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निजी, सार्वजनिक तथा राजनीतिक जीवन में नैतिकता

  • 17 May 2019
  • 12 min read

इस Editorial में 14 मई को The Hindu में प्रकाशित Private, Public and Political Morality का विश्लेषण करते हुए सार्वजनिक और निजी जीवन के साथ राजनीतिक जीवन में विभिन्न प्रकार की नैतिकता के बारे में जानकारी दी गई है।

संदर्भ (नैतिकता क्या है?)

आर.एम. मैकाइवर के अनुसार, “नैतिकता का अभिप्राय नियमों की उस व्यवस्था से है, जिसके द्वारा किसी व्यक्ति के अंतर्मन को अच्छे और बुरे का बोध होता है।”

किंग्सले डेविड के अनुसार, “नैतिकता कर्त्तव्य की भावना पर बल देती है अर्थात् उचित और अनुचित के बीच अंतर करना सिखाती है।”

जिसबर्ट के अनुसार, “नियमों की वह व्यवस्था नैतिक नियम कहलाती है जो अच्छे और बुरे से संबद्ध है और जिसका बोध अंतर्मन से होता है।”

प्रो. कोपर के अनुसार, “नैतिकता के साथ व्यवहार के कुछ नियम जुड़े हैं तथा नैतिकता अच्छाई और बुराई का बोध कराती है।”

सरल शब्दों में कहें तो नैतिकता मानव समाज का एक अटूट हिस्सा है। हमारे द्वारा किये गए किसी भी कार्य या निर्णय का नैतिक आधार होता है। मानव समाज में नैतिकता की भूमिका वांछित या अवांछित का निर्धारण करने में निहित है।

नैतिकता एक दार्शनिक अवधारणा है जिसमें सही और गलत अवधारणाओं को व्यवस्थित करना, उनका बचाव करना और अनुशंसा करना शामिल है। नैतिकता अच्छे-बुरे, सही-गलत, गुण-अवगुण और अन्याय की चिंताओं से संबंधित है।

नैतिकता के विभिन्न प्रकार

हालाँकि राजनीतिक, सार्वजनिक और निजी नैतिकता एक ही स्रोत से संबंध रखती हैं और वहीं से आती हैं, फिर भी इन नैतिकताओं में अंतर है अर्थात् वे एक-दूसरे से अलग हैं।

पारस्परिक नैतिकता (Interpersonal Morality)

  • पारस्परिक नैतिकता को उन कर्त्तव्यों के रूप में माना जाता है, किनके लिये हम नैतिक रूप से एक-दूसरे के प्रति ज़िम्मेदार हैं।
  • यह व्यक्तिगत गलतियों से संबंधित है, लेकिन अवैयक्तिक गलतियों के साथ इसका कोई संबंध नहीं है। जैसे कि ऐसी क्रियाएँ जो गलत हैं लेकिन गलत कोई नहीं है। उदाहरणार्थ, संभवतः स्वैच्छिक इच्छामृत्यु, जबकि इससे किसी को कोई हानि या परेशानी नहीं होती।
  • हम दूसरों से जो अपेक्षा करते हैं, वह वही है जो वे हमसे आशा कर सकते हैं तथा यह वह है जिसके लिये उनके पास हमारे खिलाफ एक अधिकार है।
  • निजी नैतिकता व्यक्तिगत प्रतिनिधियों (Individual Agents) के दायित्वों और गुणों से संबंधित है।

सार्वजनिक नैतिकता (Public Morality)

