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जैव विविधता और पर्यावरण

स्टॉकहोम +50

  • 02 Jun 2022
  • 14 min read

प्रिलिम्स के लिये:

स्टॉकहोम घोषणा, जलवायु परिवर्तन, पेरिस समझौता, सतत् विकास, संयुक्त राष्ट्र, यूएनईपी, यूएनएफसीसीसी, यूएनसीसीडी, सीबीडी 

मेन्स के लिये:

स्टॉकहोम घोषणा और उसके परिणाम, चुनौतियाँ और आगे की राह 

चर्चा में क्यों?  

स्टॉकहोम+50 का आयोजन स्टॉकहोम, स्वीडन में हो रहा है। यह मानव पर्यावरण पर वर्ष 1972 के संयुक्त राष्ट्र (UN) सम्मेलन (स्टॉकहोम सम्मेलन के रूप में भी जाना जाता है) के 50वीं वर्षगाँंठ का उत्सव है 

  • संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा इस अंतर्राष्ट्रीय बैठक का आयोजन किया जा रहा है। 
  • यह ऐसे समय में आयोजित किया जा रहा है जब दुनिया स्टॉकहोम घोषणा के 50 वर्ष बाद भी जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और अपशिष्ट प्रकृति तथा जैवविविधता की क्षति के तिहरे ग्रहीय संकट के साथ-साथ अन्य मुद्दों का सामना कर रही है। यह सतत विकास लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये खतरा है। 
  • कोविड-19 महामारी से एक सतत् रिकवरी भी एजेंडा बिंदुओं में से एक रहेगा। 

स्टॉकहोम सम्मेलन, 1972: 

  • पृष्ठभूमि:  
    • वर्ष 1968 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में उभरते हुए वैज्ञानिक प्रमाणों का उपयोग करते हुए पहली बार जलवायु परिवर्तन पर चर्चा की गई थी। 
      • वर्ष 1967 में एक शोध अध्ययन ने CO2 स्तरों के आधार पर वैश्विक तापमान का वास्तविक अनुमान प्रदान किया। साथ ही यह भी भविष्यवाणी की गई थी कि वर्तमान स्तर से CO2 के दोगुने होने से वैश्विक तापमान में लगभग 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होगी। 
    • स्टॉकहोम सम्मेलन का विचार सबसे पहले स्वीडन द्वारा प्रस्तावित किया गया था। इसलिये इसे "स्वीडिश इनिशिएटिव" भी कहा जाता है। 
  • परिचय: 
    • स्टॉकहोम में मानव पर्यावरण पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन 5 से 16 जून, 1972 तक आयोजित किया गया था। 
    • यह ग्रहीय पर्यावरण पर पहला वैश्विक अभिसमय था। 
    • इसका विषय 'Only One Earth' था। 
    • सम्मेलन में 122 देशों ने भाग लिया। 
  • लक्ष्य: 
    • ग्रहीय पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों के लिये एक सामान्य शासन ढांँचा तैयार करना। 
  • स्टॉकहोम घोषणा और मानव पर्यावरण के लिये कार्य योजना: 
    • स्टॉकहोम घोषणा: 
      • 122 प्रतिभागी देशों में से 70 विकासशील और गरीब देशों ने स्टॉकहोम घोषणा को अपनाया। 
      • स्टॉकहोम घोषणा में 26 सिद्धांत शामिल थे जो विकसित और विकासशील देशों के बीच संवाद की शुरुआत को चिह्नित करते हैं। 
      • इसने "विकास, गरीबी और पर्यावरण के बीच अंतर्संबंध" का निर्माण किया। 
    • कार्ययोजना:  
      • कार्ययोजना में तीन मुख्य श्रेणियाँं शामिल थीं जिन्हें आगे 109 सिफारिशों में विभाजित किया गया: 
        • वैश्विक पर्यावरण मूल्यांकन कार्यक्रम (वाच प्लान) 
        • पर्यावरण प्रबंधन गतिविधियाँ 
        • राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर किये गए मूल्यांकन और प्रबंधन गतिविधियों का समर्थन करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय उपाय। 
  • सम्मेलन के तीन आयाम: 
    • देशों ने "एक-दूसरे के पर्यावरण या राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र से परे क्षेत्रों को नुकसान नहीं पहुंचाने" पर सहमति व्यक्त की। 
    • पृथ्वी के पर्यावरणीय खतरों का अध्ययन करने के लिये एक कार्ययोजना। 
    • देशों के बीच सहयोग स्थापित करने के लिये संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) नामक अंतर्राष्ट्रीय निकाय की स्थापना। 

