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भारतीय अर्थव्यवस्था

'राष्ट्रीय गैर-लौह धातु स्क्रैप रिसाइक्लिंग फ्रेमवर्क, 2020'

  • 16 Mar 2021
  • 8 min read

चर्चा में क्यों?  

हाल ही में केंद्रीय खान मंत्रालय द्वारा स्क्रैप आयात में कटौती करने के लिये एक 'राष्ट्रीय गैर-लौह धातु स्क्रैप रिसाइक्लिंग फ्रेमवर्क, 2020' जारी किया गया है।

  • यह फ्रेमवर्क खनिज मूल्य शृंखला प्रसंस्करण में बेहतर दक्षता के लिये एक जीवन चक्र प्रबंधन दृष्टिकोण का उपयोग करने का प्रयास करता है।

प्रमुख बिंदु: 

रीसाइक्लिंग फ्रेमवर्क के उद्देश्य:

  • धातु के पुनर्चक्रण/रीसाइक्लिंग के माध्यम से संपत्ति के निर्माण, रोज़गार सृजन और सकल घरेलू उत्पाद में योगदान में वृद्धि करना।
  • ऊर्जा कुशल/दक्ष प्रक्रियाओं को अपनाकर एक औपचारिक और सुव्यवस्थित पुनर्चक्रण पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देना।
  • पर्यावरण अनुकूल पुनर्चक्रण प्रणाली को बढ़ावा देकर लैंडफिल और पर्यावरण प्रदूषण पर ‘एंड ऑफ लाइफ प्रोडक्ट’ (जब कोई उत्पाद आगे प्रयोग योग्य न रह जाए) के प्रभाव को कम करना।
  • सभी हितधारकों को शामिल करके एक उत्तरदायी पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करना।

कार्यान्वयन हेतु दिशा-निर्देश:

  • इस फ्रेमवर्क में धातु के पुनर्चक्रण को सुविधाजनक बनाने के लिये एक केंद्रीय धातु पुनर्चक्रण प्राधिकरण की स्थापना करने की परिकल्पना की गई है।
  • पुनर्चक्रण के लिये उपयोग किये जाने वाले स्क्रैप की गुणवत्ता निर्धारित करने हेतु सरकार मानक स्थापित करने की दिशा में काम करेगी।
  • संगठित क्षेत्र में पुनर्चक्रण को बढ़ावा देने के लिये स्क्रैप अलग करने वाले सेग्रीग्रेटर, स्क्रैप तोड़ने वाले डिसमैंटलर, रिसाइक्लर, संग्रह केंद्रों आदि के पंजीकरण हेतु एक तंत्र विकसित किया जाएगा।
  • इसके तहत 'शहरी खानों' या 'अर्बन माइन्स' (Urban Mines) की स्थापना का प्रस्ताव किया गया है, जिन्हें बड़ी मात्रा में स्क्रैप के एकत्रण और भंडारण के लिये स्थान के रूप में निर्धारित किया गया है।
  • पुनर्चक्रित/माध्यमिक धातु के लिये एक ऑनलाइन मार्केट प्लेटफॉर्म/एक्सचेंज प्लेटफॉर्म विकसित किया जाएगा।
    • पुनर्चक्रण से जुड़ी कंपनियाँ या रिसाइक्लर्स (Recyclers) औद्योगिक और वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों के साथ संग्रह अनुबंधों (स्क्रैप एकत्र करने हेतु) को लागू करने की संभावना तलाश सकते हैं।

हितधारकों की भूमिका/उत्तरदायित्व:

