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भारतीय राजनीति

लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग

  • 16 Dec 2021
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये: 

लद्दाख की संसद, केंद्र शासित प्रदेश (UT), संविधान की छठी अनुसूची, स्वायत्त ज़िला परिषद (ADCs), राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST)

मैन्स के लिये: 

भारतीय संविधान की छठी अनुसूची का महत्त्व, भारतीय संविधान की छठी अनुसूची में लद्दाख के केंद्र शासित प्रदेश (UT) को शामिल करने की मांग समावेश के रास्ते में बाधाएँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संसद में भूमि, रोज़गार और स्थानीय आबादी की सांस्कृतिक पहचान के संरक्षण के लिये  केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग उठाई गई है।

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प्रमुख बिंदु:

  • छठी अनुसूची में शामिल करने की आवश्यकता:
    • केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख क्षेत्र का प्रशासन अब पूरी तरह नौकरशाहों के हाथ में है जिससे  सरकार की श्रीनगर से बढ़ती दूरियाँ भी साफ नजर आ रही है।
    • जम्मू-कश्मीर में बदली हुई अधिवास नीति ने इस क्षेत्र में अपनी जमीन, रोज़गार, जनसांख्यिकी और सांस्कृतिक पहचान को लेकर आशंका पैदा कर दी है।
    • लद्दाख केंद्र शासितप्रदेश के लेह और कारगिल में दो हिल काउंसिल हैं, लेकिन कोई भी छठी अनुसूची के तहत नहीं है।
      • उनकी शक्तियाँ कुछ स्थानीय करों जैसे पार्किंग शुल्क और आवंटन तथा केंद्र द्वारा निहित भूमि के उपयोग तक सीमित हैं।
  • NCST की सिफारिश:
    • राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) ने सिफारिश की है कि केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल किया जाए।
      • अनुसूचित जनजातियों के सामाजिक-सांस्कृतिक अधिकारों की रक्षा के लिये एक संवैधानिक निकाय NCST को केंद्र द्वारा लद्दाख में आदिवासियों की स्थिति की जाँच करने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई थी।
      • यदि लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल किया जाता है, तो वह छठी अनुसूची में  में शामिल एकमात्र केंद्र शासितप्रदेश होगा। लद्दाख को ऐसा दर्ज़ा देने के लिये एक संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता होगी।
    • सिफारिश के पीछे के कारण:
      • यह अनुमान लगाया गया है कि लद्दाख की 90% से अधिक आबादी आदिवासी है। लद्दाख में  बाल्टी बेडा, बॉट (या बोटो), ब्रोकपा (या द्रोकपा, दर्द, शिन), चांगपा, गर्रा, सोम और पुरिगपा अनुसूचित जनजाति (ST) हैं।
      • लद्दाख क्षेत्र में द्रोकपा, बलटी और चांगपा जैसे समुदायों की कई विशिष्ट सांस्कृतिक विरासत हैं, जिन्हें संरक्षित और बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
      • केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख के निर्माण से पहले लद्दाख क्षेत्र के लोगों के पास भूमि पर अधिकार सहित कुछ कृषि अधिकार थे, जो देश के अन्य हिस्सों के लोगों को लद्दाख में जमीन खरीदने या हासिल करने के लिये प्रतिबंधित करते थे।
      • छठी अनुसूची में शामिल करने से क्षेत्र में शक्तियों के लोकतांत्रिक हस्तांतरण में मदद मिलेगी तथा क्षेत्र के त्वरित विकास के लिये धन के हस्तांतरण में भी वृद्धि होगी।
  • लद्दाख को शामिल करने के पीछे की कठिनायाँ:
    • लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल करना मुश्किल होगा। क्योकि संविधान में स्पष्ट है की  छठी अनुसूची पूर्वोत्तर राज्यों के लिये है।
      • देश के बाकी हिस्सों में आदिवासी क्षेत्रों के लिये पाँचवीं अनुसूची है।
      • विशेष रूप से पूर्वोत्तर के बाहर के किसी भी क्षेत्र को छठी अनुसूची में शामिल नहीं किया गया है।
      • मणिपुर, जहाँ कुछ स्थानों पर आदिवासी बहुल आबादी है, की स्वायत्त परिषदों को भी छठी अनुसूची में शामिल नहीं किया गया है।
      • नगालैंड और अरुणाचल प्रदेश, जो पूरी तरह से आदिवासी क्षेत्र हैं, भी छठी अनुसूची में शामिल नहीं हैं।
    • हालाँकि, यह सरकार का विशेषाधिकार बना रहता है, यदि वह ऐसा निर्णय लेती है, तो इस उद्देश्य के लिये संविधान में संशोधन हेतु एक विधेयक ला सकती है।

