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शासन व्यवस्था

सामाजिक अंकेक्षण सलाहकार निकाय

  • 23 Jan 2024
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये:

सामाजिक अंकेक्षण सलाहकार निकाय, भारत में सामाजिक अंकेक्षण से संबद्ध फ्रेमवर्क, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम, ग्राम सभा, सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005, सामाजिक अंकेक्षण के लिये राष्ट्रीय संसाधन कक्ष।

मेन्स के लिये:

सामाजिक अंकेक्षण की मुख्य विशेषताएँ, भारत में सामाजिक अंकेक्षण से संबंधित चुनौतियाँ।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में सामाजिक अंकेक्षण सलाहकार निकाय (Social Audit Advisory Body - SAAB) की उद्घाटन बैठक नई दिल्ली के डॉ. अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर में हुई।

  • इस अग्रणी सलाहकार निकाय का उद्देश्य सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय (Ministry of Social Justice & Empowerment -MoSJE) को उसकी विविध योजनाओं में सामाजिक अंकेक्षण को संस्थागत बनाने में मार्गदर्शन करना है।

सामाजिक अंकेक्षण क्या है? 

  • परिचय: 
    • सामाजिक अंकेक्षण एक संगठन के सामाजिक और नैतिक प्रदर्शन को मापने, समझने, प्रेषित करने तथा अंततः सुधारने का एक तरीका है।
    • यह दक्षता और प्रभावशीलता, लक्ष्य तथा वास्तविकता के मध्य उत्पन्न अंतराल को कम करने में सहायक है। 
    • यह आकलन करता है कि उनकी गतिविधियाँ और नीतियाँ उनके घोषित मूल्यों तथा लक्ष्यों, विशेष रूप से समुदायों, कर्मचारियों एवं पर्यावरण पर उनके प्रभाव के साथ कितनी सुसंगत हैं।
      • हॉवर्ड बोवेन ने वर्ष 1953 में लिखी गई अपनी पुस्तक सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटीज ऑफ द बिजनेसमैन में "सोशल ऑडिट" शब्द का प्रस्ताव रखा।
  • सामाजिक अंकेक्षण की मुख्य विशेषताएँ: 
    • तथ्यों की खोज, ग़लतियों की खोज नहीं।
    • विभिन्न स्तरों के हितधारकों के बीच बातचीत के लिये स्थान और मंच सुनिश्चित करना।
    • समय पर शिकायत निवारण।
    • लोकतांत्रिक प्रक्रिया और संस्थाओं को मज़बूत करना।
    • कार्यक्रमों के बेहतर कार्यान्वयन के लिये लोगों का दबाव बनाना।
  • सामाजिक अंकेक्षण के प्रकार:
    • संगठनात्मक: किसी कंपनी के समग्र सामाजिक उत्तरदायित्व प्रयासों का मूल्यांकन करना।
    •  विशिष्ट कार्यक्रम: किसी विशेष कार्यक्रम के प्रभाव और प्रभावशीलता पर ध्यान केंद्रित करना।
    • वित्तीय: वित्तीय निर्णयों के सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभावों की समीक्षा करना।
    • हितधारक प्रेरित: सामाजिक अंकेक्षण प्रक्रिया में विभिन्न हितधारकों को शामिल करना।

नोट: भारत में टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी लिमिटेड (TISCO), जमशेदपुर, वर्ष 1979 में अपने सामाजिक प्रदर्शन को मापने के लिये सामाजिक ऑडिट करने वाली पहली कंपनी थी। मज़दूर किसान शक्ति संगठन (MKSS) ने 1990 के दशक की शुरुआत में सार्वजनिक कार्यों में भ्रष्टाचार से लड़ते हुए सामाजिक लेखा परीक्षा की अवधारणा शुरू की।

