मुख्य परीक्षा
एसिड अटैक पीड़ितों को राहत मिलने में हो रही देरी पर सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय
- 11 Dec 2025
- 62 min read
चर्चा में क्यों?
शाहीन मलिक बनाम भारत संघ मामले (2025) में, सर्वोच्च न्यायालय ने यह जाँचने का निर्णय लिया कि एसिड अटैक के उत्तरजीवियों के लिये दिये गए मुख्य निर्देश (लक्ष्मी बनाम भारत संघ मामला 2015) अधिकांशतः लागू क्यों नहीं हो पाए हैं, जिससे उत्तरजीवियों को वित्तीय सहायता और आवश्यक स्वास्थ्य सेवा दोनों के लिये संघर्ष करना पड़ रहा है।
सारांश
- शाहीन मलिक मामला, 2025, वर्ष 2015 के लक्ष्मी निर्णय के लगातार अनुपालन न होने की स्थिति को उजागर करता है, जिससे एसिड अटैक उत्तरजीवी 3 लाख रुपये के मुआवज़े और निःशुल्क गंभीर स्वास्थ्य देखभाल के लिये संघर्षरत हैं।
- प्रमुख अनुपालन न किये गए निर्देशों में एसिड की खुली बिक्री पर प्रतिबंध, सभी अस्पतालों में अनिवार्य निःशुल्क उपचार और एसिड-संबंधी अपराधों को संज्ञेय व गैर-ज़मानती बनाना शामिल हैं।
- पीड़ितों को कानूनी विलंब, अपर्याप्त मुआवज़ा, चिकित्सीय देखभाल से वंचना, मनोवैज्ञानिक आघात और सामाजिक कलंक का सामना करते हैं, जो पुनर्वास में बड़ी बाधाएँ उत्पन्न करते हैं।
- एक प्रभावी पारिस्थितिकी तंत्र के लिये कठोर कानून प्रवर्तन, जलने और पुनर्वास केंद्रों का राष्ट्रीय नेटवर्क, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक-आर्थिक समर्थन तथा एसिड बिक्री ट्रैकिंग और निर्माता पुनर्वास उपकर जैसे निवारक उपाय आवश्यक हैं।
लक्ष्मी बनाम भारत संघ मामला 2015 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी प्रमुख निर्देश क्या थे?
- पीड़ित मुआवजा: एसिड अटैक के उत्तरजीवी न्यूनतम 3 लाख रुपये के मुआवज़े के हकदार हैं, जिसमें 15 दिनों के भीतर 1 लाख रुपये तत्काल चिकित्सा उपचार के लिये और शेष 2 लाख रुपये 2 माह के भीतर पुनर्निर्माण सर्जरी सहित अनुवर्ती देखभाल और पुनर्वास के लिये देय हैं।
- सर्वोच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) को एसिड अटैक के पीड़ितों को दिये गए मुआवज़े पर राज्य विधिक सेवा प्राधिकरणों से आँकड़े एकत्र करने का निर्देश भी दिया।
- एसिड बिक्री का विनियमन: एसिड की खुली बिक्री पर प्रतिबंध है, सिवाय इसके कि विक्रेता खरीदार का विवरण सहित लॉग बनाए रखें, खरीदार सरकारी फोटो ID प्रदान करें और खरीद का उद्देश्य निर्दिष्ट करें।
- 18 वर्ष से कम आयु के व्यक्तियों को बिक्री निषिद्ध है और उल्लंघन पर 50,000 रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।
- कार्यान्वयन एवं निगरानी: मुख्य सचिवों और प्रशासकों को यह सुनिश्चित करना होगा कि सभी निर्देशों का पालन हो तथा एसिड बिक्री विनियमों और मुआवज़ा योजनाओं से संबंधित नियमों को प्रचारित किया जाए।
