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सामाजिक न्याय

बदलती युवा चिंताएँ और आकांक्षाएँ

  • 23 Aug 2023
  • 12 min read

प्रिलिम्स के लिये:

भारत में युवा 2022 रिपोर्ट, Y20 शिखर सम्मेलन, बेरोज़गारी, कृषि उत्पादकता, जनसांख्यिकीय लाभांश

मेन्स के लिये:

भारत में युवा जनसंख्या से संबंधित अवसर और चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों? 

भारत के 18 राज्यों में लोकनीति-CSDS का एक हालिया सर्वेक्षण युवा चिंताओं और आकांक्षाओं के लगातार परिवर्तित होते परिदृश्य में युवा आबादी की बदलती प्राथमिकताओं पर प्रकाश डालता है।

  • यह सर्वेक्षण प्रमुख मुद्दों के रूप में बेरोज़गारी और मूल्य वृद्धि की बढ़ती चुनौतियों, आर्थिक वर्गों और लिंग के साथ इन चिंताओं का अंतर्संबंध तथा नौकरी की आकांक्षाओं की उभरती प्राथमिकताओं पर ध्यान आकर्षित करता है।

इस सर्वेक्षण की प्रमुख बातें:

  • बेरोज़गारी, मूल्य वृद्धि और लैंगिक असमानता:
    • प्राथमिक चिंता के रूप में मूल्य वृद्धि की पहचान करने वाले उत्तरदाताओं की हिस्सेदारी में 7% अंक की वृद्धि हुई।
    • 40% उच्च शिक्षित उत्तरदाताओं (स्नातक तथा उसके ऊपर) ने बेरोज़गारी को सबसे गंभीर चिंता के रूप में इंगित किया है।
    • 27% गैर-साक्षर व्यक्तिय, जो किसी भी प्रकार के काम की तलाश में थे, उन्होंने बेरोज़गारी को लेकर चिंता व्यक्त की।
      • गरीबी और महँगाई युवा महिलाओं के लिये प्रमुख मुद्दों के रूप में उभरे, चाहे उनकी आर्थिक पृष्ठभूमि कुछ भी हो।
  • व्यावसायिक विविधता: युवा रोज़गार पर अंतर्दृष्टि:
    • लगभग आधे (49%) उत्तरदाता किसी-न-किसी काम में लगे हुए थे।
      • 40% का पास पूर्णकालिक रोज़गार था , जबकि 9% अंशकालिक रोज़गार  में संग्लग्न थे।
    • नियोजित युवाओं में से 23% स्व-रोज़गार वाले थे, जो एक महत्त्वपूर्ण उद्यमशीलता प्रवृत्ति को प्रदर्शित करता है।
    • कार्यबल का 16% डॉक्टर और इंजीनियर जैसे पेशे में थे।
    • कृषि और कुशल श्रम में क्रमशः 15% और 27% लोग शामिल थे।
  • नौकरी की आकांक्षाएँ और प्राथमिकताएँ:
    • 16% युवाओं ने स्वास्थ्य क्षेत्र में नौकरियों को प्राथमिकता दी।
    • शिक्षा क्षेत्र दूसरा सबसे पसंदीदा क्षेत्र था, जिसे 14% युवाओं ने चुना।
    • अपना स्वयं का व्यवसाय शुरू करने के साथ-साथ विज्ञान और प्रौद्योगिकी से संबंधित नौकरियों में से प्रत्येक को 10% समर्थन प्राप्त हुआ।
    • सरकारी नौकरियों का आकर्षण बरकरार रहा, जब सरकारी नौकरी, निजी नौकरी या अपना स्वयं का व्यवसाय शुरू करने के बीच विकल्प दिया गया तो 60% युवाओं ने सरकारी नौकरी को प्राथमिकता दी।
    • स्व-रोज़गार के लिये प्राथमिकता वर्ष 2007 के 16% से बढ़कर वर्ष 2023 में 27% हो गई है, जो युवाओं के बीच उद्यमशीलता की बढ़ती प्रवृत्ति को दर्शाता है।

