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उत्तर प्रदेश में पारित हुआ संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम

  • 30 Mar 2018
  • 8 min read

चर्चा में क्यों?
उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 28 मार्च, 2018 को राज्य विधानसभा में महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण कानून (मकोका) की तर्ज पर माफिया और संगठित अपराध से निपटने के कड़े प्रावधान वाला उत्तर प्रदेश संगठित अपराध नियंत्रण विधेयक, 2017 (यूपीकोका) पेश किया गया। यह विधेयक आतंक फैलाने, बलपूर्वक या हिंसा द्वारा सरकार को उखाड़ फेंकने का प्रयास करने वालों से सख्ती से निपटने की व्यवस्था प्रदान करता है। राज्यपाल और केंद्र की अनुमति मिलते ही यह कानून प्रभावी हो जाएगा। 

पृष्ठभूमि

  • मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा विधानसभा में यूपीकोका विधेयक, 2017 को पेश करते हुए बताया गया कि 21 दिसंबर, 2017 को विधानसभा में पारित होने के पश्चात् स्वीकृति के लिये विधेयक को विधानपरिषद के पास भेजा गया। परंतु, बिना किसी संशोधन के इसे अस्वीकार कर दिया गया।

प्रमुख विशेषताएँ

  • इस विधेयक के उद्देश्य और कारणों में स्पष्ट किया गया है कि मौजूदा कानूनी ढाँचा संगठित अपराध के खतरे के निवारण एवं नियंत्रण में अपर्याप्त पाया गया है।
  • यही कारण है कि संगठित अपराध के खतरे को नियंत्रित करने के लिये संपत्ति की कुर्की, रिमांड की प्रक्रिया, अपराध नियंत्रण प्रक्रिया, त्वरित विचार एवं न्याय के उद्देश्य के साथ यह विधेयक लाया गया है।
  • इस विधेयक में विशेष न्यायालयों के गठन और विशेष अभियोजकों की नियुक्ति की भी व्यवस्था की गई है।
  • इसके अंतर्गत संगठित अपराध के खतरे को नियंत्रित करने हेतु आवश्यक अनुसंधान संबंधी प्रक्रियाओं को कड़े एवं निवारक प्रावधानों के साथ लागू करने के लिये विशेष कानून अधिनियमित करने का भी निश्चय किया गया है।
  • विधेयक में संगठित अपराध के लिये सख्त सजा का प्रावधान किया गया है।
  • इसके तहत आतंक फैलाने या बलपूर्वक, हिंसा द्वारा सरकार को उखाड़ फेंकने के लिये विस्फोटकों या अन्य हिंसात्मक साधनों का प्रयोग कर किसी की जान या संपत्ति को नष्ट करने या राष्ट्र विरोधी, अन्य लोक प्राधिकारी को मौत की धमकी देकर या बर्बाद कर देने की धमकी देकर फिरौती के लिये बाध्य करने को लेकर कड़े प्रावधान किये गए हैं।
  • अभी तक ऐसा होता था कि पुलिस सबसे पहले किसी अपराधी को पकड़कर उसे कोर्ट में पेश करता था, फिर सबूत जुटाती थी। लेकिन यूपीकोका के तहत सबसे पहले पुलिस अपराधियों के खिलाफ सबूत इकट्ठा करेगी, फिर उन सबूतों के आधार पर ही गिरफ्तारी होगी। अर्थात् अब अपराधी को कोर्ट में ही अपनी बेगुनाही साबित करनी होगी।
  • विधेयक की सबसे खास बात यह है कि इसमें गवाहों की सुरक्षा पर विशेष बल दिया गया है।
  • विधेयक के तहत अब आरोपी यह नहीं जान पायेंगे कि उनके खिलाफ किसने गवाही दी है। सभी बातों को पूर्ण रूप से गोपनीय रखा जाएगा।

संगठित अपराध से क्या तात्पर्य है?

  • विधेयक में संगठित अपराध को विस्तार से परिभाषित किया गया है। फिरौती के लिये अपहरण, सरकारी ठेके में शक्ति प्रदर्शन, खाली या विवादित सरकारी भूमि अथवा भवन पर जाली दस्तावेज़ें के ज़रिये या बलपूर्वक कब्जे, बाज़ार और फुटपाथ विक्रेताओं से अवैध वसूली, शक्ति का प्रयोग कर अवैध खनन, धमकी या वन्यजीव व्यापार, धन की हेराफेरी, मानव तस्करी, नकली दवाओं या अवैध शराब के कारोबार, मादक द्रव्यों की तस्करी आदि को इसके अंतर्गत शामिल किया गया है।

सज़ा का क्या प्रावधान है?

  • विधेयक के अंतर्गत संगठित अपराध के परिणामस्वरुप किसी की मौत होने की स्थिति में मृत्युदंड या आजीवन कारावास की व्यवस्था की गई है। इसके साथ-साथ न्यूनतम 25 लाख रुपए के अर्थदंड का भी प्रावधान किया गया है।
  • किसी अन्य मामले में कम-से-कम 7 साल के कारावास से लेकर आजीवन कारावास तथा न्यूनतम 15 लाख रुपए के अर्थदंड का प्रावधान किया गया है।

अपीलीय प्राधिकरण के गठन का प्रावधान

  • इसके तहत उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक अपीलीय प्राधिकरण का गठन किया जाएगा। इसमें राज्य सरकार के 2 सदस्य भी शामिल किये जाएंगे।
  • यह प्राधिकरण प्रस्तावित कानून (यूपीकोका) के तहत आरोपी की याचिका की सुनवाई करेगा। 
  • यदि किसी व्यक्ति को गलत तरीके से फँसाया जाता है तो वह व्यक्ति अपने खिलाफ हो रही कार्रवाही के खिलाफ प्राधिकरण में अपील कर सकता है।
  • हालाँकि, इसमें यह व्यवस्था की गई है कि ऐसी किसी भी स्थिति में व्यक्ति को स्वयं ही अपनी बेगुनाही साबित करनी होगी।

गृह विभाग के प्रमुख सचिव होंगे अध्यक्ष

  • विधेयक के अंतर्गत राज्य संगठित अपराध नियंत्रण प्राधिकरण के गठन का भी प्रावधान किया गया है, जिसके अध्यक्ष गृह विभाग के प्रमुख सचिव होंगे।
  • इसमें 3 अन्य सदस्यों की नियुक्ति की भी व्यवस्था की गई है। इनमें अपर पुलिस महानिदेशक (कानून व्यवस्था), अपर पुलिस महानिदेशक (अपराध) और विधि विभाग के विशेष सचिव स्तर के अधिकारी शामिल होंगे, इन्हें सरकार की ओर से मनोनीत किया जाएगा।
  • इसके अलावा ज़िला स्तर पर अपराध नियंत्रण प्राधिकरण बनाने का भी प्रस्ताव पेश किया गया है, यह संबंधित ज़िलाधिकारियों की अध्यक्षता में कार्य करेगा।
  • साथ ही, इसमें बतौर सदस्य पुलिस अधीक्षक, अपर पुलिस अधीक्षक एवं अभियोजन अधिकारी को शामिल किया जाएगा।

विधेयक का विरोध

  • विधानसभा में यूपीकोका बिल के पेश होने से पहले ही सपा एवं बसपा समेत कई विपक्षी दलों द्वारा इसका जमकर विरोध किया जा रहा है। 
  • इस विधेयक के संबंध में यह आशंका व्यक्त की जा रही है कि इसका अल्पसंख्यकों, गरीबों और समाज के कमज़ोर वर्ग के खिलाफ दुरुपयोग किया जा सकता है।
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