छठी अनुसूची

  • अनुच्छेद 244: अनुच्छेद 244 के तहत छठी अनुसूची, स्वायत्त प्रशासनिक प्रभागों- स्वायत्त ज़िला परिषद (ADCs) - के गठन का प्रावधान करती है, जिनके पास राज्य के भीतर विधायी, न्यायिक और प्रशासनिक स्वायत्तता होती है।
    • छठी अनुसूची में चार उत्तर-पूर्वी राज्यों असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम में जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन हेतु विशेष प्रावधान शामिल हैं।
  • स्वायत्त ज़िले: इन चार राज्यों में आदिवासी क्षेत्रों को स्वायत्त ज़िलों के रूप में गठित किया गया है। राज्यपाल को स्वायत्त ज़िलों को व्यवस्थित और पुनर्गठित करने का अधिकार है।
    • संसद या राज्य विधायिका के अधिनियम स्वायत्त ज़िलों पर लागू नहीं होते हैं या निर्दिष्ट संशोधनों और अपवादों के साथ लागू होते हैं।
    • इस संबंध में निर्देशन की शक्ति या तो राष्ट्रपति या राज्यपाल के पास होती है।
  • ज़िला परिषद: प्रत्येक स्वायत्त ज़िले में एक ज़िला परिषद होती है, जिसमें 30 सदस्य होते हैं, जिनमें से चार राज्यपाल द्वारा मनोनीत होते हैं और शेष 26 वयस्क मताधिकार के आधार पर चुने जाते हैं।
    • निर्वाचित सदस्य पाँच साल के कार्यकाल के लिये पद धारण करते हैं (यदि परिषद को इससे पूर्व भंग नहीं किया जाता है) और मनोनीत सदस्य राज्यपाल के इच्छानुसार समय तक पद पर बने रहते हैं।
    • प्रत्येक स्वायत्त क्षेत्र में भी एक अलग क्षेत्रीय परिषद होती है।
  • परिषद की शक्तियाँ: ज़िला और क्षेत्रीय परिषदें अपने अधिकार क्षेत्र के तहत क्षेत्रों का प्रशासन करती हैं।
    • भूमि, वन, नहर के जल, स्थानांतरित कृषि, ग्राम प्रशासन, संपत्ति का उत्तराधिकार, विवाह एवं तलाक, सामाजिक रीति-रिवाजों जैसे कुछ निर्दिष्ट मामलों पर कानून बना सकती हैं, लेकिन ऐसे सभी कानूनों के लिये राज्यपाल की सहमति आवश्यक है।
    • वे जनजातियों के मध्य मुकदमों एवं मामलों की सुनवाई के लिये ग्राम परिषदों या न्यायालयों का गठन कर सकती हैं। वे उनकी अपील सुनते हैं। इन मुकदमों और मामलों के संबंध में उच्च न्यायालय का अधिकार क्षेत्र राज्यपाल द्वारा निर्दिष्ट किया जाता है।
    • ज़िला परिषद ज़िले में प्राथमिक स्कूलों, औषधालयों, बाज़ारों, मत्स्यपालन क्षेत्रों, सड़कों आदि की स्थापना, निर्माण या प्रबंधन कर सकती है।
    • ज़िला एवं क्षेत्रीय परिषदों के पास भू राजस्व का आकलन एवं संग्रहण करने एवं कुछ निर्दिष्ट कर लगाने का अधिकार है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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