शासन व्यवस्था
राष्ट्रीय सहकारिता नीति 2025
- 26 Jul 2025
- 108 min read
प्रिलिम्स के लिये:सहकारिता, डेयरी अवसंरचना विकास निधि, प्राथमिक कृषि ऋण समितियाँ, अंतर्राष्ट्रीय सहकारिता दिवस, अनुच्छेद 19 मेन्स के लिये:राष्ट्रीय सहकारिता नीति 2025, भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास में सहकारी समितियों का विकास और भूमिका |
स्रोत:द हिंदू
चर्चा में क्यों?
संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित अंतर्राष्ट्रीय सहकारिता वर्ष (IYC) 2025 को चिह्नित करने के लिये, भारत ने राष्ट्रीय सहकारिता नीति 2025 का अनावरण किया है, जिसका उद्देश्य सहकारिता क्षेत्र को जन-आधारित आर्थिक शक्ति में रूपांतरित करना है।
अंतर्राष्ट्रीय सहकारिता वर्ष (IYC) 2025
- CoopsDay या अंतर्राष्ट्रीय सहकारिता दिवस की शुरुआत वर्ष 1923 में हुई थी और इसे संयुक्त राष्ट्र द्वारा आधिकारिक रूप से वर्ष 1995 में मान्यता मिली। यह प्रतिवर्ष जुलाई के पहले शनिवार को मनाया जाता है।
- सहकारिता संवर्धन एवं उन्नति समिति (COPAC) IYC 2025 की मेज़बानी कर रही है।
- IYC 2025 की थीम: "सहकारिताएँ एक बेहतर विश्व का निर्माण करती हैं (Cooperatives Build a Better World)", जो समावेशी, सतत् विकास और वर्ष 2030 तक संयुक्त राष्ट्र सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) की प्राप्ति में सहकारिता की भूमिका को रेखांकित करती है।
- वैश्विक सहकारिता क्षेत्र का स्तर:
- विश्व की 12% से अधिक जनसंख्या विश्वभर की लगभग 3 मिलियन सहकारी संस्थाओं से जुड़ी हुई है।
- ये सहकारी संस्थाएँ लगभग 280 मिलियन लोगों को रोज़गार या कार्य के अवसर प्रदान करती हैं, जो वैश्विक कार्यबल का लगभग 10% है।
- अंतर्राष्ट्रीय सहकारी गठबंधन (ICA) पूरे विश्व में 1 अरब से अधिक सहकारी सदस्यों का प्रतिनिधित्व करता है।
राष्ट्रीय सहकारिता नीति 2025 की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?
- दृष्टिकोण और उद्देश्य: यह नीति ‘सहकार से समृद्धि’ के मंत्र के तहत सहकारिता मंत्रालय के उद्देश्य को समर्थन देती है, जिसका लक्ष्य सहकारी संस्थाओं को सशक्त बनाना और उनकी पहुँच को स्थानीय स्तर तक विस्तृत करना है।
- यह नीति वर्ष 2002 की राष्ट्रीय सहकारिता नीति का स्थान लेती है और आगामी दो दशकों (2025–2045) के लिये सहकारिता क्षेत्र के विकास की दिशा तय करती है।
- सरकारी योजनाओं का एकीकरण: यह नीति मौजूदा सरकारी योजनाओं जैसे डेयरी अवसंरचना विकास निधि (DIDF), प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (PMMSY) और राष्ट्रीय डेयरी विकास कार्यक्रम (NPDD) का लाभ उठाकर पाँच वर्षों के भीतर 2 लाख नई बहुउद्देशीय प्राथमिक कृषि ऋण समितियाँ (M-PACS) स्थापित करने का लक्ष्य रखती है।
- समावेशी विकास और रोज़गार: यह नीति दलितों, आदिवासियों, महिलाओं और युवाओं पर विशेष ध्यान देते हुए सहकारिताओं को अधिक समावेशी बनाकर ग्रामीण आबादी को सशक्त बनाने तथा उन्हें व्यापक अर्थव्यवस्था में एक सशक्त भागीदार बनाने का लक्ष्य रखती है।
