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शासन व्यवस्था

आम मतदाता सूची और एक राष्ट्र-एक चुनाव प्रक्रिया

  • 05 Feb 2022
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 तथा अनुच्छेद 243K और 243ZA

मेन्स के लिये:

भारतीय राजनीति, सामान्य मतदाता सूची तथा संबंधित चुनौतियाँ, समकालिक चुनाव प्रक्रिया या एक ही समय पर होने वाले चुनाव की अवधारणा के गुण एवं दोष।

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में कानून और न्याय मंत्री द्वारा राज्यसभा में सूचित किया गया है कि देश में सभी निर्वाचक निकायों के लिये  एक समान मतदाता सूची तैयार करने और समकालिक चुनाव प्रक्रिया को संपन्न करने के लिये जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में संशोधन करने की केंद्र सरकार की कोई योजना नहीं है।

आम मतदाता सूची:

  • आम मतदाता सूची के बारे में:
    • आम मतदाता सूची (Common Electoral Roll) के तहत लोकसभा, विधानसभा और अन्य चुनावों के लिये केवल एक मतदाता सूची का उपयोग किया जाएगा।
  • वर्तमान में भारत में मतदाता सूची के प्रकार:
    • कुछ राज्यों में कानून राज्य चुनाव आयोग को स्थानीय निकाय चुनावों के लिये भारतीय चुनाव आयोग की मतदाता सूची का प्रयोग करने और उपयोग करने की अनुमति देते हैं।
    • दूसरी तरफ राज्य चुनाव आयोग नगर पालिका और पंचायत चुनावों हेतु मतदाता सूची को तैयार करने और संशोधन के आधार के रूप में चुनाव आयोग की मतदाता सूची का उपयोग करता है।
    • कुछ राज्यों की अपनी मतदाता सूची है जैसे- उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, ओडिशा, असम, मध्य प्रदेश, केरल, अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड तथा केंद्रशासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर। ये सभी राज्य स्थानीय निकाय चुनावों के लिये चुनाव आयोग की सूची का प्रयोग नहीं करते  हैं। 
    • मूल अंतर यह है कि हमारे देश में चुनावों के पर्यवेक्षण और संचालन का कार्य दो संवैधानिक प्राधिकरणों- भारत के चुनाव आयोग और राज्य चुनाव आयोग को सौंपा गया है।
      • भारत का चुनाव आयोग (EC) वर्ष 1950 में स्थापित किया गया था, चुनाव आयोग पर निम्नलिखित का चुनाव कराने की ज़िम्मेदारी है:
        • भारत के राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति।
        • संसद, राज्य विधानसभाओं और विधानपरिषदों।
      • राज्य चुनाव आयोग (SECs): दूसरी ओर SEC को नगरपालिका और पंचायत चुनावों का स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव आयोजित कराने का कार्य सौंपा गया है तथा वे स्थानीय निकाय चुनावों हेतु अपनी मतदाता सूची तैयार करने के लिये स्वतंत्र हैं।
  • ज़रूरत:
    • भारी खर्च और परिश्रम से  बचने हेतु एक अलग मतदाता सूची और एक साथ चुनाव।
      • यह तर्क दिया जाता है कि एक अलग मतदाता सूची तैयार करने में भारी खर्च और परिश्रम का दोहराव होता है।
    • पहले की सिफारिशें:
      • विधि आयोग ने वर्ष 2015 में अपनी 255वीं रिपोर्ट में एकल मतदाता सूची हेतु इसकी सिफारिश की थी।
      • चुनाव आयोग ने भी वर्ष 1999 और वर्ष 2004 में इसी तरह का रुख अपनाया था।
        • चुनाव आयोग ने कहा कि यह मतदाताओं के बीच भ्रम की स्थिति उत्पन्न करता  है, क्योंकि उनके नाम एक सूची में मौजूद हो सकते हैं, लेकिन दूसरे में अनुपस्थित हो सकते हैं।
  • कार्यान्वयन की प्रक्रिया:
    • अनुच्छेद 243K और 243ZA में संवैधानिक संशोधन किये जाने की आवश्यकता है।
      • अनुच्छेद 243K और 243ZA राज्यों में पंचायतों एवं नगर पालिकाओं के चुनाव से संबंधित हैं। ये राज्य चुनाव आयोग (एसईसी) को निर्वाचक नामावली तैयार करने तथा इन चुनावों के संचालन के अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण की शक्ति प्रदान करते हैं।
      • इस संशोधन से देश में सभी चुनावों के लिये एक ही मतदाता सूची अनिवार्य हो जाएगी।
    • राज्य सरकारों को अपने कानूनों में संशोधन करने और नगरपालिका तथा पंचायत चुनावों के लिये निर्वाचन आयोग (ECI) की मतदाता सूची को अपनाने के लिये राजी किया जाना चाहिये।
  • चुनौतियाँ:
    • ज़रूरी नहीं कि निर्वाचन आयोग के मतदान केंद्र की सीमाएँ वार्डों से मेल खाती हों।
    • इस बदलाव के लिये बड़े पैमाने पर आम सहमति बनाने की कवायद की आवश्यकता होगी।

