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वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा सूचकांक 2021

  • 10 Dec 2021
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये:

वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा सूचकांक 2021, नीति आयोग

मेन्स के लिये:

वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा सूचकांक 2021 में विभिन्न देशों एवं भारत के स्वास्थ्य क्षेत्र की स्थिति

चर्चा में क्यों?

हाल ही में वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा सूचकांक (Global Health Security Index) 2021 जारी किया गया है।

  • भारत में नीति आयोग स्वयं का स्वास्थ्य सूचकांक जारी करता है।

प्रमुख बिंदु

  • वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा सूचकांक 2021 
    • परिचय:
      • इसमें 195 देशों में स्वास्थ्य सुरक्षा और संबंधित क्षमताओं का आकलन और बेंचमार्किंग की गई है।
      • इसे न्यूक्लियर थ्रेट इनिशिएटिव (NTI) और जॉन्स हॉपकिन्स सेंटर की साझेदारी में विकसित किया गया है।
        • NTI एक गैर-लाभकारी वैश्विक सुरक्षा संगठन है जो मानवता को खतरे में डालने वाले परमाणु एवं जैविक खतरों को कम करने पर केंद्रित है।
        • जॉन्स हॉपकिन्स सेंटर सार्वजनिक स्वास्थ्य में संचार की महत्त्वपूर्ण भूमिका को पहचानने के लिये बनाया गया था।

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  • रैंकिंग के तरीके:
    • वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा सूचकांक छह श्रेणियों में देशों की स्वास्थ्य सुरक्षा और क्षमताओं का आकलन करता है।
    • छह श्रेणियाँ इस प्रकार हैं:
      • रोकथाम: रोगजनकों के उद्भव की रोकथाम।
      • पता लगाना और रिपोर्टिंग: संभावित अंतर्राष्ट्रीय चिंता की महामारी के लिये प्रारंभिक पहचान और रिपोर्टिंग।
      • तीव्र प्रतिक्रिया: एक महामारी के प्रसार की तीव्र प्रतिक्रिया और शमन।
      • स्वास्थ्य प्रणाली: बीमारों के इलाज और स्वास्थ्य कर्मियों की सुरक्षा के लिये पर्याप्त और मज़बूत स्वास्थ्य प्रणाली।
      • अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों का अनुपालन: राष्ट्रीय क्षमता में सुधार के लिये प्रतिबद्धता, कमियों को दूर करने हेतु वित्तीय योजनाओं और वैश्विक मानदंडों का पालन करना।
      • पर्यावरण जोखिम: समग्र पर्यावरण जोखिम और जैविक खतरों के प्रति देश की संवेदनशीलता।
    •  सूचकांक 0-100 अंकों के आधार पर देशों की क्षमताओं का आकलन करता है, जिसमें 100 अंक उच्चतम स्तर की तैयारी का प्रतिनिधित्व करता है। वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा (GHS) सूचकांक की स्कोरिंग प्रणाली में तीन स्तर शामिल हैं:
      • निम्न स्कोर: 0 और 33.3 के बीच अंक प्राप्त करने वाले देश निचले स्तर पर हैं।
      • मध्यम स्कोर: 33.4 और 66.6 के बीच अंक प्राप्त करने वाले देश मध्यम  स्तर पर हैं।
      • उच्च स्कोर: 66.7 और 100 के बीच स्कोर करने वाले देश उच्च या "शीर्ष" स्तर पर हैं।
  • रैंकिंग:
    • भारत:
      • भारत का स्कोर 42.8 (100 में से) है और वर्ष 2019 की तुलना में इसमें 0.8 अंकों की गिरावट हुई है।
    • विश्व:
      • भारत के तीन पड़ोसी देशों जैसे बांग्लादेश, श्रीलंका और मालदीव ने अपने स्कोर में 1-1.2 अंकों तक का सुधार किया है।
      • GHS सूचकांक स्कोर के मामले में विश्व का समग्र प्रदर्शन वर्ष 2021 में घटकर 38.9 अंक (100 में से) हो गया है, जबकि GHS सूचकांक, 2019 में यह स्कोर 40.2  था।
      • वर्ष 2021 में किसी भी देश ने रैंकिंग के शीर्ष स्तर में अंक प्राप्त नहीं किया है और किसी भी देश ने 75.9 अंक से अधिक अंक प्राप्त नहीं किया।
  • देशों का समग्र प्रदर्शन:
    • भविष्य की महामारी
      • समग्र आय स्तर वाले देश भविष्य की एपिडेमिक और पेंडेमिक के खतरों से निपटने के लिये व्यापक रूप से तैयार नहीं हैं।
        • जिसके परिणामस्वरूप संक्रामक रोगों के कारण अगले दशक में वैश्विक अर्थव्यवस्था पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ने की संभावना है।
    • अपर्याप्त स्वास्थ्य क्षमताएँ:
      • सभी देशों में स्वास्थ्य क्षमताएँ अपर्याप्त थीं। 
        • एपिडेमिक और पेंडेमिक की तैयारी के लिये 195 देशों की क्षमता को मापने वाले सूचकांक के अनुसार, इस अपर्याप्तता ने विश्व को भविष्य की स्वास्थ्य आपात स्थितियों के प्रति गंभीर रूप से सुभेद्य बना दिया।
    • राष्ट्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल:
      • मूल्यांकन किये गए देशों में से 65% ने महामारी या महामारी वाले रोगों के लिये एक व्यापक राष्ट्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकालीन प्रतिक्रिया योजना को प्रकाशित और कार्यान्वित नहीं किया।
    • चिकित्सा प्रत्युपाय/प्रतिवाद:
      • 73% देशों के पास सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल के दौरान, टीके और एंटीवायरल दवाओं जैसे चिकित्सा प्रतिवादों हेतु  शीघ्र अनुमोदन प्रदान नहीं हुआ।
      • इस प्रकार, विश्व भविष्य में स्वास्थ्य आपात स्थितियों के प्रति गंभीर रूप से सुभेद्य है।
    • वित्तीय निवेश की कमी:
      • उच्च आय वाले देशों सहित अधिकांश देशों ने महामारी या महामारी की तैयारियों को मज़बूत करने के लिये समर्पित वित्तीय निवेश नहीं किया है।
        • मूल्यांकन में शामिल 195 देशों में से लगभग 79% ने महामारी के खतरों से निपटने के लिये अपनी क्षमता में सुधार करने हेतु  पिछले तीन वर्षों के भीतर राष्ट्रीय धन आवंटित नहीं किया था।
    • सरकारों में जनता का विश्वास:
      • 82% देशों में सरकार के प्रति जनता का विश्वास निम्न से मध्यम स्तर पर है।
        • स्वास्थ्य आपात स्थिति प्रभावी शासन के साथ एक मज़बूत सार्वजनिक स्वास्थ्य बुनियादी ढाँचे की मांग करती है। लेकिन सरकार पर भरोसा, जो कि कोविड-19 के प्रति देशों की प्रतिक्रियाओं की सफलता से जुड़ा एक प्रमुख कारक रहा है, कम हुआ है तथा इसमें निरंतरता बनी हुई है।
  • सिफारिशें:
    • स्वास्थ्य सुरक्षा निधि का आवंटन:
      • देशों को राष्ट्रीय बजट में स्वास्थ्य सुरक्षा निधि आवंटित करनी चाहिये तथा अपने जोखिमों की पहचान कर अंतराल को भरने के लिये एक राष्ट्रीय योजना विकसित करने हेतु GHS 2021 सूचकांक की सहायता से आकलन करना चाहिये।
    • अतिरिक्त सहायता:
      • GHS सूचकांक का उपयोग अंतर्राष्ट्रीय संगठनों को अतिरिक्त सहायता की आवश्यकता वाले देशों की पहचान करने हेतु किया जाना चाहिये।
    • निजी क्षेत्र की भागीदारी:
      • निजी क्षेत्र को सरकारों के साथ साझेदारी करने के अवसर तलाशने हेतु भी ‘वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा सूचकांक’ का उपयोग करना चाहिये।
    • नई वित्त व्यवस्था:
      • सामाजिक कार्यों हेतु वित्तपोषण प्रदान करने वाले समूहों को नए वित्तपोषण तंत्र विकसित करने चाहिये और संसाधनों को प्राथमिकता देने के लिये इस सूचकांक का उपयोग करना चाहिये।

