ष की इसी तिमाही में अर्थव्यवस्था में 3.3% की दर से वृद्धि देखी गई थी।
  • अप्रैल-जून तिमाही (Q1) और जुलाई-सितंबर (Q2) के लिये अर्थव्यवस्था की संकुचन दर को क्रमशः 23.9% से 24.4% और 7.5% से 7.3% तक संशोधित किया गया था।

प्रमुख क्षेत्रों में वृद्धि:

  • उद्योग और सेवा क्षेत्र:
    • बिजली और विनिर्माण क्षेत्रों के बेहतर प्रदर्शन के साथ उद्योग क्षेत्र ने भी पहली दो तिमाहियों में संकुचन के खिलाफ तीसरी तिमाही में 2.6% की वृद्धि दर दर्ज की। 
    • हालाँकि जीडीपी में 57% की सबसे बड़ी हिस्सेदारी के साथ सेवा क्षेत्र में अभी भी 0.9% की वार्षिक गिरावट के साथ संकुचन की स्थिति बनी हुई है। 
      • वित्तीय, अचल संपत्ति और पेशेवर सेवाओं की वृद्धि दर 6.6% रही, जिसमें पिछली तिमाही में 9.5% संकुचन तथा पिछले वर्ष की इसी अवधि में 5.5% की वृद्धि देखी गई थी।
      • खनन, व्यापार, होटल, परिवहन, संचार और प्रसारण सेवाएँ तथा सार्वजनिक प्रशासन सेवाएँ आदि क्षेत्रों में तीसरी तिमाही के दौरान संकुचन दर्ज किया गया तथा ये नकारात्मक वृद्धि वाले क्षेत्र बने रहे।
  • कोर सेक्टर आउटपुट:
    • जनवरी 2021 में भारत के आठ प्रमुख क्षेत्रों ने उत्पादन में 0.1% की वृद्धि दर्ज की, इसमें विद्युत क्षेत्र में 5.1% की वृद्धि, उर्वरकों में 2.7% की वृद्धि और इस्पात उत्पादन में 2.6% की वृद्धि हुई, जबकि अन्य पाँच क्षेत्रों में गिरावट देखने को मिली।
    • कोयला, कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस, रिफाइनरी उत्पाद और सीमेंट में जनवरी में नकारात्मक वृद्धि दर्ज की गई।   
    • औद्योगिक उत्पादन सूचकांक में आठ मुख्य उद्योगों की भागीदारी 40.27% है।
  • कृषि: 
    • अक्तूबर-दिसंबर में कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर 3.9% रही, जिसमें जुलाई-सितंबर में 3% की वृद्धि और पिछले वर्ष की इसी तिमाही के दौरान 3.4% की वृद्धि दर्ज हुई थी।

तर्क:

  • नया निवेश: 
    • निवेश की मांग (सकल स्थायी पूंजी निर्माण- GFCF) में देखी गई सकारात्मक गति तीसरी तिमाही में 2.6% बढ़ी।
      • GFCF: यह अनिवार्य रूप से निवल निवेश है। यह जीडीपी गणना की व्यय पद्धति का एक घटक है।
    • यह निवेश में वृद्धि सुनिश्चित करने हेतु आत्मनिर्भर भारत में शामिल विभिन्न पहलों के तहत सरकार के अथक प्रयासों का परिणाम है।
    • केंद्रीय बजट 2021-22 में उपलब्ध समर्थन पैकेज और 'उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन' (Production-Linked Incentive-PLI) सहित अन्य उपायों के माध्यम से आर्थिक रिकवरी हेतु एक मज़बूत वृद्धि का मार्ग प्रशस्त होगा। 
  • केंद्र के पूंजीगत व्यय में वृद्धि:
    • तीसरी तिमाही के दौरान सरकारी अंतिम उपभोग व्यय (GFCE) में पुनर्सुधार के लिये केंद्र के पूंजीगत व्यय में सालाना आधार पर अक्तूबर में 129%, नवंबर में 249% और दिसंबर में 62% की वृद्धि हुई।
      • GFCE एक देश की राष्ट्रीय आय पर कुल लेन-देन राशि है जो वस्तुओं और सेवाओं पर सरकारी व्यय का प्रतिनिधित्व करती है, इसे व्यक्तिगत आवश्यकताओं (व्यक्तिगत खपत) या समुदाय के सदस्यों की सामूहिक ज़रूरतों की प्रत्यक्ष संतुष्टि के लिये उपयोग किया जाता है।
  • V-शेप्ड रिकवरी:
    • तीसरी तिमाही के जीडीपी आँकड़ों ने सरकार की प्रारंभिक नीति "आजीविका पर जीवन” (lives over livelihood) की सफलता को दर्शाया है। तीव्र ‘V-शेप्ड रिकवरी’ में निजी अंतिम उपभोग व्यय (PFCE) और ‘ग्रॉस फिक्स्ड कैपिटल फॉर्मेशन’ (GFCF) दोनों को एक अंशशोघित राजकोषीय प्रोत्साहन के संयोजन के रूप में संचालित किया गया है।
      • PFCE: इसे निवासियों और गैर-लाभकारी संस्थाओं द्वारा खर्च के रूप में परिभाषित किया गया है जो कि घरों और सेवाओं के उपभोग पर आधारित होते हैं, चाहे वे आर्थिक क्षेत्र के भीतर हों या बाहर।

अन्य आर्थिक संकेतक:. 

  • घरेलू उपभोग: आँकड़ों से पता चलता है कि तीसरी तिमाही में घरेलू खपत बढ़कर तीसरी तिमाही की जीडीपी के 58.6% पर आ गई, जबकि पिछले वित्त वर्ष की इसी अवधि में यह 60.2% थी। 
  • सरकारी व्यय: जैसा कि GFCE में दर्शाया गया है, सरकारी खर्च दूसरी तिमाही में जीडीपी के 10% से घटकर तीसरी तिमाही में 9.8% हो गया।
  • GVA अनुमान: सकल मूल्यवर्द्धित (GVA) के संदर्भ में विकास दर, जो कि सकल घरेलू उत्पाद में से शुद्ध उत्पाद कर को घटाने से प्राप्त होती है और आपूर्ति में वृद्धि को दर्शाती है, पिछले वर्ष के 7.2% और 3.9% के अनुमानों के मुकाबले वर्ष 2020-21 में 6.5% दर्ज की गई है।

स्रोत- द हिंदू

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