भारतीय राजव्यवस्था
अनुच्छेद 142 के तहत सर्वोच्च न्यायालय की शक्तियाँ
- 19 Mar 2020
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प्रीलिम्स के लिये:अनुच्छेद 142, 212, दल-बदल विरोधी कानून, मेन्स के लिये:अनुच्छेद 142 के तहत सर्वोच्च न्यायालय की शक्तियों से संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 142 का उपयोग करते हुए मणिपुर के एक मंत्री को राज्य मंत्रिमंडल से हटा दिया।
पृष्ठभूमि:
- वर्ष 2017 में उक्त मंत्री चुनाव जीतने के बाद दूसरे दल में शामिल हो गए थे।
- 8 सितंबर, 2017 को इस मामले की सुनवाई के दौरान मणिपुर उच्च न्यायालय के अनुसार, उच्च न्यायालय किसी मंत्री के अयोग्य ठहराए जाने या सुप्रीम कोर्ट के समक्ष लंबित याचिका की स्थिति में निर्णय लेने के लिये विधानसभा अध्यक्ष को निर्देश नहीं दे सकता।
- मणिपुर के मंत्री के खिलाफ अयोग्य ठहराए जाने वाली याचिकाएँ वर्ष 2017 के बाद से विधानसभा अध्यक्ष के समक्ष लंबित थीं।
- सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार राज्य मंत्रिमंडल से उन्हें अगले आदेश तक विधान सभा में प्रवेश करने से रोक दिया गया है।
- इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 142 का उपयोग किया है।
- 21 जनवरी को, न्यायमूर्ति नरीमन की अध्यक्षता वाली सर्वोच्च न्यायालय की तीन न्यायाधीश की पीठ ने अध्यक्ष से अयोग्यता वाली याचिकाओं पर चार सप्ताह के भीतर फैसला लेने को कहा है।
संविधान का अनुच्छेद 142:
- जब तक किसी अन्य कानून को लागू नहीं किया जाता तब तक सर्वोच्च न्यायालय का आदेश सर्वोपरि होगा।
- अपने न्यायिक निर्णय देते समय न्यायालय ऐसे निर्णय दे सकता है जो इसके समक्ष लंबित पड़े किसी भी मामले को पूर्ण करने के लिये आवश्यक हों और इसके द्वारा दिये गए आदेश संपूर्ण भारत संघ में तब तक लागू होंगे जब तक इससे संबंधित किसी अन्य प्रावधान को लागू नहीं कर दिया जाता है।
- संसद द्वारा बनाए गए कानून के प्रावधानों के तहत सर्वोच्च न्यायालय को संपूर्ण भारत के लिये ऐसे निर्णय लेने की शक्ति है जो किसी भी व्यक्ति की मौजूदगी, किसी दस्तावेज़ अथवा स्वयं की अवमानना की जाँच और दंड को सुरक्षित करते हैं।
संविधान का अनुच्छेद 212:
- न्यायालयों द्वारा विधानमंडल की कार्यवाही की जाँच न किया जाना-
- राज्य के विधानमंडल की किसी कार्यवाही की विधिमान्यता को प्रक्रिया की किसी अभिकथित अनियमितता के आधार पर प्रश्नगत नहीं किया जायेगा।
- राज्य के विधानमंडल का कोई अधिकारी या सदस्य, जिसमें इस संविधान द्वारा या इसके अधीन उस विधानमंडल में प्रक्रिया या कार्य संचालन का विनियमन करने की अथवा व्यवस्था बनाए रखने की शक्तियाँ निहित है, उन शक्तियों के अपने द्वारा प्रयोग के विषय में किसी न्यायालय की अधिकारिकता के अधीन नही होगा।
- दल-बदल विरोधी कानून:
- वर्ष 1985 में 52वें संविधान संशोधन के माध्यम से देश में ‘दल-बदल विरोधी कानून’ पारित किया गया। साथ ही संविधान की दसवीं अनुसूची जिसमें दल-बदल विरोधी कानून शामिल है, को संशोधन के माध्यम से भारतीय संविधान में जोड़ा गया।
- इस कानून का मुख्य उद्देश्य भारतीय राजनीति में ‘दल-बदल’ की कुप्रथा को समाप्त करना था, जो कि 1970 के दशक से पूर्व भारतीय राजनीति में काफी प्रचलित थी।
दल-बदल विरोधी कानून के मुख्य प्रावधान:
दल-बदल विरोधी कानून के तहत किसी जनप्रतिनिधि को अयोग्य घोषित किया जा सकता है यदि:
- एक निर्वाचित सदस्य स्वेच्छा से किसी राजनीतिक दल की सदस्यता छोड़ देता है।
- कोई निर्दलीय निर्वाचित सदस्य किसी राजनीतिक दल में शामिल हो जाता है।
- किसी सदस्य द्वारा सदन में पार्टी के पक्ष के विपरीत वोट किया जाता है।
- कोई सदस्य स्वयं को वोटिंग से अलग रखता है।
- छह महीने की समाप्ति के बाद कोई मनोनीत सदस्य किसी राजनीतिक दल में शामिल हो जाता है।
अयोग्य घोषित करने की शक्ति:
- कानून के अनुसार, सदन के अध्यक्ष के पास सदस्यों को अयोग्य करार देने संबंधी निर्णय लेने की शक्ति है।
- यदि सदन के अध्यक्ष के दल से संबंधित कोई शिकायत प्राप्त होती है तो सदन द्वारा चुने गए किसी अन्य सदस्य को इस संबंध में निर्णय लेने का अधिकार है।
दल-बदल विरोधी कानून के अपवाद:
- यदि कोई सदस्य पीठासीन अधिकारी के रूप में चुना जाता है तो वह अपने राजनीतिक दल से त्यागपत्र दे सकता है और अपने कार्यकाल के बाद फिर से राजनीतिक दल में शामिल हो सकता है। इस तरह के मामले में उसे अयोग्य नहीं ठहराया जाएगा। उसे यह उन्मुक्ति पद की मर्यादा और निष्पक्षता के लिये दी गई है।
- दल-बदल विरोधी कानून में एक राजनीतिक दल को किसी अन्य राजनीतिक दल में या उसके साथ विलय करने की अनुमति दी गई है, बशर्ते कि उसके कम-से-कम दो-तिहाई सदस्य विलय के पक्ष में हों।
लाभ:
- यह कानून सदन के सदस्यों की दल- बदल की प्रवृत्ति पर रोक लगाकर राजनीतिक संस्था में उच्च स्थिरता प्रदान करता है।
- यह राजनीतिक स्तर पर भ्रष्टाचार को कम करता है तथा अनियमित निर्वाचनों पर होने वाले अप्रगतिशील खर्च को कम करता है।
- यह कानून विद्यमान राजनीतिक दलों को एक संवैधानिक पहचान देता है।