अंतर्राष्ट्रीय संबंध
हिंद-प्रशांत क्षेत्रीय संवाद 2025
- 05 Nov 2025
- 70 min read
प्रिलिम्स के लिये: इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन, हिंद-प्रशांत रणनीति, भारत का SAGAR सिद्धांत, हॉर्मुज़ जलडमरूमध्य, चाइना+1 रणनीतियाँ, ग्लोबल डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर रिपॉजिटरी, आपदा प्रतिरोधी बुनियादी ढाँचे के लिये गठबंधन, वॉयस ऑफ द ग्लोबल साउथ शिखर सम्मेलन (VOGSS), AUKUS, क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी।
मेन्स के लिये: भारत के लिये हिंद-प्रशांत क्षेत्र का महत्त्व, इंडो-पैसिफिक में भारत की सक्रिय भागीदारी में बाधा डालने वाले मुख्य मुद्दे।
चर्चा में क्यों?
हिंद-प्रशांत क्षेत्रीय संवाद 2025 (Indo-Pacific Regional Dialogue 2025 - IPRD 2025), जो भारतीय नौसेना का वार्षिक उच्च-स्तरीय सामरिक सम्मेलन है, 30 अक्तूबर, 2025 को नई दिल्ली में संपन्न हुआ।
- सातवाँ संस्करण, जिसका विषय था “समग्र समुद्री सुरक्षा और विकास को बढ़ावा देना: क्षेत्रीय क्षमता-निर्माण व कार्यात्मक वृद्धि”, में हिंद-प्रशांत क्षेत्र एवं साझेदार देशों के तीस से अधिक प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इस सम्मेलन में क्षेत्रीय समुद्री स्थिरता और विकास के लिये सहयोगात्मक रणनीतियों पर विचार-विमर्श किया गया।
भारत के लिये हिंद-प्रशांत क्षेत्र का क्या महत्त्व है?
- समुद्री सुरक्षा और सामरिक स्वायत्तता:
- भारत का 95% से अधिक व्यापार हिंद महासागर से होकर गुज़रता है, जिससे यह क्षेत्र भारत की संप्रभुता और सुरक्षा के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण बन जाता है।
- भारत के SAGAR (क्षेत्र में सभी के लिये सुरक्षा और विकास) तथा MAHASAGAR सिद्धांत समावेशी समुद्री समृद्धि एवं सुरक्षा पर बल देते हैं।
- भारत ने हॉर्मुज़ जलडमरूमध्य और मलक्का जलडमरूमध्य जैसे सामरिक मार्गों (चोकपॉइंट्स) के निकट अपनी नौसैनिक उपस्थिति को मज़बूत किया है, ताकि ऊर्जा तथा व्यापार प्रवाह की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।
- आर्थिक विकास और व्यापार एकीकरण:
- हिंद-प्रशांत क्षेत्र “चाइना+1” रणनीति का प्रमुख केंद्र है, जो उत्पादन विविधीकरण और लचीली आपूर्ति शृंखलाओं को सक्षम बनाता है।
- भारत की हिंद-प्रशांत आर्थिक ढाँचा (IPEF) में भागीदारी और ऑस्ट्रेलिया तथा UAE के साथ मुक्त व्यापार समझौते (FTAs) व्यापार की लचीलापन और मज़बूती बढ़ाते हैं।
- भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEC) हिंद-प्रशांत क्षेत्र के माध्यम से संयुक्त कनेक्टिविटी को मज़बूत करता है।
- रसद और कनेक्टिविटी:
- जलवायु परिवर्तन और ब्लू इकाॅनमी:
- इस क्षेत्र को गंभीर जलवायु खतरों का सामना करना पड़ रहा है, जैसे- समुद्र स्तर में वृद्धि, चक्रवात और प्रवाल भित्तियों का क्षरण।
- भारत ब्लू इकाॅनमी (Blue Economy) में सहयोग को बढ़ावा देता है, जो IORA, आपदा रोधी बुनियादी ढाँचे के लिये गठबंधन (CDRI) और सतत् समुद्री शासन के लिये साझेदारियों के माध्यम से समर्थित है।
- राजनयिक और मानक नेतृत्व:
- भारत हिंद-प्रशांत क्षेत्र का उपयोग खुद को सभ्यात्मक लोकतंत्र और वैश्विक दक्षिण का नेता के रूप में प्रस्तुत करने के लिये करता है।
- IORA की अध्यक्षता (2025–27) और वॉयस ऑफ द ग्लोबल साउथ शिखर सम्मेलन (VOGSS) (2024) जैसी पहलों के माध्यम से भारत समावेशी एवं नियम-आधारित समुद्री शासन को मज़बूत करता है।
हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत के समक्ष क्या चुनौतियाँ हैं?