स्टॉकहोम घोषणा के प्रमुख समझौते: 

  • वर्तमान और भावी पीढ़ियों के लाभ के लिये सावधानीपूर्वक योजना बनाकर प्राकृतिक संसाधनों जैसे- वायु, जल, भूमि, वनस्पतियों और जीवों की रक्षा की जानी चाहिये। 
  • विषाक्त पदार्थों की निकासी और ऊष्मा के उत्सर्जन को पर्यावरण की क्षमता से अधिक नहीं होने देना चाहिये। 
  • प्रदूषण के खिलाफ संघर्ष में गरीब और विकासशील देशों का समर्थन किया जाना चाहिये। 
  • राज्यों की पर्यावरणीय नीतियों को विकासशील देशों की वर्तमान या भविष्य की विकास क्षमता का समर्थन करना चाहिये। 
  • पर्यावरणीय उपायों को लागू करने के परिणामस्वरूप संभावित राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक परिणामों को पूरा करने के लिये एक समझौते पर पहुंँचने हेतु राज्यों व अंतर्राष्ट्रीय संगठनों द्वारा उचित कदम उठाए जाने चाहिये। 
  • संयुक्त राष्ट्र के चार्टर और अंतर्राष्ट्रीय कानून के सिद्धांतों के अनुसार, राज्यों को अपनी पर्यावरण नीतियों के तहत अपने संसाधनों का दोहन करने का संप्रभु अधिकार है। 
    • हालांँकि राज्यों की यह ज़िम्मेदारी है कि वे यह सुनिश्चित करें कि उनके अधिकार क्षेत्र या नियंत्रण के भीतर की गतिविधियाँ अन्य राज्यों के पर्यावरण या राष्ट्रीय क्षेत्राधिकार की सीमाओं से परे के क्षेत्रों को कोई नुकसान न पहुंँचाएंँ। 

स्टॉकहोम, 1972 का महत्त्व: 

  • पर्यावरण पर पहला वैश्विक सम्मेलन तब हुआ जब पर्यावरण वैश्विक चिंता या किसी राष्ट्र के लिये महत्त्व का विषय नहीं था। 
  • इससे पहले संयुक्त राष्ट्र चार्टर में कभी भी निपटने के लिये पर्यावरण का क्षेत्र शामिल नहीं था।  
  • वर्ष 1972 तक किसी भी देश में पर्यावरण मंत्रालय नहीं था।  
    • बाद में नॉर्वे और स्वीडन जैसे देशों ने पर्यावरण के लिये अपने मंत्रालय स्थापित किये। 
    • वर्ष 1985 में भारत ने पर्यावरण और वन मंत्रालय की स्थापना की। 
  • वर्ष 1972 के बाद प्रजातियों के विलुप्त होने और पारा विषाक्तता जैसे पर्यावरणीय मुद्दे सुर्खियों में आने लगे और सार्वजनिक चेतना बढ़ी। 
  • स्टॉकहोम सम्मेलन ने समकालीन "पर्यावरण युग" की शुरुआत की। 
  • पर्यावरण संकट पर आज के कई सम्मेलन स्टॉकहोम घोषणा में अपने मूल का पता लगाते हैं। 

चुनौतियाँ: 

