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भारतीय अर्थव्यवस्था

डिजिटल इंडिया 2.0

  • 29 Oct 2018
  • 5 min read

संदर्भ

दूरसंचार विभाग वाई-फाई संचालन हेतु अतिरिक्त स्पेक्ट्रम को मुक्त करने के लिये देश में डिजिटल सेवाओं के विकास हेतु बेहतर प्रदर्शन कर रहा है। यह 2019 तक दस लाख अंतःप्रचालनीय (interoperable) वाई-फाई हॉटस्पॉट को शुरू करने की योजना के साथ संयुक्त रूप से सार्वजनिक इंटरनेट पहुँच के संदर्भ में भारत-वैश्विक मानकों के अनुरूप आगे बढ़ रहा है।

प्रमुख बिंदु

  • वैश्विक स्तर पर औसतन प्रत्येक 150 लोगों के लिये एक वाई-फाई हॉटस्पॉट मौजूद है।
  • भारत की आबादी के आकार के अनुसार यहाँ करीब आठ मिलियन हॉटस्पॉट होने चाहिये थे। हालाँकि, भारत में हॉटस्पॉट की कुल संख्या केवल 31,500 है।
  • इस तथ्य के बावजूद कि भारत में दुनिया का सबसे बड़ा सेलुलर नेटवर्क है। दूरसंचार कंपनियाँ अब तक सार्वजनिक वाई-फाई एक्सेस मॉडल बनाने से दूर रही हैं जो मुख्य रूप से अपने मुख्य व्यवसाय के नुकसान से डरती हैं।
  • लेकिन डेटा की खपत तेज़ी से बढ़ रही है, जल्द ही ऐसा समय आएगा जब अकेले सेलुलर नेटवर्क मांग को पूरा करने में सक्षम नहीं होंगे।
  • यह अनुमान लगाया गया है कि भारत में प्रति स्मार्टफोन का मासिक डेटा उपयोग 2017 के 7 जीबी से बढ़कर 2023 तक 13.7 जीबी हो जाएगा।
  • इस वृद्धि के समर्थन के लिये दूरसंचार कंपनियों को नेटवर्क का जाल बिछाने की आवश्यकता होगी जिसमें परंपरागत सेलुलर आधारभूत संरचना का चयन, ऑप्टिकल फाइबर केबल्स और सार्वजनिक वाई-फाई एक्सेस पॉइंट्स द्वारा किया जा सके।
  • वाई-फाई सेवाएँ आमतौर पर अनचाहे स्पेक्ट्रम बैंड पर चलती हैं जिन्हें ऑपरेटरों द्वारा महँगी नीलामी के माध्यम से खरीदे बिना इन तक आसानी से पहुँचा जा सकता है।
  • वैश्विक स्तर पर हॉटस्पॉट की संख्या में 568 फीसदी की वृद्धि हुई है लेकिन भारत में यह वृद्धि सिर्फ 12 प्रतिशत है।
  • 5 गीगाहर्ट्ज फ्रीक्वेंसी बैंड में 605 मेगाहर्ट्ज़ स्पेक्ट्रम को मुक्त करने के निर्णय से वाई-फाई सेवाओं के लिये मौजूदा क्षमता से दस गुना अधिक बैंडविड्थ (बैंड की चौड़ाई) उपलब्धता में वृद्धि हुई है।
  • प्रस्तावित दस लाख वाई-फाई हॉटस्पॉट को इंटरऑपरेबल बनाने के लिये उपयोगकर्त्ताओं को वाई-फाई नेटवर्क से साइन-इन किये बिना सहजता से आने की अनुमति मिल जाएगी।
  • वर्तमान में जब कोई उपयोगकर्त्ता वाई-फाई नेटवर्क का उपयोग करना चाहता है तो कई बाधाएँ उपस्थित होती हैं। सबसे पहले मोबाइल नेटवर्क से वाई-फाई कवरेज में हैंडओवर निर्बाध गति से नहीं होता है। प्रत्येक बार जब उपयोगकर्त्ता सेलुलर नेटवर्क से वाई-फाई नेटवर्क तक जाता है, तो इंटरनेट एक्सेस में व्यवधान उत्पन्न होता है।
  • दूसरा, यदि वाई-फाई नेटवर्क को एक ऑपरेटर द्वारा प्रबंधित किया जाता है जो उपयोगकर्त्ता के मोबाइल ऑपरेटर से अलग होता है तो उपयोगकर्त्ता को सेवा तक पहुँचने के लिये साइन इन करना होता है। एक इंटरऑपरेबल नेटवर्क के तहत, इन मुद्दों को हल किया जाता है।
  • नीति निर्माताओं को अब वाई-फाई इंफ्रास्ट्रक्चर शुरू करने हेतु उन्हें सक्षम बनाने के लिये इस तरह के प्रयासों को आगे बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिये।
  • भारत के दूरसंचार नियामक प्राधिकरण को छोटे व्यापारियों, किराना स्टोर्स और अन्य विक्रेताओं को सार्वजनिक डेटा कार्यालय स्थापित करने की अनुमति देने में बिना देरी किये इसे लागू किया जाना चाहिये। ऐसा डेटा के लिये भी किया जा सकता है, जैसा कि पीसीओ ने लंबी दूरी की टेलीफोन सेवाओं के लिये किया था।
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