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जैव विविधता और पर्यावरण

भारतीयों में ज़िंक की कमी

  • 20 Apr 2019
  • 4 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में हार्वर्ड टी. एच. चान स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ (Harvard T.H. Chan School of Public Health) द्वारा किये गए एक अध्ययन के अनुसार, हवा में कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर बढ़ने से भारतीय फसलों में ज़िंक/जस्ते की कमी हो रही है, जिससे मनुष्यों के भोजन के पोषण स्तर पर असर पड़ रहा है।

प्रमुख बिंदु

  • वर्ष 1983 से 2012 के बीच जस्ता सेवन में कमी की राष्ट्रीय दर 17% से 25% तक बढ़ गई, जिससे विशेष रूप से बच्चों में मलेरिया, डायरिया और निमोनिया जैसी बीमारियों का जोखिम बढ़ रहा है।
  • बढ़ते कार्बन डाईऑक्साइड (CO2) उत्सर्जन के अलावा लोगों के नियमित आहार में परिवर्तन तथा जनसंख्या की बढ़ती आयु भी ज़िंक की कमी को बढ़ाने के लिये ज़िम्मेदार है।
  • एक अध्ययन के अनुसार, ज़िंक के अपर्याप्त सेवन की उच्चतम दर मुख्य रूप से दक्षिणी और उत्तर-पूर्वी राज्यों जैसे कि केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, मणिपुर और मेघालय में है जहाँ का मुख्य आहार चावल है।
  • क्योंकि चावल में ज़िंक की मात्रा बहुत कम पाई जाती है। अतः जिनकी खाद्य निर्भरता चावल के फसलों पर अधिक होती है ऐसे लोगों के आहार में इसकी कमी बढ़ जाती है।
  • आने वाले दशकों में CO2 का स्तर बढ़ने से इस प्रवृत्ति में और भी तेज़ी आ सकती है।

ज़िंक/जस्ता का महत्त्व

  • मनुष्य के शरीर में जस्ते की उपस्थिति मानव प्रतिरक्षा प्रणाली में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। शरीर में इसकी उपस्थिति बीमारियों की भेद्यता बढ़ाती है।
  • अध्ययन के अनुसार, शहरी आबादी विशेष रूप से शहरी धनी समूहों, जिनके आहार में उच्च कैलोरी और पोषक तत्त्व साथ ही खराब वसा और शर्करा का अनुपात अधिक पाया जाता है, उनमें जस्ते की कमी की दर उच्च होती है।

ज़िंक: Zn

  • ज़िंक या जस्ता एक रासायनिक तत्त्व है जो संक्रमण धातु समूह का एक सदस्य है।
  • इसका परमाणु क्रमांक 30 है।
  • रासायनिक दृष्टि से इसके गुण मैग्नीसियम से मिलते-जुलते हैं।
  • मनुष्य जस्ते का प्रयोग प्राचीनकाल से कर रहा है।
  • कांसा, जो ताँबे व जस्ते की मिश्र धातु है, के उपयोग की जानकारी 10वीं सदी ईसा पूर्व में प्राप्त हुई।
  • 9वीं शताब्दी ई.पू. से राजस्थान में शुद्ध जस्ता बनाए जाने के प्रमाण मिलते हैं और छठीं शताब्दी ई.पू. की एक जस्ते की खान भी राजस्थान में मिली है।
  • लोहे पर जस्ता चढ़ाने से ज़ंग नहीं लगता तथा जस्ते का प्रयोग बैट्रियों में भी बहुत होता है।

zinc

  • बदलते परिवेश में भारतीय आहार भी परिवर्तित हो रहे हैं, मोटे अनाज जैसे बाजरा, ज्वार आदि का सेवन धीरे-धीरे समाप्त हो रहा है। परिणामस्वरुप पोषण स्तर बुरी तरह प्रभावित हो रहा है।
  • आबादी की आयु (जीवन प्रत्याशा) बढ़ने से औसत भारतीय के लिये जस्ते की आवश्यकता 5% बढ़ गई है, क्योंकि वयस्कों को बच्चों की तुलना में अधिक जस्ते की आवश्यकता होती है।

स्रोत- टाइम्स ऑफ इंडिया

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