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ड्रग–रेसिस्टेंट ट्यूबरकुलोसिस दवाओं की भारत में कमी

  • 06 Mar 2018
  • 6 min read

चर्चा में क्यों?

  • ड्रग–रेसिस्टेंट ट्यूबरकुलोसिस (DR-TB) के उपचार में प्रयुक्त होने वाली उन्नत पेटेंटीकृत दवाएं भारत में कई हज़ार रोगियों में से केवल 1,000 रोगियों को ही उपलब्ध हैं।
  • DR-TB रोगियों के लिये विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा बेडाक्विलीन (Bedaquiline) और डेलामिनाइड (Delaminid) की सिफारिश की जाती है।

ड्रग–रेसिस्टेंट ट्यूबरकुलोसिस (DR-TB)

  • TB एक बैक्टीरिया-जनित बीमारी है जो कि हवा के माध्यम से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलती है।
  • DR-TB तब होता है जब बैक्टीरिया टीबी के इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवाओं के लिये प्रतिरोधी हो जाते हैं। इसका मतलब यह है कि दवा अब टीबी जीवाणुओं को नहीं मार सकती है।
  • एक अनुमान के मुताबिक़ टीबी की वज़ह से लगभग 1,300 भारतीय हर रोज़ मर जाते हैं।
  • 2.8 मिलियन रोगियों के साथ भारत टीबी के सर्वाधिक रोगियों का घर है।
  • इनमे से लगभग 1,30,000 मरीज़ दवाओं के लिये प्रतिरोधी बन गए हैं।

DR-TB के प्रकार

(1) मल्टी ड्रग–रेसिस्टेंट ट्यूबरकुलोसिस (MDR-TB)

  • यह उन जीवाणुओं के कारण होता है जो कम-से-कम दो अत्यधिक शक्तिशाली फर्स्ट लाइन क्षय रोग प्रतिरोधी दवाओं आइसोनियाज़िड (Isoniazid) और राइफैम्पिन (Rifampin) से उपचार के प्रति प्रतिरोधी होते हैं।
  • इससे पीड़ित रोगी का उपचार करना कठिन होता है क्योंकि उनमें फर्स्ट लाइन ड्रग्स के प्रति प्रतिरोधकता विकसित हो जाती है। इसके उपचार के विकल्प सीमित हैं, साथ ही इनकी लागत भी अधिक है।

(2) एक्स्टेंसिवली ड्रग–रेसिस्टेंट ट्यूबरकुलोसिस (XDR-TB)

  • यह एक दुर्लभ प्रकार का MDR-TB है जो कि आइसोनियाज़िड और राइफैम्पिन के लिये प्रतिरोधक होने के साथ ही किसी फ्लोरोक्विनोलोन (fluoroquinolone) और Amikacin, Kanamycin & Capreomycin नामक तीन इंजेक्टेबल सेकंड लाइन ड्रग्स में से कम-से-कम एक के लिये प्रतिरोधी होता है।

दवाओं की कमी का कारण

  • भारत में लगभग 1.3 लाख DR-TB रोगियों को इन दवाओं की आवश्यकता है लेकिन स्वास्थ्य मंत्रालय के पास बेडाक्विलीन की केवल 10,000 डोज़ और डेलामिनाइड की 400 डोज़ उपलब्ध है, जिन्हें क्रमश: इनके विनिर्माता Janssen (US) और Otsuka Pharmaceuticals (Japan) से डोनेशन के रूप में प्राप्त किया गया है।
  • इन दवाओं के अन्वेषक-विनिर्माता भारतीय दवा निर्माताओं को इसके उत्पादन का लाइसेंस देने के लिये तैयार नहीं हैं जो इन दवाओं को वहनीय कीमतों पर उपलब्ध करा सकते है।
  • इसके अलावा इन दवाओं की पेटेंट धारक कंपनियों द्वारा स्वैच्छिक लाइसेंस देने के स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुरोध को भी ठुकरा दिया गया था। 

समाधान 

  • 19 सितंबर, 2017  को डॉ. सौम्या स्वामीनाथन की अध्यक्षता वाले पैनल द्वारा स्वास्थ्य मंत्रालय को इन दो टीबी ड्रग्स के लिये अनिवार्य लाइसेंस (Compulsory Licence-CL) जारी करने का सुझाव दिया गया था।
  • भारत में ऐसी पर्याप्त कंपनियाँ हैं जो इन दवाओं को वहनीय लागत पर बना सकती हैं और पेटेंटधारक कंपनी को रॉयल्टी भी प्रदान करा सकती हैं।
  • किंतु स्वास्थ्य मंत्रालय ने डॉ. स्वामीनाथन की सिफारिशों पर बहुत कम प्रगति की है। अनिवार्य लाइसेंस समिति की 2014 से कोई बैठक नहीं हुई है।
  • वहीं, कुछ लोगों का मानना है कि अमेरिकी सरकार के दबाव के चलते CL के विकल्प पर शायद ही विचार किया जाएगा।

अनिवार्य लाइसेंस क्या है?

  • जब सरकार द्वारा किसी तृतीय पक्ष को पेटेंटधारक की सहमति के बिना किसी पेटेंटीकृत उत्पाद या प्रक्रिया का उत्पादन करने की अनुमति दी जाती है तो इसे अनिवार्य लाइसेंसिंग कहा जाता है। 
  • अनिवार्य लाइसेंस का प्रावधान बौद्धिक संपदा पर डब्ल्यूटीओ के समझौते (TRIPS) में पेटेंट संरक्षण पर उपलब्ध लचीली व्यवस्थाओं में से एक है। 
  • विश्व व्यापार संगठन की व्यापार-संबंधी बौद्धिक संपदा व्यवस्था के तहत स्वैच्छिक लाइसेंसिंग की प्रतीक्षा किये बिना स्वास्थ्य संबंधी आपातकालीन परिस्थितियों के मामले में सरकार द्वारा CL जारी किया जा सकता है।
  • भारत ने CL विकल्प का पहली बार जर्मन दवा कंपनी बेयर की कैंसर-रोधी दवा नेक्सावार के मामलें में इस्तेमाल किया था।
  • नेक्सावार को बनाने का लाइसेंस भारतीय कंपनी नाटको (Natco) को दिया गया था।
  • इस कदम से इस दवा की कीमतों में 97% तक की कमी आई थी। माना जा रहा है कि इस मामले में नाटको को CL के कारण कई परेशानियों का सामना करना पड़ा जिसके चलते कोई भी जेनरिक दवा कंपनी CL के लिये आवेदन नहीं करना चाहती। 
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