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शासन व्यवस्था

शानन जलविद्युत परियोजना पर विवाद

  • 11 Mar 2024
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

शानन जलविद्युत परियोजना, सर्वोच्च न्यायालय, जलविद्युत परियोजना, पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966

मेन्स के लिये:

भारत के विकास की वृद्धि में जलविद्युत परियोजनाओं का महत्त्व

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों?

शानन जलविद्युत परियोजना पर पंजाब और हिमाचल प्रदेश दोनों ही राज्य अपना दावा करते हैं जिसके संबंध में हाल ही में केंद्र सरकार ने यथापूर्व स्थिति (Status Quo) बनाए रखने का आदेश दिया।

शानन परियोजना क्या है और इससे संबंधित विभिन्न राज्यों के दावे क्या हैं?

  • ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:
    • वर्ष 1925 में ब्रिटिश काल के दौरान पंजाब को ब्यास नदी की सहायक नदी उहल पर हिमाचल प्रदेश के मंडी ज़िले के जोगिंदरनगर में स्थित 110 मेगावाट जलविद्युत परियोजना के लिये पट्टा दिया गया था।
    • पट्टा करार:
      • औपचारिक रूप से पट्टा करार मंडी के तत्कालीन शासक राजा जोगिंदर बहादुर और ब्रिटिश सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले तथा पंजाब के मुख्य अभियंता के रूप में कार्यरत कर्नल बी.सी. बैटी के बीच संपन्न हुआ।
    • परियोजना की उपयोगिता:
      • इस जलविद्युत परियोजना से भारत के स्वतंत्रता पूर्व अविभाजित पंजाब और दिल्ली की ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति हुई।
        • विभाजन के उपरांत, लाहौर को इस परियोजना के माध्यम से होने वाली आपूर्ति रोक दी गई और ट्रांसमिशन लाइन को अमृतसर के वेरका गाँव में समाप्त कर दिया गया।
    • पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966 के तहत कानूनी नियंत्रण:
      • वर्ष 1966 में राज्यों के पुनर्गठन के दौरान, जलविद्युत परियोजना को पंजाब में स्थानांतरित कर दिया गया था क्योंकि तब हिमाचल प्रदेश को केंद्रशासित प्रदेश के रूप में नामित किया गया था।
        • केंद्रीय सिंचाई और विद्युत मंत्रालय द्वारा 1 मई 1967 को जारी एक केंद्रीय अधिसूचना के माध्यम से पंजाब को आधिकारिक रूप पर परियोजना आवंटित की गई थी।
      • अधिसूचना में निर्दिष्ट किया गया है कि परियोजना पर पंजाब का कानूनी नियंत्रण पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966 में उल्लिखित प्रावधानों द्वारा शासित होगा।
  • हिमाचल प्रदेश का दावा:
    • वर्ष 1925 के पट्टे के माध्यम से पंजाब को केवल एक विशिष्ट अवधि के लिये परिचालन अधिकार प्रदान किया, न कि स्वामित्व अधिकार
      • वर्ष 1925 के पट्टे से पहले, जिसमें परियोजना पंजाब को प्रदान की गई थी और साथ ही हिमाचल प्रदेश के पास परियोजना पर स्वामित्व तथा परिचालन अधिकार दोनों थे।
    • पिछले कुछ वर्षों में हिमाचल प्रदेश द्वारा तर्क प्रस्तुत किया है कि पट्टा समाप्त होने के बाद परियोजना उसके पास रहनी चाहिये
    • हिमाचल प्रदेश सरकार ने चिंता व्यक्त करते हुए आरोप लगाया है कि पंजाब द्वारा मरम्मत एवं रखरखाव की कमी के कारण परियोजना की स्थिति खराब हो गई है।
    • हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री ने कहा था कि वे पट्टे की अवधि के बाद पंजाब को परियोजना पर दावा करने की अनुमति नहीं देंगे और उन्होंने पिछले वर्ष पंजाब के मुख्यमंत्री को पत्र लिखा था तथा साथ ही केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय के साथ भी इस मुद्दे को उठाया था।
  • पंजाब का दावा:  
    • स्वामित्व और अधिग्रहण का दावा:
      • पंजाब ने सर्वोच्च न्यायालय में अपना मामला पेश करते हुए दावा किया है कि वह वर्ष 1967 की केंद्रीय अधिसूचना के तहत शानन पावर हाउस प्रोजेक्ट का असली मालिक है और इसपर वैध अधिग्रहण है।
      • राज्य सरकार, पंजाब स्टेट पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड (PSPCL) के माध्यम से, वर्तमान में परियोजना से जुड़ी सभी परिसंपत्तियों पर नियंत्रण रखती है।
    • कानूनी कार्रवाई का अनुरोध:
      • अनुच्छेद 131 के तहत पंजाब सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय से "स्थायी निषेधाज्ञा" का अनुरोध किया है।
      • यह निषेधाज्ञा हिमाचल प्रदेश सरकार को परियोजना के "वैध शांतिपूर्ण अधिग्रहण और सुचारु कामकाज़" में हस्तक्षेप करने से रोकने के लिये मांगी गई है।    
  • केंद्र द्वारा आदेशित अंतरिम उपाय:
    • 99 वर्ष पुराने लीज़ समझौते के समापन से एक दिन पूर्व, केंद्र सरकार ने परियोजना पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश जारी करके हस्तक्षेप किया। यह उपाय परियोजना के निरंतर संचालन को सुनिश्चित करने के लिये लागू किया गया था।
    • यह निर्देश ऊर्जा मंत्रालय द्वारा जारी किया गया था। इसने सामान्य खंड अधिनियम, 1887 की धारा 21 के संयोजन में, पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966 की धारा 67 और 96 के तहत निहित शक्तियों को लागू किया।

अंतर-राज्यीय नदी जल विवाद:

  • अंतर्राज्यीय जल विवाद (ISWD) अधिनियम, 1956: यदि कोई विशेष राज्य अथवा राज्यों का समूह अधिकरण के गठन के लिये केंद्र से संपर्क करते हैं तो केंद्र सरकार को संबद्ध राज्यों के बीच परामर्श करके मामले को हल करने का प्रयास करना चाहिये। यदि यह काम नहीं करता है तो केंद्र सरकार इस न्यायाधिकरण का गठन कर सकती है।
    • सरकारिया आयोग की प्रमुख सिफारिशों को शामिल करने के लिये अंतर्राज्यीय जल विवाद अधिनियम, 1956 को वर्ष 2002 में संशोधित किया गया था।
    • इन संशोधनों के बाद से जल विवाद न्यायाधिकरण की स्थापना के लिये एक वर्ष की समय-सीमा और निर्णय देने के लिये 3 वर्ष की समय-सीमा को अनिवार्य हो गया।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित नदियों पर विचार कीजिये: (2014)

  1. बराक
  2. लोहित
  3. सुबानसिरी

उपरोक्त में से कौन-सी धारा अरुणाचल प्रदेश से होकर बहती है?

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न.अंतर-राज्य जल विवादों का समाधान करने में सांविधानिक प्रक्रियाएँ समस्याओं को संबोधित करने व हल करने में असफल रही हैं। क्या यह असफलता संरचनात्मक अथवा प्रक्रियात्मक अपर्याप्तता अथवा दोनों के कारण  हुई है? विवेचना कीजिये। (2013)

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