- निःशुल्क उपचार और पुनर्वास: निजी अस्पतालों को एसिड अटैक पीड़ितों को निःशुल्क उपचार प्रदान करना अनिवार्य है, जिसमें दवाइयाँ, बेड, भोजन और पुनर्वास देखभाल शामिल है। उपचार देने से इंकार करने पर वे ज़िम्मेदार ठहराए जा सकते हैं।
- कानूनी प्रवर्तन: वर्ष 1919 के विष अधिनियम के तहत अपराधों को संज्ञेय और गैर-ज़मानती बनाया जाएगा। एसिड की बिक्री और भंडारण से संबंधित उल्लंघनों के खिलाफ कार्रवाई करने की ज़िम्मेदारी SDM पर होगी।
भारत में एसिड अटैक मामलों से संबंधित न्यायिक घोषणाएँ
- परिवर्तन केंद्र बनाम भारत संघ, 2015: सर्वोच्च न्यायालय ने दो एसिड अटैक पीड़ितों को 13 लाख रुपये का मुआवज़ा दिया और बिहार सरकार को उनका उपचार और पुनर्वास सुनिश्चित करने का आदेश भी दिया। इसके अलावा सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को एसिड अटैक पीड़ितों को दिव्यांगता की सूची में शामिल करने का निर्देश दिया।
- बेंगई मंडल उर्फ़ बेगई मंडल बनाम बिहार राज्य, 2010: पटना उच्च न्यायालय ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा, जिसमें अभियुक्त को एसिड फेंकने के जुर्म में दोषी ठहराकर आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई थी, जिससे पीड़िता की मृत्यु हुई थी।
एसिड अटैक पीड़ितों को सहायता और न्याय प्राप्त करने में मुख्य बाधाएँ क्या हैं:
- कानूनी और न्यायिक बाधाएँ: सर्वोच्च न्यायालय के 3 लाख रुपये मुआवज़े के आदेश के बावजूद, पीड़ितों को अक्सर केवल 1 लाख रुपये ही मिलते हैं और भुगतान में देरी या अव्यवस्था रहती है, खासकर उत्तर प्रदेश तथा महाराष्ट्र में, जबकि एसिड बिक्री पर प्रतिबंध भी ठीक से लागू नहीं होता।
- वे लंबी न्यायिक प्रक्रियाओं, कम सज़ा वाले फैसलों और अदालत में असंवेदनशील सवालों के कारण बार-बार मानसिक पीड़ा जैसी समस्याओं का भी सामना करते हैं।
- सिस्टम और संस्थागत असफलताएँ: भारत में एसिड हमले के पीड़ितों के लिये एक केंद्रीकृत डेटाबेस के अभाव के कारण नीतियों की योजना बनाना कठिन हो जाता है, वहीं आश्रय गृह, हाफवे होम और समर्पित संकट केंद्र भी व्यापक रूप से उपलब्ध नहीं हैं।
- चिकित्सीय और शारीरिक आघात: सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों के बावजूद, पीड़ितों को अक्सर महॅंगे चिकित्सा खर्चों का सामना करना पड़ता है, क्योंकि उन्हें मुफ्त इलाज नहीं मिल पाता और ग्रामीण क्षेत्रों में जलने के विशेषज्ञ और प्लास्टिक सर्जनों की सीमित उपलब्धता इस कठिनाई को और बढ़ा देती है।
- मानसिक और सामाजिक कलंक: पीड़ित अक्सर अवसाद, चिंता तथा आत्मघाती विचार जैसी गंभीर मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करते हैं। इसके अलावा उन्हें सामाजिक बहिष्कार, अलगाव एवं कई मामलों में परिवार द्वारा परित्याग का भी सामना करना पड़ता है, जिससे वे बिना किसी समर्थन के रह जाते हैं।
एसिड हमले के पीड़ितों हेतु एक मज़बूत पुनर्वास व्यवस्था बनाने के लिये किन हस्तक्षेपों की आवश्यकता है?