- विविधीकरण और शिक्षा: नीति के अंतर्गत सहकारिताओं को डेयरी, मत्स्य पालन, खाद्यान्न खरीद सहित 25 से अधिक क्षेत्रों में विस्तार करने के लिये प्रोत्साहित किया गया है।
- यह नीति भारत के पहले राष्ट्रीय सहकारी विश्वविद्यालय त्रिभुवन सहकारी विश्वविद्यालय के माध्यम से सहकारी शिक्षा को बढ़ावा देती है।
- प्रौद्योगिकीय प्रगति और वैश्विक सहभागिता: यह नीति सहकारी संस्थाओं को तेज़ी से बदलती, तकनीक-प्रधान विश्व में प्रतिस्पर्द्धी बनाए रखने के लिये आधुनिकीकरण का लक्ष्य रखती है।
- नीति में राष्ट्रीय सहकारी निर्यात लिमिटेड (NCEL) की स्थापना की गई है, ताकि सहकारी समितियों को चावल और गेहूँ जैसे निर्यात पर ध्यान केंद्रित करते हुए वैश्विक बाज़ारों तक पहुँचने में सहायता मिल सके।
सहकारी समितियाँ क्या होती हैं?
- परिचय: सहकारी समिति एक स्वायत्त संगठन होता है, जिसमें व्यक्ति स्वेच्छा से शामिल होते हैं ताकि वे अपने साझा आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक आवश्यकताओं एवं आकांक्षाओं को एक साझे स्वामित्व वाले और लोकतांत्रिक रूप से संचालित उद्यम के माध्यम से पूरा कर सकें।
- ये "एक सदस्य, एक मत (one member, one vote)" के सिद्धांत का पालन करते हैं, जिससे प्रत्येक सदस्य को उसके पूंजी योगदान की परवाह किये बिना समान अधिकार प्राप्त होता है।
- भारत में सहकारी आंदोलन की शुरुआत 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में हुई थी, जिसका उद्देश्य ग्रामीण ऋण और शोषण से निपटना था। इसके प्रमुख कदमों में वर्ष 1904 और वर्ष 1912 के सहकारी अधिनियम शामिल थे।
- स्वतंत्रता के बाद, सहकारिता भारत के विकास मॉडल का एक केंद्रीय घटक बन गई। राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (NABARD) और राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम (NCDC) जैसे संस्थानों ने सहकारी संस्थाओं को समर्थन प्रदान किया।
- एक अन्य महत्त्वपूर्ण विकास रहा है सहकारी बैंकों का उदय, जो बैंकिंग विनियमन अधिनियम के अंतर्गत विनियमित होते हैं। भारत में लगभग 1,400 शहरी सहकारी बैंक कार्यरत हैं, जो सहकारिता के वित्तीय आयाम को सुदृढ़ करते हैं।
- संवैधानिक एवं कानूनी समर्थन: 97वाँ संविधान संशोधन, 2011 द्वारा सहकारी समितियों को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया।
- Article 19(1)(c) ensures the right to form cooperatives, while Article 43B promotes them as a Directive Principles of State Policy (DPSP).
- Part IXB (Articles 243ZH - 243ZT) provides governance provisions for Cooperatives.
- State-level cooperatives fall under the State List, while multi-state cooperatives are governed by the Union List and the Multi-State Cooperative Societies (MSCS) Act, 2002.
