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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

एचपीवी वैक्सीन की महत्ता

  • 12 Oct 2017
  • 8 min read

संदर्भ

उल्लेखनीय है कि भारत में मार्च 2010 में ‘ह्यूमन पैपीलोमा-वायरस’ (human papillomavirus-HPV) वैक्सीन के आरंभिक परीक्षण के स्थगन के पश्चात् पुनः इसी दिशा में कार्य की शुरुआत की जा रही है। विदित हो कि वर्ष 2010 में किये गए इसके आरंभिक परीक्षण में गुजरात के वडोदरा और आंध्र प्रदेश के खम्मम ज़िले की तकरीबन 23,500 लड़कियों को शामिल किया गया था।

प्रमुख बिंदु

  • ध्यातव्य है कि दिल्ली और पंजाब की सरकारों ने भी नवंबर 2016 से 11 से 13 आयुवर्ग की लड़कियों का टीकाकरण करना प्रारंभ कर दिया है।
  • दरअसल, वर्ष 2012 में भारत में गर्भाशय ग्रीवा कैंसर के 123,000 नए मामले दर्ज़ किये गए थे, जबकि इसी वर्ष इस कैंसर के परिणामस्वरूप होने वाली मौतों की संख्या 67,000 थी। यदि वैश्विक स्तर पर देखा जाए तो केवल भारत में ग्रीवा कैंसर से लगभग 25% मौतें हो चुकी हैं।
  • दिल्ली में, मार्च 2017 तक इसके 1,200 टीके लगाए जा चुके हैं तथा पंजाब के दो ज़िलों भठिंडा और मनसा में भी तक़रीबन 10,000 लड़कियों को इस टीकाकरण कार्यक्रम के अंतर्गत कवर कर लिया गया है।  इस कार्यक्रम में भठिंडा के 261 तथा मनसा के 187 स्कूल शामिल हैं।
  • उल्लेखनीय है कि दिल्ली प्रशासन प्रतिवर्ष लगभग 250,000 स्कूली लड़कियों को कवर करने के लिये इस कार्यक्रम के विस्तार पर बल दे रहा है, जबकि पंजाब भी आने वाले समय में इस टीकाकरण कार्यक्रम का विस्तार अपने अन्य पाँच जिलों में करेगा।   
  • विदित हो कि इस टीकाकरण में राज्य के सभी स्कूलों के कक्षा 6 के विद्याथियों को शामिल किया जाएगा। बाइवेलेंट वैक्सीन (bivalent vaccine) में एचपीवी 16 व 18 को शामिल किया जाता है जिसका उपयोग दिल्ली में किया जा रहा है, जबकि क्वाद्रिवेलेंट वैक्सीन (quadrivalent vaccine ) में एचपीवी 16,18, 6 और 11 को शामिल किया जाता है जिसका उपयोग पंजाब में किया जा रहा है।
  • सिक्किम, हरियाणा और तमिलनाडु जैसे राज्यों ने भी इस टीकाकरण कार्यक्रम में अपनी रुचि दिखाई है।
  • चूँकि अनेक राज्यों ने इस टीकाकरण की शुरुआत करने का निर्णय लिया है अतः उनके लिये गुजरात और आंध्र प्रदेश के अनुभवों से सीख लेना आवश्यक है। इस टीकाकरण कार्यक्रम के लिये भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद् (Indian Council of Medical Research -ICMR) ही मुख्य संचालक बल के तौर पर कार्य कर रहा है।

