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राष्ट्रीय न्यायिक नीति और NJAC की मांग

  • 02 Dec 2025
  • 103 min read

प्रिलिम्स के लिये: भारत के मुख्य न्यायाधीश, राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग, कॉलेजियम प्रणाली

मेन्स के लिये: उच्च न्यायपालिका के लिये नियुक्ति प्रक्रिया: कॉलेजियम प्रणाली बनाम NJAC, न्यायिक नीति।

स्रोत: TH

चर्चा में क्यों? 

भारत के मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत ने न्यायालयों में मतभेद को कम करने के लिये एक राष्ट्रीय न्यायिक नीति बनाने का आह्वान किया और यह भी कहा कि कॉलेजियम प्रणाली को चुनौती देने वाले और राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) को फिर से शुरू करने की मांग करने वाले एक याचिका पर विचार करेंगे।

राष्ट्रीय न्यायिक नीति की क्या आवश्यकता है?

  • भिन्न निर्णयों का समाधान: विभिन्न उच्च न्यायालय और यहाँ तक ​​कि सर्वोच्च न्यायालय की पीठें भी अक्सर प्रमुख मुद्दों (जमानत, आरक्षण) पर परस्पर विरोधी निर्णय सुनाती हैं, जिससे कानूनी अनिश्चितता उत्पन्न होती है और फोरम शॉपिंग (अधिक अनुकूल परिणाम प्राप्त करने के लिये अनुकूल न्यायालय का चयन करना) को बढ़ावा मिलता है।
    • एक एकीकृत नीति समान मानकों को सुनिश्चित करेगी, मिसालों के अधिक प्रभावी उपयोग को संभव बनाएगी तथा सुसंगत संवैधानिक व्याख्या के माध्यम से स्पष्टता और जनता का विश्वास दोनों बढ़ाएगी।
  • न्याय तक पहुँच के अंतर को कम करना: लंबित मामलों की भारी संख्या (5 करोड़ से अधिक), सुनवाई में बहुत ज़्यादा समय लगना, मुकदमेबाज़ी की उच्च लागत, दूरी अधिक होने के कारण कोर्ट तक न पहुँच पाना और भाषा संबंधी बाधाएँ, विशेष रूप से हाशिये पर रहने वाले समूहों के लिये समय पर सुलभ और किफायती न्याय में बाधा डालती हैं।
    • एक राष्ट्रीय न्यायिक नीति एकसमान मानकों को बढ़ावा देकर लागत, दूरी, सुनवाई में देरी तथा भाषाई बाधाओं से उत्पन्न बाधाओं को कम कर सकती है।
  • संरचनात्मक अंतरालों को दूर करना: भारत न्याय रिपोर्ट 2025 से पता चलता है कि उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के लगभग 33% पद रिक्त हैं, जिससे भारत में प्रत्येक 18.7 लाख लोगों पर केवल एक उच्च न्यायालय न्यायाधीश रह गया है, जिससे पहले से ही अत्यधिक दबाव में चल रही न्यायपालिका पर और अधिक बोझ पड़ रहा है।
    • ज़िला न्यायालयों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जैसे: अदालत कक्षों में अत्यधिक भीड़, खराब या अपर्याप्त आईटी सिस्टम, अग्नि सुरक्षा की कमी, पर्याप्त फर्नीचर का न होना और कर्मचारियों के लिये कुशल सुविधाओं का अभाव
    • एक राष्ट्रीय न्यायिक नीति न्यायपालिका के सभी स्तरों पर व्यवस्थित क्षमता निर्माण का मार्गदर्शन कर सकती है।
  • प्रौद्योगिकी और केस प्रबंधन का मानकीकरण: ई-फाइलिंग, वर्चुअल सुनवाई और डिजिटल केस प्रबंधन को अपनाना न्यायालयों में व्यापक रूप से भिन्न होता है, जिससे असमान पहुँच और असंगत उपयोगकर्त्ता अनुभव होता है, एक सामान्य नीति सभी न्यायालयों में एक समान, नागरिक-अनुकूल अनुभव सुनिश्चित करती है।
  • न्यायिक सद्भाव को बढ़ावा देना: एक एकीकृत ढाँचा सभी न्यायालयों को उनकी स्वतंत्रता संरक्षित करते हुए समान संवैधानिक मूल्यों को बनाए रखने में मदद करता है, जिससे न्याय प्रणाली में सामंजस्य स्थापित होता है।

राष्ट्रीय न्यायिक नीति से संबंधित चिंताएँ क्या हैं?

