दृष्टि के NCERT कोर्स के साथ करें UPSC की तैयारी और जानें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स



सामाजिक न्याय

बाल तस्करी पर सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देश

  • 22 Dec 2025
  • 94 min read

प्रिलिम्स के लिये: भारत का सर्वोच्च न्यायालय, अनुच्छेद 23, UNCTOC, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग

मेन्स के लिये: मानव तस्करी के विरुद्ध संरक्षणात्मक उपाय, पीड़ित-केंद्रित आपराधिक न्यायशास्त्र के विकास में सर्वोच्च न्यायालय की भूमिका, बाल संरक्षण हेतु निवारक एवं पुनर्वासात्मक रणनीतियाँ।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने बाल तस्करी और वाणिज्यिक यौन शोषण को देश में एक “अत्यंत विचलित करने वाली वास्तविकता” के रूप में वर्णित किया है।

  • सर्वोच्च न्यायालय ने दिशा-निर्देश निर्धारित किये, जिनमें सभी न्यायालयों को यह निर्देश दिया गया कि तस्करी के शिकार बच्चों को पीड़ित साक्षी के रूप में माना जाए तथा उनकी गवाही का संवेदनशीलता के साथ मूल्यांकन किया जाए और केवल मामूली असंगतियों के आधार पर उसे खारिज न किया जाए।

सारांश

  • सर्वोच्च न्यायालय ने बाल तस्करी और वाणिज्यिक यौन शोषण को बालकों की गरिमा और मौलिक अधिकारों का गंभीर उल्लंघन माना है तथा न्यायालयों को निर्देश दिया है कि तस्करी के शिकार बच्चों को पीड़ित (injured) साक्षी के रूप में देखा जाए और केवल मामूली विरोधाभासों के आधार पर उनकी गवाही को अस्वीकार न किया जाए।
  • प्रभावी प्रतिक्रिया के लिये प्रिवेंशन फर्स्ट दृष्टिकोण आवश्यक है, जिसमें सशक्त कानूनी प्रवर्तन के साथ सामुदायिक सतर्कता, कल्याणकारी योजनाओं का अभिसरण, ट्रांजिट निगरानी तथा बचाए गए बच्चों के लिये प्रभावी पुनर्वास तंत्र को समेकित किया जाए।

भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा बाल तस्करी की समस्या से निपटने के लिये कौन-से दिशा-निर्देश जारी किये गए हैं?

  • पीड़ित की गवाही को विश्वसनीय साक्ष्य मानना : न्यायालयों को मानव तस्करी का शिकार हुए बच्चे की गवाही को एक पीड़ित गवाह/साक्षी की गवाही के रूप में देखा जाना चाहिये और उसे उचित महत्त्व देना चाहिये। 
    • गवाही में मामूली विसंगतियों से पीड़ित के बयान को अविश्वासनीय नहीं ठहराया जाना चाहिये और यदि उसकी गवाही विश्वसनीय है तो वह दोषसिद्धि के लिये पर्याप्त हो सकती है।
    • मानव तस्करी की जटिल प्रकृति को देखते हुए, न्यायालयों को पीड़ितों से सटीक विवरण की अपेक्षा नहीं करनी चाहिये। अपराध की जटिलता के कारण पीड़ितों के लिये घटनाओं का स्पष्ट वर्णन करना कठिन होता है।
    • सुभेद्यताओं/कमज़ोरियों के प्रति संवेदनशीलता : न्यायालयों को पीड़ितों, विशेषकर सीमांत समुदायों के पीड़ितों की सामाजिक-आर्थिक और सांस्कृतिक सुभेद्यताओं पर विचार करना चाहिये। न्यायिक मूल्यांकन संवेदनशीलता और यथार्थवाद से युक्त होना चाहिये।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि बाल तस्करी और यौन शोषण बच्चों की गरिमा एवं शारीरिक अखंडता का उल्लंघन करते हैं और जीवन, गरिमा तथा सुरक्षा के उनके मौलिक अधिकारों को कमज़ोर करते हैं।
    • द्वितीयक उत्पीड़न को कम करना : न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि कानूनी कार्यवाही के दौरान पीड़ितों को किसी भी प्रकार के अतिरिक्त आघात से बचाया जाए, उनकी गरिमा सुनिश्चित की जाए तथा उन्हें अनावश्यक मानसिक कष्ट से दूर रखा जाए।
    • पूर्वाग्रहपूर्ण धारणाओं से बचना : न्यायालयों को पीड़ित के व्यवहार के आधार पर (जैसे कि- तत्काल विरोध न करने के आधार पर), किसी भी प्रकार की धारणा बनाने से परहेज करना चाहिये, क्योंकि इससे उसकी विश्वसनीयता कम हो सकती है।

बाल तस्करी क्या है?