- कानूनी और मुआवज़ा ढाँचा: एसिड हमले के मामलों के लिये फास्ट-ट्रैक कोर्ट के साथ स्वचालित, समयबद्ध मुआवज़ा (मुद्रास्फीति के अनुसार समायोजित) लागू किया जाना चाहिये, जिसमें इन-कैमरा कार्यवाही और गवाह सुरक्षा की व्यवस्था भी हो।
- चिकित्सा पुनर्वास: सभी अस्पतालों में मुफ्त चिकित्सा देखभाल के लिये सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों का शीघ्र पालन सुनिश्चित करना, साथ ही विशेष बर्न सेंटरों का राष्ट्रीय नेटवर्क स्थापित करना तथा पीड़ितों के पुनर्वास के लिये आयुष्मान भारत के तहत जीवनभर कवरेज प्रदान करना।
- रोकथाम उपाय: औद्योगिक अम्ल की बिक्री पर सख्त नियंत्रण लागू करना—जिसमें डेकोय ऑपरेशन्स, GST-आधारित ट्रैकिंग जैसी व्यवस्थाएँ शामिल हों—साथ ही निर्माताओं और विक्रेताओं पर पुनर्वास उपकर (cess) अनिवार्य करना, ताकि पीड़ितों के समर्थन सेवाओं के लिये वित्त उपलब्ध कराया जा सके।
- मनोवैज्ञानिक सहायता: अलगाव को कम करने और अनुकूल वातावरण विकसित करने के लिये पीड़ितों के नेतृत्व वाले समूहों को सहायता और वित्त पोषण प्रदान करना तथा मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों को अम्ल-अटैक के विशिष्ट आघात से निपटने के लिये विशेष प्रशिक्षण देना।
- सामाजिक-आर्थिक पुनर्वास: ब्याज मुक्त ऋण, छोटे व्यवसायों के लिये प्रारंभिक वित्तपोषण और PMEGP जैसी योजनाओं तक प्राथमिकता के आधार पर पहुँच जैसी वित्तीय सहायता द्वारा समर्थित, अनुकूलित व्यावसायिक प्रशिक्षण, रोज़गार कोटा, छात्रवृत्ति और सुलभ शिक्षा के माध्यम से आर्थिक सशक्तीकरण सुनिश्चित करना।
निष्कर्ष:
एसिड अटैक पीड़ितों की दुर्दशा न्यायालय के निर्देशों और वास्तविक स्थिति के बीच मौजूद गंभीर कार्यान्वयन अंतर को उजागर करती है। न्याय, सम्मान और प्रभावी रोकथाम सुनिश्चित करने के लिये पीड़ित-केंद्रित, बहुआयामी पुनर्वास प्रणाली का निर्माण अत्यावश्यक है।
|
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. लक्ष्मी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामले में सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश एसिड अटैक पीड़ितों के लिये एक मज़बूत ढाँचा प्रदान करते हैं। उनके प्रभावी क्रियान्वयन में बाधा डालने वाली प्रणालीगत और संस्थागत विफलताओं की गंभीर समीक्षा कीजिये। |
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
1. एसिड अटैक पीड़ितों के लिये भारत में कौन-सी क्षतिपूर्ति निर्धारित है?
सर्वोच्च न्यायालय ने 3 लाख रुपये की क्षतिपूर्ति निर्धारित की है, जिसमें से 1 लाख रुपये तत्काल उपचार के लिये 15 दिनों के भीतर और 2 लाख रुपये पुनर्वास के लिये दो महीने के भीतर दिये जाने हैं।
2. क्या निजी अस्पतालों को एसिड अटैक पीड़ितों का मुफ्त इलाज करना अनिवार्य है?
हाँ, अस्पतालों को मुफ्त इलाज़, दवाइयाँ, बेड, भोजन और पुनर्वास संबंधी देखभाल प्रदान करनी होगी, इनकार करने पर कानूनी कार्रवाई हो सकती है।
3. एसिड बिक्री पर सर्वोच्च न्यायलय द्वारा जारी मुख्य नियम क्या हैं?
सर्वोच्च न्यायलय ने एसिड की काउंटर बिक्री पर रोक लगाई, खरीदार की फोटो आईडी सहित रिकॉर्ड रखने का निर्देश दिया, 18 वर्ष से कम आयु के व्यक्तियों को बिक्री से प्रतिबंधित किया तथा नियमों के उल्लंघन पर 50,000 रुपये तक का जुर्माना लगाया।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न
मेन्स:
प्रश्न. हम देश में महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा के मामलों में वृद्धि देख रहे हैं। इसके खिलाफ मौजूदा कानूनी प्रावधानों के बावजूद ऐसी घटनाओं की संख्या बढ़ रही है। इस खतरे से निपटने के लिये कुछ अभिनव उपाय सुझाइये। (2014)