इंदौर शाखा: IAS और MPPSC फाउंडेशन बैच-शुरुआत क्रमशः 6 मई और 13 मई   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


जैव विविधता और पर्यावरण

वन और भूमि उपयोग पर ग्लासगो नेताओं की घोषणा

  • 05 Nov 2021
  • 6 min read

प्रिलिम्स के लिये:

संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन

मेन्स के लिये:

वनों की कटाई को रोकने" और भूमि क्षरण का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में यूनाइटेड किंगडम द्वारा वर्ष 2030 तक ‘वनों की कटाई को रोकने’ और भूमि क्षरण पर एक महत्त्वाकांक्षी घोषणा की गई।

  • इसे वन और भूमि उपयोग पर ग्लासगो नेताओं की घोषणा के रूप में संदर्भित किया जा रहा है।
  • भारत ने इस पर हस्ताक्षर नहीं किये क्योंकि उसने समझौते में जलवायु परिवर्तन और वन मुद्दों के संदर्भ में ‘व्यापार’ शब्द पर आपत्ति जताई थी।

प्रमुख बिंदु

  • घोषणा के बारे में:
    • एकीकृत दृष्टिकोण: घोषणा में यह स्वीकार किया गया कि भूमि उपयोग, जलवायु, जैव विविधता और सतत् विकास लक्ष्यों को पूरा करने के लिये विश्व स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर परस्पर जुड़े क्षेत्रों में परिवर्तनकारी आगे की कार्रवाई की आवश्यकता होगी:
      • सतत् उत्पादन और खपत।
      • बुनियादी ढाँचे का विकास; व्यापार; वित्त और निवेश।
      • छोटे जोतदारों, स्वदेशी लोगों और स्थानीय समुदायों के लिये सहायता, जो अपनी आजीविका हेतु जंगलों पर निर्भर हैं और संरक्षण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
      • मानवजनित ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन और सिंक द्वारा हटाने के बीच संतुलन; जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन और अन्य पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं को बनाए रखने के लिये।
    • हस्ताक्षरकर्त्ता: घोषणा में यूके, यूएस, रूस और चीन सहित 105 से अधिक हस्ताक्षरकर्त्ता हैं।
      • ये देश वैश्विक व्यापार के 75% और वैश्विक वनों के 85% प्रमुख वस्तुओं जैसे- ताड़ का तेल, कोको और सोया का प्रतिनिधित्व करते हैं जिनका उत्पादन वनों को खतरे में डाल सकता है।
      • उन्होंने 2021-25 तक सार्वजनिक धन में 12 बिलियन अमेरिकी डॉलर के वित्तीयन का भी वादा किया है।
    • बहुपक्षीय समझौते के लिये प्रतिबद्धता: इसने जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन और पेरिस समझौते, जैविक विविधता पर कन्वेंशन, मरुस्थलीकरण से निपटने के लिये संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन, सतत् विकास लक्ष्यों के लिये संबंधित प्रतिबद्धताओं की पुष्टि की।
  • घोषणापत्र के मुख्य बिंदु:
    • संरक्षण: वनों और अन्य स्थलीय पारिस्थितिक तंत्रों का संरक्षण तथा उनकी बहाली में तेज़ी लाना।
    • सतत् विकास: अंतर्राष्ट्रीय और घरेलू स्तर पर व्यापार तथा विकास नीतियों को सुगम बनाना, जो सतत् विकास एवं टिकाऊ वस्तुओं के उत्पादन व खपत को बढ़ावा देते हैं।
    • लचीलेपन का निर्माण: स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाने सहित भेद्यता को कम करना, लचीलापन और ग्रामीण आजीविका में वृद्धि करना।
    • स्वदेशी अधिकारों को मान्यता देना: स्वदेशी अधिकारों को मान्यता देते हुए लाभदायक, टिकाऊ कृषि का विकास और वनों के मूल्यों की मान्यता।
    • वित्तीय प्रतिबद्धताएँ: अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय प्रतिबद्धताओं की पुष्टि और विभिन्न प्रकार के सार्वजनिक व निजी स्रोतों से वित्त एवं निवेश में उल्लेखनीय वृद्धि करना।
  • भारत का पक्ष:
    • भारत, अर्जेंटीना, मैक्सिको, सऊदी अरब और दक्षिण अफ्रीका ही ऐसे G20 देश हैं जिन्होंने घोषणा पर हस्ताक्षर नहीं किये।
    • यह घोषणा व्यापार को जलवायु परिवर्तन और वन मुद्दों से जोड़ती है। व्यापार विश्व व्यापार संगठन के अंतर्गत आता है और इसे जलवायु परिवर्तन घोषणाओं के तहत नहीं लाया जाना चाहिये।
    • भारत और अन्य लोगों ने "व्यापार" शब्द को हटाने के लिये कहा था, लेकिन मांग को स्वीकार नहीं किया गया था। इसलिये उन्होंने घोषणा पर हस्ताक्षर नहीं किये।
      • भारत में वनों की कटाई का मुद्दा अहम है। सरकार ने बार-बार कहा है कि पिछले कुछ वर्षों में भारत में वृक्षों का आवरण और वन आवरण बढ़ा है।
      • हालाँकि पर्यावरणविदों द्वारा लंबे समय से कहा जा रहा है कि मौजूदा सरकार पर्यावरण संरक्षण को खनन और अन्य बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं पर वरीयता दे रही है जो जंगलों, वन्यजीवों और इनके आसपास रहने वाले लोगों के जीवन को हमेशा के लिये बदल देगी।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2