  • परिचय: बाल तस्करी से तात्पर्य है किसी बच्चे का उसके शोषण के उद्देश्य से, ज़बरदस्ती, धोखाधड़ी, शक्ति के दुरुपयोग या संकटग्रस्त स्थिति का लाभ उठाकर भर्ती, परिवहन, स्थानांतरण, शरण देना या प्राप्त करना।
    • शोषण में यौन शोषण, जबरन श्रम, दासता या गुलामी और अंगों का निष्कासन शामिल है तथा यह बाल अधिकारों, मानव गरिमा और शारीरिक अखंडता का गंभीर उल्लंघन है।

dimensions_of_human_trafficking

भारत में बाल तस्करी और वाणिज्यिक यौन शोषण का विनियमन

  • संवैधानिक ढाँचा:
    • अनुच्छेद 23 मानव तस्करी और जबरन श्रम को प्रतिबंधित करता है, इसे मौलिक अधिकारों का उल्लंघन बनाता है।
  • कानूनी ढाँचा:
    • भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023: BNS, 2023 के अनुच्छेद 143 और 144 मानव तस्करी तथा तस्करी किये गए बच्चों के यौन शोषण हेतु कठोर दंड प्रदान करते हैं, जिसमें आजीवन कारावास तक की सजा शामिल है और भिक्षाटन को शोषण के एक रूप के रूप में मान्यता दी गई है।
    • अनैतिक व्यापार (निवारण) अधिनियम, 1956 (ITPA): वाणिज्यिक शोषण के लिये तस्करी के खिलाफ मूल कानून तथा इसमें वेश्यालय संचलन, तस्करी करना और संबंधित अपराधों को दंडित किया जाता है।
    • लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (POCSO): बच्चों को यौन उत्पीड़न और शोषण से बचाने हेतु विशेष कानून तथा इसमें बाल-केंद्रित प्रक्रिया का प्रावधान है।
    • आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2013: तस्करी की व्यापक परिभाषा प्रदान करता है, जिसमें यौन शोषण, दासता, सेवकत्व, बलात श्रम और अंग निकालना शामिल है तथा यह बच्चों की तस्करी को सहमति की परवाह किये बिना शामिल करता है।
    • किशोर न्याय (बालकों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015: इसमें कानून के साथ संघर्ष में बच्चों और देखभाल एवं संरक्षण की आवश्यकता वाले बच्चों के लिये संस्थागत व गैर-संस्थागत देखभाल और संरक्षण सेवाओं का एक सुरक्षा जाल सुनिश्चित किया गया है।
    • मानव तस्करी और शोषण से संबंधित सहवर्ती विधायनों में बंधुआ श्रम प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम, 1976, बाल श्रम (निषेध और विनियमन) अधिनियम, 1986, बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 और मानव अंग एवं ऊतक प्रत्यारोपण अधिनियम, 1994 शामिल हैं। ये सभी मिलकर बलपूर्वक श्रम, बाल शोषण, समयपूर्व विवाह और अवैध अंग व्यापार को रोकने का उद्देश्य रखते हैं।
  • सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय और दिशानिर्देश:
    • विशाल जीत बनाम भारत संघ (1990): सर्वोच्च न्यायालय ने तस्करी और बाल वेश्यावृत्ति को एक गंभीर सामाजिक–आर्थिक समस्या माना तथा इसके समाधान हेतु निवारक तथा मानवीय दृष्टिकोण पर बल दिया।
      • न्यायालय ने राज्यों को बाल वेश्यावृत्ति तथा देवदासी/जोगिन प्रथाओं के उन्मूलन के लिये सलाहकार समितियाँ गठित करने का निर्देश दिया।
    • एम.सी. मेहता बनाम तमिलनाडु राज्य (1996): सर्वोच्च न्यायालय ने खतरनाक उद्योगों में बच्चों के नियोजन पर प्रतिबंध लगाया और बाल श्रम पुनर्वास कल्याण कोष के गठन का निर्देश दिया।
    • बचपन बचाओ आंदोलन बनाम भारत संघ (2011): सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय सर्कसों में बच्चों के नियोजन पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया तथा सर्कसों में बच्चों के व्यापक शोषण और तस्करी से निपटने हेतु केंद्र व राज्य सरकारों को महत्त्वपूर्ण निर्देश जारी किये।
  • अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताएँ: भारत ने संयुक्त राष्ट्र का ट्रांसनेशनल ऑर्गनाइज्ड क्राइम कन्वेंशन (UNCTOC) और इसके ट्रैफिकिंग प्रोटोकॉल को अनुमोदित किया है।

भारत में बाल तस्करी एवं शोषण के प्रभावी निवारण में कौन-सी चुनौतियाँ बाधक हैं?

