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वैश्विक लैंगिक अंतराल रिपोर्ट 2025

  • 13 Jun 2025
  • 16 min read

प्रिलिम्स के लिये:

वैश्विक लैंगिक अंतराल रिपोर्ट 2025, WEF, वैश्विक लैंगिक अंतराल सूचकांक, लैंगिक समानता, स्थानीय शासन

मेन्स के लिये:

विभिन्न क्षेत्रों में लैंगिक असमानता से संबंधित मुद्दे, लैंगिक असमानता से संबंधित प्रमुख कारक, लैंगिक समानता प्राप्त करने के लिये उठाए जाने वाले कदम।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

विश्व आर्थिक मंच की वैश्विक लैंगिक अंतराल रिपोर्ट 2025 में भारत 148 देशों में 131वें स्थान पर रहा, जो वर्ष 2024 के 129वें स्थान से नीचे है और इसका लैंगिक समानता स्कोर 64.1% रहा।

  • रिपोर्ट में 148 देशों में लैंगिक समानता का समग्र रूप से मूल्यांकन किया गया।

वैश्विक लैंगिक अंतराल सूचकांक क्या है?

  • परिचय: वर्ष 2006 से प्रतिवर्ष प्रकाशित की जाने वाली यह रिपोर्ट लैंगिक समानता के आकलन के लिये सबसे पुराना वैश्विक सूचकांक है, जो चार प्रमुख आयामों में लैंगिक अंतराल को कम करने में देशों की प्रगति को मापती है।
  • आर्थिक भागीदारी और अवसर
  • शैक्षणिक उपलब्धि
  • स्वास्थ्य और उत्तरजीविता
  • राजनीतिक सशक्तीकरण
  • रेटिंग तंत्र: प्रत्येक आयाम को 0 से 1 के पैमाने पर अंकित किया जाता है, जिसमें 1 पूर्ण लैंगिक समानता को और 0 पूर्ण असमानता को दर्शाता है।
    • यह सूचकांक एक रणनीतिक तुलनात्मक उपकरण के रूप में कार्य करने का उद्देश्य रखता है, जो देशों को लैंगिक असमानताओं का मूल्यांकन और तुलना करने में सक्षम बनाता है।
  • उद्देश्य: स्वास्थ्य, शिक्षा, अर्थव्यवस्था और राजनीति में लैंगिक अंतराल को कम करने की प्रगति को ट्रैक करने हेतु मार्गदर्शक उपकरण के रूप में कार्य करना।
    • यह वार्षिक मानक प्रत्येक देश में हितधारकों को उनके विशेष आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य के अनुरूप प्राथमिकताएँ निर्धारित करने में सहायता करता है।

वैश्विक लैंगिक अंतराल रिपोर्ट 2025 के प्रमुख निष्कर्ष क्या हैं?

  • भारत का प्रदर्शन:
    • उप-सूचकांकों में भारत ने आर्थिक भागीदारी (40.7%) में प्रगति दिखाई है, जिसमें आय समानता में 28.6% से बढ़कर 29.9% तक सुधार हुआ है। शैक्षणिक उपलब्धि 97.1% पर उच्च स्तर पर है, जो साक्षरता और उच्च शिक्षा नामांकन में लगभग समानता को दर्शाता है।
    • स्वास्थ्य और उत्तरजीविता में लिंगानुपात तथा जीवन प्रत्याशा में सुधार के साथ प्रगति हुई। हालाँकि राजनीतिक सशक्तीकरण में 0.6 अंकों की गिरावट आई है; संसद में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 14.7% से घटकर 13.8% हो गया और मंत्री पदों पर महिलाओं का प्रतिनिधित्व 6.5% से घटकर 5.6% हो गया।

India's_Performace_GGGR2025

  • दक्षिण एशिया का प्रदर्शन: भूटान (119), नेपाल (125) और श्रीलंका (130) की रैंकिंग भारत से बेहतर रही।
    • बांग्लादेश इस क्षेत्र का शीर्ष प्रदर्शनकर्त्ता रहा, जो 75 स्थान से वैश्विक स्तर पर 24वें स्थान पर पहुँच गया, जिसका प्रमुख कारण राजनीतिक सशक्तीकरण में प्रगति है। वहीं, पाकिस्तान वैश्विक स्तर पर सबसे नीचे 148वें स्थान पर रहा।
  • वैश्विक रुझान: वर्ष 2025 के ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स में आइसलैंड (लगातार 16वें वर्ष) शीर्ष पर रहा, जबकि फिनलैंड, नॉर्वे, यूनाइटेड किंगडम और न्यूज़ीलैंड भी शीर्ष पाँच देशों में शामिल रहे।
    • वैश्विक लैंगिक अंतराल 68.8% तक कम हो गया है, जो कोविड-19 महामारी के बाद की सबसे मज़बूत प्रगति को दर्शाता है, फिर भी वर्तमान गति से पूर्ण समानता हासिल करने में अभी 123 वर्ष लगेंगे।

लैंगिक अंतराल को कम करने में भारत की प्रमुख प्रगति क्या है?

