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सामाजिक न्याय

पेशे के रूप में सेक्स वर्क की मान्यता

  • 26 May 2022
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

सर्वोच्च न्यायालय, अनुच्छेद 142, अनुच्छेद 21

मेन्स के लिये:

एक पेशे के रूप में सेक्स वर्क की मान्यता, सेक्स वर्कर के अधिकार, सरकारी नीतियांँ और हस्तक्षेप

चर्चा में क्यों?

हाल ही में एक महत्त्वपूर्ण आदेश में सर्वोच्च न्यायालय ने सेक्स वर्क को एक "पेशे" के रूप में मान्यता दी है और कहा कि इसके व्यवसायी कानून के तहत सम्मान और समान सुरक्षा के हकदार हैं।

  • न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी विशेष शक्तियों का इस्तेमाल किया। अनुच्छेद 142 सर्वोच्च न्यायालय को विवेकाधीन शक्ति प्रदान करता है, इसमें कहा गया है कि सर्वोच्च न्यायालय अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते हुए ऐसी डिक्री पारित कर सकता है या ऐसा आदेश दे सकता है जो उसके समक्ष लंबित किसी भी मामले या मामले में पूर्ण न्याय करने के लिये आवश्यक हो।
  • राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने वर्ष 2020 में सेक्स वर्कर को अनौपचारिक श्रमिक के रूप में मान्यता दी।

सर्वोच्च न्यायालय के फैसले की मुख्य विशेषताएंँ:

  • आपराधिक कानून:
    • सेक्स वर्कर कानून के समान संरक्षण के हकदार हैं और आपराधिक कानून सभी मामलों में 'आयु' और 'सहमति' के आधार पर समान रूप से लागू होना चाहिये।
      • जब यह स्पष्ट हो जाए कि सेक्स वर्कर वयस्क है और सहमति से भाग ले रहा है, तो पुलिस को हस्तक्षेप करने या कोई आपराधिक कार्रवाई करने से बचना चाहिये। 
      • अनुच्छेद 21 घोषित करता है कि कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार, किसी भी व्यक्ति को उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जाएगा। यह अधिकार नागरिकों और गैर-नागरिकों दोनों को प्राप्त है। 
    • जब भी किसी वेश्यालय पर छापा मारा जाता है तो सेक्स वर्कर्स को "गिरफ्तार या दंडित या परेशान या पीड़ित" नहीं किया जाना चाहिये, "चूंँकि स्वैच्छिक सेक्स वर्क अवैध नहीं है, जबकि वेश्यालय चलाना गैर-कानूनी है"।
  • एक यौनकर्मी के बच्चे के अधिकार: 
    • एक यौनकर्मी के बच्चे को सिर्फ इस आधार पर माँ से अलग नहीं किया जाना चाहिये कि वह देह व्यापार में संलिप्त है।
    • मानव शालीनता और गरिमा की बुनियादी सुरक्षा यौनकर्मियों और उनके बच्चों को भी प्राप्त  है।
    • इसके अलावा यदि कोई नाबालिग वेश्यालय में या यौनकर्मियों के साथ रहता पाया जाता है, तो यह नहीं माना जाना चाहिये कि बच्चे की तस्करी की गई।
    • यदि यौनकर्मी का दावा है कि वह उसका बेटा/बेटी है तो यह निर्धारित करने के लिये परीक्षण किया जा सकता है कि क्या दावा सही है और यदि ऐसा है, तो नाबालिग को ज़बरन अलग नहीं किया जाना चाहिये।
  • स्वास्थ्य देखभाल: 
    • यौन उत्पीड़न की शिकार यौनकर्मियों को तत्काल चिकित्सा-कानूनी देखभाल सहित हर प्रकार की सुविधा प्रदान की जानी चाहिये।
  • मीडिया की भूमिका: 
    • मीडिया को इस बात का अत्यधिक ध्यान रखना चाहिये कि गिरफ्तारी, छापे और बचाव कार्यों के दौरान यौनकर्मियों की पहचान प्रकट न हो, चाहे वह पीड़ित हों या आरोपी और ऐसी कोई भी तस्वीर प्रकाशित या प्रसारित न करें जिससे उसकी पहचान का खुलासा हो।