  • व्याप्त सामाजिक-आर्थिक संकट: गरीबी, बेरोज़गारी, पलायन, आपदाएँ और पारिवारिक विघटन बच्चों को लगातार संकटग्रस्त स्थिति में धकेलते हैं, जिससे तस्करों के लिये एक निरंतर आपूर्ति स्रोत बनता है।
    • सस्ते श्रम, घरेलू दासता, भीख मंगवाने और वाणिज्यिक यौन शोषण की मांग लगातार तस्करी बाजारों को सक्रिय बनाए रखती है।
    • क्विक-कॉमर्स डिलीवरी ऐप्स के उदय ने अविनियमित डार्क स्टोर और छॅंटाई केंद्रों में बाल श्रम की छिपी हुई मांग उत्पन्न कर दी है, जहाँ बच्चे तेज़ वितरण लक्ष्यों को पूरा करने के लिये लंबी रातों की शिफ्ट में काम करते हैं।
  • अदृश्य और संगठित तस्करी शृंखलाएँ: तस्करी नेटवर्क स्रोत, पारगमन और गंतव्य क्षेत्रों में स्तरित और खंडित संरचनाओं के माध्यम से काम करते हैं, जिससे पहचान और विघटन अत्यंत कठिन हो जाता है।
    • उदाहरण के लिये, तस्कर भारत-नेपाल की संवेदनशील सीमा का लाभ उठाते हैं और बच्चों को कई राज्यों के मार्गों से भेजते हैं, जिससे किसी एक राज्य पुलिस बल के लिये पूरी तस्करी शृंखला को ट्रैक करना कठिन हो जाता है।
  • पीड़ितों की चुप्पी: भय, कलंक, आघात और धमकियाँ रिपोर्टिंग को दबा देती हैं, जिससे शोषण छिपा और अनदेखा रह जाता है।
    • असंवेदनशील पूछताछ प्रक्रियाएँ पीड़ितों को पुनः आघात पहुँचाती हैं, जिससे न्याय प्रक्रिया में सहयोग करने की इच्छा कम हो जाती है।
  • प्रौद्योगिकी का दुरुपयोग: सोशल मीडिया और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म ग्रूमिंग, भर्ती और यौन शोषण को संभव बनाते हैं, जो अक्सर पारंपरिक पुलिसिंग की पहुँच से बाहर होता है।
    • उदाहरण के लिये, ‘आभासी भर्ती’ मॉडल में, तस्कर इंस्टाग्राम पर नकली ‘टैलेंट हंट’ प्रोफाइल का उपयोग करके आकांक्षी किशोर प्रभावकों को मॉडलिंग अनुबंधों के वचनों से लुभाते हैं और अंततः उन्हें वाणिज्यिक यौन शोषण के लिये तस्करी करते हैं।
  • डेटा और निगरानी में अंतराल: राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) डेटा को अद्यतन करने में देरी और लापता, बचाए गए एवं तस्करी के शिकार बच्चों के खंडित डेटाबेस प्रभावी प्रारंभिक चेतावनी, ट्रैकिंग और निवारण प्रयासों को सीमित करते हैं।

बाल तस्करी और शोषण को प्रभावी ढंग से रोकने के लिये कौन-से उपाय अपनाए जा सकते हैं?

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने इस बात पर ज़ोर दिया कि बाल तस्करी के खिलाफ सबसे प्रभावी रणनीति निवारण है और तद्नुसार इस बुराई को रोकने के लिये लक्षित उपायों की सिफारिश की:

