मुख्य परीक्षा
स्ट्रेटेजी फॉर हार्नेसिंग डीप सी एंड ऑफशोर फिशरीज़
- 15 Oct 2025
- 68 min read
चर्चा में क्यों?
नीति आयोग ने “इंडिया ब्लू इकोनॉमी: स्ट्रेटेजी फॉर हार्नेसिंग डीप सी एंड ऑफशोर फिशरीज़” पर एक रिपोर्ट जारी की। जिसमें भारत के समुद्री संसाधनों की विशाल क्षमता को स्थायी रूप से अनलॉक करने और नीली अर्थव्यवस्था को मज़बूत करने के लिये एक रोडमैप की रूपरेखा दी गई है।
भारत की नीली अर्थव्यवस्था (ब्लू इकोनॉमी) पर नीति आयोग की रिपोर्ट की मुख्य विशेषता क्या है?
- भारत की अप्रयुक्त समुद्री क्षमता का दोहन: भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा मत्स्य उत्पादक देश है, जो वैश्विक उत्पादन का 8 प्रतिशत हिस्सा है। भारत का मत्स्य पालन क्षेत्र लगभग 30 मिलियन आजीविका में सहयोग और निर्यात में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है, वित्त वर्ष 2023-24 में मत्स्य उत्पादों से 60,523 करोड़ रुपये की कमाई प्राप्त हुई है।
- इसके बावजूद, महाद्वीपीय शेल्फ से परे गहरे समुद्री संसाधन अब तक काफी हद तक अप्रयुक्त हैं।
- भारत का 20 लाख वर्ग किलोमीटर से अधिक का अनन्य आर्थिक क्षेत्र (EEZ) लगभग 71.6 लाख टन की संभावित उत्पादन क्षमता रखता है।
- इन संसाधनों के दोहन से तटीय मत्स्य संसाधनों पर दबाव कम किया जा सकता है, निर्यात में वृद्धि लाई जा सकती है और नए रोज़गार के अवसर सृजित किये जा सकते हैं।
- भारत की मत्स्य संपदा के दोहन के लिये रूपरेखा: नीति आयोग की रिपोर्ट ने नीतिगत सुधार, प्रौद्योगिकी, अवसंरचना और सतत् प्रथाओं के माध्यम से भारत की गहरे समुद्र की मत्स्य क्षमता को उजागर करने के लिये तीन चरणों वाली रूपरेखा प्रस्तुत की है।
- चरण 1 (2025–28): प्रारंभिक विकास की नींव रखना और उसे बढ़ावा देना— इस चरण का उद्देश्य सुदृढ़ नीतिगत ढाँचे की स्थापना, प्रशिक्षण और आधुनिक अवसंरचना के माध्यम से क्षमता निर्माण तथा गहरे समुद्र में मत्स्य पालन के मॉडल का परीक्षण करने के लिये पायलट परियोजनाओं की शुरुआत पर केंद्रित है।
- चरण 2 (2029–32): वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाना और प्राप्त करना — इस चरण में मत्स्य संग्रहण वाले बेड़ों का विस्तार, बंदरगाहों और प्रसंस्करण सुविधाओं का उन्नयन तथा नवाचार और स्थायित्व के माध्यम से भारत की वैश्विक समुद्री खाद्य बाज़ारों में उपस्थिति को मज़बूत करने का लक्ष्य है।
- चरण 3 (2033 से आगे): स्थायी गहरे समुद्र में मत्स्य पालन में वैश्विक नेतृत्व — इस चरण में भारत को सतत् गहरे समुद्री मत्स्य पालन में विश्व नेता के रूप में स्थापित करने की परिकल्पना की गई है, जिसके तहत उच्च मूल्य वाले उत्पादों को बढ़ावा देना, पारिस्थितिक तंत्र-आधारित प्रबंधन अपनाना और अंतरराष्ट्रीय सहयोग को प्रोत्साहित करना शामिल है।
नीति आयोग द्वारा भारत के गहरे समुद्र और अपतटीय मत्स्य पालन में उजागर की गई प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?