- अनुच्छेद 19(1)(c) सहकारी समितियों के गठन का अधिकार सुनिश्चित करता है, जबकि अनुच्छेद 43B उन्हें राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों (DPSP) के रूप में बढ़ावा देता है।
- भाग IXB (अनुच्छेद 243ZH - 243ZT) सहकारी समितियों के लिये शासन संबंधी प्रावधान प्रदान करता है।
- राज्य-स्तरीय सहकारी समितियाँ राज्य सूची के अंतर्गत आती हैं, जबकि बहु-राज्य सहकारी समितियाँ संघ सूची और बहु-राज्य सहकारी समितियाँ (MSCS) अधिनियम, 2002 द्वारा शासित होती हैं।
- बहु-राज्य सहकारी समितियाँ अधिनियम (MSCS Act) का प्रशासन केंद्रीय रजिस्ट्रार द्वारा किया जाता है, जबकि राज्य स्तरीय सहकारी समितियों का प्रबंधन संबंधित राज्य रजिस्ट्रारों के अधीन होता है।
- सहकारिता मंत्रालय की स्थापना 2021 में की गई थी, जब पूर्ववर्ती कृषि, सहकारिता एवं किसान कल्याण मंत्रालय से सहकारिता से संबंधित प्रविष्टियाँ स्थानांतरित की गईं।
- बहु-राज्य सहकारी समितियाँ (संशोधन) अधिनियम, 2023 ने सहकारी समितियों के सुशासन और पारदर्शिता को सुदृढ़ करने की दिशा में महत्त्वपूर्ण सुधार किये हैं।
- भारत में सहकारी समितियों का स्तर: भारत में लगभग 8.42 लाख सहकारी समितियाँ हैं, जिनके लगभग 29 करोड़ सदस्य हैं, जो विश्व स्तर पर कुल सदस्यों का लगभग 27% है। IFFCO (भारतीय कृषक सहकारी उर्वरक लिमिटेड) और अमूल जैसी संस्थाएँ दुनिया की शीर्ष 300 सहकारी समितियों में शामिल हैं।
- भारत में सहकारी समितियों का क्षेत्रवार वितरण: महाराष्ट्र देश में सहकारी समितियों की संख्या में अग्रणी है, जहाँ 25% से अधिक सहकारी समितियाँ हैं। इसके बाद गुजरात, तेलंगाना, मध्य प्रदेश, और कर्नाटक का स्थान है।
- त्रिभुवनदास के. पटेल ने गाँव स्तरीय दुग्ध सहकारी समितियों को संगठित कर अमूल की स्थापना का मार्ग प्रशस्त किया। वर्गीज़ कुरियन, जो भारत के श्वेत क्रांति के अग्रदूत थे, ने अमूल को राष्ट्रीय स्तर पर सफल बनाया तथा भारत को विश्व का शीर्ष दुग्ध उत्पादक देश बनाने में अहम भूमिका निभाई।
सहकारिता क्षेत्र में भारत द्वारा की गई प्रमुख पहल क्या हैं?
- PACS (प्राथमिक कृषि साख समितियाँ): सभी राज्यों में एकरूपता और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिये मॉडल उपविधियाँ लागू की गई हैं। इससे PACS का संचालन अधिक प्रभावी और लोकतांत्रिक तरीके से हो सकेगा।
- किसान उत्पादक संगठन (FPOs): वर्ष 2025 तक, राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम (NCDC) द्वारा सहकारी क्षेत्र में लगभग 1,900 FPOs का गठन किया जा चुका है।
- मत्स्य किसान उत्पादक संगठन (FFPOs) भी छोटे मछुआरों को बेहतर संसाधन, प्रशिक्षण और ऋण प्रदान करने के उद्देश्य से प्रोत्साहित किये जा रहे हैं।