  • नीति और विधायी सुधार: भारत ने प्रगतिशील नीतियाँ लागू की हैं, जिनमें नारी शक्ति वंदन अधिनियम (2023) शामिल है, जिसमें विधायिकाओं में महिलाओं के लिये सीटें आरक्षित करना, लैंगिक-संवेदनशील शासन को बढ़ावा देना शामिल है।
  • शिक्षा और कौशल विकास: बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ और विज्ञान ज्योति जैसे कार्यक्रमों ने बालिकाओं की शिक्षा ( विशेष रूप से STEM में) तक पहुँच में सुधार किया है। 
    • उच्च शिक्षा में महिला सकल नामांकन अनुपात (GER) 42.5% (2017-18) से बढ़कर 46.3% (वर्ष 2022-23) हो गया है।
  • आर्थिक भागीदारी: महिला श्रम शक्ति भागीदारी 23.3% (2017-18) से बढ़कर 41.7% (2023-24) हो गई है। स्टैंड-अप इंडिया और महिला ई-हाट जैसी योजनाएँ महिला उद्यमिता को बढ़ावा देती हैं।
  • बदलते सामाजिक मानदंड: बदलते सामाजिक दृष्टिकोण और मीडिया में लैंगिक-तटस्थ चित्रण ने नेतृत्व तथा गैर-पारंपरिक भूमिकाओं में महिलाओं की अधिक स्वीकार्यता को सक्षम किया है।
  • वित्तीय समावेशन: 28 करोड़ से अधिक महिलाओं के पास जन धन खाते हैं, जिससे उनकी स्वायत्तता में वृद्धि हुई है। PMJDY और स्टैंड-अप इंडिया जैसी योजनाएँ वित्तीय स्वतंत्रता एवं उद्यमशीलता को बढ़ावा देती हैं।
  • स्वास्थ्य और प्रजनन अधिकार: प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) जैसी पहलों से मातृ देखभाल में सुधार हुआ है। 
    • मातृ मृत्यु दर (MMR) 174 (2013-15) से घटकर 97 (2018-20) हो गई, जो महिलाओं के लिये बेहतर स्वास्थ्य परिणामों का संकेत है।

भारत में लैंगिक अंतराल को बढ़ावा देने वाली प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं? 

  • महिला श्रम बल में कम भागीदारी: भारत की महिला श्रम बल में भागीदारी दर सिर्फ 41.7% (PLFS 2023-24) है, जिसमें अधिकांश महिलाएँ अनौपचारिक और निम्न मूल्यांकित भूमिकाओं (खासकर कृषि में) में हैं। 
    • पितृसत्तात्मक मानदंड, असुरक्षित कार्यस्थल और बाल देखभाल सहायता का अभाव महिलाओं की औपचारिक, सुरक्षित रोज़गार तक पहुँच को प्रतिबंधित करता है।
  • शिक्षा और साक्षरता असमानताएँ: महिला साक्षरता लगभग 65% है जबकि पुरुषों के लिये यह 82% है (जनगणना 2011) अर्थात् 17% का अंतर है। 
    • 15-18 वर्ष की आयु की लगभग 40% लड़कियाँ स्कूल नहीं जाती हैं, जिनमें से 23 मिलियन लड़कियाँ मासिक धर्म से संबंधित समस्याओं और सुविधाओं की कमी के कारण स्कूल छोड़ देती हैं। शिक्षा समानता सूचकांक, 2024 में यह आँकड़ा घटकर 0.964 हो गया, जो पहले की प्रगति के विपरीत है।
  • आर्थिक भागीदारी और मज़दूरी असमानता: महिलाएँ प्रतिदिन लगभग 289 मिनट अवैतनिक घरेलू कार्यों में बिताती हैं, जो पुरुषों की तुलना में 3 गुना अधिक है तथा उन्हें पुरुषों के औसत वेतन का लगभग 73% ही प्राप्त होता है, तकनीक जैसे क्षेत्रों में यह समानता और भी कम (केवल 60% तक) है।
    • आर्थिक सर्वेक्षण 2022–23 के अनुसार, महिलाओं के बिना वेतन वाले देखभाल कार्य का अनुमानित मूल्य ₹22.7 लाख करोड़ था, जो भारत की GDP का लगभग 7.5% है।
      • इतना बड़ा आर्थिक योगदान होने के बावजूद यह कार्य श्रम आँकड़ों में अदृश्य बना रहता है, जिससे महिलाओं के समय का मूल्य कम आँका जाता है तथा उनकी  वेतनभोगी रोज़गार में भागीदारी सीमित हो जाती है।
    • इसके अलावा, कॉर्पोरेट भारत में केवल 17% प्रमुख पदों और 20% बोर्ड पदों पर ही महिलाएँ आसीन हैं।
  • योजनाओं में कार्यान्वयन अंतराल: यद्यपि अनेक सरकारी योजनाएँ लैंगिक समानता को लक्षित करती हैं, परंतु जागरूकता की कमी, अंतिम छोर तक कमज़ोर वितरण तथा लैंगिक रूप से संवेदनशील निगरानी का अभाव, विशेष रूप से ग्रामीण और हाशिये पर स्थित जनसंख्या में, उनके वास्तविक प्रभाव में बाधा उत्पन्न करते हैं।