  • निर्माता के उत्तरदायित्व: विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (Extended Producer Responsibility- EPR) के दिशा-निर्देशों/विनियमों का कड़ाई से पालन सुनिश्चित करना।  
    • उत्पादों का डिज़ाइन इस प्रकार से तैयार करना ताकि एक कुशल और पर्यावरण अनुकूल तरीके से उनका पुनर्चक्रण तथा पुन: उपयोग करना आसान हो।
  • जनता की भूमिका: लोगों को अपना उत्तरदायित्व समझते हुए नामित स्क्रैप संग्रह केंद्रों पर स्क्रैप को रखना चाहिये जिससे उनका प्रभावी और पर्यावरणीय अनुकूल प्रसंस्करण किया जा सके।
  • सरकार की भूमिका: ‘केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय' (MoEFCC) द्वारा पुनर्चक्रण इकाइयों के लिये कई मंज़ूरियों की अनिवार्यता को हटाते (जहाँ कहीं भी संभव हो) हुए नियामक आवश्यकता को सरल तथा कारगर बनाया जाएगा।
  • पुनर्चक्रण प्राधिकरण की भूमिका: MoEFCC, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB), भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) आदि के परामर्श से स्क्रैप की हैंडलिंग और प्रसंस्करण के लिये तकनीकी, सुरक्षा एवं पर्यावरण मानदंड तथा SOPs का विकास करना।

गैर-लौह धातु पुनर्चक्रण उद्योगों की चुनौतियाँ: 

  • गैर-लौह धातु पुनर्चक्रण उद्योगों की एक बड़ी चुनौती धातु स्क्रैप के आयात पर इसकी भारी निर्भरता है।
  • एक संगठित/व्यवस्थित स्क्रैप रिकवरी तंत्र की कमी।
  • अपशिष्ट संग्रह और पुनर्चक्रण पर मौजूदा नियमों के स्थायी कार्यान्वयन का अभाव।
  • पुनर्चक्रीकृत उत्पादों के मानकीकरण का अभाव इसे बाज़ार द्वारा अपनाये जाने पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।
  • उत्तरदायी तरीकों और प्रौद्योगिकियों के मामले में विशिष्ट कौशल का अभाव।

पुनर्चक्रीकरण को बढ़ावा देने हेतु सरकारी पहल: 

  • केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीय संसाधन दक्षता नीति (एनआरईपी) तैयार करने पर कार्य किया जा रहा है, जिसका उद्देश्य सभी क्षेत्रों में संसाधन दक्षता को मुख्यधारा में लाना है, इसमें एल्युमीनियम क्षेत्र को प्राथमिक क्षेत्र माना गया है।
  • केंद्रीय इस्पात मंत्रालय द्वारा 'स्टील स्क्रैप पुनर्चक्रण नीति' (Steel Scrap Recycling Policy) जारी की गई है, जिसके तहत धातु स्क्रैप पुनर्चक्रण केंद्रों की स्थापना को सुविधाजनक बनाने और इसे बढ़ावा देने के लिये एक रूपरेखा की परिकल्पना की गई है।
  • नीति आयोग द्वारा देश में औपचारिक एवं संगठित तरीके से सामग्रियों/उपकरणों के पुनर्चक्रण की दिशा में समन्वित राष्ट्रीय तथा राज्य स्तर के कार्यक्रमों, योजनाओं व कार्यों के संचालन हेतु एक व्यापक "राष्ट्रीय सामग्री पुनर्चक्रण नीति" का प्रस्ताव किया गया है। 

गैर-लौह धातु (Non-Ferrous Metal):  

  • अलौह धातुओं को व्यापक रूप से निम्नलिखित श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है:  
    • हीन या अपधातु (Base Metals): उदाहरण- एल्युमीनियम, तांबा, जस्ता, सीसा, निकल, टिन।
    • बहुमूल्य धातु (Precious Metals): उदाहरण- चाँदी, सोना, पैलेडियम, अन्य प्लैटिनम समूह धातु।
    • माइनर मेटल (उच्च तापसह धातुओं सहित): जैसे- टंगस्टन, मोलिब्डेनम, टैंटलम, नाइओबियम, क्रोमियम। 
    • स्पेशियलिटी मेटल (Specialty Metals): उदाहरण- कोबाल्ट, जर्मेनियम, इंडियम, टेल्यूरियम, एंटीमनीऔर गैलियम।
  • लोहे के बाद एल्युमिनियम विश्व में दूसरी सबसे अधिक प्रयोग की जाने वाली धातु है।
  • मूल्य के आधार पर  तांबा तीसरा सबसे महत्त्वपूर्ण हीन या अपधातु (Base Metals) है।
  • जस्ता विश्व भर में चौथी सबसे अधिक प्रयोग की जाने वाली धातु है। 

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स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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