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ब्रह्मपुत्र नदी पर चीन द्वारा निर्मित बांधों का प्रभाव

  • 30 Apr 2020
  • 6 min read

प्रीलिम्स के लिये:

मेकांग नदी, मेकांग नदी आयोग, मेकांग गंगा सहयोग

मेन्स के लिये:

भारत-चीन नदी सहयोग 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में किये गए अध्ययन के अनुसार, मेकांग नदी पर चीन द्वारा बनाए गए बांधों के कारण अनुप्रवाह देशों में सूखे की स्थिति देखी गई। 

मुख्य बिंदु:

  • यह अध्ययन बैंकॉक में 'सस्टेनेबल इन्फ्रास्ट्रक्चर पार्टनरशिप' (Sustainable Infrastructure Partnership in Bangkok- SIPB) और ‘लोअर मेकांग इनिशिएटिव’ (Lower Mekong Initiative- LMI) द्वारा प्रकाशित किया गया था।  
  • इस अध्ययन को अमेरिकी सरकार द्वारा वित्त पोषित किया गया है। 
  • अध्ययन में कहा गया है कि वर्ष 2012 से मेकांग नदी पर बनाए गए 6 बांधों के कारण नदी का प्राकृतिक प्रवाह प्रभावित हुआ है तथा इससे अनुप्रवाह क्षेत्रों में सूखे की स्थिति उत्पन्न हो गई।
  • अध्ययन ने इस पर नवीन सवाल खड़े किये हैं कि क्या चीन में उत्पन्न होने वाली नदियों जैसे कि ‘ब्रह्मपुत्र’ आदि पर बनाए गए बांध अनुप्रवाह क्षेत्रों के देशों को मेकांग नदी की तरह ही प्रभावित कर सकते हैं।

मेकांग नदी: (Mekong River)

  • मेकांग नदी चीन से निकलकर म्यांमार, लाओस, थाईलैंड, कंबोडिया और वियतनाम तक बहती है। 

Mekong-River

मेकांग नदी आयोग (Mekong River Commission- MRC):

  • MRC में कंबोडिया, लाओस, थाईलैंड और वियतनाम शामिल हैं। मेकांग नदी आयोग एकमात्र अंतर-सरकारी संगठन है जो संयुक्त रूप से साझा जल संसाधनों और मेकांग नदी के सतत् प्रबंधन की दिशा में कार्य करता है। 

मेकांग गंगा सहयोग (Mekong-Ganga Cooperation- MGC) :

  • मेकांग-गंगा सहयोग में छह देश जिसमें भारत और पाँच आसियान देश अर्थात् कंबोडिया, लाओस, म्यांमार, थाईलैंड और वियतनाम शामिल हैं। 
  • यह पर्यटन, संस्कृति, शिक्षा, परिवहन और संचार में सहयोग की दिशा में प्रारंभ की गई एक पहल है। 
  • इसे वर्ष 2000 में लाओस के वियनतियाने (Vientiane) में प्रारंभ किया गया था।
  • गंगा और मेकांग दोनों ही नदियों में प्राचीन सभ्यताएँ पनपी हैं, अत: MGC पहल का उद्देश्य इन दो प्रमुख नदी घाटियों में बसे लोगों के बीच संपर्कों को सुविधाजनक बनाना है।

चीन द्वारा बनाए गए बांध:

  • वर्ष 2015 में चीन द्वारा ब्रह्मपुत्र नदी पर अपनी पहली पनबिजली परियोजना का संचालन ज़ंगमु (Zangmu) नामक स्थान पर किया गया तथा चीन द्वारा डागू (Dagu), जिएक्सु (Jiexu) और जिअचा (Jiacha) में तीन अन्य बांध विकसित किये जा रहे हैं।

समस्या का कारण:

  • भारत तथा चीन के मध्य कोई जल-साझाकरण समझौता नहीं हुआ है अत: नदियों के संबंध में व्यापक सूचना साझाकरण का अभाव रहता है, हालाँकि दोनों पक्ष जल विज्ञान (Hydrological) संबंधी आँकड़े साझा करते हैं।

भारत के हितों पर संभावित प्रभाव:

  • जलविद्युत परियोजनाओं के कारण ब्रह्मपुत्र नदी में पानी की कमी होने से भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में सूखे की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। 
  • बांधों के निर्माण के पश्चात् चीन यदि मानसून समय अतिरिक्त पानी छोड़ने से ब्रह्मपुत्र नदी के जल प्रवाह में वृद्धि होने से अनुप्रवाह क्षेत्रों में बाढ़ की संभावना बढ़ सकती है। 
  • नदियों के आस-पास जल संबंधी परियोजनाओं के चलते चीन ने अपनी नदियों को काफी प्रदूषित किया है और इसके कारण चीन से भारत की ओर प्रवाहित होने वाली नदियों के जल की गुणवत्ता पर भी प्रश्नचिह्न खड़ा हो गया है। 
  • असम के ‘काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान’ और ‘पोबितोरा वन्यजीव अभयारण्य’; जो कि ब्रह्मपुत्र नदी के पानी पर निर्भर हैं, में भी पानी की आपूर्ति प्रभावित हो सकती है।

आगे की राह:

  • भारत को चीन के साथ ब्रह्मपुत्र में नदी के पानी के मुद्दे को लगातार उठाना जारी रखना चाहिये क्योंकि यह एकमात्र तरीका है जो यह सुनिश्चित करेगा कि मेकांग नदी जिस प्रकार चीन के बांधों से प्रभावित हुई है उसी प्रकार का प्रभाव ब्रह्मपुत्र पर नहीं हो। 
  • भारतीय अधिकारियों का मानना है कि चीन द्वारा बनाए गए बांधों के कारण ब्रह्मपुत्र नदी का प्रवाह अधिक प्रभावित नहीं होगा क्योंकि चीन द्वारा केवल बिजली उत्पादन के लिये पानी का भंडारण किया जा रहा है। इसके अलावा ब्रह्मपुत्र नदी का प्रवाह पूर्णतया ऊपरी प्रवाह/अपस्ट्रीम पर निर्भर नहीं है तथा इसका लगभग 35% बेसिन भारत में है। अत: भारत को नदी प्रबंधन की दिशा में अधिक बेहतर कदम उठाने चाहिये 

स्रोत: द हिंदू

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