  • राज्यों के बीच असमानताओं की चुनौती: न्यायपालिका में राज्यों के स्तर पर मामलों की संख्या, बुनियादी ढाँचे, डिजिटल तैयारी और मानव संसाधन में बड़े अंतर मौज़ूद हैं। ऐसे में एक समान राष्ट्रीय नियम या वन-साइज़-फिट्स-ऑल मॉडल इन विविध न्यायिक परिस्थितियों के लिये प्रभावी साबित नहीं हो सकता।
  • कार्यपालिका के प्रभाव का जोखिम: यदि नीति प्रक्रिया में कार्यपालिका शामिल है तो इससे शक्तियों के पृथक्करण और न्यायिक स्वतंत्रता के बारे में चिंताएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
  • कार्यान्वयन क्षमता अंतराल: कई न्यायालयों में कर्मचारियों, निधियों, डिजिटल उपकरणों और बुनियादी ढाँचे की कमी है, जिससे देश भर में एक समान मानकों को लागू करना मुश्किल हो जाता है।
  • उच्च न्यायालयों का प्रतिरोध: अनुच्छेद 214-226 के तहत उच्च न्यायालय अपनी प्रक्रियाओं, रोस्टरों और प्रशासनिक प्रथाओं को स्वयं नियंत्रित करते हैं। एकरूपता को संस्थागत प्रतिरोध का सामना करना पड़ सकता है।
  • न्यायिक आँकड़ों की समस्या: कई राज्यों के न्यायालयों में वास्तविक समय (Real-time) के मामलों की संख्या (Case-flow), लंबित मामले और न्यायालयों के प्रदर्शन से संबंधित सटीक आँकड़े उपलब्ध नहीं हैं। डेटा की इसी कमी के कारण ठोस सबूतों पर आधारित कोई भी नीति बनाना मुश्किल हो जाता है।

राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) क्या है?

  • NJAC: NJAC को 99वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2014 के माध्यम से सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिये कॉलेजियम प्रणाली को प्रतिस्थापित करने के लिये अधिनियमित किया गया था। 
    • NJAC प्रणाली के तहत, राष्ट्रपति को छह सदस्यीय आयोग द्वारा ‘अनुशंसित’ न्यायाधीशों की नियुक्ति करनी थी, जिसमें अध्यक्ष के रूप में मुख्य न्यायाधीश, सर्वोच्च न्यायालय के दो वरिष्ठतम न्यायाधीश, केंद्रीय कानून और न्याय मंत्री और दो प्रतिष्ठित व्यक्ति शामिल थे।
      • इन प्रतिष्ठित व्यक्तियों का चयन प्रधानमंत्री, भारत के मुख्य न्यायाधीश और लोकसभा में विपक्ष के नेता वाली एक समिति द्वारा किया जाना था।
  • NJAC को रद्द किया गया: वर्ष 2015 में (चौथे न्यायाधीशों के मामले में), सर्वोच्च न्यायालय ने 99वें संशोधन और NJAC अधिनियम को असंवैधानिक घोषित करते हुए रद्द कर दिया। न्यायालय ने तर्क दिया कि कार्यकारी (Executive) और गैर-न्यायिक सदस्यों को वीटो (निषेधाधिकार) शक्ति देने से न्यायपालिका की स्वतंत्रता कमज़ोर होती है, जबकि यह स्वतंत्रता संविधान की मूल संरचना की एक विशेषता है।
    • न्यायिक नियुक्तियों में ‘प्रतिष्ठित व्यक्तियों’ को चुनने के लिये मानदंड स्पष्ट नहीं हैं, जिससे कार्यकारी शाखा (सरकार) का हस्तक्षेप बहुत अधिक बढ़ जाने का खतरा है, क्योंकि सरकार ही न्यायालयों में सबसे बड़ी वादी होती है, इसलिये इन आपसी दायित्वों के कारण न्याय की निष्पक्षता खतरे में पड़ सकती है।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने कॉलेजियम प्रणाली को बहाल कर दिया तथा इस बात पर ज़ोर दिया कि नियुक्तियों में न्यायिक प्रधानता मूल संरचना के लिये आवश्यक है।

कॉलेजियम बनाम NJAC विवाद

पहलू

कॉलेजियम प्रणाली

NJAC

प्रधानता

नियुक्तियों में न्यायपालिका को पूर्ण प्राथमिकता प्राप्त है। 

न्यायिक प्रधानता को कम कर दिया गया तथा कार्यपालिका और प्रतिष्ठित व्यक्तियों को समान अधिकार प्रदान किये गए।

