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डेली न्यूज़

जैव विविधता और पर्यावरण

संयुक्‍त राष्‍ट्र मरुस्‍थलीकरण रोकथाम अभिसमय का COP-15

  • 11 May 2022
  • 12 min read

प्रिलिम्स के लिये:

UNCCD, COP-15, भूमि क्षरण, जलवायु परिवर्तन, सूखा, वर्ष 2019 की दिल्ली घोषणा, मरुस्थलीकरण, IWMP, मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना 

मेन्स के लिये:

मरुस्थलीकरण और इसका प्रभाव, पर्यावरण प्रदूषण और गिरावट

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री ने ‘कोट डी आइवर’ (पश्चिमी अफ्रीका) में ‘संयुक्‍त राष्‍ट्र मरुस्‍थलीकरण रोकथाम अभिसमय’ (UNCCD) के ‘कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज़’ (COP) के पंद्रहवें सत्र को संबोधित किया।

COP-15 से संबंधित विभिन्न तथ्य:

  • परिचय: 
    • COP-15  मरुस्थलीकरण, भूमि क्षरण और सूखे के खिलाफ लड़ाई में एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है।
    • यह ‘ग्लोबल लैंड आउटलुक’ के दूसरे संस्करण के निष्कर्षों पर आधारित होगा और भूमि क्षरण, जलवायु परिवर्तन व जैव विविधता के नुकसान की परस्पर जुड़ी चुनौतियों के लिये एक ठोस प्रतिक्रिया प्रदान करेगा।
      • UNCCD का प्रमुख प्रकाशन ग्लोबल लैंड आउटलुक (GLO) भूमि प्रणाली की चुनौतियों को रेखांकित करता है एवं परिवर्तनकारी नीतियों और प्रथाओं को प्रदर्शित करता है तथा स्थायी भूमि एवं जल प्रबंधन के लिये लागत प्रभावी मार्गों को अपनाने  की ओर इशारा करता है।  
  • शीर्ष एजेंडा: 
    • सूखा, भूमि की बहाली, भूमि अधिकार, लैंगिक समानता और युवा सशक्तीकरण जैसे मुद्दे। 
  • थीम:  'भूमि, जीवन, विरासत: अभाव से समृद्धि की ओर' (‘Land. Life. Legacy: From scarcity to prosperity') 

मरुस्‍थलीकरण: 

  • परिचय: 
    • भूमि क्षरण को शुष्क भूमि की जैविक या आर्थिक उत्पादकता में कमी या हानि के रूप में परिभाषित किया गया है।
    • शुष्क, अर्द्ध-शुष्क और शुष्क उप-आर्द्र क्षेत्रों में भूमि क्षरण जलवायु परिवर्तन एवं मानवीय गतिविधियों सहित विभिन्न कारकों के परिणामस्वरूप होता है।
  • कारण: 
    • मृदा आवरण का नुकसान: 
      • मुख्य रूप से वर्षा और सतही अपवाह के कारण मिट्टी के आवरण का नुकसान, मरुस्थलीकरण के सबसे बड़े कारणों में से एक है।
      • जंगलों को काटने से मिट्टी पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और क्षरण की स्थिति उत्पन्न होती है। जैसे-जैसे शहरीकरण बढ़ता है, संसाधनों की मांग भी बढ़ती जाती है। 
    • वनस्पति निम्नीकरण:
      • वनस्पति निम्नीकरण को "वनस्पति आवरण के घनत्व, संरचना, प्रजातियों की संरचना या उत्पादकता में अस्थायी या स्थायी कमी" के रूप में परिभाषित किया गया है।
    • जल अपरदन:
      • इसके परिणामस्वरूप वह स्थल बैडलैंड (अनुर्वर) में बदल जाता है जो मरुस्थलीकरण का प्रारंभिक चरण होता है।
      • बैडलैंड एक प्रकार का शुष्क भूभाग होता है जहाँ नरम तलछटी चट्टानों और चिकनी मिट्टी से भरपूर मैदान का बड़े पैमाने पर क्षरण हुआ हो।
    • वायु अपरदन: 
      • इस प्रकार का अपरदन वहाँ होता है जहाँ की भूमि मुख्यत: समतल, अनावृत्त, शुष्क एवं रेतीली तथा मृदा ढीली, शुष्क एवं बारीक दानेदार होती है। साथ ही वहाँ वर्षा की कमी तथा हवा की गति अधिक (यथा-रेगिस्तानी क्षेत्र) हो।
      • भारत में यह प्रक्रिया मरुस्थलीकरण के कुल 5.46% के लिये ज़िम्मेदार है।
    • जलवायु परिवर्तन: 
      • यह तापमान, वर्षा, सौर विकिरण और हवाओं में स्थानिक एवं अस्थायी पैटर्न के परिवर्तन के माध्यम से मरुस्थलीकरण को बढ़ावा देता है।

उठाए गए कदम:

