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भारतीय राजनीति

धारा 376E और शक्ति मिल मामला

  • 24 Jun 2019
  • 4 min read

संदर्भ

हाल ही में बॉम्बे उच्च न्यायालय ने एक फैसला दिया जिसमें भारतीय दंड संहिता की धारा 376 E को सही ठहराया है। धारा 376E के आधार पर शक्ति मिल गैंगरेप के तीन दोषियों को मृत्यु दंड दिया गया है।

क्या है 376 E?

  • वर्ष 2012 के दिल्ली गैंगरेप के बाद जस्टिस वर्मा समिति का गठन किया गया था, जिससे ऐसे मामलों में कम समय में पीड़ितों को उचित न्याय दिलाया जा सके। समिति की सिफारिशों के आधार पर आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2013 लाया गया। इस कानून में बलात्कार की परिभाषा को व्यापक रूप दिया गया तथा अन्य धाराओं के साथ-साथ धारा 376 E को भी जोड़ा गया। ऐसे अपराधी जो धारा 376, 376A तथा 376D के अंतर्गत बार-बार अपराध (Repeat Offender) करते हुए पाए जाते हैं, उनके लिये धारा 376E के तहत मृत्यु दंड का प्रावधान किया गया है। धारा 376A में पीड़ित के हत्या के कारण तथा 376D में गैंगरेप के दोषी की सज़ा (20 साल से लेकर उम्रकैद तक की सज़ा) का प्रावधान है।

शक्ति मिल गैंग रेप केस

  • शक्ति मिल गैंग रेप में ऐसे तीन अभियुक्त शामिल थे जो इससे पहले भी बलात्कार के अन्य मामले में शामिल रहे थे। इस प्रकार इन अभियुक्तों को रिपीट ओफेंडर माना गया तथा धारा 376 E के अंतर्गत न्यायालय नें इन अभियुक्तों को फाँसी की सज़ा का निर्णय दिया।

निर्णय के खिलाफ दोषियों की अपील का आधार

  • इस निर्णय के विरुद्ध बॉम्बे उच्च न्यायालय में अपील की गई। अपील में कहा गया कि अभियुक्तों (Accused) को दिया गया मृत्यु दंड एक असंगत दंड है, जो उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। अनुच्छेद 21, जिसके अनुसार किसी भी व्यक्ति को उसके जीने के अधिकार अथवा व्यक्तिगत स्वतंत्रता से सिर्फ विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के तहत ही वंचित किया जा सकता है तथा अनुच्छेद 14 जिसमें विधि के समक्ष समानता का प्रावधान किया गया है, का यह निर्णय उल्लंघन करता है। इसके साथ ही अपील में अमेरिका तथा कनाडा के कानून के साथ-साथ उच्चतम न्यायालय के पुराने निर्णयों का भी हवाला दिया गया।
  • अपील में यह भी कहा गया कि भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code-IPC) के अंतर्गत धारा 302 (मृत्यु के लिये दंड) में हत्या के अपराध के लिये न्यूनतम दंड आजीवन कारावास है तथा अधिकतम दंड के लिये मृत्यु दंड का प्रावधान है। लेकिन धारा 376E न्यूनतम दंड के रूप में आजीवन कारावास का प्रावधान करता है, जिसमें किसी भी प्रकार के परिहार (Remission) अथवा क्षमा की संभावना भी नहीं है तथा अधिकतम दंड के रूप में मृत्यु दंड का प्रावधान है। ऐसी स्थिति में भारत में ऐसा कानून है जिसमें एक से अधिक बार बलात्कार के लिये जो कि मृत्यु का कारण भी नहीं है, के लिये मृत्यु के अपराध के दंड से भी अधिक तीव्र दंड का प्रावधान करता है।

न्यायालय का निर्णय

एमिकस क्युरी ने धारा 376E को ऐसे अपराधों (बलात्कार, गैंगरेप) को कम करने के लिये एक सही प्रयास माना किंतु शक्ति मिल केस में इस धारा के उपयोग की तर्कसंगतता पर प्रश्न चिह्न खड़ा किया। बॉम्बे उच्च न्यायालय के जस्टिस बी धर्माधिकारी और रेवती मोहिते-डेरे ने IPC की धारा 376E को संविधान के तर्कसंगत माना तथा इस केस में भी इसकी उपयोगिता को सही ठहराया।

स्रोत- द हिन्दू

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