पारदर्शिता

कॉलेजियम प्रणाली में नियुक्ति के कोई सार्वजनिक मापदंड या रिकॉर्ड नहीं रखे जाते हैं, जिससे यह पूरी प्रक्रिया अस्पष्ट बन जाती है। इससे यह चिंता पैदा होती है कि ‘न्यायाधीशों द्वारा न्यायाधीशों की नियुक्ति’ से पारदर्शिता और जाँच एवं संतुलन (Checks and Balances) की प्रक्रिया कमज़ोर होती है।

राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि यह न्यायिक नियुक्तियों में अधिक विविध आवाज़ों (केवल न्यायाधीशों के बजाय अन्य सदस्य भी शामिल) और अधिक पारदर्शी (खुली) प्रक्रियाओं को शामिल करने का प्रस्ताव करता था।

वीटो शक्ति

कोई वीटो नहीं और निर्णय सर्वसम्मति एवं पुनरावृत्ति नियम पर आधारित।

NJAC में कोई भी दो सदस्य (जिनमें न्यायिक और गैर-न्यायिक सदस्य दोनों शामिल थे) किसी भी उम्मीदवार की नियुक्ति को रोकने (वीटो) की शक्ति रखते थे।

जोखिम

इस प्रणाली पर मुख्य रूप से भाई-भतीजावाद, जवाबदेही (उत्तरदायित्व) की कमी और गोपनीयता बरतने के आरोप लगते हैं।

न्यायिक नियुक्तियों में राजनीतिक हस्तक्षेप का खतरा हमेशा बना रहता है और यदि ऐसा होता है तो यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिये एक बड़ा खतरा बन जाता है।

न्यायिक स्वतंत्रता

मूल ढॉंचे के हिस्से को बरकरार रखा गया (केशवानंद भारती मामला (1973))

सर्वोच्च न्यायालय ने सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन बनाम भारत संघ (2015) मामले में यह माना कि राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता से समझौता किया है (अर्थात् न्यायिक स्वतंत्रता को कमज़ोर किया है)।

क्षमता

न्यायिक नियुक्तियों में देरी का मुख्य कारण सरकारी मंज़ूरी (Government Approval) मिलने में लगने वाला समय और अनौपचारिक प्रक्रियाओं का उपयोग है।

एक संरचित आयोग होने से समय सीमा का पालन सुनिश्चित किया जा सकता था।

सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्तियों का आधार

  • अनुच्छेद 124 (नियमित नियुक्ति): राष्ट्रपति भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) और अन्य न्यायाधीशों से परामर्श करके सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति करते हैं।
  • अनुच्छेद 217 (नियमित नियुक्ति): राष्ट्रपति उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति करते हैं। इसके लिये वे मुख्य न्यायाधीश, संबंधित राज्य के राज्यपाल और उस उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श लेते हैं।
  • अनुच्छेद 127 (तदर्थ न्यायाधीश - Ad-hoc Judges): यदि सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की पर्याप्त संख्या (कोरम) उपलब्ध नहीं है तो मुख्य न्यायाधीश (राष्ट्रपति की सहमति लेकर) किसी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को अस्थायी रूप से सर्वोच्च न्यायालय में काम करने के लिए बुला सकते हैं।
  • अनुच्छेद 126 (कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश): यदि मुख्य न्यायाधीश का पद रिक्त है या वे अनुपस्थित हैं तो राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायालय के सबसे वरिष्ठ उपलब्ध न्यायाधीश को कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करते हैं।
  • अनुच्छेद 128 (सेवानिवृत्त न्यायाधीश): राष्ट्रपति की सहमति से मुख्य न्यायाधीश किसी सेवानिवृत्त सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को एक निश्चित अवधि के लिये सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में कार्य करने का अनुरोध कर सकते हैं।
  • नियुक्ति प्रक्रिया:
    • मुख्य न्यायाधीश: निवर्तमान मुख्य न्यायाधीश आमतौर पर वरिष्ठता के आधार पर उत्तराधिकारी की सिफारिश करते हैं।
    • सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश: मुख्य न्यायाधीश कॉलेजियम के सदस्यों और उम्मीदवार के उच्च न्यायालय के वरिष्ठतम न्यायाधीश से परामर्श करके सिफारिश शुरू करते हैं, जिनकी राय लिखित रूप में दर्ज की जाती है।
      • कॉलेजियम की सिफारिश कानून मंत्री को भेजी जाती है, फिर प्रधानमंत्री को तथा प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा नियुक्ति की जाती है।
    • उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश/न्यायाधीश: उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा मुख्य न्यायाधीश और राज्य के राज्यपाल के परामर्श से की जाती है।
      • अवर न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया समान है, सिवाय इसके कि संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से भी परामर्श किया जाता है।

भारत में न्यायपालिका को मज़बूत बनाने के लिये कौन-से उपाय किये जा सकते हैं?

