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भारतीय अर्थव्यवस्था

उच्च खाद्य मुद्रास्फीति

  • 24 Jul 2024
  • 17 min read

प्रिलिम्स के लिये:

खुदरा मुद्रास्फीति, भारतीय रिज़र्व बैंक, उपभोक्ता खाद्य मूल्य मुद्रास्फीति (CFPI), खाद्य मूल्य वृद्धि, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) सीपीआई-संयुक्त (CPI-C), थोक मूल्य सूचकांक, लागतजनित मुद्रास्फीति, ड्रिप सिंचाई, न्यूनतम निर्यात मूल्य (MEP), हेडलाइन मुद्रास्फीति, रूस-यूक्रेन संघर्ष

मेन्स के लिये:

भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये खाद्य मुद्रास्फीति का महत्त्व और चुनौतियाँ।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India- RBI) ने "अर्थव्यवस्था की स्थिति" शीर्षक वाले अपने मासिक बुलेटिन में बताया कि जून 2024 में सब्जियों की कीमतों में होने वाली तीव्र वृद्धि ने 4% लक्ष्य की ओर अपस्फीति प्रक्रिया को बाधित किया है।

  • इस रिपोर्ट में इस बात पर बल दिया गया है कि मौद्रिक नीति को मुद्रास्फीति को 4% के लक्ष्य के अनुरूप बनाए रखने पर केंद्रित रहना चाहिये।

भारत में उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति के हालिया रुझान

  • हेडलाइन मुद्रास्फीति: खाद्य कीमतों के कारण वर्ष-दर-वर्ष (Year-on-Year) हेडलाइन मुद्रास्फीति मई 2024 के 4.8% से बढ़कर जून 2024 में 5.1% हो गई है।
  • खाद्य मुद्रास्फीति में वृद्धि: खाद्य मुद्रास्फीति मई 2024 के 7.9% से बढ़कर जून 2024 में 8.4% हो गई है, जिसमें अनाज, दालों और खाद्य तेलों का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा।
  • उच्च आवृत्ति डेटा: जुलाई के डेटा के अनुसार अनाज (मुख्य रूप से गेहूँ), दालों (चना और अरहर/तूअर) और खाद्य तेलों (सरसों और मूंगफली) की कीमतों में वृद्धि हुई।

खाद्य मुद्रास्फीति में वृद्धि के क्या कारण हैं?

  • तापमान और मौसम संबंधी चुनौतियाँ: प्रतिकूल मौसम की स्थितियाँ जैसे कि इस वर्ष कमज़ोर मानसून और शुष्क पवनों के कारण फसलों (विशेष रूप से अनाज, दालों तथा चीनी) की पैदावार प्रभावित हुई है, जिससे घरेलू स्तर पर आपूर्ति की कमी होने के साथ कीमतें बढ़ी हैं।
    • उदाहरण के लिये अनाज और दालों की मुद्रास्फीति अप्रैल 2024 में दोहरे अंकों में रही है।
  • ईंधन की कीमतें: कृषि के प्रमुख इनपुट (ईंधन) की कीमत में हाल के वर्षों में काफी वृद्धि देखी गई है।
    • उदाहरण के लिये ईंधन में 1% की मुद्रास्फीति से खाद्य मुद्रास्फीति में 0.13% की वृद्धि होती है।
  • परिवहन संबंधी मुद्दे: परिवहन बाधाओं, श्रम की कमी और रसद संबंधी चुनौतियों जैसे कारकों से आपूर्ति शृंखला में होने वाले व्यवधान के कारण खाद्य उत्पादों की उपलब्धता में कमी होने से कीमतों में वृद्धि हो सकती है।
  • उत्पादन लागत: किसानों के लिये उत्पादन लागत बढ़ने से खाद्य पदार्थों की कीमतें बढ़ सकती हैं। इसमें ईंधन, उर्वरक और श्रम लागत में होने वाली वृद्धि शामिल है।
  • वैश्विक कारण: रूस-यूक्रेन के बीच चल रहे संघर्ष का वैश्विक (विशेष तौर पर विकासशील देशों पर) प्रभाव पड़ रहा है। जिससे ऊर्जा और वस्तुओं की कीमतें बढ़ने के साथ वैश्विक रसद आपूर्ति शृंखला बाधित हुई है। 
    • यूक्रेन और रूस की वैश्विक गेहूँ निर्यात में 30% तक हिस्सेदारी है, जिससे खाद्य कीमतों में वृद्धि हुई है।

खाद्य महँगाई/मुद्रास्फीति को रोकने के लिये सरकार ने क्या उपाय किये हैं?

