इंदौर शाखा: IAS और MPPSC फाउंडेशन बैच-शुरुआत क्रमशः 6 मई और 13 मई   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


जैव विविधता और पर्यावरण

भारत की स्वदेशी जनजातियों के लिये कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैवविविधता फ्रेमवर्क के निहितार्थ

  • 04 Apr 2024
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये:

कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज़ (COP15), कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैवविविधता फ्रेमवर्क, सतत् विकास लक्ष्य

मेन्स के लिये:

कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैवविविधता फ्रेमवर्क, COP15 के परिणाम, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, स्वदेशी समुदाय

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में एरिज़ोना विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित एक संगोष्ठी में कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैवविविधता फ्रेमवर्क (Global Biodiversity Framework- GBF) और इसके संभावित प्रभाव, विशेष रूप से भारत की स्वदेशी जनजातियों पर, से संबंधित चिंताओं पर प्रकाश डाला गया।

कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैवविविधता फ्रेमवर्क क्या है?

  • परिचय: जैवविविधता पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय के पक्षकारों के 15वें सम्मेलन (COP15) में "कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैवविविधता फ्रेमवर्क" (Kunming-Montreal Global Biodiversity Framework- GBF) को दिसंबर 2022 में अपनाया गया है।
    • इसका उद्देश्य सतत् विकास लक्ष्य की प्राप्ति का समर्थन करना और पिछली रणनीतिक योजनाओं पर निर्माण करना है।
    • फ्रेमवर्क में वर्ष 2050 के लिये चार लक्ष्य और वर्ष 2030 के लिये 23 लक्ष्य निर्धारित किये गए हैं, जिसमें योजना, निगरानी, रिपोर्टिंग, वित्त तथा क्षमता विकास शामिल हैं।
      • GBF के लक्ष्य 3 का उद्देश्य वर्ष 2030 तक संरक्षित क्षेत्रों को मौजूदा 16% की तुलना में विश्व के स्थलीय क्षेत्र के कम-से-कम 30% तक बढ़ाना है।
    • सभी दल (भारत सहित) GBF को लागू करने के लिये राष्ट्रीय लक्ष्य निर्धारित करने हेतु प्रतिबद्ध हैं।

  • भारत की प्रगति:
    • लक्ष्य 3- 30x30: भारत अपने 22% स्थलीय क्षेत्र और 5% समुद्री तथा तटीय क्षेत्रों को संरक्षित क्षेत्र नेटवर्क के अंतर्गत लाने की रिपोर्ट करता है।
      • हालाँकि भारत में संरक्षित क्षेत्रों के विस्तार में प्रगति हुई है, किंतु गैर-संरक्षण उद्देश्यों के लिये इन क्षेत्रों का आवंटन चिंताजनक है।
      • भारत के वन (संरक्षण) संशोधन अधिनियम 2023 द्वारा सतत् विकास के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाते हुए चिड़ियाघर और पारिस्थितिक पर्यटन जैसे वाणिज्यिक उद्यमों को शामिल करने के लिये वन संबंधी गतिविधियों को पुनः परिभाषित किया गया।
        • हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी निर्देश के अनुसार वन क्षेत्रों (संरक्षित क्षेत्रों को छोड़कर) के भीतर चिड़ियाघर और सफारी स्थापित करने के किसी भी प्रस्ताव के लिये न्यायालय से पूर्व अनुमोदन प्राप्त करना अनिवार्य है।
    • अन्य प्रभावी क्षेत्र-आधारित संरक्षण उपाय (OECMs): भारत ने नागरिक-नेतृत्व वाली पहल सहित OECMs की 14 श्रेणियों की पहचान की है, किंतु उनकी घोषणा की स्वैच्छिक प्रकृति विधिक सुरक्षा संबंधी चिंता उत्पन्न करती है।

भारत की मूल जनजातियों पर वन विस्तार का क्या प्रभाव हो सकता है?

  • निहितार्थ: GBF लक्ष्यों के तहत वन विस्तार पारंपरिक भूमि उपयोग प्रथाओं और प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर स्वदेशी समुदायों की आजीविका पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है, जिससे स्वदेशी आबादी के बीच गरीबी तथा खाद्य असुरक्षा बढ़ सकती है।
    • भारत के लगभग 84% राष्ट्रीय उद्यान स्वदेशी लोगों द्वारा बसाए गए क्षेत्रों में स्थापित किये गए थे और GBF लक्ष्यों को पूरा करने पर विशेष बल दिया जाना उनके अस्तित्व के लिये खतरा उत्पन्न कर सकता है।
  • संबंधित हालिया उदाहरण: राजस्थान के कुम्भलगढ़ वन्यजीव अभयारण्य को बाघ अभयारण्य में बदलने की पहल से 162 जनजातीय गाँव विस्थापित हो सकते हैं।
    • मध्य प्रदेश में नौरादेही अभयारण्य की विस्तार योजना 62 जनजातीय बहुल गाँवों को प्रभावित कर सकती है।
    • असम में बराक भुबन वन्यजीव अभयारण्य की अधिसूचना खासी, दिमासा और अन्य स्वदेशी समूहों के लिये जोखिम पैदा करती है।

