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आंतरिक सुरक्षा

UAPA अधिकरण द्वारा PFI पर प्रतिबंध लगाने के केंद्र के निर्णय का समर्थन

  • 01 Apr 2023
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

UAPA अधिकरण, UAPA के प्रमुख प्रावधान   

मेन्स के लिये:

आंतरिक सुरक्षा, उग्रवाद में वृद्धि, सरकार की प्रतिक्रिया के लिये चुनौतियाँ उत्पन्न करने में निजी क्षेत्र की भूमिका 

चर्चा में क्यों?  

अपने गठन के पाँच महीने बाद गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिकरण ने भारत के कुख्यात संगठनों और इसके सहयोगियों पर प्रतिबंध लगाने के केंद्र के निर्णय का समर्थन किया।

मुद्दे की पृष्ठभूमि: 

  • सितंबर 2022 में गृह मंत्रालय (MHA) ने एक राजपत्र अधिसूचना में PFI और इसके सहयोगी संगठनों को "गैरकानूनी संगठन" घोषित किया। 
  • MHA द्वारा जारी अधिसूचना ने गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम (UAPA), 1967 के तहत पाँच वर्ष के लिये रिहैब इंडिया फाउंडेशन (RIF) और कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया सहित PFI तथा उसके सहयोगी संगठनों पर प्रतिबंध लगा दिया। 

UAPA:

  • परिचय: 
    • UAPA का उद्देश्य भारत में गैरकानूनी गतिविधियों में शामिल संगठनों पर रोक लगाना है। इसका मुख्य उद्देश्य भारत की अखंडता और संप्रभुता के खिलाफ निर्देशित गतिविधियों से निपटना है। इसे आतंकवाद विरोधी कानून के रूप में भी जाना जाता है। 
      • गैरकानूनी गतिविधियाँ भारत में क्षेत्रीय अखंडता और क्षेत्रीय संप्रभुता को बाधित करने के उद्देश्य से किसी व्यक्ति या सगठन द्वारा की गई किसी भी कार्रवाई को संदर्भित करती हैं। 
    • यह अधिनियम केंद्र सरकार को पूर्ण शक्ति प्रदान करता है और अधिकतम दंड के रूप में मृत्युदंड एवं आजीवन कारावास का प्रावधान करता है।  
  • UAPA के प्रमुख प्रावधान: 
    • अन्य बातों के अलावा UAPA आतंकवादी गतिविधियों से निपटने हेतु विशेष प्रक्रियाएँ प्रदान करता है, केंद्र सरकार किसी व्यक्ति/संगठन को आतंकवादी/आतंकवादी संगठन के रूप में नामित कर सकती है यदि: 
      • आतंकवादी कार्रवाई करता है या उसमें भाग लेता है
      • आतंकवादी घटना को अंजाम देने की तैयारी करता है,
      • आतंकवाद को बढ़ावा देता है, या
      • अन्यथा आतंकवादी गतिविधि में शामिल है।
    • अधिनियम के तहत एक जाँच अधिकारी को आतंकवाद से जुड़ी संपत्तियों को ज़ब्त करने हेतु पुलिस महानिदेशक की पूर्व स्वीकृति प्राप्त करने की आवश्यकता होती है।
      • इसके अतिरिक्त यदि जाँच राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (National Investigation Agency- NIA) के अधिकारी द्वारा की जाती है, तो ऐसी संपत्ति की ज़ब्ती हेतु NIA के महानिदेशक की मंज़ूरी की आवश्यकता होगी।
      • यह NIA के अधिकारियों (निरीक्षक या उससे ऊपर के रैंक के अधिकारियों) को उन मामलों की जाँच करने का अधिकार देता है जो उप अधीक्षक या सहायक पुलिस आयुक्त या उससे ऊपर के रैंक के अधिकारियों द्वारा संचालित किये जाते हैं।  
  • प्रक्रिया का अनुपालन: 
    • किसी संगठन को गैर-कानूनी घोषित करने की सूचना राजपत्र अधिसूचना के माध्यम से और उस क्षेत्र में लाउडस्पीकरों के माध्यम से या संगठन  के कार्यालयों पर सूचना की प्रति चिपकाकर दी जाती है जहाँ संगठन अपनी गतिविधियों का संचालन करता है।  
      • अधिसूचना प्रकाशन की तारीख से पाँच वर्ष तक वैध रहती है, जो UAPA के तहत न्यायाधिकरण के आदेश के अधीन है। 
    • जब केंद्र किसी संगठन को गैरकानूनी घोषित करता है, तो केंद्र द्वारा एक न्यायाधिकरण की स्थापना की जाती है ताकि आगे की जाँच कर पुष्टि की जा सके कि निर्णय उचित है या नहीं।
      • केंद्र द्वारा अधिसूचना तब तक प्रभावी नहीं होती जब तक कि न्यायाधिकरण घोषणा की पुष्टि नहीं करता है और आदेश आधिकारिक राजपत्र में प्रकाशित नहीं होता है।
    • सरकार को राजपत्र अधिसूचना जारी करने के 30 दिनों के भीतर अधिसूचना को न्यायाधिकरण को भेजना होगा ताकि प्रतिबंध की पुष्टि हो सके। 
      • इसके अतिरिक्त MHA को उन मामलों के साथ न्यायाधिकरण को संदर्भित करना चाहिये जो NIA, प्रवर्तन निदेशालय और राज्य पुलिस बलों ने देश भर में संगठनों और उसके सदस्यों के खिलाफ दर्ज किये हैं। 