  • भारत में सामाजिक लेखापरीक्षा से संबद्ध रूपरेखा:
    • महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) 2005: अधिनियम की धारा 17 में कहा गया है कि ग्राम सभा कार्य निष्पादन की निगरानी के लिये ज़िम्मेदार है।
      • प्रत्येक राज्य में स्वतंत्र सामाजिक लेखापरीक्षा इकाइयों को कार्यक्रम कार्यान्वयन के समुदाय-संचालित सत्यापन पर ज़ोर देते हुए कार्यान्वयन अधिकारियों से स्वतंत्र रूप से काम करना अनिवार्य है।
    • मेघालय सामुदायिक भागीदारी और लोक सेवा सामाजिक लेखापरीक्षा अधिनियम, 2017: यह राज्य-स्तरीय कानून भारत में अपनी तरह का पहला कानून है, जो सामाजिक लेखापरीक्षा को एक अनिवार्य अभ्यास बनाता है।
    • BOCW अधिनियम के कार्यान्वयन पर सामाजिक लेखापरीक्षा के लिये रूपरेखा: श्रम और रोज़गार मंत्रालय ने भवन तथा अन्य निर्माण श्रमिक (रोज़गार और सेवा की शर्तों का विनियमन) अधिनियम, 2013 के तहत सामाजिक लेखा परीक्षा आयोजित करने हेतु एक रूपरेखा जारी की है।
    • सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005: इसने भारत में सामाजिक लेखा परीक्षा प्रणाली का समर्थन करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह पारदर्शिता और सूचना तक पहुँच को बढ़ाता है, जो प्रासंगिक दस्तावेज़ों तथा डेटा तक पहुँच प्रदान करके सामाजिक ऑडिट की प्रभावशीलता को रेखांकित करता है।
    • सामाजिक लेखापरीक्षा के लिये राष्ट्रीय संसाधन कक्ष (NRCSA): सामाजिक न्याय और अधिकारिता विभाग ने NRCSA की स्थापना की है। यह इकाई राज्य स्तर पर समर्पित सामाजिक लेखापरीक्षा इकाइयों के माध्यम से सामाजिक लेखापरीक्षा सुनिश्चित करती है।
  • भारत में सामाजिक लेखापरीक्षा से संबंधित चुनौतियाँ:
    • मानकीकरण का अभाव: सामाजिक लेखापरीक्षा के लिये मानकीकृत प्रक्रियाओं की अनुपस्थिति के कारण कार्यप्रणाली और रिपोर्टिंग में भिन्नताएँ होती हैं। एकरूपता की कमी के कारण विभिन्न परियोजनाओं तथा क्षेत्रों के परिणामों की तुलना करना मुश्किल हो जाता है।
    • जागरूकता तथा क्षमता का अभाव: स्थानीय समुदायों सहित हितधारकों के बीच सामाजिक अंकेक्षण प्रक्रियाओं की सीमित जागरूकता एवं समझ इसके प्रभावी कार्यान्वयन में बाधा बन सकती है।
      • सामाजिक अंकेक्षण प्रक्रिया में हाशियाई अथवा कमज़ोर समूहों की सीमित भागीदारी के कारण अपूर्ण अथवा पक्षपाती मूल्यांकन होता है।
    • राजनीतिक हस्तक्षेप: सामाजिक अंकेक्षण को राजनीतिक हस्तक्षेप का सामना करना पड़ता है जिससे अंकेक्षण प्रक्रिया की स्वतंत्रता एवं निष्पक्षता प्रभावित होती है। स्थानीय अधिकारियों अथवा राजनीतिक हस्तियों का दबाव अंकेक्षण निष्कर्षों की अखंडता को प्राभावित करता है।
    • संसाधन का अभाव: सामाजिक अंकेक्षण के लिये वित्तीय तथा मानव दोनों तरह के संसाधनों की आवश्यकता होती है। कई स्थानीय निकायों के पास व्यापक सामाजिक अंकेक्षण करने के लिये आवश्यक धन व विशेषज्ञता का अभाव है, जिससे उनकी प्रभावशीलता सीमित हो जाती है।
    • सीमित क्षमता तथा प्रशिक्षण: सामाजिक अंकेक्षण इकाइयाँ, जिनका उद्देश्य कदाचार से संबंधित सभी मामलों का पता लगाना है, निधि एवं प्रशिक्षित पेशेवरों की कमी का सामना करती हैं।

आगे की राह

  • पारदर्शिता के लिये ब्लॉकचेन: सामाजिक अंकेक्षण में पारदर्शिता तथा अखंडता बढ़ाने के लिये ब्लॉकचेन प्रौद्योगिकी का उपयोग करना। ब्लॉकचेन अंकेक्षण संबंधी जानकारी संग्रहीत करने, डेटा की प्रामाणिकता सुनिश्चित करने के लिये एक सुरक्षित एवं हस्तक्षेप-रोधी मंच प्रदान कर सकता है।
  • पहुँच और प्रतिनिधित्व: अंकेक्षण प्रक्रियाओं का सरलीकरण करना तथा जानकारी की स्थानीय भाषाओं एवं प्रारूपों में उपलब्धता सुनिश्चित करना।
    • लक्षित प्रोत्साहनों के माध्यम से हाशियाई समूहों, महिलाओं एवं युवाओं की विविध भागीदारी सुनिश्चित करना।
  • मानकीकरण तथा व्हिसलब्लोअर संरक्षण: विभिन्न कार्यक्रमों तथा राज्यों में सामाजिक अंकेक्षण करने के लिये स्पष्ट एवं समान दिशानिर्देश विकसित करना।
    • अनियमितताओं की रिपोर्ट करने वाले व्यक्तियों की सुरक्षा के लिये सुदृढ़ विधिक सुरक्षा उपाय कार्यान्वित करना।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. न्यायपालिका सहित सार्वजनिक सेवा के हर क्षेत्र में निष्पादन, जवाबदेही और नैतिक आचरण सुनिश्चित करने के लिये एक स्वतंत्र तथा सशक्त सामाजिक अंकेक्षण तंत्र परम आवश्यक है। सविस्तार समझाइये। (2021)

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