भारत में युवा जनसंख्या से संबंधित अवसर और चुनौतियाँ:

  • युवा जनसंख्या की स्थिति: भारत की 50% से अधिक जनसंख्या 25 वर्ष से कम आयु की है और 65% से अधिक जनसंख्या 35 वर्ष से कम आयु की है।
    • युवा जनसांख्यिकीय के मामले में दुनिया में भारत पाँचवें स्थान पर है और यह जनसंख्या लाभ देश के 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के लक्ष्य को प्राप्त करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

नोट: युवा आयु समूह की कोई सार्वभौमिक रूप से सहमत अंतर्राष्ट्रीय परिभाषा नहीं है। भारत की राष्ट्रीय युवा नीति, 2014 के अनुसार 15 से 29 वर्ष की आयु के व्यक्तियों को युवा माना जाता है। संयुक्त राष्ट्र की कई संस्थाओं, उपकरणों और क्षेत्रीय संगठनों में युवाओं को अलग-अलग ढंग से परिभाषित किया गया है:

  • अवसर:
    • मानव पूंजी निवेश: भारत की युवा आबादी एक संभावित जनसांख्यिकीय लाभांश है, जिसका अर्थ है कि अगर इसका सही तरीके से उपयोग किया जाए, तो यह आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकती है।
      • एक युवा आबादी शिक्षा और कौशल विकास पर ध्यान केंद्रित करने का अवसर प्रदान करती है, जिससे उच्च कुशल कार्यबल तैयार होता है जो विभिन्न उद्योगों की मांग को पूरा कर सकता है।
    • नवाचार और उद्यमिता: युवा अधिकतर नवाचार, नई प्रौद्योगिकियों और उद्यमिता के लिये तैयार रहते हैं।
      • वे आर्थिक विविधीकरण को बढ़ावा देकर नए उद्योगों और स्टार्ट-अप के विकास को बढ़ावा दे सकते हैं।
      • इसके अलावा भारत की आबादी का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा कृषि कार्य में लगा हुआ है, प्रौद्योगिकी और टिकाऊ तरीकों के माध्यम से खेती की आधुनिक प्रणाली को अपनाकर तथा अनुकूलित कर युवाओं की भागीदारी सेकृषि उत्पादकता में वृद्धि हो सकती है।
    • डिजिटल कनेक्टिविटी: भारत के युवा तकनीक-प्रेमी हैं और डिजिटल प्रौद्योगिकियों को अपनाने एवं बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं, जिससे डिजिटल अर्थव्यवस्था के विकास में मदद मिलेगी।
    • सामाजिक परिवर्तन और सक्रियता: युवा अक्सर सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तन में सबसे आगे होते हैं। 
      • वे सकारात्मक सामाजिक आंदोलन चला सकते हैं, बदलाव की वकालत कर सकते हैं और महत्त्वपूर्ण मुद्दों के बारे में जागरूकता बढ़ा सकते हैं।
  • चुनौतियाँ:
    • अल्प-रोज़गार और कौशल में असंतुलन: जिस प्रकार बेरोज़गारी पर अक्सर चर्चा की जाती है, वैसे ही अल्प-रोज़गार और कौशल में असंतुलन भी समान रूप से गंभीर मुद्दे हैं। कई युवा भारतीयों को ऐसी नौकरियाँ मिल जाती हैं जो उनके कौशल स्तर से नीचे की होती हैं या उनकी शिक्षा के अनुरूप नहीं होती हैं।
      • इससे न केवल असंतोष उत्पन्न होता है बल्कि उत्पादकता और आर्थिक विकास भी बाधित होता है।
    • मानसिक स्वास्थ्य और पूर्वाग्रह: युवाओं में मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ बढ़ रही हैं, फिर भी मदद मांगने से जुड़ा एक पूर्वाग्रह है।
      • यह पूर्वाग्रह भारतीय समाज में गहराई तक व्याप्त है और युवाओं के उचित देखभाल में बाधा बन सकता है।
    • युवाओं के बीच डिजिटल विभाजन: भारत में एक बड़ी और बढ़ती युवा आबादी है, इसके बावजूद भी डिजिटल प्रौद्योगिकी तक पहुँच अभी भी असमान है।
      • यह डिजिटल विभाजन शिक्षा, रोज़गार के अवसरों और सूचना तक पहुँच में असमानताएँ उत्पन्न  करता है।
    • लैंगिक असमानता और पारंपरिक मानदंड: प्रगति के बावजूद लैंगिक असमानता एक महत्त्वपूर्ण/सार्थक चिंता का विषय बना हुआ है।
      • पारंपरिक मानदंड और पितृसत्तात्मक दृष्टिकोण का प्रभाव युवा महिलाओं की शिक्षा और रोज़गार पर पड़ता है। 
    • राजनीतिक उदासीनता और युवा प्रतिनिधित्व: जनसंख्या का एक पर्याप्त हिस्सा शामिल होने के बावजूद भारत में युवा अक्सर राजनीतिक प्रक्रिया से अपने को कटा हुआ महसूस करते हैं।
      • इससे उनकी चिंताओं और आकांक्षाओं का पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं होता है।