- राष्ट्रीय सहकारी ऑर्गेनिक्स लिमिटेड (NCOL): PACS के माध्यम से जैविक कृषि को बढ़ावा देने हेतु कार्य कर रहा है। इसने 'भारत ऑर्गेनिक' उत्पादों की शुरुआत की है ताकि सतत् और रसायन-मुक्त कृषि को समर्थन मिल सके।
- श्वेत क्रांति 2.0: वर्ष 2024 में शुरू की गई यह पहल अगले 5 वर्षों में दुग्ध संग्रहण को 50% तक बढ़ाने का लक्ष्य रखती है। अब तक 9,000 से अधिक डेयरी सहकारी समितियों का पंजीकरण हो चुका है।
- सहकारी बैंकिंग सुधार: शहरी सहकारी बैंकों (यूसीबी) को अब नई शाखाएँ खोलने की अनुमति है, जबकि ग्रामीण सहकारी बैंक वाणिज्यिक अचल संपत्ति को ऋण दे सकते हैं।
- GeM पोर्टल: सहकारी समितियाँ अब पारदर्शी और लागत-प्रभावी खरीद सुनिश्चित करने के लिये GeM पोर्टल पर खरीदार के रूप में पंजीकरण करा सकती हैं। वर्ष 2024 तक, अब तक 550 से अधिक सहकारी समितियाँ इससे जुड़ चुकी हैं।
भारत में सहकारी समितियों की त्वरित उन्नति
8.44 लाख सहकारी समितियां |
30 क्षेत्र |
73,492 पीएसीएस के कम्प्यूटरीकरण के प्रस्ताव |
जेम पर 667 सहकारी समितियाँ खरीदार के रूप में पंजीकृत |
59,920 पीएसीएस को एकीकृत ईआरपी प्लेटफ़ॉर्म पर जोड़ा गया |
जेम पर सहकारी समितियों द्वारा 319.02 करोड़ रुपये के 2,986 लेनदेन |
23,173 नई बहुउद्देशीय पीएसीएस, सहकारी समितियाँ पंजीकृत |
एनसीईएल ने 8,863 पीएसीएस /सहकारी समितियों को शामिल किया है, 27 देशों को 5,239.5 करोड़ रुपये मूल्य की कृषि वस्तुओं का सफल निर्यात किया है |
भारत की कुछ सफलतम सहकारी समितियाँ
सहकारी समितियाँ |
क्षेत्र |
उल्लेखनीय उपलब्धि |
अमूल (जीसीएमएमएफ) |
डयेरी |
भारत की सबसे बड़ी डेयरी सहकारी समिति; जिसने "श्वेत क्रांति" में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे भारत विश्व का सबसे बड़ा दूध उत्पादक बन गया; जिसका कारोबार 7.3 बिलियन से अधिक है। |
इफको |
उर्वरक |
भारत की सबसे बड़ी उर्वरक सहकारी समिति और प्रति व्यक्ति जीडीपी के लिहाज से दुनिया की सबसे बड़ी सहकारी समिति; 7.3 बिलियन (वित्त वर्ष 23) से अधिक राजस्व सहित इसकी उल्लेखनीय वृद्धि ने इसे फॉर्च्यून इंडिया 500 सूची में स्थान दिलाया। |
कर्नाटक दुग्ध संघ (नंदिनी) |
डयेरी |
भारत में दूसरी सबसे बड़ी डेयरी सहकारी समिति; कर्नाटक में 15 दुग्ध संघों के साथ काम करती है, प्राथमिक डेयरी सहकारी समितियों से दूध खरीदती है; शहरी और ग्रामीण दोनों बाजारों में अपनी सेवाएं देती है, जिससे 1,500 से अधिक सदस्य लाभान्वित होते हैं। |
इंडियन कॉफ़ी हाउस सोसाइटी |
उपभोक्ता/रेस्तरां |
श्रमिक सहकारी समितियों के नेटवर्क द्वारा प्रबंधित; इसके लगभग 400 कॉफी आउटलेट हैं |
उरालुंगल श्रम अनुबंध सहकारी समिति |
श्रम सहकारी समिति |
भारत की सबसे पुरानी श्रम सहकारी समिति; लगभग 1415 व्यक्तियों की सदस्यता के साथ यूएलसीसीएस ने 7500 से अधिक परियोजनाओं को सफलतापूर्वक पूरा किया है |
भारत में सहकारी क्षेत्र के लिये चुनौतियाँ और अवसर क्या हैं?