  • शुरुआत से ही वैश्विक राजनीति ने सम्मेलन पर प्रतिकूल प्रभाव डाला।  
  • कुछ देशों ने अमीर देशों के प्रभुत्व के बारे में अपनी चिंता व्यक्त की और कहा कि नीतियाँ अमीर, औद्योगिक देशों के हित में अधिक हैं। 
  • राष्ट्रों की एक असंगठित प्रतिक्रिया ने इस तथ्य में योगदान दिया है कि दुनिया 2100 तक पूर्व-औद्योगिक स्तरों से कम-से-कम 3˚C अधिक तापन की राह पर है जो पेरिस समझौते में अनिवार्य रूप से 1.5˚C वार्मिंग से दोगुना है। 
  • अगले 50 वर्षों के भीतर 1-3 बिलियन लोगों के जलवायु परिस्थितियों से बाहर रहने का अनुमान है। 
  • एक स्वस्थ पर्यावरण के लिये स्थायी उपायों को अपनाने के रास्ते में गरीबी सबसे बड़ी बाधा है, क्योंकि विज्ञान और प्रौद्योगिकी के उपयोग के बिना गरीबी का उन्मूलन नहीं किया जा सकता है। 
  • जब तक गरीब या विकासशील देश रोज़गार प्रदान करने और लोगों की दैनिक आवश्यकताओं को पूरा करने की स्थिति में नहीं होंगे, स्थायी पर्यावरण की नीतियों को उचित रूप से लागू नहीं किया जा सकता है। 

आगे की राह 

  • दुनिया के अधिकांश लोगों को यह समझने की ज़रूरत है कि पारिस्थितिकी और संरक्षण उनके हितों के खिलाफ काम नहीं करेगा। इसके बजाय यह उनके जीवन में सुधार लाएगा। 
  • औद्योगिक राष्ट्र मूल रूप से वायु और जल प्रदूषण के बारे में चिंतित हैं, जबकि विकासशील राष्ट्र पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुँचाये बिना गरीबी उन्मूलन के लिये सहायता की उम्मीद कर रहे हैं। 
  • इसलिये विकासशील देशों की अर्थव्यवस्थाओं के उत्थान को सुनिश्चित करने के लिये पर्यावरण संरक्षण के उपायों को अपनाया जाना चाहिये। 
  • स्टॉकहोम+50 के लिये एक स्थायी वातावरण की ओर प्रेरित लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु विशिष्ट समय-सीमा निर्धारित करने के लिये  यह एक उचित समय है। 

विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs): 

प्रश्न. 'वैश्विक पर्यावरण सुविधा' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं? (2014) 

(a) यह 'जैविक विविधता पर कन्वेंशन' और 'जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन' के लिये वित्तीय तंत्र के रूप में कार्य करती है। 
(b) यह वैश्विक स्तर पर पर्यावरणीय मुद्दों पर वैज्ञानिक अनुसंधान करती है। 
(c) यह OECD के अंतर्गत शासित एक एजेंसी है जो अविकसित देशों को उनके पर्यावरण की रक्षा के विशिष्ट उद्देश्य के साथ प्रौद्योगिकी और धन के हस्तांतरण की सुविधा प्रदान करती है। 
(d) A और B दोनों 

उत्तर: A 

व्याख्या: 

  • 'वैश्विक पर्यावरण सुविधा (GEF) की स्थापना 1992 के रियो अर्थ सम्मलेन की पूर्व संध्या पर जैविक विविधता सम्मेलन (CBD) और जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) के लिये एक वित्तीय तंत्र के रूप में की गई थी। 
  • उपरोक्त दो सम्मेलनों के अलावा यह स्थायी कार्बनिक प्रदूषकों पर स्टॉकहोम सम्मेलन, मरुस्थलीकरण का मुकाबला करने के लिये संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन और मरकरी पर मिनामाता सम्मेलन हेतु एक वित्तीय तंत्र के रूप में भी कार्य करती है। 
  • यह कोई वैज्ञानिक शोध नहीं करती है। 
  • यह OECD की एजेंसी नहीं है। इसकी अपनी स्वतंत्र, संगठित संरचना है, जिसमें विधानसभा (जिसमें 184 देश शामिल हैं), परिषद् (प्रबंधन निकाय), सचिवालय, 18 एजेंसियाँ, मूल्यांकन कार्यालय और एक वैज्ञानिक और तकनीकी सलाहकार पैनल (STAP) शामिल हैं। 
  • अतः विकल्प A सही उत्तर है। 

स्रोत: डाउन टू अर्थ 

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