- सामरिक अस्थिरता: यह क्षेत्र महाशक्तियों के बीच बढ़ती प्रतिस्पर्द्धा से जूझ रहा है। थाईलैंड–कंबोडिया और फ़िलिपींस–चीन के बीच हालिया तनाव, ड्रग कार्टेल व उग्रवादी समूहों, जैसे गैर-राज्यीय कारकों का विस्तार, तथा समुद्री डकैती और साइबर हमलों जैसे उभरते सुरक्षा ख़तरे स्थिति को और जटिल बनाते हैं।
- जलवायु परिवर्तन संबंधी चुनौतियाँ: समुद्र के स्तर में वृद्धि और चरम मौसम की घटनाओं से प्रशांत महासागर के द्वीपों जैसे तुवालु और किरिबाती आदि में तटीय समुदायों को खतरा है।
- नौसैनिक और सामरिक क्षमताओं की सीमा: अमेरिका और चीन जैसी बड़ी शक्तियों की तुलना में भारत की लॉजिस्टिक और वित्तीय क्षमता अभी सीमित है, जिसके कारण हिंद महासागर क्षेत्र के बाहर उसकी सक्रिय उपस्थिति अपेक्षाकृत कम रहती है।
- विश्व बैंक के रसद प्रदर्शन सूचकांक (2023) में भारत 38वें स्थान पर है। भारत की प्रमुख रणनीतिक परियोजना, चाबहार बंदरगाह का केवल आंशिक संचालन हुआ, जबकि चीन के ग्वादर बंदरगाह को सीपीईसी के तहत 2.5 अरब डॉलर से अधिक का नया निवेश प्राप्त हुआ।
- एकीकृत नीति की कमी: भारत की कई पहलें (SAGAR, एक्ट ईस्ट नीति और IPOI) मौजूद हैं, लेकिन कोई एकीकृत राष्ट्रीय हिंद-प्रशांत रणनीति नहीं है, जिससे रणनीतिक स्पष्टता कमज़ोर पड़ती है।
- भू-राजनीतिक संतुलन: भारत की सामरिक स्वायत्तता के कारण क्वाड या AUKUS जैसे समूहों के साथ पूर्ण रूप से तालमेल बैठाना जटिल हो जाता है, जबकि साथ ही रूस और चीन के साथ संबंध बनाए रखना भी आवश्यक है।
- आर्थिक सतर्कता: RCEP से बाहर रहने और सीमित मुक्त व्यापार समझौतों (FTA) के कारण भारत की क्षेत्रीय कूटनीति में आर्थिक प्रभाव क्षमता कमज़ोर पड़ जाती है।
- संस्थागत कमज़ोरियाँ: IORA और BIMSTEC जैसे संगठन सीमित सचिवालय क्षमता तथा अपर्याप्त वित्तपोषण के कारण प्रभावी ढंग से कार्य नहीं कर पाते। सागरमाला जैसी परियोजनाओं के कार्यान्वयन में देरी और गहरे समुद्री बंदरगाहों की सीमित क्षमताएँ भारत के समुद्री व्यापार तथा नौसैनिक पहुँच को बाधित करती हैं।
भारत हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपनी भूमिका कैसे सशक्त बना सकता है?