नोट: यह नकारात्मक प्रवृत्ति अन्य दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में भी विद्यमान है जहाँ मूल निवासियों को संरक्षित क्षेत्रों में बुनियादी अधिकारों के अभाव का सामना करना पड़ता है। इसके उदाहरणों में इंडोनेशिया के उजुंगकुलोन नेशनल पार्क शामिल है जहाँ इस क्षेत्र से संबंधित मूल निवासियों को आवास, स्वास्थ्य, शिक्षा, विद्युत और सुरक्षा जैसे अधिकारों से वंचित किया गया।

भारत जैवविविधता संरक्षण में स्वदेशी जनजातियों का उपयोग कैसे कर सकता है?

  • इकोटूरिज़्म के माध्यम से सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण: स्वदेशी समुदायों के नेतृत्व में इकोटूरिज़्म पहल का समर्थन करना, सांस्कृतिक संरक्षण को बढ़ावा देना और आय सृजित करना।
    • इसका एक असाधारण उदाहरण केरल के वायनाड जनजाति विरासत ग्राम हैं, जहाँ समुदाय के नेतृत्व वाली इको-पर्यटन परियोजनाओं ने न केवल आय सृजन में वृद्धि की है अपितु वन्यजीवों की सुरक्षा भी की है और साथ ही स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाया है।
  • पारंपरिक और व्यावसायिक ज्ञान को एकीकृत करना: सरकार स्वदेशी जनजातियों के पारंपरिक ज्ञान का लाभ उठा सकती है, जैसे मेघालय की खासी और जैन्तिया जनजातियों में "पवित्र उपवनों (स्थानीय वर्जनाओं और प्रतिबंधों के माध्यम से संरक्षित प्राकृतिक वनस्पति के क्षेत्र)" की रक्षा करने की एक समृद्ध परंपरा है।
    • इस ज्ञान को भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) जैसे संस्थानों के वैज्ञानिक सर्वेक्षणों के साथ एकीकृत करके व्यापक संरक्षण योजनाएँ बनाई जा सकती हैं।
  • सह-प्रबंधन मॉडल को बढ़ावा देना: पश्चिम बंगाल संयुक्त वन प्रबंधन (JFM) कार्यक्रम जैसे सह-प्रबंधन मॉडल का विस्तार करना जहाँ स्वदेशी समुदाय संरक्षित क्षेत्रों के प्रबंधन के लिये वन विभागों के साथ कार्य करते हैं। यह उनके ज्ञान का उपयोग कर उनमें स्वामित्व की भावना को बढ़ावा देता है।

आगे की राह  

  • नि:शुल्क, पूर्व और सूचित सहमति: भारत सरकार नि:शुल्क, पूर्व और सूचित सहमति (FPIC) को बरकरार रखती है, जो पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम, 1996 के तहत जनजातीय भूमि पर संरक्षित क्षेत्रों की स्थापना से पूर्व एक अनिवार्य आवश्यकता है। 
  • सामाजिक प्रभाव आकलन: मौजूदा आजीविका पर संरक्षित क्षेत्र विस्तार के संभावित प्रभाव को समझने के लिये सामाजिक प्रभाव आकलन करने की आवश्यकता है।
    • नामीबिया के सांप्रदायिक संरक्षण कार्यक्रम के उदाहरण के बाद, संरक्षित क्षेत्रों के लिये सह-प्रबंधन मॉडल स्थापित किये जा सकते हैं। 
    • ये मॉडल स्थायी प्रथाओं को प्रोत्साहित करते हुए स्वदेशी समुदायों को वन्यजीव प्रबंधन में हिस्सेदारी प्रदान करते हैं।
  • नीतियों को अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप बनाना: भारत को यह सुनिश्चित करते हुए कि ईमानदार संरक्षण प्रयासों के साथ-साथ स्वदेशी अधिकारों और ज्ञान प्रणालियों का सम्मान किया जाता है, अपनी राष्ट्रीय नीतियों को स्वदेशी लोगों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र घोषणा (United Nations Declaration on the Rights of Indigenous Peoples- UNDRIP) सिद्धांतों के साथ संरेखित करना चाहिये।

प्रश्न. भारत की स्वदेशी जनजातियों पर कुनमिंग-मॉन्ट्रियल GBF के प्रभाव से उत्पन्न संभावित खतरों का आकलन कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

Q. "मोमेंटम फ़ॉर चेंज: क्लाइमेट न्यूट्रल नाउ" यह पहल किसके द्वारा प्रवर्तित की गई है ? (2018)

(a) जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल
(b) UNEP सचिवालय
(c) UNFCCC सचिवालय
(d) विश्व मौसमविज्ञान संगठन

उत्तर: (c)

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2