UAPA न्यायाधिकरण:

  • UAPA में सरकार द्वारा एक न्यायाधिकरण के गठन का प्रावधान है ताकि इसके प्रतिबंधों को दीर्घकालिक कानूनी वैधता मिल सके। 
    • इसकी अध्यक्षता उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त अथवा वर्तमान न्यायाधीश द्वारा की जाती है।
  • यह प्राधिकरण संबंधित संगठन से अनुरोध करता है कि वह अधिसूचना प्राप्त करने की तारीख (जिस तारीख पर केंद्र द्वारा अधिसूचना जारी की गई थी) के 30 दिनों के भीतर अपने अस्तित्त्व की निरंतरता के लिये औचित्य प्रदान करे।
    • दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद प्राधिकरण 6 महीने के भीतर यह तय करने के लिये जाँच कर सकता है कि क्या संगठन को गैरकानूनी घोषित करने के लिये पर्याप्त सबूत हैं अथवा नहीं।

UAPA की आलोचना: 

  • ठोस और प्रक्रियात्मक प्रक्रिया का अभाव: UAPA की धारा 35 सरकार को किसी भी व्यक्ति को आतंकवादी के रूप में सूचीबद्ध करने की अनुमति देती है। सरकार ऐसा केवल बड़े संदेह के आधार पर और बिना किसी प्रक्रिया के कर सकती है।
  • आतंकवादी गतिविधियों में संदेह वाले लोगों को हिरासत में लेने और गिरफ्तार करने का राज्य का अस्पष्ट अधिकार इसे संविधान के अनुच्छेद 21 द्वारा दी गई स्वतंत्रता पर अधिक नियंत्रण देता है।
  • असहमति के अधिकार पर अप्रत्यक्ष प्रतिबंध: असहमति का अधिकार भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का हिस्सा है और इसलिये अनुच्छेद 19(2) में उल्लिखित परिस्थिति को छोड़कर किसी भी स्थिति में इसे कम नहीं किया जा सकता है।
    • वर्ष 2019 में UAPA में संशोधन ने आतंकवाद पर अंकुश लगाने की आड़ में सत्ताधारी सरकार को असहमति के अधिकार पर अप्रत्यक्ष प्रतिबंध लगाने की शक्ति दी, जो एक विकासशील लोकतांत्रिक समाज के लिये हानिकारक है।
  • समय का अपव्यय: लगभग 43% मामलों में चार्जशीट दायर करने में एक या दो वर्ष से अधिक का समय लग जाता है। इससे न्याय मिलने में देरी होती है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिये बाह्य राज्य और गैर राज्य कारकों द्वारा प्रस्तुत बहुआयामी चुनौतियों का विश्लेषण कीजिये। इन संकटों का मुकाबला करने के लिये आवश्यक उपायों की भी चर्चा कीजिये। (2021)

प्रश्न. भारत सरकार ने हाल ही में विधि विरुद्ध क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम (यू.ए.पी.ए.) 1967 और एन.आई.ए. अधिनियम में संशोधन द्वारा आतंकवाद-रोधी कानूनों को मज़बूत कर दिया है। मानवाधिकार संगठनों द्वारा विधि विरुद्ध क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम का विरोध करने के कारणों पर विस्तार से चर्चा करते समय वर्तमान सुरक्षा परिवेश के संदर्भ में परिवर्तनों का विश्लेषण कीजिये। (2019)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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