एक साथ चुनाव:

  • परिचय:
    • ‘एक साथ चुनाव’ या एक राष्ट्र-एक चुनाव का विचार भारतीय चुनावी चक्र को एक तरीके से संरचित करने को संदर्भित करता है ताकि लोकसभा एवं राज्य विधानसभाओं के चुनावों को एक साथ एक ही समय पर कराया जाए जिससे दोनों चुनाव एक निश्चित समय के भीतर हो सकें।
  • लाभ:
    • इससे मतदान में होने वाले खर्च, राजनीतिक पार्टियों के खर्च आदि पर नज़र रखने में मदद मिलेगी और जनता के पैसे को भी बचाया जा सकता है।
    • प्रशासनिक व्यवस्था और सुरक्षा बलों पर बढ़ते बोझ को भी कम किया जा सकता है।
    • सरकारी नीतियों को समय पर लागू करने में मदद मिलेगी और यह भी सुनिश्चित किया जा सकेगा है कि प्रशासनिक मशीनरी चुनावी मोड के बजाय विकास संबंधी गतिविधियों में संलग्न हो।
    • शासनकर्त्ताओं की ओर से शासन संबंधी समस्याओं का समाधान समय पर किया जाएगा। आम तौर पर यह देखा जाता है कि किसी विशेष विधानसभा चुनाव में अल्पकालिक राजनीतिक लाभ के लिये सत्तारूढ़ राजनेता कठोर दीर्घकालिक निर्णय लेने से बचते हैं जो अंततः देश को दीर्घकालिक लाभ पहुँचा सकता है।
    • पाँच वर्ष में एक बार चुनावी तैयारी के लिये सभी हितधारकों यानी राजनीतिक दलों, भारतीय निर्वाचन आयोग (ECI), अर्द्धसैनिक बलों, नागरिकों को अधिक समय मिल सकेगा।
  • चुनौतियाँ:
    • भारत की संसदीय प्रणाली का पालन करने वाली विभिन्न परंपराओं को देखते हुए सिंक्रनाइज़ेशन एक काफी बड़ी समस्या है। सरकार निचले सदन के प्रति जवाबदेह है और यह संभव है कि सरकार अपना कार्यकाल पूरा करने से पहले गिर सकती है तथा जिस क्षण सरकार गिरती है, नए सिरे से चुनाव आयोजित किये जाते हैं।
    • इस विचार पर सभी राजनीतिक दलों को राजी करना और एक साथ लाना काफी मुश्किल होता है।
    • एक साथ चुनाव कराने के लिये ‘इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन’ (EVMs) और ‘वोटर वेरिफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल्स’ (VVPATs) की आवश्यकता दोगुनी हो जाएगी, क्योंकि चुनाव आयोग को दो सेट (एक विधानसभा के चुनाव और दूसरा लोकसभा के लिये) प्रदान करने होंगे।
    • मतदानकर्मियों के लिये अतिरिक्त आवश्यकता और सुरक्षा के बेहतर इंतज़ाम करना भी एक काफी बड़ी चुनौती होगी।

आगे की राह

  • प्रत्येक माह अलग-अलग जगहों पर चुनाव आयोजित होते हैं और इससे विकास कार्य बाधित होते हैं। इसलिये विकास कार्यों पर आदर्श आचार संहिता के प्रभाव को रोकने के लिये एक साथ चुनाव आयोजित करने पर गहन अध्ययन एवं विचार-विमर्श करना आवश्यक है।
  • देश को ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ की ज़रूरत है या नहीं, इस पर आम सहमति बनाने की आवश्यकता है। सभी राजनीतिक दलों को कम-से-कम इस मुद्दे पर बहस में सहयोग करना चाहिये, बहस शुरू होने के बाद जनता की राय को ध्यान में रखा जा सकता है। भारत को एक परिपक्व लोकतंत्र होने के नाते बहस के परिणाम का अनुसरण करना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू

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