मुख्य परीक्षा
फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट्स
- 14 Aug 2025
- 32 min read
चर्चा में क्यों?
दिल्ली में फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट्स (FTSCs), जो 2019 की FTSCs योजना के तहत बलात्कार और बाल यौन शोषण मामलों की त्वरित सुनवाई के लिये स्थापित किया गया था, ने जून 2025 तक केवल लगभग 43% मामलों का ही निपटारा किया है।
- यह महत्त्वपूर्ण है क्योंकि धीमी निपटान दर, समर्पित तंत्र होने के बावजूद, न्याय प्रणाली की इतनी गंभीर अपराधों को शीघ्रता से सुलझाने की क्षमता पर जनविश्वास को कमज़ोर करती है।
फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट्स योजना क्या है?
- योजना के बारे में: यह विधि एवं न्याय मंत्रालय के अंतर्गत एक केन्द्र प्रायोजित योजना है जिसका उद्देश्य निर्भया कोष के माध्यम से फास्ट ट्रैक कोर्ट की स्थापना करना है ।
- इस योजना के तहत, प्रत्येक FTSC को प्रतिवर्ष कम-से-कम 165 मामलों का निपटारा करने का कार्य सौंपा गया है।
- इस योजना को दो बार बढ़ाया गया है, जिसमें नवीनतम विस्तार 31 मार्च, 2026 तक वैध है, जिसका लक्ष्य 790 FTSCs स्थापित करना है।
- FTSC की आवश्यकता:
- मामला लंबित रहने की समस्या: बलात्कार और POCSO मामलों के बड़े लंबित मामलों को लेकर चिंतित सर्वोच्च न्यायालय ने जुलाई, 2019 में निर्देश दिया कि जिन ज़िलों में 100 से अधिक लंबित POCSO मामले हैं, वहाँ विशेष (स्पेशल कोर्ट) विशेष न्यायलय स्थापित की जाएँ।
- समय पर न्याय: POCSO अधिनियम, 2012 के अनुसार विशेष न्यायालयों को अपराध का संज्ञान लेने की तारीख से एक वर्ष के भीतर मुकदमे का निपटारा करना अनिवार्य है।
- निवारण: कठोर दंड अपराध को रोक सकता है, लेकिन इसकी प्रभावशीलता समयबद्ध सुनवाई और पीड़ितों को शीघ्र न्याय मिलने पर निर्भर करती है।
- प्रदर्शन: जून 2025 तक, 29 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में 725 फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट्स (जिनमें 392 विशेष POCSO अदालतें शामिल हैं) कार्यरत हैं, जिन्होंने केवल वर्ष 2024 में ही 96% निपटान दर हासिल की है।
फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट्स में क्या चुनौतियाँ हैं?
- अपर्याप्त फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट्स (FTSCs): 1,023 स्वीकृत फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट्स में से केवल लगभग 700 ही कार्यरत हैं और अनुमान के अनुसार लंबित मामलों को खत्म करने के लिये लगभग 1,000 और अदालतों की आवश्यकता है।
- गुणवत्ता संबंधी चिंताएँ: कुछ आलोचकों का कहना है कि फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट्स “राजनीतिक दिखावा” हैं, क्योंकि एक मामले को तेज़ी से निपटाने के लिये वही न्यायाधीश लगाए जाते हैं, जिससे अन्य मामलों में देरी हो जाती है।
- विशेषीकृत सहयोग का अभाव: कई फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट्स में पीड़ित-हितैषी सुविधाओं का अभाव है, जैसे—उत्तरजीवियों के लिये संवेदनशील गवाह बयान केंद्र और महिला अभियोजक या परामर्शदाता, जो उन्हें कानूनी प्रक्रिया के दौरान मार्गदर्शन प्रदान कर सकें।
फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट्स को किन उपायों से मज़बूत बनाया जा सकता है?
- न्यायिक सुधार: POCSO मामलों के लिये विशेष न्यायाधीशों की नियुक्ति, संवेदीकरण प्रशिक्षण प्रदान करना और महिला लोक अभियोजकों की उपलब्धता सुनिश्चित करना।
- पीड़ित सहायता सुविधाएँ: पीड़ितों के बयान दर्ज करने और बच्चों के अनुकूल सुनवाई बंद कमरे में आयोजित करने के लिये सभी ज़िलों में संवेदनशील गवाह बयान केंद्र (VWDC) स्थापित करना। FTSC योजना के अनुसार, पूर्व-परीक्षण और सुनवाई सहायता के लिये FTSC में बाल मनोवैज्ञानिकों की तैनाती कीजिये।
- न्यायालयों में प्रौद्योगिकी: ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग, LCD प्रोजेक्टर और ई-फाइलिंग तथा डिजिटल रिकॉर्ड के लिये बेहतर आईटी प्रणालियों के साथ न्यायालय कक्षों का उन्नयन करना।
- फोरेंसिक सुदृढ़ीकरण: लंबित मामलों को तेज़ी से निपटाने और त्वरित न्याय के लिये समय पर DNA रिपोर्ट प्रदान करने हेतु फोरेंसिक प्रयोगशालाओं का विस्तार और कर्मचारियों को प्रशिक्षित करना।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट्स (FTSCs) के समक्ष आने वाली प्रमुख चुनौतियों पर चर्चा कीजिए तथा उनकी दक्षता और पीड़ित संवेदनशीलता बढ़ाने के उपाय सुझाइए। |
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न
मेन्स:
प्रश्न. राष्ट्रीय बाल नीति के मुख्य प्रावधानों का परीक्षण कीजिये तथा इसके कार्यान्वयन की स्थिति पर प्रकाश डालिये। (वर्ष 2016)
प्रश्न. हमें देश में महिलाओं के प्रति यौन-उत्पीड़न के बढ़ते हुए दृष्टांत दिखाई दे रहे हैं। इस कुकृत्य के विरुद्ध विद्यमान विधिक उपबंधों के होते हुए भी, ऐसी घटनाओं की संख्या बढ़ रही है। इस संकट से निपटने के लिये कुछ नवाचारी उपाय सुझाइये। (2014)