  • सब्सिडी वाली वस्तुएँ: सरकार अपने नेटवर्क के माध्यम से प्याज व टमाटर जैसी सब्सिडी वाली सब्जियों का वितरण बढ़ा रही है तथा कीमतों को स्थिर करने के लिये गेहूँ व चीनी का स्टॉक जारी कर रही है।
  • बफर स्टॉक प्रबंधन: सरकार गेहूँ, चावल और दालों जैसी आवश्यक खाद्य वस्तुओं का बफर स्टॉक बनाए रखती है ताकि इनकी कमी या कीमतों में उछाल के समय बाज़ार में इसे जारी किया जा सके।
  • खरीद और PDS: सार्वजनिक वितरण प्रणाली (Public Distribution System- PDS) के माध्यम से सब्सिडी वाले अनाज प्रदान करके गरीबों के लिये खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की जाती है। खरीद बढ़ाने और PDS कवरेज का विस्तार करने से कीमतों को स्थिर करने में मदद मिल सकती है।
  • न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP): किसानों को उनकी उपज के लिये लाभकारी मूल्य की गारंटी देने से उत्पादन को प्रोत्साहन मिलता है, जिससे आपूर्ति बढ़ती है और संभावित रूप से कीमतें कम होती हैं।
  • आयात-निर्यात नीतियाँ: सरकार घरेलू आपूर्ति और कीमतों को प्रबंधित करने के लिये खाद्य वस्तुओं के आयात एवं निर्यात को विनियमित कर सकती है। उदाहरण के लिये आपूर्ति बढ़ाने हेतु आयात शुल्क कम किया जा सकता है, जबकि घरेलू कीमतों को नियंत्रित करने के लिये निर्यात पर प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं।
  • बुनियादी ढाँचे का विकास: कोल्ड स्टोरेज, वेयरहाउसिंग और परिवहन सुविधाओं में निवेश से फसल-कटाई के बाद उपज में होने वाले नुकसान में कमी आने से आपूर्ति शृंखला दक्षता में सुधार होता है और कीमतें कम होती हैं।
  • प्रौद्योगिकी को अपनाना: कृषि में प्रौद्योगिकी के उपयोग को बढ़ावा देने से (जैसे कि सूक्ष्म कृषि व मौसम पूर्वानुमान) उत्पादकता को बढ़ावा मिल सकता है तथा उत्पादन लागत कम हो सकती है।

मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण से खाद्य पदार्थ को हटाना (आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24)