- वैज्ञानिक भंडार आकलन की कमी: गहरे समुद्री संसाधनों के मानचित्रण के लिये रिमोट सेंसिंग, सोनार और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) जैसे आधुनिक उपकरणों के सीमित उपयोग और अपर्याप्त आँकड़ों के कारण अत्यधिक मत्स्य पालन (overfishing) तथा समुद्री संसाधनों के असतत् दोहन की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
- अत्यधिक मत्स्य पालन, समुद्री प्रदूषण पारिस्थितिक तंत्र के स्वास्थ्य के लिये खतरा हैं और ये मत्स्य भंडार तथा समुद्री जैवविविधता में दीर्घकालिक गिरावट का कारण बन सकते हैं।
- कमज़ोर अवसंरचना: अपर्याप्त बंदरगाह सुविधाएँ, सीमित लैंडिंग सेंटर और ठंडी शृंखला तथा प्रसंस्करण क्षमता की कमी से कटाई के बाद भारी हानि, मछलियों की गुणवत्ता में गिरावट और निर्यात क्षमता में कमी आती है।
- प्रौद्योगिकीय अंतराल: अधिकांश नौकाएँ आधुनिक फिश-फाइंडिंग उपकरणों, पोत निगरानी प्रणाली (VMS) और चयनात्मक मत्स्य संग्रहण के यंत्रों से वंचित हैं, जिसके परिणामस्वरूप मत्स्य संग्रहण में अक्षमता, अधिक सह-पकड़ और स्थायित्व पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
- वित्तीय पहुँच की सीमाएँ: मत्स्य सहकारी समितियाँ और छोटे संचालक संस्थागत ऋण या बीमा कवरेज़ प्राप्त करने में कठिनाइयों का सामना करते हैं, जिससे प्रौद्योगिकी में अपर्याप्त निवेश और जोखिम प्रबंधन में बाधा उत्पन्न होती है।
- वर्तमान सब्सिडी और योजनाएँ बिखरी हुई हैं तथा गहरे समुद्र में संचालन के अनुरूप नहीं हैं, जिसके कारण हरित प्रौद्योगिकियों और बेड़े के आधुनिकीकरण को अपनाने में देरी हो रही है।
- पुराना कानूनी ढाँचा: मौजूदा कानून केवल 12 समुद्री मील तक के तटीय जल को नियंत्रित करते हैं, जिससे गहरे समुद्री क्षेत्रों का प्रशासन ठीक से नहीं चल पाता, जिससे सतत् संग्रहण के मामले में खामियाँ उत्पन्न होती हैं और प्रवर्तन कमज़ोर होता है।
- सीमित पोत ट्रैकिंग, पर्यवेक्षक कार्यक्रमों का अभाव और प्रवर्तन एजेंसियों के बीच खराब समन्वय अवैध, अप्रतिबंधित और अनियमित (IUU) मत्स्य संग्रहण को जारी रहने देता है।
- सीमा पार मत्स्य संग्रहण और संवेदनशील समुद्री क्षेत्रों में कमज़ोर निगरानी समुद्री सुरक्षा और मछुआरों की सुरक्षा के लिये खतरा उत्पन्न करती है।
- सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) के साथ नीतिगत संरेखण में कमी: मत्स्य पालन नीतियों और वैश्विक स्थिरता लक्ष्यों, जैसे SDG 14 (पानी के नीचे जीवन) के बीच एकीकरण का अभाव, समुद्री संसाधनों के समग्र विकास और संरक्षण में बाधा डालता है।
भारत के डीप सी एंड ऑफशोर फिशरीज़ के लिये नीति आयोग की क्या सिफारिशें हैं?
- नीति और नियमावली: अंतर्राष्ट्रीय मानकों (UNCLOS) के अनुरूप एक समर्पित विधिक ढाँचा स्थापित करना। लाइसेंसिंग, पंजीकरण, पहुँच नीतियों और प्रोत्साहनों को सरल बनाना ताकि मत्स्यन की प्रक्रिया सतत् एवं समावेशी हो सके।
- संस्थाओं को प्रभावी निगरानी, नियंत्रण और सर्विलांस (MCS&E) के लिये सशक्त बनाना।
- संस्थागत सशक्तीकरण और क्षमता निर्माण: गहरे समुद्र के प्रबंधन के लिये मत्स्य विभाग के अंतर्गत एक समर्पित एजेंसी या निदेशालय स्थापित करना।
- विशेष जहाज़ों और बुनियादी ढाँचे के माध्यम से अनुसंधान, डेटा संग्रह, स्टॉक मूल्यांकन और सलाहकारी सेवाओं को बढ़ावा देना।
- निर्यात-उन्मुख सहकारी संस्थाओं को प्रोत्साहित करना ताकि सामूहिक संसाधनों और बाज़ार शक्ति का बेहतर उपयोग किया जा सके।