संबंधित प्रावधान/सर्वोच्च न्यायालय के विचार:

  • अनैतिक व्यापार (रोकथाम) अधिनियम: 
    • भारत में यौन कार्य को नियंत्रित करने वाला कानून अनैतिक व्यापार (रोकथाम) अधिनियम है।  
      • महिलाओं और बच्चों के अनैतिक व्यापार का दमन अधिनियम वर्ष 1956 में अधिनियमित किया गया था।  
    • बाद में कानून में संशोधन किये गए और अधिनियम का नाम बदलकर अनैतिक व्यापार (रोकथाम) अधिनियम कर दिया गया।
    • कानून वेश्यालय चलाने, सार्वजनिक स्थान पर याचना करने, सेक्स वर्क की कमाई से जीने और एक सेक्स वर्कर के साथ रहने या आदतन रहने जैसे कृत्यों को दंडित करता है।
  • न्यायमूर्ति वर्मा आयोग (2012-13): 
    • न्यायमूर्ति वर्मा आयोग ने यह भी स्वीकार किया था कि व्यावसायिक यौन शोषण के लिये तस्करी की जाने वाली महिलाओं और वयस्क, सहमति देने वाली महिलाओं के बीच अंतर है जो अपनी इच्छा से यौन कार्य में हैं।
  • बुद्धदेव कर्मस्कर बनाम पश्चिम बंगाल राज्य (2011) मामला:
    • उच्चतम न्यायालय ने बुद्धदेव कर्मस्कर बनाम पश्चिम बंगाल राज्य (2011) मामले में कहा कि यौनकर्मियों को सम्मान का अधिकार है।

यौनकर्मियों के समक्ष चुनौतियांँ: 

  • भेदभाव और दोषारोपण: 
    • यौनकर्मियों के अधिकार अस्तित्वहीन हैं और ऐसा काम करने वालों को उनकी आपराधिक स्थिति के कारण भेदभाव का सामना करना पड़ता है।  
    • इन लोगों को हेय दृष्टि से देखा जाता है तथा समाज में इनका कोई स्थान नहीं होता है और अधिकांशतः  ज़मींदारों एवं यहांँ तक कि कानून द्वारा भी इनके साथ कठोर व्यवहार किया जाता है। 
    • दूसरों के समान मानव, स्वास्थ्य और श्रम अधिकार दिये जाने की मांग के लिये उनकी लड़ाई जारी है क्योंकि उन्हें अन्य श्रमिकों के समान श्रेणी में नहीं माना जाता है।
  • दुर्व्यवहार और शोषण:
    • कई बार यौनकर्मियों को कई तरह की गालियों का सामना करना पड़ता है जो शारीरिक से लेकर मानसिक हमलों तक होती हैं।
    • उन्हें ग्राहकों, उनके अपने परिवार के सदस्यों, समुदाय और यहांँ तक कि उन लोगों से भी उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है जिन्हें कानून का पालन करना चाहिये। 

आगे की राह 

  • सेक्स वर्क को पेशे के रूप में मान्यता देने और इसे नैतिक स्वरूप प्रदान करने का समय आ गया है।
    • सेक्स वर्क के अंतर्गत वयस्क पुरुषों, महिलाओं और ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को यौन सेवाएँ  प्रदान कर आजीविका चलाने; गरिमापूर्ण जीवन व्यतीत करने एवं हिंसा, शोषण, सामाजिक कलंक व भेदभाव से मुक्ति का अधिकार प्रदान करने की आवश्यकता है।
  • अब समय आ गया है कि हम श्रम के दृष्टिकोण से सेक्स वर्क पर पुनर्विचार करें, जहाँ हम उनके काम को पहचान प्रदान कर उन्हें बुनियादी श्रम अधिकारों की गारंटी भी उपलब्ध कराएँ।
  • संसद को मौजूदा कानून पर फिर से विचार करना चाहिये और 'पीड़ित-बचाव-पुनर्वास' की प्रक्रिया में व्याप्त समस्याओं को दूर करने का प्रयास करना चाहिये।
    • संकट के इस समय में विशेष रूप से यह और भी महत्त्वपूर्ण है।

स्रोत: द हिंदू

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