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जैव विविधता और पर्यावरण

वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में भारी गिरावट

  • 20 May 2020
  • 8 min read

प्रीलिम्स के लिये:

वैश्विक कार्बन उत्सर्जन

मेन्स के लिये:

COVID-19 महामारी और कार्बन उत्सर्जन, भारत द्वारा जलवायु परिवर्तन की दिशा में उठाए गए कदम

चर्चा में क्यों?

‘अंतर्राष्ट्रीय जलवायु और पर्यावरण अनुसंधान केंद्र’ संगठन (Center for International Climate and Environmental Research- CICERO) नार्वे द्वारा किये गए अध्ययन के अनुसार, द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से वर्ष 2020 मे वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में सबसे अधिक गिरावट दर्ज की गई है।

प्रमुख केंद्र:

  • CICERO द्वारा COVID-19 महामारी के कारण लगाए गए लॉकडाउन के ‘कार्बन उत्सर्जन’ पर प्रभाव का विश्लेषण किया गया है।
  • शोध के अनुसार, वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में वर्ष 2020 में 4.2-7.5% कमी होने का अनुमान है।
  • अगर कार्बन उत्सर्जन में होने वाले गिरावट का सापेक्ष रूप से अध्ययन किया जाए तो इस प्रकार की उत्सर्जन गिरावट द्वितीय विश्व युद्ध से पूर्व में हुई थी।

कार्बन उत्सर्जन में कमी के कारण: 

  • विश्व में अनेक देशों द्वारा लगाए गए लॉकडाउन के कारण वैश्विक परिवहन को काफी हद तक प्रतिबंधित कर दिया गया है। जिसके कारण वैश्विक ऊर्जा मांग में गिरावट  देखी गई है। यद्यपि घरेलू बिजली की मांग में वृद्धि हुई है परंतु वाणिज्यिक मांग में गिरावट आई है। 

वैश्विक ऊर्जा मांग में कमी:

  • वर्ष 2020 में तेल की कीमतों में औसतन 9% या इससे अधिक की गिरावट हुई है। कोयले की मांग में भी 8% तक की कमी हो सकती है, क्योंकि बिजली की मांग में लगभग 5% कमी देखी जा सकती है। बिजली और औद्योगिक कार्यों में गैस की मांग कम होने से वर्ष 2020 की पहली तिमाही की तुलना में आने वाली तिमाही में और अधिक गिरावट देखी जा सकती है।

उत्सर्जन का कमी का संचयी प्रभाव:

  • कार्बन उत्सर्जन में आई गिरावट का मतलब यह नहीं है कि जलवायु परिवर्तन की दर धीमी हो गई है या यह उत्सर्जन गिरावट वैश्विक प्रयासों का परिणाम है। यदि उत्सर्जन में 5% तक की भी गिरावट आती है तो इसका जलवायु परिवर्तन पर कोई विशेष प्रभाव नहीं होगा क्योंकि जलवायु परिवर्तन एक ‘संचयी समस्या’ (Cumulative Problem) है।
  • वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में 5% की गिरावट का वैश्विक तापन पर केवल 0.001°C तापमान कमी के बराबर प्रभाव रहता है।

वन्स-इन-ए-सेंचुरी क्राइसिस

(0nce-in-a-century crisis) रिपोर्ट:

  • वैश्विक ऊर्जा मांग पर महामारी के प्रभाव का पहले भी विश्लेषण किया गया है। 'अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी' ( International Energy Agency- IEA) ने 'वन्स-इन-ए-सेंचुरी क्राइसिस’ (once-in-a-century crisis) रिपोर्ट में CO2 उत्सर्जन पर महामारी के प्रभाव का विश्लेषण किया है।
  • रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2020 की पहली तिमाही में कार्बन-गहन ईंधन की मांग में बड़ी गिरावट हुई है। वर्ष 2019 की तुलना में वर्ष 2020 में कार्बन उत्सर्जन में 5% की कमी दर्ज की गई है।