भारत की स्वास्थ्य क्षेत्र की स्थिति

  • पर्याप्त सुविधाओं का अभाव: 
    • वर्ष 2009 से राजस्थान, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और अन्य राज्यों में देखे जा रहे ‘इन्फ्लूएंज़ा-ए (H1N1) प्रकोप ने रोग की पहचान, लक्षणों के बारे में जागरूकता और क्वारंटाइन की आवश्यकता को रेखांकित किया है।
    • कोविड-19 महामारी ने स्वयं भारत की स्वास्थ्य प्रणाली की नींव को हिला दिया है।
  • कम व्यय:
    • भारत में सरकार द्वारा स्वास्थ्य क्षेत्र पर किये जाने वाला व्यय ‘सकल घरेलू उत्पाद’ के 1.35% से भी कम है, जो एक मध्यम आय वाले देश के लिये काफी कम है।
  • स्वास्थ्य पेशेवरों की उपलब्धता:
    • मौजूदा आँकड़ों की मानें तो देश की वर्तमान जनसंख्या (135 करोड़) के अनुरूप प्रत्येक 1,445 भारतीयों पर एक डॉक्टर मौजूद है, जो कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा प्रस्तावित 1,000 लोगों के लिये एक डॉक्टर के निर्धारित मानदंड से कम है।
  • जलवायु परिवर्तन का प्रभाव:
    • जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से भारत की स्वास्थ्य स्थिति खराब होती जा रही है।
    • जलवायु संवेदनशीलता सूचकांक के अनुसार, 80% से अधिक भारतीय जलवायु संवेदनशील ज़िलों में रहते हैं।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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