इंदौर शाखा: IAS और MPPSC फाउंडेशन बैच-शुरुआत क्रमशः 6 मई और 13 मई   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

रसायन विज्ञान के क्षेत्र में 2017 का नोबल पुरस्कार

  • 05 Oct 2017
  • 7 min read

चर्चा में क्यों?

द रॉयल स्वीडिश अकेडमी द्वारा रसायन के क्षेत्र में बायोमॉलक्यूल्स (Biomolecules) के सॉल्यूशन की उच्च संकल्प संरचना निर्धारण करने हेतु क्रायो इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी (Cryo-Electron Microscopy) के विकास के लिये वर्ष 2017 का नोबेल पुरस्कार तीन वैज्ञानिकों जैकस डुबोश (Jacques Dubochet), वॉकीम फ्रैंक (Joachim Frank) और रिचर्ड हेंडरसन (Richard Henderson) को संयुक्त रूप से प्रदान किया गया। 

इस शोध की पृष्ठभूमि क्या है?

  • 1970 के दशक तक किसी कोशिका अथवा वायरस के विषय में बारीकी से अध्ययन करने का एक मात्र तरीका इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप हुआ करता था। इसके अंतर्गत समस्या यह थी कि इस माइक्रोस्कोप की शक्तिशाली तरंगों से कोशिका अथवा वायरस के जैविक घटक नष्ट हो जाते थे। 
  • इसी कारण वैज्ञानिकों द्वारा यह माना गया कि इसका इस्तेमाल केवल मृत कोशिकाओं एवं मृत जीवों के विषय में पता लगाने में किया जाना चाहिये। 
  • इसके अतिरिक्त उस समय माइक्रोस्कोप के माध्यम से किसी तरल की संरचना के विषय में पता लगाना भी आसान नहीं था। 

शोध से संबंधित प्रमुख बिंदु

  • उल्लेखनीय है कि रिचर्ड हेंडरसन द्वारा इस संबंध में कार्य आरंभ किया गया, जिसका परिणाम यह हुआ कि अब माइक्रोस्कोप के माध्यम से किसी तरल में निहित बायोमॉलिक्यूल की हाई रिजॉल्यूशन संरचना के विषय में आसानी से पता लगाया जा सकता है।
  • वॉकीम फ्रैंक द्वारा इस तकनीक के इस्तेमाल से चित्र तैयार करने का एक ऐसा तरीका विकसित किया, जिसमें इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप द्वारा द्विआयामी चित्रों का सटीक रूप में विश्लेषण कर उन्हें एक तीक्ष्ण त्रि-आयामी संरचना में ढाल दिया जाता है।
  • वहीं वैज्ञानिक जैकस डुबोश द्वारा इस शोध को एक नया आयाम प्रदान करते हुए तरल संरचना को भी इससे संबद्ध कर दिया गया। इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप द्वारा जल की संरचना के विषय में अध्ययन करने पर ज्ञात होता है कि जब जल वाष्पित होता है तो इसके बायोमॉलक्यूल्स टूट जाते हैं।
  • इसी कारण डुबोश द्वारा जल को कांच जैसी संरचना (supercooled liquid) में परिवर्तित करने के संबंध में कार्य आरंभ किया गया। अर्थात् जल को इतनी तेज़ी से ठंडा करना कि उसमें निहित जैविक पदार्थ के चारों ओर की संरचना तरल से ठोस में परिवर्तित हो जाए। इससे बायोमॉलक्यूल्स निर्वात में भी अपने प्राकृतिक स्वरूप को बनाए रख सकने में सक्षम हो जाते हैं।
  • इस खोज के आधार पर जीवन की जटिल संरचनाओं के विषय में अधिक-से-अधिक विस्तृत एवं स्पष्ट तस्वीरें प्राप्त की जा सकेंगी।
  • नोबेल कमेटी द्वारा जारी बयान में कहा गया है कि इस शोध के बल पर शोधकर्त्ताओं द्वारा अब बायोमॉलक्यूल्स की त्रि-आयामी तस्वीरें भी प्राप्त की जा सकती है। स्पष्टता यह रसायन विज्ञान के क्षेत्र में एक बहुत बड़ी उपलब्धि साबित होगी।

क्रायो-इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी क्या होती है?

  • "क्रायो" क्रायोजेनिक का संक्षिप्त रूप होता है। इस शब्द को न्यूनतम तापमान के संदर्भ में प्रयोग किया जाता है। 
  • हालाँकि इसके अंतर्गत वास्तविक तापमान को बहुत अच्छी तरह से परिभाषित नहीं किया जाता है, तथापि यह शून्य से तकरीबन 150 डिग्री सेल्सियस कम होता है। 
  • इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी के संदर्भ में यह शब्द इस बात को संदर्भित करता है कि जिस पदार्थ के विषय में इसके अंतर्गत अध्ययन करना है उसे इतने कम तापमान पर फ्रीज़ कर दिया जाए कि उसके संबंध में एक-एक चीज़ के विषय में बहुत अधिक सूक्ष्म स्तर पर जानकारियाँ हासिल की जा सकें।
  • यह पद्धति इतनी अधिक प्रभावी है कि हाल के दिनों में इसका इस्तेमाल रहस्यमयी ज़िका वायरस के विषय में अध्ययन करने में भी किया गया। 
  • शुरुआत में जब शोधकर्त्ताओं को इस बात का संदेह हुआ कि ज़िका वायरस नवजात शिशुओं में मस्तिष्क-क्षतिग्रस्तता जैसी महामारी उत्पन्न कर रहा है, तो उनके द्वारा क्रायो-ईएम को वायरस की कल्पना करने के रूप में इस्तेमाल किया गया। 
  • इसका परिणाम यह हुआ कि कुछ महीनों में ही वैज्ञानिकों को परमाणु रिज़ॉल्यूशन में वायरस के त्रिमितीय (3 डी) चित्र प्राप्त करने में सफलता हासिल हो गई। इसके पश्चात् उनके लिये इस महामारी हेतु उपयुक्त उपचार खोजने की दिशा में खोज शुरू कर दी गई।

रसायन के नोबल से संबंधित कुछ रोचक तथ्य

  • गौरतलब है कि रसायन विज्ञान के क्षेत्र में अब तक कुल चार महिलाओं को नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। 
  • इसके अतिरिक्त फेडरिक सेंगर एक मात्र ऐसे वैज्ञानिक हैं, जिन्हें दो बार रसायन विज्ञान के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। इन्हें वर्ष 1958 एवं वर्ष 1980 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
  • ध्यातव्य है कि रसायन विज्ञान के क्षेत्र में अभी तक सबसे कम उम्र (35 वर्ष की आयु) में नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाले वैज्ञानिक फेडरिक जिलोट हैं। 
  • वहीं अभी तक सबसे अधिक उम्र में रसायन का नोबल पुरस्कार प्राप्त करने वाले वैज्ञानिक जॉन बी. फेन हैं, इन्हें 85 वर्ष की आयु में वर्ष 2002 में नोबेल पुरस्कार से सम्मनित किया गया था।
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2