अधिकतम कार्बन उत्सर्जन कमी वाले क्षेत्र: 

  • कार्बन उत्सर्जन में उन क्षेत्रों में सबसे अधिक गिरावट दर्ज की गई जिन क्षेत्रों में महामारी का प्रभाव सबसे अधिक रहा है। उदाहरणत: चीन और यूरोप में उत्सर्जन में 8% की गिरावट जबकि अमेरिका में 9% की गिरावट दर्ज की गई है।
  • पूर्ण लॉकडाउन वाले देशों में प्रति सप्ताह ऊर्जा की मांग में औसतन 25% की गिरावट हो रही है, जबकि आंशिक लॉकडाउन में प्रति सप्ताह लगभग 18% की गिरावट दर्ज की गई है।

भारत में कार्बन उत्सर्जन में कमी:

  • भारत में लॉकडाउन के परिणामस्वरूप ऊर्जा मांग में 30% से अधिक की कमी देखी गई तथा लॉकडाउन को आगे बढ़ाने पर प्रति सप्ताह के साथ ऊर्जा मांग में 0.6% की गिरावट हुई है।

वैश्विक ऊर्जा क्षेत्र तथा कार्बन उत्सर्जन: 

  • ‘अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी’ द्वारा जारी ‘वैश्विक ऊर्जा और कार्बन डाइऑक्साइड स्थिति रिपोर्ट’ (Global Energy & CO2 Status Report) के अनुसार:
    • संयुक्त राज्य अमेरिका 14% के योगदान के साथ विश्व में सबसे अधिक कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन के लिये ज़िम्मेदार देश है।
    • हाल ही में हुई ऊर्जा मांग में वृद्धि में लगभग 70% योगदान चीन, संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत का है।

OECD-Countries

भारत द्वारा उठाए गए कदम:

  • जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्ययोजना’ (NAPCC) को वर्ष 2008 में शुरू किया गया था। इसका उद्देश्य जनता के प्रतिनिधियों, सरकार की विभिन्न एजेंसियों, वैज्ञानिकों, उद्योग और समुदायों को जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न खतरे और इससे मुकाबला करने के उपायों के बारे में जागरूक करना है। इस कार्ययोजना में मुख्यतः 8 मिशन शामिल हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन की शुरुआत भारत और फ्राँस ने वर्ष 2015 को पेरिस जलवायु सम्‍मेलन के दौरान की थी। ISA के प्रमुख उद्देश्यों में वैश्विक स्तर पर 1000 गीगावाट से अधिक सौर ऊर्जा उत्पादन क्षमता प्राप्त करना और 2030 तक सौर ऊर्जा में निवेश के लिये लगभग 1000 बिलियन डॉलर की राशि को जुटाना शामिल है।
  • पेरिस समझौते के अंतर्गत ‘राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान’ (Nationally Determined Contribution- NDC) की संकल्पना को प्रस्तावित किया गया था जिसमें प्रत्येक राष्ट्र से यह अपेक्षा की गई है कि वह ऐच्छिक तौर पर अपने लिये उत्सर्जन के लक्ष्यों का निर्धारण करे।

आगे की राह:

  • वर्तमान COVID-19 महामारी के कारण होने वाली कार्बन उत्सर्जन में कमी अल्पकालिक है। दीर्घकालिक रूप से संचयी जलवायु परिवर्तन पर इसका बहुत कम प्रभाव होगा, अत: दीर्घकालिक रणनीतियों के निर्माण की आवश्यकता है।
  • महामारी से आवश्यक सीख लेते हुए वैश्विक ऊर्जा संसाधनों के विकल्पों पर व्यापक अंतर्राष्ट्रीय सहयोग स्थापित किया जाना चाहिये। 
  • जलवायु परिवर्तन के प्रभाव तथा समाधान पर चर्चा करते हुए विश्व में विभिन्न देशों द्वारा उठाए गए कदमों की समीक्षा कीजिये।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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