  • स्रोत-क्षेत्र संबंधी सिफारिशें: तस्करी-संभावित गाँवों और शहरी बस्तियों की पहचान करना तथा परिभाषित संकेतकों (स्कूल छोड़ने वाले, गरीबी, पलायन, पारिवारिक संकट) का उपयोग करके जोखिमग्रस्त बच्चों और संकटग्रस्त परिवारों का मानचित्रण करना।
    • कल्याणकारी योजनाओं (राशन, मनरेगा, शिक्षा, स्वास्थ्य) का अभिसरण सुनिश्चित करना ताकि आर्थिक संकट परिवारों को तस्करों की ओर न धकेले।
    • ग्राम बाल संरक्षण समितियों (VCPC), आँगनवाड़ी कार्यकर्त्ताओं, स्कूल प्राधिकारियों और स्थानीय पुलिस के माध्यम से पंचायत-स्तरीय सतर्कता को मज़बूत करना।
    • बच्चों और बाहरी लोगों की आवाजाही पर नज़र रखने वाले ग्राम-स्तरीय रजिस्टर बनाए रखना, जिन्हें ट्रैकचाइल्ड पोर्टल और घर (GHAR - गो होम एंड री-यूनाइट) पोर्टल पर नियमित रूप से अद्यतन किया जाए, क्योंकि तस्कर अक्सर शिक्षा या रोज़गार के प्रस्तावों के बहाने काम करते हैं।
  • संक्रमण-क्षेत्र से संबंधित सिफारिशें: GRP (गवर्नमेंट रेलवे पुलिस) और RPF (रेलवे प्रोटेक्शन फोर्स), परिवहन कर्मियों, कुलियों, विक्रेताओं तथा पुलिस को बच्चों और उनके साथ मौजूद वयस्कों की संदिग्ध गतिविधियों की पहचान हेतु संवेदनशील बनाया जाए तथा उन्हें प्रशिक्षण दिया जाए।
    • सभी ट्रांजिट बिंदुओं पर स्थानीय भाषाओं में हेल्पलाइन नंबर (1098, 112) तथा बाल अधिकारों से संबंधित जानकारी प्रदर्शित की जाए।
  • गंतव्य-क्षेत्र से संबंधित सिफारिशें: प्लेसमेंट एजेंसियों, कारखानों, ईंट भट्टों, होटलों, मसाज पार्लरों, घरेलू कार्य स्थलों तथा मनोरंजन प्रतिष्ठानों का नियमित निरीक्षण किया जाए।
    • बाल श्रम, बाल विवाह और घरेलू दासता के प्रति शून्य सहनशीलता सुनिश्चित की जाए।
    • बचाए गए बच्चों के लिये किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम, 2015 के तहत बाल देखभाल संस्थानों, आश्रय गृहों और पुनर्वास सुविधाओं की उपलब्धता सुनिश्चित की जाए।

निष्कर्ष

बाल तस्करी बच्चों की गरिमा और मौलिक अधिकारों का गंभीर उल्लंघन है। सर्वोच्च न्यायालय के दिशानिर्देश, तस्करी के शिकार बच्चों को पीड़ित साक्षी के रूप में मान्यता देकर तथा रूढ़ियों और मामूली असंगतियों को खारिज करके, न्याय व्यवस्था को सुदृढ़ बनाते हैं।

दृष्टि मेन्स प्रश्न :

प्रश्न. संवैधानिक और कानूनी प्रावधानों के संदर्भ में बाल तस्करी को मौलिक अधिकारों का उल्लंघन के रूप में चर्चा कीजिये।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

1. कौन-सा संवैधानिक प्रावधान सीधे तौर पर बाल तस्करी पर प्रतिबंध लगाता है?
संविधान का अनुच्छेद 23 मानव तस्करी और बेगार (बलात श्रम) पर प्रतिबंध लगाता है, जिससे यह मौलिक अधिकारों का उल्लंघन बन जाता है।

2. भारत में बाल तस्करी से निपटने वाले प्रमुख कानून कौन-से हैं?
भारतीय न्याय संहिता, 2023; अनैतिक देह व्यापार (निवारण) अधिनियम, 1956 (ITPA); यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (POCSO); आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2013 तथा संबंधित श्रम एवं बाल संरक्षण कानून।

3. बाल तस्करी का पता लगाना और उसे रोकना कठिन क्यों है?
क्योंकि यह विभिन्न क्षेत्रों में फैले संगठित और अदृश्य नेटवर्कों के माध्यम से संचालित होती है, जिसे गरीबी, प्रवासन, सामाजिक कलंक तथा पीड़ितों द्वारा कम रिपोर्टिंग जैसी समस्याएँ और जटिल बना देती हैं।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)

प्रश्न. संसार के दो सबसे बड़े अवैध अफीम उत्पादक राज्यों से भारत की निकटता ने उसकी आंतरिक सुरक्षा चिंताओं को बढ़ा दिया है। नशीली दवाओं के अवैध व्यापार एवं बंदूक बेचने, गुपचुप धन विदेश भेजने और मानव तस्करी जैसे अवैध गतिविधियों के बीच कड़ियों को स्पष्ट कीजिये। इन गतिविधियों को रोकने के लिये क्या-क्या उपाय किये जाने चाहिये?  (2018)

close
Share Page
images-2
images-2