चुनौतियाँ
- कमज़ोर अवसंरचना: उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में सहकारी नेटवर्क अब भी अविकसित है। इन राज्यों में सहकारी संस्थाओं की पहुँच को विस्तारित करना एक बड़ा तार्किक (Logistical) और वित्तीय चुनौतीपूर्ण कार्य हो सकता है।
- सदस्यों की कम भागीदारी: हाशिए पर पड़े समुदायों का प्रतिनिधित्व कम है। सीमित जागरूकता और सहभागिता सहकारी कार्यप्रणाली की शक्ति को कम करती है।
- वित्तीय बाधाएँ: कई सहकारी संस्थाएँ, विशेष रूप से वे जो गरीब वर्गों की सेवा करती हैं, संपार्श्विक (Collateral) या उचित दस्तावेज़ो की कमी के कारण ऋण प्राप्त करने में कठिनाई का सामना करती हैं।
- कौशल की कमी: कई सहकारी समितियों में प्रशिक्षित कर्मियों और प्रबंधकीय विशेषज्ञता का अभाव है, जिससे प्रदर्शन प्रभावित होता है।
- तकनीकी एकीकरण: यद्यपि भारत का लक्ष्य सहकारी समितियों का आधुनिकीकरण करना है, फिर भी कई समितियों, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में, को नई प्रौद्योगिकियों को अपनाने और लागू करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
अवसर
- आर्थिक सशक्तीकरण: दो लाख नए M-PACS की स्थापना और डेयरी, मत्स्य पालन तथा अन्य सहकारी क्षेत्रों का विस्तार, विशेष रूप से ग्रामीण एवं कृषि समुदायों के लिये व्यापक आर्थिक अवसर प्रदान करता है।
- वैश्विक उपस्थिति में वृद्धि: NCEL के गठन और निर्यात बाज़ारों के खुलने से सहकारी समितियों को वैश्विक मान्यता प्राप्त करने में मदद मिल सकती है, जिससे विदेशी मुद्रा आय में वृद्धि हो सकती है।
- रोज़गार सृजन: कृषि, डेयरी और मत्स्य पालन जैसे क्षेत्रों में सहकारी समितियों के महत्त्वपूर्ण योगदान के साथ, NCP 2025 लाखों नए रोज़गार के अवसर प्रदान कर सकता है, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोज़गारी की समस्या का समाधान हो सकता है।
- शासन में सुधार: वित्तीय रिपोर्टिंग के लिये डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग करना, नियमित ऑडिट सुनिश्चित करना और सदस्यों की भागीदारी को बढ़ावा देना।
निष्कर्ष
सहकारी संस्थाएँ एक जमीनी स्तर का आंदोलन हैं, जो किसानों, महिलाओं और छोटे उद्यमियों को सशक्त बनाती हैं। ये समावेशी विकास और सशक्त समुदायों को बढ़ावा देती हैं। राष्ट्रीय सहकारिता नीति 2025 के अंतर्गत, भारत “सहकार से समृद्धि” के अपने संकल्प को दोहराता है, जिसका उद्देश्य सहकारी संस्थाओं को सतत् विकास और व्यापक समृद्धि का माध्यम बनाना है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. भारत में सहकारी मॉडल लंबे समय से ग्रामीण सशक्तीकरण का एक प्रभावी माध्यम रहा है। राष्ट्रीय सहकारिता नीति 2025 के आलोक में, आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये कि सहकारी समितियाँ समावेशी विकास को कैसे गति दे सकती हैं। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्स:प्रश्न. भारत में ‘शहरी सहकारी बैंकों’ के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर:(b) प्रश्न. भारत में कृषि एवं संबद्ध गतिविधियों के लिये ऋण वितरण में निम्नलिखित में से किसकी हिस्सेदारी सबसे अधिक है? (2011) (a) वाणिज्यिक बैंक उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न. "गाँवों में सहकारी समिति को छोड़कर, ऋण संगठन का कोई भी अन्य ढाँचा उपयुक्त नहीं होगा।"-अखिल भारतीय ग्रामीण ऋण सर्वेक्षणा भारत में कृषि वित्त की पृष्ठभूमि में, इस कथन की चर्चा कीजिये। कृषि वित्त प्रदान करने वाली वित्तीय संस्थाओं को किन बाध्यताओं और कसौटियों का सामना करना पड़ता है? ग्रामीण सेवार्थियों तक बेहतर पहुँच और सेवा के लिये प्रौद्योगिकी का किस प्रकार इस्तेमाल किया जा सकता है?(2014) |