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भारतीय अर्थव्यवस्था

निर्माण-परिचालन-हस्तातंरण

  • 08 Jun 2019
  • 8 min read

चर्चा में क्यों?

ढाँचागत क्षेत्र (Infrastructure Sector) में बढ़ते व्यय को देखते हुए सरकार ने राजमार्ग परियोजनाओं के सफल क्रियान्वयन हेतु BOT मॉडल (Build-Operate-Transfer Model) को पुनः अपनाने का फैसला किया है। इस मॉडल के अंतर्गत बनने वाली परियोजनाओं में सरकार को अपने खजाने से पूंजी नहीं लगानी होती है। वर्ष 2015 में सरकार ने राजमार्ग परियोजनाओं के क्रियान्वयन हेतु हाइब्रिड-एन्यूटी-मॉडल (Hybrid-Annuity Model- HAM) को अपनाया था परंतु बैंकों ने इस परियोजना में पूंजी लगाने में उदासीनता दिखाई जिसके कारण इसकी महत्ता में कमी आई।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • BOT मॉडल के तहत निजी निवेश में वृद्धि होगी।
  • BOT ढाँचे के तहत बनने वाली परियोजनाओं में सरकार को अपने खजाने से पूंजी लगाने की आवश्यकता नहीं होती है।
  • अब तक अपनाए गए HAM मॉडल के तहत केंद्र सरकार राजमार्ग परियोजना लागत का 40 प्रतिशत स्वयं वहन करती थी, जबकि 60 प्रतिशत राशि की व्यवस्था डेवलपर द्वारा की जाती थी।
  • वर्ष 2015 में ढाँचागत क्षेत्र में निजी निवेश को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से HAM मॉडल को लाया गया था। बैंकों द्वारा दिये जा रहे ऋण के कारण यह मॉडल सफल रहा परंतु ऋण अदा करने में कोताही बरतने के साथ ही इसका महत्त्व कम हो गया।
  • बैंकों द्वारा ऐसी परियोजनाओं को ऋण प्रदान करना आरक्षण के दायरे में आता था। परंतु मामला तब विपरीत हो गया जब बैंकों को इस बात का पता चला कि बगैर इक्विटी के ये निजी कंपनियाँ अपने संपूर्ण 60 प्रतिशत हिस्सेदारी के लिये ऋण की मांग कर रही हैं। कंपनी के इस रवैये के विरुद्ध बैंकों ने ऋण जारी करने पर आपत्ति शुरू कर दी।
  • भारतीय रिज़र्व बैंक ने पिछले साल त्वरित सुधार कार्रवाई के तहत 11 सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को बुनियादी ढाँचा परियोजना हेतु ऋण प्राप्त करने के लिये अधिकृत किया था।
  • बाद में गैर निष्पादित परिसंपत्ति की स्थिति को देखते हुए उनके ऋण देने के अधिकार को प्रतिबंधित कर दिया गया था। हालाँकि उनमें से कुछ बैंकों को PCA सूची से बाहर कर दिया गया था।
  • BOT के तहत निजी निवेशक परिसंपत्ति को सरकार को वापस करने से पूर्व निश्चित अवधि हेतु  सड़क का निर्माण, संचालन और रखरखाव करते हैं।
  • राजमार्ग परियोजना में निजी कंपनियों ने काफी रुचि दिखाई है जिसके कारण सरकार BOT मॉडल के लिये लगने वाली बोलियों (Bid) के प्रति बेहद आशान्वित है।
  • विशेषज्ञों के अनुसार सरकार ने विगत चार वर्षों में बुनियादी ढाँचे में निवेश के मामले में भारी फेर-बदल की है इसलिये अब बुनियादी ढाँचे के लिये निजी निवेश प्राप्त करना महत्त्वपूर्ण होगा।

BOT मॉडल के पुनर्जीवन से निजी निवेश में वृद्धि होगी जिससे बाज़ार की अनिश्चितता और जोखिम में कमी आएगी।