  • इस प्रकार की नैतिकता में लोग स्वयं को एक बड़े राजनीतिक समुदाय के सदस्य के रूप में देखते हैं, जैसे किसी देश के नागरिक।
  • सार्वजनिक नैतिकता सामूहिक दायित्वों से संबंधित है और प्रायः परिणामवाद (Consequentialism) की धारणा पर आधारित है।
  • किसी राजनीतिक समुदाय में नागरिकों को न तो भावनाओं से और न ही स्वार्थ से बाध्य होना चाहिये, बल्कि उन्हें सार्वजनिक कारण से खोजे गए सामान्य मूल्यों के प्रति प्रतिबद्ध होना चाहिये। इनमें राजनीतिक स्वतंत्रता, एकजुटता, साझा परंपराओं और सांस्कृतिक विरासत जैसे मूल्य शामिल होने चाहिये।
  • इस वर्ग की नैतिकता के लिये आवश्यक है कि हम रक्त संबंधों के प्रति अपनी निष्ठा से दूर रहें, केवल अपने निजी हितों की चिंता न करें। साझा सिद्धांतों के आधार पर सत्ता का उपयोग करने के लिये प्रतिबद्ध रहें।
  • प्रेम और घृणा इस वर्ग की नैतिकता में धोखा देने का काम करते हैं, जहाँ सार्वजनिक वज़हों के उपयोग से नकली सर्वसम्मति बनाई जाती है।
  • इस वर्ग की नैतिकता के लोकतांत्रिक संस्करण के लिये आवश्यक है कि खुलेपन, समान सम्मान और न्याय के मूल्यों द्वारा निर्देशित होकर हम विचारपूर्वक निष्पक्ष कानूनों और सार्वजनिक नीतियों तक पहुँच बनाने में एक-दूसरे की मदद करें, जो सिद्धांत रूप में सभी के लिये स्वीकार्य हों।

राजनीतिक नैतिकता (Political Morality)

  • राजनीतिक नैतिकता न्याय के प्रति प्रतिबद्धता और निष्पक्षता से निर्देशित होती है।
  • जिन लोगों के पास राजनीतिक शक्ति है, उन्हें यह महसूस करना चाहिये कि उनके पास जो कुछ भी है, उसके परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में लोगों के जीवन को स्थायी रूप से प्रभावित किया जा सकता है।
  • यह अपने साथ वृहद् सार्वजनिक ज़िम्मेदारी लाती है, जिसे इस तथ्य से कोई अंतर नहीं पड़ता कि उनके पास कम-से-कम अस्थायी वैधता है और इस शक्ति का इस्तेमाल वे सामान्य नागरिकों के खिलाफ कर सकें।

क्यों ज़रूरी है राजनीतिक नैतिकता का उच्चतम स्तर?

  • यदि कोई व्यक्ति अपने जीवन में नेक और ईमानदार है, लेकिन न्याय के सिद्धांतों का पालन नहीं कर रहा है, तो इससे समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
  • किसी के निजी जीवन में नैतिक परिशुद्धता (नैतिकता या उत्कृष्टता के उच्च मानक) के अनुरूप सदैव स्वयं राजनीतिक जीवन में उच्च नैतिक कद की गारंटी नहीं होती।

सार्वजनिक पदों के लिये नैतिक मानदंड

सार्वजनिक पद पर आसीन लोगों के लिये नैतिक मानदंड क्या होने चाहिये, इस पर अत्यधिक वक्तव्यों में से एक, संयुक्त राज्य में लोक जीवन में प्रतिमानकों पर समिति से आया था, जो नोलन समिति के नाम से लोकप्रिय थी, जिसमें सार्वजनिक जीवन के निम्नलिखित सिद्धांतों का उल्लेख किया गया-

