इंदौर शाखा: IAS और MPPSC फाउंडेशन बैच-शुरुआत क्रमशः 6 मई और 13 मई   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत द्वारा नए एक्सोप्लैनेट की खोज और इसका वैज्ञानिक महत्त्व

  • 22 Jun 2018
  • 7 min read

चर्चा में क्यों?

भौतिक शोध प्रयोगशाला, अहमदाबाद के वैज्ञानिक हाल ही में एक एक्सोप्लैनेट (Exoplanet) की खोज करने वाले पहले भारतीय बने। माउंट आबू वेधशाला में अवलोकन के दौरान 600 प्रकाश वर्ष दूर एक तारे की कक्षा में इसे देखा गया जिसकी एक्सोप्लैनेट के रूप में पुष्टि की गई। एस्ट्रोनॉमिकल जर्नल में इस खोज को प्रकाशित किया गया है। यह भारत के लिये विज्ञान की दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है?

एक्सोप्लैनेट को क्यों ट्रैक किया गया?

  • हमें यह समझने की ज़रूरत है कि कैसे ग्रह तारों के चारों ओर बनते हैं, यह जानने के लिये कि क्या हमारी सौर प्रणाली अद्वितीय है या ऐसी अन्य प्रणालियाँ भी हैं, और क्या ये ग्रह तारों से सही दूरी पर हैं ताकि यह समझा जा सके कि यहाँ जीवन के अस्तित्व के लिये उचित परिस्थितियाँ हैं अथवा नहीं।
  • वैज्ञानिकों द्वारा वर्ष 2012 से एक्सोप्लैनेट का अवलोकन किया जा रहा है।

भारत ने किस ग्रह की पहचान की है?

  • वैज्ञानिक EPIC 211945201b या K2-236b का डेढ़ साल से अवलोकन कर रहे थे| अवलोकन के दौरान महसूस किया गया कि यह (EPIC 211945201 या K2-236) वास्तव में तारे के चारों ओर घूमता एक ग्रह है। 
  • यह लगभग 70% लौह,  बर्फ या सिलिकेट से बना है और इसमें 30% गैस है|
  • यह लगभग 27 गुना पृथ्वी के द्रव्यमान और 6 गुना पृथ्वी की त्रिज्या के बराबर है, जो द्रव्यमान और त्रिज्या के संदर्भ में नेप्च्यून के लगभग बराबर है।
  • इस ग्रह पर एक वर्ष लगभग 19.5 पृथ्वी-दिन के बराबर है और इसके सतह का तापमान 600 डिग्री सेल्सियस है| अतः यहाँ रहने योग्य वातावरण नहीं है|
  • सूर्य-पृथ्वी की दूरी की तुलना में यह अपने तारे से करीब सात गुना बड़ा है।

खोज महत्त्वपूर्ण क्यों है?

  • एक्सोप्लैनेट का पता लगाना बहुत मुश्किल है। यह एक दीपगृह (lighthouse) की उज्ज्वल रोशनी में एक जुगनू को खोजने की कोशिश की तरह है।
  • एक्सोप्लैनेट की प्रत्यक्ष इमेजिंग लगभग असंभव है,  हालाँकि नासा और अन्य वैज्ञानिकों द्वारा नई तकनीक विकसित की जा रही है।
  • दुनिया भर में केवल 5-6 स्पेक्ट्रोग्राफ हैं जो उच्च परिशुद्धता (रेडियल वेग 2 मीटर से कम) पर एक्सोप्लैनेट के द्रव्यमान को माप सकते हैं।
  • अमेरिका और यूरोप के अलावा भारत एकमात्र ऐसा देश है जिसके पास ऐसा स्पेक्ट्रोग्राफ है।

PRL स्पेक्ट्रोग्राफ क्या है?

