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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

कृत्रिम गर्भ

  • 22 Aug 2017
  • 3 min read

चर्चा में क्यों ? 

जापान और ऑस्ट्रेलिया के शोधकर्त्ताओं ने एक ऐसे कृत्रिम गर्भ का विकास किया है जिससे 22 से 23 सप्ताह में पैदा होने वाले शिशुओं का प्रभावी उपचार और विकास किया जा सकता है।  

शोधकर्त्ताओं को आशा है कि इस प्रौद्योगिकी (कृत्रिम गर्भ) के विकास से समयपूर्व जन्म लेने वाले बच्चों (premature babies) को जीवित रखने में काफी सहायता मिल सकती है।  इस प्रौद्योगिकी का प्रयोग एक मेमने (भेड़ का बच्चा ) पर सफलतापूर्वक किया जा चुका है।  

प्रमुख बिंदु 

  • यह शोध “द अमेरिकन जर्नल ऑफ ऑब्स्टेट्रिक्स एंड गाइनेकोलॉजी” (The American Journal of Obstetrics & Gynecology) में प्रकशित हुआ है।  
  • इस जर्नल में यह बताया गया है कि एक्स-विवो यूट्रिन एंवायरमेंट (ईवीई) थेरेपी का उपयोग करते हुए एक मेमने को एक स्वस्थ एवं संक्रमण रहित हालत में महत्त्वपूर्ण वृद्धि के साथ एक सप्ताह की अवधि के लिये कृत्रिम गर्भ में सफलतापूर्वक रखा गया था। 

क्या है कृत्रिम गर्भ?

  • यह उपकरण मूलतः एक हाई-टेक एमनियोटिक द्रव (amniotic fluid bath) है, जिसे एक कृत्रिम गर्भनाल के साथ जोड़ा जाता है। इसे एक कृत्रिम गर्भ कहा जा सकता है।  इसमें शिशु को उपचार एवं निगरानी के लिये रखा जा सकता है।  

एक्स-विवो यूट्रिन एंवायरमेंट (ईवीई) थेरेपी

  • इस शोध के दौरान एक्स-विवो यूट्रिन एंवायरमेंट (ईवीई) थेरेपी (ex-vivo uterine environment (EVE) therapy) के उपयोग से समयपूर्व पैदा हुए मेमने को एक हफ्ते तक स्वस्थ, संक्रमण रहित माहौल में सफलतापूर्वक रखने में कामयाबी मिली। 

इस तकनीक का महत्त्व 

  • इस तकनीक के विकास से समयपूर्व शिशुओं को रोगों से बचाया जा सकता है। ऐसे शिशुओं के उपचार के लिये अभी तक ऐसी कोई तकनीक मौजूद नहीं है।  
  • गर्भकालीन चरण में शिशुओं के फेफड़े ढाँचागत और कार्यात्मक रूप से इतने कम विकसित होते हैं कि वे आसानी से साँस नहीं ले सकते हैं। परंतु इसके विकास से वे आसानी से साँस ले सकते हैं। 
  • यह परियोजना अंतर्राष्ट्रीय सहयोग का एक बढ़िया उदाहरण है।  
  • इसमें जापान और पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के अग्रणी अकादमिक शोधकर्त्ता एक साथ शोध कर रहे हैं और जापान की बायोमेडिकल टेक्नोलॉजी कंपनियों में से एक- निपरो निगम (Nipro Corporation) भी इसमें करीबी साझेदार है।
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