  • लचीले संघीय डिज़ाइन के साथ न्यायिक नीति: राष्ट्रीय न्यायिक नीति को स्थिरता के लिये कुछ व्यापक राष्ट्रीय मानक निर्धारित करने चाहिये। साथ ही उच्च न्यायालयों को यह अनुमति देनी चाहिये कि वे अपनी क्षेत्रीय आवश्यकताओं, संसाधनों और मामलों की वास्तविक संख्या (केसलोड) के आधार पर प्रक्रियाओं को बदल सकें।
  • मामला प्रबंधन और समयसीमा का संस्थागतकरण: सभी न्यायालयों में देरी कम करने के लिये, मामला दाखिल करने, सुनवाई के लिये सूचीबद्ध करने, स्थगन (Adjournment) और निपटान लक्ष्य (Disposal Targets) हेतु एक समान नियम अपनाए जाने चाहिये।
  • पारदर्शी और समयबद्ध नियुक्तियाँ: चाहे कॉलेजियम में सुधार के माध्यम से या भविष्य में सहमति से नियुक्ति करने वाले निकाय के माध्यम से पूर्वानुमानित, मानदंड-आधारित और समय पर न्यायिक नियुक्तियाँ सुनिश्चित करना।
  • न्याय तक पहुँच में विस्तार: न्याय की लागत और दूरी संबंधी बाधाओं को कम करने के लिये क्षेत्रीय न्यायालयों, स्थानीय भाषा सेवाओं, कानूनी सहायता, मोबाइल न्यायालयों और ADR तंत्र (विशेष रूप से मध्यस्थता) में निवेश करना चाहिये।

निष्कर्ष:

राष्ट्रीय न्यायिक नीति की मांग यह दर्शाती है कि न्यायालयों में आधुनिकता लाने, विचलन कम करने और न्याय को अधिक सुलभ, पारदर्शी और पूर्वानुमेय बनाने की तत्काल आवश्यकता है। NJAC और कॉलेजियम पर बहस के फिर से उभरने के बीच, आगे का मार्ग ऐसे सुधारों में निहित है जो संविधान के मूल ढाँचे की आधारशिला, न्यायिक स्वतंत्रता को बनाए रखते हुए न्यायिक दक्षता को मज़बूत करें।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न:  राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) को पुनर्जीवित करने के पक्ष और विपक्ष में तर्कों का परीक्षण कीजिये। 

 

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ) 

1. NJAC क्या था और इसका गठन किस प्रकार हुआ?
NJAC (99वें संविधान संशोधन, 2014 के माध्यम से निर्मित) छह सदस्यों वाला एक आयोग था, जिसका काम सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों में नियुक्तियों की सिफारिश करना था। इस आयोग के सदस्य थे: मुख्य न्यायाधीश (CJI), सर्वोच्च न्यायालय के दो वरिष्ठ न्यायाधीश, कानून मंत्री, दो 'प्रतिष्ठित व्यक्ति' (Eminent Persons)

2. सर्वोच्च न्यायालय ने 2015 में NJAC को क्यों रद्द कर दिया?
चौथे न्यायाधीश मामले (2015) में न्यायालय ने NJAC को असंवैधानिक ठहराया, यह पाते हुए कि कार्यकारी और गैर-न्यायिक वीटो शक्तियाँ न्यायिक स्वतंत्रता को कमज़ोर करती हैं, जो संविधान की मूल संरचना की एक विशेषता है।

3. कॉलेजियम प्रणाली क्या है?
कॉलेजियम एक न्यायिक रूप से विकसित प्रणाली है जिसमें मुख्य न्यायाधीश और वरिष्ठ न्यायाधीश उच्च न्यायपालिका में नियुक्तियों की सिफारिश करते हैं।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)

  1. भारत के संविधान के 44वें संशोधन द्वारा लाए गए एक अनुच्छेद ने प्रधानमंत्री के चुनाव को न्यायिक पुनरावलोकन से परे कर दिया।  
  2. भारत के संविधान के 99वें संशोधन को भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने विखंडित कर दिया क्योंकि यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता का अतिक्रमण करता था।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1

(b) केवल 2

(c) 1 और 2 दोनों

(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (b)

मेन्स:

प्रश्न. भारत में उच्च न्यायपालिका के न्यायाधीशों की नियुक्ति के संदर्भ में 'राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम, 2014' पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये। (2017)

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