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नैतिक पुलिसिंग

  • 23 Aug 2021
  • 7 min read

प्रिलिम्स के लिये 

नैतिक पुलिसिंग

मेन्स के लिये

नैतिक पुलिसिंग क्या है, इसके विभिन्न पक्षों पर चर्चा कीजिये 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केरल में एक 23 वर्षीय व्यक्ति पर हमले के मामले में पुलिस ने पाँच किशोरों को गिरफ्तार किया। यह हमला भारत में नैतिक पुलिसिंग के बढ़ते उदाहरणों में से एक है।

प्रमुख बिंदु 

  • परिभाषा: नैतिक पुलिसिंग का सामान्यतः अर्थ एक ऐसी प्रणाली से है जहाँ हमारे समाज के बुनियादी मानकों का उल्लंघन करने वालों पर कड़ी निगरानी और प्रतिबंध लगाया जाता है।
    • हमारे समाज का बुनियादी स्तर इसकी संस्कृतियों, सदियों पुराने रीति-रिवाजों और धार्मिक सिद्धांतों में पाया जा सकता है।
    • यह एक ऐसी स्थिति है जहाँ इस घटना की वकालत करने वाले व्यक्ति के नैतिक चरित्र पर सवाल उठाए जाते हैं।

नैतिक पुलिसिंग की अभिव्यक्तियाँ:

  • मॉब लिंचिंग: लिंचिंग, हिंसा का एक रूप है जिसमें भीड़ बिना मुकदमे के न्याय के बहाने अपराधी को अक्सर यातना देने और शारीरिक अंग-भंग करने के बाद मार देती है।
  • गोरक्षा: गोरक्षा के नाम पर लिंचिंग राष्ट्र की धर्मनिरपेक्षता के लिये गंभीर खतरा है।
    • सिर्फ बीफ के शक में लोगों की हत्या करना असहिष्णुता को दर्शाता है।
  • सांस्कृतिक आतंकवाद: एंटी रोमियो स्क्वॉड जैसे कार्यकर्त्ता शारीरिक हिंसा के माध्यम से अपने व्यक्तिपरक विश्वास को थोपते हैं।
  • ऑनर किलिंग: यह नैतिक पुलिसिंग के चरम मामलों में से एक है जो व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर अतिक्रमण करके पश्चिमी प्रभावों को कम करता है।
  • मौलिक अधिकारों पर प्रभाव: कई बार ऐसा होता है जब ‘नैतिक पुलिसिंग’ संविधान में निहित नागरिक के मौलिक अधिकारों जैसे- भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार, निजता का अधिकार, गरिमा के साथ जीने का अधिकार आदि में बाधा डालती है। 
    • उदाहरण के लिये नैतिक पुलिसिंग के कारण LGBT समुदाय को अत्यधिक दुष्परिणामों  का सामना करना पड़ता है और इससे उनके जीवन एवं स्वतंत्रता के मूल अधिकार पर खतरा उत्पन्न होता है।

‘नैतिक पुलिसिंग’ को बढ़ावा देने वाले कारक:

  • धार्मिक मूल्य: हिंदू धर्म में गायों की पूजा की जाती है, उन्हें जीवन के प्रतीक के रूप में देखा जाता हैऔर इस प्रकार उन्हें पूजा जाता है।
    • यह प्रायः गो-सतर्कता को बढ़ावा देता है, जो अल्पसंख्यकों के प्रति बहुसंख्यकों के बीच इस तथाकथित भावना को बढ़ावा देती है कि अल्पसंख्यक नियमित रूप से गोजातीय मांस का सेवन करते हैं।
  • सोशल नेटवर्किंग प्लेटफॉर्म: व्हाट्सएप और फेसबुक जैसे प्लेटफॉर्म नैतिक पुलिसिंग के लिये उत्प्रेरक का काम करते हैं, क्योंकि यह फर्जी खबरों के प्रसार को बढ़ा सकता है।
    • फेक न्यूज़ से लिंचिंग, सांप्रदायिक झड़प जैसी घटनाएँ बढ़ सकती हैं।
  • पितृसत्ता: पितृसत्तात्मक मानसिकता वाले लोग महिलाओं की सुरक्षा को अपना कर्तव्य मानते हैं, क्योंकि उन्हें कमज़ोर के रूप में देखा जाता है।
    • इसके कारण प्रायः महिलाओं पर भाषण, कपड़े और सार्वजनिक व्यवहार आदि के मामले में प्रतिबंध लगाए जाते हैं।
  • पुलिस द्वारा अतिक्रमण: पुलिस एक सार्वजनिक संगठन है जिसे बल प्रयोग करने के लिये असाधारण शक्तियाँ दी जाती हैं। इससे पुलिस कभी-कभी अपनी शक्तियों का अतिक्रमण कर लेती है। उदाहरण के लिये:
    • भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 292 अगर अश्लील मानी जाती है तो किताबों और पेंटिंग जैसी सामग्री को अपराध घोषित कर दिया जाता है। हालाँकि अश्लीलता शब्द को परिभाषित नहीं किया गया है।
      • हालाँकि पुलिसकर्मी धारा 292 का उपयोग फिल्म पोस्टर और विज्ञापन होर्डिंग्स के खिलाफ मामला दर्ज करने के लिये करते हैं जिन्हें अश्लील माना जाता है। यह कलात्मक रचनात्मकता को कमज़ोर करता है तथा कलाकारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कम करता है।
    • अनैतिक यातायात (रोकथाम) अधिनियम (PITA) मूल रूप से मानव तस्करी को रोकने के लिये पारित किया गया था।
      • इसका उपयोग पुलिस द्वारा उचित सबूत के बिना होटलों पर छापे मारने के लिये किया जाता है यदि उन्हें संदेह है कि वहाँ सेक्स रैकेट चलाया जा रहा है, जिससे कानूनी जोड़ों (Legal Couples) और युवाओं को शर्मिंदगी होती है।

आगे की राह

  • आपराधिक न्याय प्रणाली में सुधार: आपराधिक न्याय प्रणाली में सुधार करने की आवश्यकता है, ताकि प्रशासन में संवैधानिक मूल्यों के बारे में संवेदनशीलता और जागरूकता पैदा हो सके।
  • सार्वजनिक चर्चा: विभिन्न नैतिक पुलिसिंग के प्रति जागरूकता और संवेदनशीलता पैदा करने के लिये स्कूलों तथा कॉलेजों में सार्वजनिक चर्चा व वाद-विवाद को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू

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