BOT मॉडल

  • BOT निजी-सार्वजनिक भागीदारी (Public Private Partnership) मॉडल है जिसके अंतर्गत निजी साझेदार के पास अनुबंधित अवधि के दौरान ढांचागत परियोजना के डिज़ाइन, निर्माण एवं परिचालन की पूरी ज़िम्मेदारी होती है।
  • BOT अनुबंध के तहत, आमतौर पर एक सरकारी इकाई, निजी कंपनी को ढाँचागत परियोजना के निर्माण का उत्तरदायित्व सौंपती है।
  • एक निजी कंपनी को इस परियोजना के वित्तपोषण, निर्माण और संचालन हेतु कुछ रियायत प्रदान की जाती है।
  • कंपनी को परियोजना में किये गए निवेश को  पुनः प्राप्त करने हेतु एक निश्चित अवधि जैसे-20 या 30 वर्ष का समय दिया जाता है।
  • परियोजना के पूर्ण होने के बाद पुनः इसे सरकार को सौंप दिया जाता है।

HAM मॉडल

  • HAM मॉडल BOT और EPC (Engineering, Procurement and Construction) का मिश्रित रूप है।
  • EPC मॉडल के तहत NHAI निजी कंपनी को सड़क बनाने का कार्य सौंपती है।
  • BOT के विपरीत सड़क का रखरखाव, टोल संग्रह या  स्वामित्व निजी कंपनी के पास न होकर सरकार के पास होता है।
  • BOT मॉडल में जहाँ संपूर्ण वित्त-व्यवस्था की ज़िम्मेदारी निजी कंपनियों की होती है वहीं HAM मॉडल में सरकार से टोल राजस्व या वार्षिक शुल्क एकत्र किया जाता है।
  • HAM मॉडल के तहत केंद्र सरकार राजमार्ग परियोजना लागत का 40 प्रतिशत स्वयं वहन करती है, जबकि 60 प्रतिशत राशि की व्यवस्था डेवलपर द्वारा की जाती है।

PPP मॉडल के तहत संचालित होने वाले कुछ अन्य मॉडल:

  • Build-Own-Operate (BOO)
  • Build-Operate-Lease-Transfer (BOLT)
  • Design-Build-Operate-Transfer (DBFOT)
  • Lease-Develop-Operate (LDO)

निजी-सार्वजनिक सहयोग से चलने वाले ये मॉडल निवेश, स्वामित्त्व, जोखिम प्रबंधन के मामले में एक-दूसरे से भिन्न होते हैं-

  • BOO (Build-Own-Operate): इस मॉडल के अंतर्गत निर्मित नई सुविधाओं का स्वामित्त्व निजी साझेदार के पास होता है। प्रस्तावित परियोजना के अंतर्गत निर्मित वस्तुओं और सेवाओं की खरीद निर्धारित नियमों एवं शर्तों के आधार पर की जाती है।
  • BOLT (Build-Operate-Lease-Transfer): इस मॉडल में सरकार एक निजी साझेदार को सार्वजनिक हित की सुविधाओं के निर्माण हेतु कुछ रियायतें देती है, साथ ही इसके डिज़ाइन, स्वामित्त्व, सार्वजनिक क्षेत्र के  पट्टे का अधिकार भी देती है।
  • DBFOT (Design-Build-Operate-Transfer): इस मॉडल में अनुबंधित अवधि के लिये परियोजना के डिजाईन, उसके विनिर्माण, वित्त और परिचालन का उत्तरदायित्त्व निजी साझीदार पर होता है।  
  • LDO (Lease-Develop-Operate): इस प्रकार के निवेश मॉडल में या तो सरकार या सार्वजनिक क्षेत्र के पास नवनिर्मित बुनियादी ढाँचे की सुविधा का स्वामित्व होता है।

स्रोत- बिज़नेस स्टैंडर्ड

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