भारत में लैंगिक असमानता को कम करने हेतु सरकार की प्रमुख पहले क्या हैं?

भारत में लैंगिक समानता को सुदृढ़ करने हेतु क्या उपाय अपनाए जा सकते हैं?

  • सुरक्षा संरचनाओं के प्रवर्तन को दृढ़ करना: लैंगिक संरचनाओं (जैसे, POCSO, घरेलू हिंसा अधिनियम) के प्रवर्तन को दृढ़ करना और हिंसा तथा प्रावधानों से वंचित लोगों की सहायता के लिये वन-स्टॉप सेंटर एवं निर्भया फंडों की पहुँच का विस्तार करना।
  • आर्थिक समावेशन को शामिल करना: सामाजिक सुरक्षा सुधारों (क्रेसी, मातृ लाभ, भर्ती प्रोत्साहन) के माध्यम से महिला श्रम बल भागीदारी को बढ़ावा देना आवश्यक है, साथ ही समय-उपयोगकर्त्ताओं के माध्यम से सामाजिक सुरक्षा सुधारों को शामिल करना और सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना भी आवश्यक है।
  • शिक्षा, कौशल और डिजिटल पहुँच: छात्रवृत्तियों और मासिक धर्म स्वच्छता सहायता के माध्यम से यह सुनिश्चित करना कि लड़कियाँ शिक्षा से वंचित न हों तथा नियमित रूप से स्कूल जाती रहें।
  • स्वास्थ्य, पोषण और सुरक्षा अवसंरचना: राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) के माध्यम से प्रजनन और मातृ स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार किया जा रहा है, पोषण अभियान के तहत कुपोषण से सामना किया जा रहा है तथा महिलाओं की आवाजाही व सार्वजनिक सुरक्षा को बेहतर बनाने के लिये लैंगिक उत्तरदायी अवसंरचना जैसे कि सुरक्षित परिवहन, सड़क प्रकाश व्यवस्था, CCTV कैमरे व महिला सहायता डेस्क सुनिश्चित किये जा रहे है।
  • समावेशी शासन और डेटा-संचालन नीति: औद्योगिक राज अध्ययन में शामिल महिला किराएदारों की क्षमता का निर्माण करके ज़मीनी स्तर पर नेतृत्व को बढ़ावा देना। 
    • लैंगिक आधारों को दृढ़ करना, सभी मंत्रालयों में लैंगिक आधारों को सक्रिय करना तथा लक्ष्य नीतिगत हस्तक्षेपों के लिये लैंगिक आधारों का नियमित संग्रह सुनिश्चित करना।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न. ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स 2025 में भारत की गिरती रैंकिंग की समालोचनात्मक समीक्षा कीजिये। प्रमुख चुनौतियों की पहचान कीजिये तथा लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिये उपयुक्त उपाय सुझाइये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन, विश्व के देशों के लिये 'सार्वभौम लैंगिक अंतराल सूचकांक (ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स)' का श्रेणीकरण प्रदान करता है ?

(a) विश्व आर्थिक मंच
(b) UN मानव अधिकार परिषद
(c) UN वूमन
(d) विश्व स्वास्थ्य संगठन

उत्तर: (a)


मेन्स:

प्रश्न. विविधता, समता और समावेशिता सुनिश्चित करने के लिये उच्चतर न्यायपालिका में महिलाओं के प्रतिनिधित्व को बढ़ाने की वांछनीयता पर चर्चा कीजिये। (2021)

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