- कानूनी और सुरक्षा सुधार
- समुद्री डकैती विरोधी विधेयक (2022) समुद्री डकैती-विरोधी अभियानों को कानूनी समर्थन प्रदान करता है।
- भारत नौसैनिक लॉजिस्टिक्स, गहरे समुद्री बंदरगाहों के बुनियादी ढाँचे और मिशन-आधारित तैनाती को सुदृढ़ कर रहा है।
- समुद्री नीति और क्षेत्रीय सहयोग
- महासागर नीति का उद्देश्य हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सुरक्षा और समृद्धि को बढ़ावा देना है।
- भारत AIMS 2050, क्वाड, IORA, IPOI और ASEAN जैसे मंचों के साथ समुद्री सुरक्षा तथा जलवायु अनुकूलन के लिये साझेदारी करता है।
- IMEC, प्रोजेक्ट मौसम और INSV कौंडिन्य जैसी पहलें भारत की समुद्री परंपराओं तथा जागरूकता को सशक्त बनाती हैं।
- ब्लू इकॉनमी और सामरिक कूटनीति
- भारत ब्लू इकॉनमी को प्रोत्साहित कर रहा है और सतत् मत्स्य पालन, महासागरीय ऊर्जा, तथा द्वीपीय आजीविकाओं के लिये समुद्री तल के बुनियादी ढाँचे को विकसित कर रहा है।
- शिक्षा, संस्कृति और प्रवासी भारतीय समुदाय के माध्यम से सॉफ्ट पावर पहुँच को बढ़ाकर क्षेत्रीय प्रभाव को मज़बूत किया जा रहा है।
- व्यापक हिंद-प्रशांत रणनीति
- SAGAR, IPOI, एक्ट ईस्ट एवं IPEF जैसी पहलों को एकीकृत कर भारत संपर्क, सहयोग और सामरिक साझेदारी को और सशक्त बना रहा है।
निष्कर्ष
‘क्षेत्र में सबके लिये सुरक्षा और विकास’ (SAGAR) की अपनी दृष्टि से प्रेरित भारत सुरक्षा, स्थिरता एवं कूटनीति को एकीकृत कर एक नेट सुरक्षा प्रदाता तथा ग्लोबल साउथ तथा हिंद-प्रशांत शक्तियों के बीच एक सेतु के रूप में उभर रहा है। IORA के अध्यक्ष के रूप में, भारत रणनीतिक स्वायत्तता, साझेदारी और क्षमता-विकास को संतुलित करते हुए एक स्थिर एवं समृद्ध समुद्री क्षेत्र सुनिश्चित करने का प्रयास कर रहा है।
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दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. भारत के लिये हिंद-प्रशांत क्षेत्र का सामरिक और आर्थिक महत्त्व पर चर्चा कीजिये। बदलती भू-राजनीतिक चुनौतियों के बीच भारत अपनी भूमिका को कैसे सशक्त बना सकता है? |
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
1. प्रश्न. हिंद-प्रशांत क्या है और भारत के लिये यह क्यों महत्त्वपूर्ण है?
हिंद-प्रशांत क्षेत्र भारतीय और प्रशांत महासागरों को समेटे हुए है। भारत के लिये यह क्षेत्र व्यापार, समुद्री सुरक्षा और क्षेत्रीय प्रभाव के दृष्टिकोण से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
2. प्रश्न. हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत की प्रमुख पहलें कौन-सी हैं?
भारत महासागर नीति को बढ़ावा देता है। IORA, IONS और IMEEC जैसे मंचों का समर्थन करता है तथा मुक्त, खुला एवं नियम-आधारित समुद्री व्यवस्था का समर्थन करता है।
3. प्रश्न. हिंद-प्रशांत में भारत को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है?
भारत को महाशक्ति प्रतिस्पर्द्धा, समुद्री डकैती, गैर-राज्यीय तत्त्वों की गतिविधियाँ, जलवायु परिवर्तन के प्रभाव और महत्त्वपूर्ण समुद्री मार्गों व संसाधनों पर प्रतिस्पर्द्धा जैसी चुनौतियों से निपटना पड़ता है।
4. प्रश्न. ब्लू इकॉनमी भारत के हिंद-प्रशांत लक्ष्यों को कैसे समर्थन देती है?
ब्लू इकॉनमी (Blue Economy) सतत् महासागरीय विकास को प्रोत्साहित करती है, समुद्री बुनियादी ढाँचे को सुदृढ़ बनाती है और क्षेत्र में भारत की कूटनीतिक एवं आर्थिक सहभागिता को बढ़ाती है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)
प्रिलिम्स
प्रश्न. भारत की "पूर्व की ओर देखो नीति" के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2011)
- भारत पूर्वी एशियाई मामलों में खुद को एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्रीय खिलाड़ी के रूप में स्थापित करना चाहता है। ‘
- भारत शीत युद्ध की समाप्ति से उत्पन्न शून्यता को दूर करना चाहता है।
- भारत दक्षिण पूर्व और पूर्वी एशिया में अपने पड़ोसियों के साथ ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंधों को बहाल करना चाहता है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 3
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (d)
मेन्स
प्रश्न. नई त्रि-राष्ट्र साझेदारी AUKUS का उद्देश्य भारत-प्रशांत क्षेत्र में चीन की महत्त्वाकांक्षाओं का मुकाबला करना है। क्या यह क्षेत्र में मौज़ूदा साझेदारियों को खत्म करने जा रहा है? वर्तमान परिदृश्य में AUKUS की शक्ति और प्रभाव पर चर्चा कीजिये। (2021)