- फ्लीट आधुनिकीकरण और बुनियादी ढाँचा: फ्रिज, ऑनबोर्ड प्रोसेसिंग और पर्यावरण-अनुकूल तकनीक वाले आधुनिक जहाज़ों का समर्थन करना।
- गहरे समुद्र के मछली पकड़ने के बंदरगाह, लैंडिंग सेंटर, कोल्ड चेन और पश्च-उत्पादन बुनियादी ढाँचे को अपग्रेड करना। सहकारी और क्लस्टर के माध्यम से छोटे मछुआरों के लिये सामूहिक स्वामित्व मॉडल को प्रोत्साहित करना।
- सतत् मत्स्य प्रबंधन: समुद्री स्थानिक योजना, समुद्री संरक्षित क्षेत्र और कुल अनुमत पकड़ सीमा लागू करना।
- बायकैच घटाने वाली तकनीकें और आवास संरक्षण उपाय अनिवार्य करना।
- सतत् प्रथाओं के लिये रियल-टाइम मॉनिटरिंग, ट्रेसेबिलिटी सिस्टम और इको-लेबलिंग का प्रयोग करना।
- वित्तपोषण और संसाधन जुटाना: प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (PMMSY) और उद्योग योगदान के माध्यम से डीप-सी फिशिंग डेवलपमेंट फंड स्थापित करना। जहाज़ों और बुनियादी ढाँचे के विकास में सार्वजनिक-निजी भागीदारी को प्रोत्साहित करना।
- हरित तकनीकों के लिये सॉफ्ट लोन या वायबिलिटी गैप फंडिंग की संभावनाओं का पता लगाना।
- क्रियान्वयन तंत्र: डीप-सी फिशिंग प्रोग्राम (DSFP) की शुरुआत करना और इसके लिये एक समर्पित प्रोग्राम मैनेजमेंट यूनिट स्थापित करना। मार्गदर्शन और निगरानी के लिये समुद्री राज्यों एवं संबंधित एजेंसियों की एक सलाहकार परिषद स्थापित करना।
निष्कर्ष
PMMSY और SDG 14 के अनुसार, नीति आयोग की सिफारिशों का लक्ष्य भारत के डीप सी एंड ऑफशोर फिशरीज में सतत् विकास, पारिस्थितिकी तंत्र संरक्षण तथा समावेशी विकास सुनिश्चित करना है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. भारत के डीप सी एंड ऑफशोर फिशरीज़ की क्षमता की जाँच कीजिये और इन संसाधनों का स्थायी रूप से उपयोग करने में आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। |
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
1. विशेष आर्थिक क्षेत्र (EEZ) क्या है?
EEZ वह समुद्री क्षेत्र है जो तट से 200 समुद्री मील तक फैला होता है, जहाँ किसी देश को मत्स्य, तेल और खनिज जैसे संसाधनों का अन्वेषण, उपयोग तथा प्रबंधन करने के अधिकार प्राप्त होते हैं।
2. भारत के विशेष आर्थिक क्षेत्र (EEZ) का अनुमानित संभावित उत्पादन कितना है?
भारत का EEZ 2 मिलियन वर्ग किलोमीटर से अधिक में फैला हुआ है, जिसका अनुमानित संभावित उत्पादन 7.16 मिलियन टन है, जो गहरे समुद्र में अप्रयुक्त संसाधनों को उजागर करता है।
3. भारत की डीप सी एंड ऑफशोर फिशरीज़ की प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?
चुनौतियों में वैज्ञानिक स्टॉक मूल्यांकन की कमी, कमज़ोर इंफ्रास्ट्रक्चर, टेक्नोलॉजिकल अंतर, उच्च संचालन लागत, सीमित वित्तीय संसाधन, पुरानी कानूनी रूपरेखा, मत्स्यन की अस्थिर प्रथाएँ और कमज़ोर निगरानी प्रणाली शामिल हैं।
4. भारत की मछली पकड़ने वाली फ्लीट और बुनियादी ढाँचे को आधुनिक बनाने के लिये नीति आयोग क्या प्रस्ताव करता है?
रेफ्रिजरेशन, ऑनबोर्ड प्रोसेसिंग, गहरे समुद्र के बंदरगाह, लैंडिंग सेंटर, कोल्ड चेन और सहकारी-आधारित स्वामित्व मॉडल वाले आधुनिक जहाजों को समर्थन देकर।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)
प्रीलिम्स
प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा जीव निस्यंदक भोजी (फिल्टर फीडर) है? (2021)
(a) अशल्क मीन (कैटफिश)
(b) अष्टभुज (ऑक्टोपस)
(c) सीप (ऑयस्टर)
(d) हवासिल (पेलिकन)
उत्तर: (c)
मेन्स
प्रश्न. “नीली क्रांति” को परिभाषित करते हुए, भारत में मत्स्यपालन विकास की समस्याओं और रणनीतियों को समझाइये। (2018)