  1. निःस्वार्थता: सार्वजनिक पद पर बैठे लोगों को जनहित से संबंधित निर्णय स्वयं ही लेने चाहिये। उन्हें अपने, अपने परिवार और मित्रों के लिये वित्तीय या अन्य भौतिक लाभ प्राप्त करने हेतु ऐसा निर्णय नहीं लेना चाहिये।
  2. सत्यनिष्ठा: सार्वजनिक पद पर बैठे लोगों को ऐसे बाहरी व्यक्तियों या संगठनों के साथ वित्तीय या अन्य बाध्यतावश अपने को लिप्त नहीं करना चाहिये, जो कि उनके सरकारी कार्य-निष्पादन को प्रभावित करे।
  3. विषयनिष्ठताः सरकारी काम करते हुए, जिसमें सार्वजनिक नियुक्तियाँ करना, निविदाओं को स्वीकृति देना या किसी व्यक्ति विशेष को पुरस्कार या लाभों की सिफारिश करना शामिल है, का चयन योग्यता के आधार पर करना चाहिये।
  4. जवाबदेही: सरकारी पद पर आसीन लोग अपने निर्णयों और कार्रवाई के लिये जनता के प्रति जवाबदेह होंगे और उनके पद के लिये जो उचित छानबीन आवश्यक हो, की जानी चाहिये। 
  5. निष्कपटता: सरकारी पदधारी को अपने सभी निणर्यों और कार्रवाइयों के संबंध में निष्कपट होना चाहिये। उन्हें अपने निर्णयों के लिये कारणों का उल्लेख करना चाहिये और किसी सूचना को जारी करने  पर तभी रोक लगानी चाहिये जब व्यापक जनहित में ऐसा करना आवश्यक हो।
  6. ईमानदारी: सरकारी पदधारी का यह कर्त्तव्य है कि वह अपने सरकारी काम से संबंधित निजी हितों की घोषणा करे और ऐसे किसी विरोध के समाधान के लिये कदम उठाए जो उन हितों की रक्षा करने में आड़े आते हों।
  7. नेतृत्व: सरकारी पदाधिकारियों को अपने नेतृत्व द्वारा एक मिसाल पेश करते हुए इन सिद्धांतों को विकसित और इनका समर्थन करना चाहिये।

ध्यान रहे, समतामूलक समाज का निर्माण तभी किया जा सकता है, जब सार्वजनिक जीवन में निष्पक्षता के उच्चतम सिद्धांतों का पालन किया जा सके।

अब्राहम लिंकन के ये शब्द आज भी उतने ही खरे उतरते हैं कि, “लगभग सभी पुरुष विपरीत परिस्थितियों के विरुद्ध खड़े हो सकते हैं, लेकिन यदि आप किसी पुरुष के चरित्र का परीक्षण करना चाहते हैं, तो उसे शक्ति दें।“

नैतिक संहिता और आचार संहिता में अंतर

कई बार नैतिक संहिता और आचार संहिता में अंतर करने में कठिनाई होती है। वैसे नैतिक संहिता और आचार संहिता को व्यावहारिक दृष्टि से पूर्णतः पृथक तो नहीं किया जा सकता, क्योंकि दोनों का संबंध प्रशासन में नैतिकता की स्थापना से है, लेकिन इन दोनों में में कुछ सैद्धांतिक अंतर हैं:

  • नैतिक संहिता में नैतिक मूल्यों को शामिल किया जाता है, जबकि आचार संहिता में उन आचरणों एवं कार्यों का उल्लेख होता है जो नैतिक संहिता से सुसंगत तथा उसी पर आधारित होते हैं।
  • नैतिक संहिता सामान्य एवं अमूर्त होती है, जबकि आचार संहिता विशिष्ट एवं मूर्त होती है।
  • नैतिक संहिता के अंतर्गत शासन के प्रमुख मार्गदर्शी सिद्धांतों को रखा जाता है जबकि आचार-संहिता में स्वीकृत एवं अस्वीकृत व्यवहारों की सूचना और कार्रवाई को रखा जाता है।
  • नैतिक संहिता स्थायी होती है जबकि आचार संहिता परिवर्तनशील होती है। जैसे- ‘ईमानदारी’ नैतिक-संहिता का एक पक्ष है जो सदैव जस-का-तस रहता है, लेकिन आचार संहिता में परिवर्तन आवश्यक है क्योंकि समय के साथ-साथ ‘आचरण’ के भिन्न-भिन्न रूप (भ्रष्टाचार, अपराध आदि) सामने आते रहते हैं।

अभ्यास प्रश्न: न्यायपूर्ण समाज बनाने के लिये व्यक्तिगत ईमानदारी और नीति परायणता के बजाय न्याय की भावना में दृढ़ विश्वास आवश्यक है। चर्चा करें।

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