  • RBI की मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण रणनीति: मार्च 2021 में सरकार ने भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के लचीले मुद्रास्फीति लक्ष्य को मार्च 2026 तक पाँच वर्षों के लिये 2-6% पर बनाए रखा।
    • वर्ष 2016 में प्रारंभ किये गए इस ढाँचे के तहत, RBI द्वारा उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) द्वारा निर्धारित की गई हेडलाइन मुद्रास्फीति को लक्षित किया जाता है।
  • आर्थिक सर्वेक्षण के सुझाव:
    • आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 में भारत के मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण ढाँचे से खाद्य मुद्रास्फीति को बाहर करने का सुझाव दिया गया है।
    • विकासशील देशों में खाद्य पदार्थों की CPI हेडलाइन मुद्रास्फीति में 46% हिस्सेदारी होती है, इसलिये  खाद्य कीमतों को नियंत्रित करना समग्र मुद्रास्फीति को प्रबंधित करने की कुंजी है।
      • जून 2024 में समग्र मुद्रास्फीति 5.1% थी,जिसमें खाद्य मुद्रास्फीति 9.4% और कोर मुद्रास्फीति 3.1% थी।
  • मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण से खाद्य पदार्थों को बाहर रखने के कारण:
    • आपूर्ति-प्रेरित मूल्य परिवर्तन: खाद्य मूल्य में उतार-चढ़ाव मुख्य रूप से मांग के बजाय आपूर्ति आघातों (उदाहरण के लिये: खराब फसल, जलवायु स्थितियों) के कारण होता है। 
      • मांग-पक्ष के दबावों से निपटने हेतु बनाए गए पारंपरिक मौद्रिक नीति उपकरण, आपूर्ति-प्रेरित परिवर्तनों के लिये अप्रभावी हैं।
    • प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT): गरीब और निम्न आय वाले उपभोक्ताओं को बढ़ती खाद्य कीमतों से निपटने में सहायता करने के लिये इस सर्वेक्षण में प्रत्यक्ष लाभ अंतरण या कूपन का उपयोग करने का सुझाव दिया गया है, जो मुद्रास्फीति ढाँचे को बाधित किये बिना लक्षित सहायता प्रदान करता है।
    • कोर मुद्रास्फीति पर ध्यान: खाद्य वस्तुओं को बाहर करने से कोर मुद्रास्फीति पर ध्यान केंद्रित हो सकेगा, जो अंतर्निहित मुद्रास्फीति की प्रवृत्तियों और अर्थव्यवस्था को बेहतर ढंग से प्रतिबिंबित करती है क्योंकि यह अस्थायी आघातों से कम प्रभावित होती है।
    • अंतर्राष्ट्रीय प्रथाएँ: अमेरिका, ब्रिटेन और कनाडा जैसे देश भी अधिक स्थिर एवं पूर्वानुमानित मौद्रिक नीति ढाँचे को बनाए रखने के लिये अपने मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण में खाद्य और ऊर्जा की कीमतों को शामिल नहीं करते हैं।

नोट:

  • उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) बनाम थोक मूल्य सूचकांक (WPI):
    • WPI उत्पादक स्तर पर मुद्रास्फीति को ट्रैक करता है और CPI उपभोक्ता स्तर पर मूल्य स्तरों में परिवर्तन को दर्शाता है। 
    • WPI सेवाओं की कीमतों में परिवर्तन को नहीं दर्शाता है, जबकि CPI दर्शाता है।
    • हेडलाइन मुद्रास्फीति और कोर मुद्रास्फीति:
        • हेडलाइन मुद्रास्फीति कुल आर्थिक मुद्रास्फीति का एक माप है जिसमें खाद्य और ऊर्जा की कीमतें शामिल होती हैं।
      • कोर मुद्रास्फीति वस्तुओं और सेवाओं की लागत में परिवर्तन है, लेकिन इसमें खाद्य तथा ऊर्जा क्षेत्र की लागत शामिल नहीं है।
        • मुद्रास्फीति के इस माप में इन वस्तुओं को शामिल नहीं किया जाता, क्योंकि इनकी कीमतें बहुत अधिक अस्थिर होती हैं।
    • कोर मुद्रास्फीति = हेडलाइन मुद्रास्फीति - (खाद्य और ईंधन) मुद्रास्फीति।

    आगे की राह:

    • आपूर्ति शृंखला में सुधार: भंडारण सुविधाओं, कोल्ड चेन और परिवहन जैसी बुनियादी संरचनाओं में निवेश से फसल-उपरांत होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है और यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि खाद्यान्न उपभोक्ताओं तक तेज़ी से और बेहतर स्थिति में पहुँचे, जिससे कीमतें स्थिर रहेंगी।
    • नियामक उपाय: मूल्य नियंत्रण और निगरानी से आवश्यक वस्तुओं पर अस्थायी मूल्य नियंत्रण लागू करके मुद्रास्फीति के दौरान तत्काल राहत प्रदान की जा सकती है।
      • आवश्यक वस्तु अधिनियम को मज़बूत करने से भंडारण और आवाजाही को विनियमित करने, जमाखोरी को रोकने और उचित मूल्य पर उपलब्धता सुनिश्चित करने में सहायता मिल सकती है।
    • प्रौद्योगिकी में निवेश: आधुनिक कृषि तकनीकों और प्रौद्योगिकियों (जैसे परिशुद्ध कृषि और आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलें) के उपयोग को प्रोत्साहित करने से पैदावार में वृद्धि हो सकती है।
      • आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23 के अनुसार नई प्रौद्योगिकियों को अपनाने से उत्पादकता में संभावित रूप से 20-30% की वृद्धि हो सकती है।
    • फसल विविधीकरण को बढ़ावा देना: फसल विविधीकरण को बढ़ावा देने से कीमतों को स्थिर करने में मदद मिल सकती है। उदाहरण के लिये, पारंपरिक फसलों से दलहन और तिलहन की ओर रुख करने से आयात पर निर्भरता कम हो सकती है एवं  स्थानीय बाज़ारों में स्थिरता आ सकती है।
    • बाज़ार सुधार: कृषि उपज बाज़ार समितियों (APMC) को मज़बूत करना और अधिक विनियमित बाज़ारों की स्थापना से बेहतर मूल्य निर्धारण सुनिश्चित हो सकता है एवं बिचौलियों का प्रभाव कम हो सकता है।
      • इसके अतिरिक्त e-NAM  (राष्ट्रीय कृषि बाज़ार) जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म किसानों को प्रत्यक्ष रूप से खरीदारों से जोड़ सकते हैं, जिससे उन्हें बेहतर मूल्य प्राप्त करने में मदद मिल सकती है।

    दृष्टि मेन्स प्रश्न:

    Q. भारत में बढ़ती खाद्य मुद्रास्फीति हेतु उत्तरदायी प्राथमिक कारकों को बताते हुए चर्चा कीजिये कि समग्र मुद्रास्फीति एवं खाद्य मुद्रास्फीति के बीच इस अंतर को कम करने के लिये कौन-सी रणनीति अपनाई जा सकती है?

      यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

    प्रिलिम्स: 

    प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020) 

    1. खाद्य वस्तुओं का ‘उपभोक्ता मूल्य सूचकांक’ (CPI) भार (Weightage) उनके ‘थोक मूल्य सूचकांक’ (WPI) में दिये गए भार से अधिक है।
    2.  WPI, सेवाओं के मूल्यों में होने वाले परिवर्तनों को नहीं मापता, जैसा कि CPI करता है।
    3.  भारतीय रिज़र्व बैंक ने अब मुद्रास्फीति के मुख्य मान तथा प्रमुख नीतिगत दरों के निर्धारण हेतु WPI को अपना लिया है।

    उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

    (a) केवल 1 और 2
    (b) केवल 2
    (c) केवल 3
    (d) 1, 2 और 3 

    उत्तर: (a) 


    प्रश्न. यदि भारतीय रिज़र्व बैंक एक विस्तारवादी मौद्रिक नीति अपनाने का निर्णय लेता है, तो वह निम्नलिखित में से क्या नहीं करेगा? (2020)

    1. वैधानिक तरलता अनुपात में कटौती और अनुकूलन
    2. सीमांत स्थायी सुविधा दर में बढ़ोतरी
    3. बैंक रेट और रेपो रेट में कटौती

    नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

    (a) केवल 1 और 2
    (b) केवल 2
    (c) केवल 1 और 3
    (d) 1, 2 और 3

    उत्तर: (b)


    मेन्स 

    प्रश्न . एक दृष्टिकोण यह भी है कि राज्य अधिनियमों के अधीन स्थापित कृषि उत्पादन बाज़ार समितियों (APMC) ने भारत में न केवल कृषि के विकास को बाधित किया है, बल्कि वे खाद्य वस्तुओं की महँगाई का कारण भी रही हैं। समालोचनापूर्वक परीक्षण कीजिये।(2014)

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