आगे की राह

  • एकीकृत कौशल पारिस्थितिकी तंत्र: भारत को एक व्यापक कौशल पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करने की आवश्यकता है जो औपचारिक शिक्षा को अनुभवजन्य शिक्षा, प्रशिक्षुता तथा ऑनलाइन प्लेटफाॅर्मों के साथ समन्वित करती हो।
  • यह कदम सैद्धांतिक ज्ञान और व्यावहारिक कौशल के बीच के अंतर को कम कर सकता है, जिससे रोज़गार में वृद्धि हो सकती है।
  • गेमिफाइड सिविक एंगेजमेंट प्लेटफॉर्म: युवाओं को नागरिक गतिविधियों और राजनीतिक प्रक्रियाओं से जोड़े रखने के लिये गेमिफाइड मोबाइल एप्लीकेशन विकसित किया जा सकता है।
  • नागरिक भागीदारी को एक इंटरैक्टिव अनुभव में बदलकर ये प्लेटफॉर्म अधिक सूचित मतदान को प्रोत्साहित करने में मदद कर सकते हैं, राजनीतिक जागरूकता में वृद्धि कर सकते हैं तथा शासन स्वामित्व की भावना को बढ़ावा दे सकते हैं।
  • पारंपरिक शिल्प में उद्यमिता: पारंपरिक शिल्प को आधुनिक डिज़ाइन और विपणन तकनीकों के साथ एकीकृत करके युवा कारीगरों के बीच उद्यमिता को बढ़ावा दिया जा सकता है।
  • इसमें हस्तशिल्प उत्पादों को ऑनलाइन बेचने के लिये मंच प्रदान करना, ग्रामीण क्षेत्रों में युवाओं के लिये आय के साधन की व्यवस्था करते हुए सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने का प्रयास शामिल हो सकता है।
  • युवा कूटनीति और सांस्कृतिक आदान-प्रदान: वैश्विक समझ, कूटनीति और सीमा पार मित्रता को बढ़ावा देने के लिये भारत तथा अन्य देशों के युवाओं के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान की सुविधा प्रदान करना भी युवाओं के हित में हो सकता है।
  • Y20 शिखर सम्मेलन इसमें अहम भूमिका निभा सकता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. प्रच्छन्न बेरोजगारी का सामान्यतः अर्थ होता है कि (2013)

(a) लोग बड़ी संख्या में लोग बेरोज़गार होते हैं
(b) वैकल्पिक रोज़गार उपलब्ध नहीं है
(c) श्रम की सीमान्त उत्पादकता शून्य है
(d) श्रमिकों की उत्पादकता नीची है

उत्तर: (c)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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