कुछ सिफारिशें

  • चूँकि भारत से पूर्व नेपाल, इंडोनेशिया और श्रीलंका में भी इस वैक्सीन की शुरुआत की जा चुकी थी अतः भारत में इसकी शुरुआत करने से पूर्व इन देशों में भी इसके प्रभाव का आकलन किया गया था।
  • प्रतिरक्षा पर राष्ट्रीय तकनीकी सलाहकार समूह (National Technical Advisory Group on Immunisation)  एचपीवी टीकाकरण की शुरुआत को ‘सार्वभौमिक प्रतिरक्षण कार्यक्रम’ का एक हिस्सा मान रहा है। एचपीवी को निजी क्षेत्रों में उपलब्ध कराया जाता है जो इसकी लागत को आसानी से वहन कर सकते हैं और इसे प्राप्त कर सकते हैं, परन्तु जो गरीब कैंसर के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होते हैं वे इससे वंचित रह जाते हैं।
  • विशेषज्ञ समूह ने टीकाकरण को पूर्णतः स्वैच्छिक तथा अभिभावकों की पूर्व सलाह से ही बच्चों का टीकाकरण करने की सिफारिश की है। इसके अलावा लड़की के टीकाकरण के समय माता में भी ग्रीवा कैंसर जाँच करने की सिफारिश की गई है।
  • हालाँकि, विशेषज्ञों का मानना है कि बच्चों में टीकाकरण के वृहद स्तरीय लाभों का अवलोकन करने के लिये कम से कम 25 वर्षों का समय लगेगा, तथापि 30 से 60 आयुवर्ग की माताओं की जाँच करने से शीघ्र ही सकारात्मक परिणाम प्राप्त होंगे।

टीकाकरण के साथ जाँच आवश्यक 

  • वर्ष 2009 में महाराष्ट्र के ओसमानाबाद ज़िले में किये गए एक अध्ययन के तहत यह पाया गया कि एचपीवी परीक्षण की एक बार जाँच करने से ही ग्रीवा कैंसर और मृत्यु के मामलों में उल्लेखनीय गिरावट आई है।
  • एचपीवी वैक्सीन का अपेक्षित लाभ न मिलने के पीछे इसके विनिर्माताओं और विशेषज्ञों द्वारा यह तर्क दिया गया है कि भारत में कैंसर की जाँच नहीं की जाती, परन्तु एचपीवी टीकाकरण के लिये ग्रीवा कैंसर की जाँच आवश्यक है।
  • टीकाकरण के साथ कैंसर की जाँच भी होनी चाहिये। ग्रीवा कैंसर की जाँच को कुशलता पूर्वक करना भी आई.सी.एम.आर की सिफारिशों का एक भाग है। इसके लिये आरंभिक चरणों में कैंसर इसकी पहचान करना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, टीकाकरण के पश्चात् भी ग्रीवा कैंसर के लिये जाँच जारी रहनी चाहिये।  इसके पीछे कारण यह है कि 16 और 18 एचपीवी सेरोटाइप्स (HPV serotypes) के बावजूद भी 11 अन्य सेरोटाइप के संक्रमण से ग्रीवा कैंसर होता है।
  • भारत में ग्रीवा कैंसर के तकरीबन 77% मामलों का कारण एचपीवी सेरोटाइप 16 और 18 है। अतः चतुर्थक वैक्सीन के साथ टीकाकरण की हुई लड़की भी अन्य प्रकार के सेरोटाइप से संक्रमित हो सकती है। इसी को ध्यान में रखते हुए  9 वेलेंट एचपीवी वैक्सीन को वर्ष 2015 में लाइसेंस दिया गया था।   यह वैक्सीन एचपीवी के कारण होने वाले अन्य सेरोटाइप्स से बचाव करती है।

निष्कर्ष 

वस्तुतः मुंबई स्थित टाटा मेमोरियल सेण्टर के कुछ  कैंसर चिकित्सकों ने यह महसूस किया है कि भारत में गर्भाशय ग्रीवा कैंसर को रोकने के लिये एचपीवी वैक्सीन की आवश्यकता नहीं है। उन्होंने देश के कुछ शहरों में चिकित्सकीय उपचार के बिना ही इस प्रकार के मामलों में गिरावट दर्ज़ की है, जिसका मुख्य कारण व्यक्तिगत स्वच्छता की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित होना है। चार ग्रामीण क्षेत्रों के कैंसर पंजीकरणों में भी दो दशकों से कोई वृद्धि दर्ज़  नहीं की गई है।

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