  • वैज्ञानिकों ने PRL को PARAS (PRL Advance Radial-velocity Abu-sky Search) स्पेक्ट्रोग्राफ में तैयार किया और न केवल भारत से बल्कि दुनिया के विभिन्न हिस्सों से  विशेष रूप से निर्मित घटक प्राप्त किये।
  • इसे माउंट आबू वेधशाला में एक साथ लाया गया। जब स्पेक्ट्रोग्राफ बना लिया गया तब उसे एक बहुत स्थिर वातावरण में वैक्यूम चैंबर में रखा गया जिससे सटीक द्रव्यमान माप प्राप्त करने में मदद मिली। तत्पश्चात् इसे दूरबीन से प्रकाशमान स्पेक्ट्रोग्राफ में लाया गया।
  • स्पेक्ट्रोग्राफ पर यह प्रयोग 2012 में शुरू किया गया था| एक्सोप्लैनेट की खोज एक सतत् कार्यक्रम है।

प्रयोग कैसे किये गए?

  • सबसे पहले एक्सोप्लैनेट की विशेषताओं और इसके मौलिक मानकों जैसे द्रव्यमान, त्रिज्या तथा इसमें किस तरह का वातावरण होता है, को समझना महत्त्वपूर्ण है|
  • यदि आप द्रव्यमान और त्रिज्या जानते हैं, तो घनत्व प्राप्त करना आसान है, यदि आपके पास घनत्व है, तो आपको संरचना के बारे में कोई अंदाजा नहीं होगा।
  • यदि कोई ग्रह एक तारे के चारों ओर घूम रहा है तो ग्रह की उपस्थिति के कारण तारा डूब (wobble) जाएगा। इस संबंध में तारे का निरीक्षण कर यह पता लगाने की कोशिश की गई कि यह डूब (wobble) रहा है या नहीं। इस जानकारी का उपयोग करके द्रव्यमान,  कक्षा (orbit) के बारे में सारी जानकारी प्राप्त की गई।
  • यह वोबल (wobble) एक सटीक स्पेक्ट्रोग्राफ का उपयोग करके मापा जाता है। ग्रह की त्रिज्या को तब मापा जाता है जब यह तारे और पृथ्वी के बीच से गुज़रता है। यदि बीच में कोई ग्रह है, तो तारे की रोशनी कम हो जाती है।
  • तारे के बहाव में डूबने की गहराई को मापकर हम ग्रह के त्रिज्या का अनुमान लगा सकते हैं। लेकिन यह ग्रह के द्रव्यमान को नहीं बताता है। यही कारण है की नासा का केपलर या K2 इसे पहचानने में सफल हो पाया कि यह एक्सोप्लैनेट है| 
  • PARAS जैसे स्पेक्ट्रोग्राफ का उपयोग करके डोप्लर स्पेक्ट्रोस्कोपी के माध्यम से वोबल निर्धारित करने के लिये आवश्यक है| पाँच-छह लोगों की एक टीम ने PARAS-1 का उपयोग किया।

इस खोज से भारत में ग्रह विज्ञान की क्या संभावनाएँ हैं?

  • इस खोज का अंतिम उद्देश्य निकट से पृथ्वी के द्रव्यमान (2 से 10 पृथ्वी द्रव्यमान) से ग्रहों का पता लगाना है।
  • इसरो इसमें बहुत रुचि ले रहा है,  इसलिये भविष्य में माउंट आबू में बड़ा स्पेक्ट्रोग्राफ वाला एक नया 2.5-मीटर दूरबीन स्थापित होगा। इसे PARAS-2 का नाम दिया जाएगा।
  • यह पृथ्वी के द्रव्यमान से दो या चार गुना छोटे एक्सोप्लैनेट को भी माप सकता है। इसके 2020 तक कार्य करने की संभावना है।
  • इसके अलावा ऐसी उम्मीद की जा रही है कि इसरो एक्सोप्लैनेट से संबंधित कुछ अंतरिक्ष मिशन भी लॉन्च करेगा।
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2