  • वैश्विक प्रयास: 
    • मरुस्थलीकरण को  रोकने लिये संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCCD): इसकी स्थापना 1994 में की गई थी, पर्यावरण और विकास को स्थायी भूमि प्रबंधन से जोड़ने वाला यह एकमात्र कानूनी रूप से बाध्यकारी अंतर्राष्ट्रीय समझौता है। 
      • 2019 की दिल्ली घोषणा, UNCCD के 14वें CoP द्वारा हस्ताक्षरित, भूमि पर बेहतर पहुँचऔर प्रबंधन का आह्वान करती है तथा लिंग-संवेदनशील परिवर्तनकारी परियोजनाओं पर ज़ोर देती है।
    • बॉन चुनौती (Bonn Challenge): यह एक वैश्विक प्रयास है। इसके तहत वर्ष 2020 तक दुनिया के 150 मिलियन हेक्टेयर गैर-वनीकृत एवं बंजर भूमि और वर्ष 2030 तक 350 मिलियन हेक्टेयर भूमि पर वनस्पतियाँ उगाई जाएंगी।
    • ग्रेट ग्रीन वॉल: इसका उद्देश्य अफ्रीका की निम्नीकृत भूमि का पुनर्निर्माण करना तथा विश्व के सर्वाधिक गरीब क्षेत्र, साहेल (Sahel) में निवास करने वाले लोगों के जीवन स्तर में सुधार लाना है। इस परियोजना को अफ्रीकी संघ द्वारा UNCCD, विश्व बैंक और यूरोपीय आयोग सहित कई भागीदारों के सहयोग से शुरू किया गया था।
  • भूमि निम्नीकरण की जाँच के लिये भारत के प्रयास:
    • भारत अपने निवासियों को बेहतर भूमि और बेहतर भविष्य प्रदान करने के लिए स्थानीय भूमि को स्वस्थ और उत्पादक बना कर सामुदायिक स्तर पर आजीविका सृजन हेतु  स्थायी भूमि और संसाधन प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।
    • मरुस्थलीकरण को कम करने के लिये राष्ट्रीय कार्रवाई कार्यक्रम 2001 में मरुस्थलीकरण की समस्याओं के समाधान के लिये उचित कार्रवाई करने का निर्णय लिया गया था।
    • वर्ल्ड रेस्टोरेशन फ्लैगशिप के लिये नामांकन जमा करने के वैश्विक आह्वान के बाद भारत ने छह फ़्लैगशिप का समर्थन किया जो 12.5 मिलियन हेक्टेयर खराब भूमि की बेहतरी का लक्ष्य रखते हैं।
    • भूमि क्षरण और मरुस्थलीकरण से संबंधित मुद्दों से निपटने के लिये कुछ प्रमुख कार्यक्रम वर्तमान में लागू किये जा रहे हैं: 

विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs):

प्रश्न: मरुस्थलीकरण को रोकने के लिये संयुक्त राष्ट्र अभिसमय का/के क्या महत्त्व है/हैं?

  1. इसका उद्देश्य नवप्रवर्तनकारी राष्ट्रीय कार्यक्रमों एवं समर्थक अंतर्राष्ट्रीय भागीदारियों के माध्यम से प्रभावकारी कार्रवाई को प्रोत्साहित करना है।
  2. यह विशेष रूप से दक्षिणी एशिया एवं उत्तरी अफ्रीका के क्षेत्रों पर केंद्रित है तथा इसका सचिवालय इन क्षेत्रों को बड़े हिस्से का आवंटन सुलभ कराता है
  3. यह मरुस्थलीकरण को रोकने में स्थानीय लोगों की भागीदारी को प्रोत्साहित करने हेतु ऊर्ध्वगामी उपागम (बाॅटम-अप अप्रोच) के लिये प्रतिबद्ध है

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 
(b) केवल 2 और 3 
(c) केवल 1 और 3 
(d) 1, 2 और 3

उतर: (c)

व्याख्या:

  • वर्ष 1994 में स्थापित संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोकथाम अभिसमय एकमात्र कानूनी रूप से बाध्यकारी अंतर्राष्ट्रीय समझौता है जो पर्यावरण और विकास को सतत् भूमि प्रबंधन से जोड़ता है।
  • वर्ष 1994 में स्थापित मरुस्थलीकरण को रोकने के लिये संयुक्त राष्ट्र अभिसमय, एकमात्र कानूनी रूप से बाध्यकारी अंतर्राष्ट्रीय समझौता है जो पर्यावरण और विकास को स्थायी भूमि प्रबंधन से जोड़ता है।
  • यह विशेष रूप से शुष्क, अर्द्ध-शुष्क और शुष्क उप-आर्द्र क्षेत्रों से संबंधित है, जहाँ कुछ सर्वाधिक सुभेद्य पारिस्थितिक तंत्र और लोग पाए जाते हैं।
  • यह अभिसमय मरुस्थलीकरण को रोकने हेतु सामुदायिक समर्थन और विकेंद्रीकृत दृष्टिकोण पर केंद्रित है।
  • इसका उद्देश्य मरुस्थलीकरण का सामना करने वाले देशों विशेषकर अफ्रीका में मरुस्थलीकरण से निपटना और गंभीर सूखे के प्रभावों का शमन करना है। अत: कथन 2 सही नहीं है।
  • यह एजेंडा-21 के अनुरूप एक एकीकृत दृष्टिकोण के अंतर्गत अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और भागीदारी व्यवस्था द्वारा समर्थित सभी स्तरों पर प्रभावी कार्रवाई का समर्थन करता है ताकि प्रभावित क्षेत्रों में सतत् विकास सुनिश्चित किया जा सके। अत: कथन 1 सही है।
  • इस अभिसमय के भागीदारों को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि मरुस्थलीकरण से निपटने अथवा सूखे के प्रभावों को कम करने के लिये कार्यक्रमों की योजना और कार्यान्वयन से संबंधित निर्णय वहाँ की आबादी व स्थानीय समुदायों की भागीदारी से लिया जाए एवं राष्ट्रीय तथा स्थानीय स्तर पर कार्रवाई को सुविधाजनक बनाने के लिये उच्च स्तर पर एक सक्षम वातावरण बनाने का प्रयास करना चाहिये। अतः कथन 3 सही है। 

स्रोत: पी.आई.बी.

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